Sunee Haveli - Part- 18 in Hindi Crime Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सूनी हवेली - भाग - 18

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सूनी हवेली - भाग - 18

हवेली से जाते समय दिग्विजय को अनन्या की चीखें सुनाई दे रही थीं लेकिन उसकी चीखों को सुनकर उसे ज़रा भी दुख नहीं हुआ बल्कि एक प्रकार की ख़ुशी का एहसास हो रहा था। उधर अनन्या का शरीर जलता जा रहा था परंतु उसकी मदद करने वाला वहाँ कोई भी ना था। वह चीखती रही, मदद के लिए गुहार लगाती रही परंतु उसकी चीखें केवल दिग्विजय को ही सुनाई दे रही थीं।

उधर वीर, रेवती और घनश्याम साथ में बैठकर बात कर रहे थे। वह बार-बार अनन्या को फ़ोन लगा रहे थे लेकिन उसका मोबाइल स्विच ऑफ ही आ रहा था। 

रेवती को चिंतातुर देख कर घनश्याम ने कहा, "रेवती फ़ोन लो बैटरी हो गया होगा, तुम इतना डर क्यों रही हो। अभी देखना कुछ ही देर में उसका फ़ोन आ जाएगा। हो सकता है वह बच्चों को पढ़ा रही हो और पढ़ाते समय फ़ोन को स्विच ऑफ कर दिया हो।"

"पता नहीं अनु के पापा मेरा मन घबरा रहा है, हो सकता है जबरदस्ती ही घबरा रहा हो। वहाँ सब कुछ ठीक-ठाक ही हो। लेकिन इन दोनों ने लालच की जो हद पार की है वह जानने के बाद तो तरह-तरह के नकारात्मक विचार मन में बार-बार आ रहे हैं।"

वीर नीचे मुंह करके बैठा था, शायद अपने किए पर वह भी डर रहा था क्योंकि अनन्या उसकी जान थी। वह उससे पागलपन की हद तक प्यार करता था। पूरा दिन बीत गया पर अनन्या से उनकी बात ना हो पाई।

अगले दिन भी वह उसके फ़ोन का इंतज़ार करते रहे परंतु अब तो इंतज़ार की इंतहा हो चुकी थी। अब तो सब के सब डर कर निराश हो चुके थे। तब उन्होंने गाँव जाने का निर्णय ले लिया।

अनन्या के माता पिता और वीर जब तक गाँव आए और हवेली पहुँचें तब तक सब खेल ख़त्म हो चुका था।

लेकिन वे सब उस घटना से अनजान थे। जब वे हवेली पहुँचे वहाँ मेन गेट पर एक बहुत बड़ा ताला लगा था। गेट से दूर हवेली का बड़ा-सा दरवाज़ा भी बंद था। हर तरफ़ केवल सन्नाटा पसरा था। केवल घने वृक्षों के पत्तों की हिलने की आवाज़, हवा के साथ-साथ शोर मचा रही थी। इस समय चल रही हवा की सांय-सांय की आवाज़ उन्हें डरा रही थी। हवेली से एकदम पास किसी का भी घर नहीं था, जिससे वे लोग कुछ पूछ सकें।

अनन्या की माँ रेवती का दिल घबरा रहा था। उन्होंने घबराते हुए कहा, "अजी सुनते हो, मुझे बहुत डर लग रहा है। हमें बिना बताए कहाँ चली गई हमारी अनन्या कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"

अनन्या के पिताजी घनश्याम भी घबरा गए थे। ना जाने कैसे-कैसे नकारात्मक विचारों ने उनके मस्तिष्क में कोलाहल मचा रखा था।

उन्होंने वीर से कहा, "वीर उधर कुछ दूरी पर कुछ मकान दिखाई दे रहे हैं जाकर उनसे पूछो ताकि हमें कुछ पता चल सके, कोई सुराग तो मिल जाए।"

वीर ने कहा, "ठीक है अंकल मैं जाता हूँ।"

वीर ने एक दो मकान में जाकर जानकारी हासिल करने की कोशिश की परंतु हर जगह से एक ही जवाब मिला हमें नहीं पता। हवेली के घने वृक्षों के कारण यहाँ से कुछ भी नहीं दिखता और वे लोग कहाँ गए पता नहीं।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः