सोते-सोते जग गए। दोहे का साहित्यिक विवेचन भाग 1 in Hindi Anything by Sonu Kasana books and stories PDF | सोते-सोते जग गए।

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सोते-सोते जग गए।

 ।। दोहा विवचन।।

सोते-सोते जग गए जाग कर फिर गए सो ।

यह जीवन नर पशु का है तू ऐसा मत हो। ।

इस दोहे का साहित्यिक विवेचन ।

यह दोहा "सोते-सोते जग गए, जाग कर फिर गए सो / यह जीवन नर पशु का है, तू ऐसा मत हो" में गहरे दार्शनिक और नैतिक अर्थ समाहित हैं। इसमें मानव जीवन की सार्थकता और जागरूकता के महत्व को उजागर किया गया है। आइए इसका साहित्यिक विवेचन करते हैं:


 **विषय-वस्तु का विवेचन**:
दोहा जीवन के प्रति मनुष्य की चेतना और जागरूकता को केंद्रित करता है। इसमें एक व्यक्ति को संबोधित करते हुए उसे चेताया गया है कि केवल सोने-जागने के चक्र में जीवन व्यतीत करना निरर्थक है। मनुष्य को पशु से अलग मानते हुए कहा गया है कि यदि वह जीवन को समझे बिना ऐसे ही सोने और जागने में खोया रहेगा, तो उसका जीवन पशु के समान हो जाएगा।

**मुख्य भाव और संदेश**:

1. **सोना और जागना (शारीरिक स्तर पर)**:
   - "सोते-सोते जग गए, जाग कर फिर गए सो" में सोना और जागना शारीरिक गतिविधियों को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य केवल शारीरिक आवश्यकताओं में उलझा हुआ है—सोने, खाने, और काम करने में ही अपना जीवन बिता रहा है।

2. **अवचेतना और चेतना (मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर)**:
   - यहाँ "सोना" केवल शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर अचेतन अवस्था का प्रतीक है। मनुष्य अगर जागरूक होकर अपने जीवन का सही उद्देश्य नहीं समझता, तो वह केवल पशु के समान जीवन बिता रहा है।

3. **नर और पशु के बीच अंतर**:
   - मनुष्य ("नर") को पशु से अलग बताया गया है। पशु केवल अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में लगा रहता है, लेकिन मनुष्य को चेतना, बुद्धि और विवेक से संपन्न माना गया है। इसलिए मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह जीवन के उद्देश्य को समझे और उसे सार्थक बनाए।

4. **सावधान करने का भाव**:
   - "तू ऐसा मत हो" कहकर कवि सावधान करता है कि हमें पशुवत जीवन नहीं जीना चाहिए। जीवन में चेतना, विवेक और उद्देश्य का महत्व है, और हमें केवल स्वचालित जीवन नहीं जीना चाहिए, बल्कि जीवन के गहरे अर्थों की खोज करनी चाहिए।

 **शैलीगत विवेचन**:

1. **सरल भाषा**:
   - इस दोहे की भाषा अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। इसमें सरल शब्दों का प्रयोग किया गया है, ताकि सामान्य व्यक्ति भी इसे आसानी से समझ सके। भाषा की यह सरलता संदेश को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाती है।

2. **लयबद्धता और छंद**:
   - दोहा अपने विशेष छंद के कारण लयबद्ध होता है। इसमें 13-11 मात्रा का नियम होता है, जो इस दोहे में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस लयबद्धता से दोहा पाठक या श्रोता के मन में गहराई से पैठता है।

3. **प्रतीकात्मकता**:
   - "सोना" और "जागना" यहाँ प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग किए गए हैं। सोना अवचेतनता, अज्ञानता और असंवेदनशीलता का प्रतीक है, जबकि जागना चेतना, समझ और जागरूकता का प्रतीक है। इन प्रतीकों के माध्यम से दोहे में गहरे अर्थ प्रकट किए गए हैं।

4. **व्याख्यानात्मक शैली**:
   - इस दोहे में उपदेशात्मक और प्रेरणादायक शैली का उपयोग किया गया है। "तू ऐसा मत हो" में स्पष्ट रूप से यह शैली दिखाई देती है, जहाँ कवि सीधे पाठक को संबोधित करके उसे सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।

**साहित्यिक उपकरण (Alankars)**:

1. **अनुप्रास अलंकार**:
   - "सोते-सोते", "जग गए", "जाग कर" जैसे शब्दों में ध्वनि की पुनरावृत्ति (समान ध्वनि का बार-बार आना) अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग है। यह कविता में लय और ध्वनि की मधुरता को बढ़ाता है।

2. **रूपक अलंकार**:
   - "सोना" और "जागना" रूपक के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जो केवल शारीरिक क्रियाओं का वर्णन नहीं कर रहे, बल्कि जीवन के मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों की ओर भी इशारा कर रहे हैं। यह रूपक कविता के संदेश को गहराई प्रदान करता है।

**दर्शन और जीवन दृष्टि**:

1. **आध्यात्मिक दृष्टि**:
   - यह दोहा भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारधारा से प्रभावित है, जहाँ जीवन के उद्देश्य और मानव चेतना की बात की जाती है। मनुष्य को पशु से अलग मानते हुए उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित किया जाता है।

2. **मानव जीवन का उद्देश्य**:
   - दोहे में यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि मनुष्य का जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं होना चाहिए। उसे अपने जीवन के गहरे अर्थों और उद्देश्यों को समझना चाहिए। यह दोहा जीवन के सही अर्थों को खोजने की प्रेरणा देता है।

3. **सकारात्मक दृष्टिकोण**:
   - दोहे का अंत सकारात्मक चेतावनी के साथ होता है: "तू ऐसा मत हो।" यहाँ कवि मनुष्य को आशा और सही दिशा देता है कि वह अपने जीवन को पशु जैसा न बनाए, बल्कि उसे समझदारी, विवेक और चेतना से भरपूर करे।

 **निष्कर्ष**:
यह दोहा मनुष्य के जीवन की सार्थकता और चेतना पर आधारित है। इसमें चेताया गया है कि केवल शारीरिक और मानसिक स्तर पर सोना और जागना पर्याप्त नहीं है। मनुष्य को जीवन के गहरे अर्थ को समझना चाहिए और अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। यह दोहा एक गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश के साथ-साथ एक नैतिक शिक्षा भी देता है, जो पाठक को जीवन के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है।