Sunee Haveli - Part - 17 in Hindi Crime Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सूनी हवेली - भाग - 17

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सूनी हवेली - भाग - 17

वीर के हाथ से फ़ोन गिरने के बाद यदि रेवती उन दोनों की बातें सुनकर गुस्से में आग बबूला हो रही थीं तो वहीं अपनी बेटी के लिए घबरा भी रही थीं। वह सोच रही थीं कि यदि हवेली में किसी को भी अनन्या की साज़िश का पता चल गया तो वह उसे छोड़ेंगे नहीं।

यही सब सोचते हुए रेवती ने वीर से कहा, "वीर जल्दी से अनन्या को फ़ोन लगा, मेरा मन बहुत घबरा रहा है। तुम दोनों के दिमाग़ को लालच की दीमक ने शायद खोखला कर दिया है। इसीलिए तुमने यह कितनी बड़ी साज़िश रच दी। इतने पैसे वाले लोग कितने शक्तिशाली होंगे इसका अंदाजा भी नहीं होगा तुम्हें। उन्हें पता चला तो अनन्या ज़िंदा नहीं बचेगी।"

वीर ने अनन्या को जैसे ही फ़ोन लगाया उधर से फ़ोन के स्विच ऑफ होने का मैसेज आया। वीर ने दो-चार बार फ़ोन लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

तब घबराते हुए वीर ने कहा, "आंटी अनन्या का फ़ोन तो स्विच ऑफ आ रहा है। कहीं किसी ने उसकी बातें तो नहीं सुन ली होंगी? मुझे भी बहुत डर लग रहा है।"

यह सुनते ही रेवती रोने लगी। उसके रोने की आवाज़ सुनकर घनश्याम भी उस कमरे में आ गए और उन्होंने पूछा, "क्या हुआ रेवती?"

"अरे अनु के पापा इन दोनों ने मिलकर सब कुछ बर्बाद कर दिया। चलो गाँव चलने की तैयारी करो अनन्या कोई और ग़लत क़दम उठाए उससे पहले हमें उसे वापस लाना होगा।"

उधर अनन्या कुछ कहती या संभलती उससे पहले दिग्विजय उसकी तरफ़ लपका और उसने सीधे अनन्या का गला दबाना शुरू कर दिया। दोनों में कुछ समय तक हाथापाई होती रही। लेकिन दिग्विजय की मज़बूत भुजाओं से अनन्या उसका गला ना छुड़ा पाई और उसकी साँसें टूटने लगीं।

दिग्विजय ने कहा, "मैंने तुझसे सच्चा प्यार किया था, तुझ पर पूरा विश्वास किया था। अरे तेरे लिए मैंने क्या नहीं किया? लेकिन तूने मेरा सब कुछ लूट लिया, मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं। मेरा परिवार टूट गया। मेरे पिताजी मर गए सब कुछ ख़त्म हो गया। माँ पता नहीं कहाँ गई। यशोधरा और मेरे बच्चे कहाँ हैं नहीं मालूम और यह सब तेरी वज़ह से हुआ है।"

दिग्विजय की भुजाओं की ताकत लगातार बढ़ती ही जा रही थी। उसे अपनी पत्नी के कहे वह सारे शब्द याद आ रहे थे कि देखना तुम्हें इनमें से क्या-क्या हासिल होता है।

दिग्विजय की आंखों में खून उतर आया था। उसने कहा, "मैं इतनी आसानी से तुझे नहीं मारूंगा।"

दिग्विजय ने ऐसा कहते हुए उसका गला छोड़ा और उसको बालों से पकड़ कर खींचते हुए उसी कमरे में ले गया जहाँ से उनके बीच सम्बंध की शुरुआत हुई थी। आज तो दिग्विजय के ऊपर हैवान सवार था।

कमरे को बंद करके दिग्विजय ने दीवार पर टंगे कमर के बेल्ट को उठाया और अनन्या के सारे कपड़े उतार कर उस पर बेल्ट बरसाना शुरू कर दिया। वह तड़प रही थी, रो रही थी गिड़गिड़ा रही थी लेकिन इस समय उसकी आवाज़ कौन सुनता, हवेली तो पूरी खाली पड़ी थी। दिग्विजय ने उसे मार-मार कर अधमरा कर दिया।

उसने कहा, "बहुत घमंड था ना तुझे तेरे इस सुंदर जिस्म पर, देख अब मैं इस पर घासलेट डालकर तेरे शरीर को कैसे जलाता हूँ। तेरी हर चीख मेरे परिवार वालों के लिए मरहम का काम करेगी। शायद उन्हें थोड़ा सुकून मिलेगा," कहते हुए दिग्विजय उसके बालों को पकड़ कर खींचते हुए रसोई घर में ले गया और वहाँ उस पर घासलेट डालकर आग लगा दी।

बाहर निकलते समय उसने रसोई का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया। उसके बाद दिग्विजय भी उस हवेली को छोड़कर निकल गया। उसने पलट कर यह भी नहीं देखा कि अनन्या बच पाई या मर गई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः