"कृष्ण का सारथी" धर्म, समर्पण और कर्तव्य का प्रतीक..
महाभारत का युद्ध केवल दो राज्यों के बीच का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह मानव जीवन के सबसे गहरे प्रश्नों, हृद्दों और आदशों को उजागर करता है। इसी महायुद्ध में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी चने और यह घटना भारतीय दर्शन में एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गई।
जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े होकर अपने ही रिश्तेदारों, गुरुओं और मित्रों के खिलाफ युद्ध करने में संकोच कटने लगे, तव कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया। इस उपदेश ने न केवल अर्जुन को अपने कर्तव्यों का बोध कढाया, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए जीवन जीने की सही दिशा को प्रकट किया। कृष्ण का सारथी बनना सिर्फ युद्ध के दौरान रथ चलाने तक सीमित नहीं था। यह एक गहरी आध्यात्मिक
और दार्शनिक व्याख्या है, जिसमें भगवान ने यह दर्शाया कि जीवन के युद्ध में भगवान स्वयं हमारे
मार्गदर्शक बनते हैं।
कृष्ण के सारथी बनने का सबसे बड़ा संदेश है कि भगवान सिर्फ हमारे पूजनीय देवता नहीं हैं, बल्कि हमारे साथी, मार्गदर्शक और संकट के समय में कर्तव्य का बोध कटाने वाले भी हैं। जीवन के विभिन्न मोड़ों पर जब हम भ्रमित होते हैं, तब हमें सही दिशा में प्रेरित करने वाला एक सारथी चाहिए। अर्जुन के लिए वह सारथी कृष्ण बने, जिन्होंने उन्हें जीवन के उच्चतम सत्य से अवगत कराया कर्मयोग का सिद्धांता
कृष्ण ने अर्जुन के साटयी बनकट यह दिखाया कि निःस्वार्थ सेवा का क्या अर्थ होता है। भले ही वे भगवान थे, लेकिन उन्होंने अपने भक्त और मित्र अर्जुन के लिए सारथी का कार्य किया। यह निःस्वार्थ समर्पण का प्रतीक है बिना किसी अपेक्षा के अपने कर्तव्य को निभाना। जब हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में दूसरों की सेवा करते हैं, तो यह हमें भी उस दिव्यता से जोड़ता है, जो कृष्ण ने अर्जुन के साथ अपने संबंध में दिखाई।
सारथी के रूप में कृष्ण ने दिखाया कि सच्चा नेतृत्व वह है जो कठिन समय में व्यक्ति को सही मार्ग दिखाए। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को कृष्ण ने गीता के माध्यम से वहीं राह दिखाई।
"जब मन में द्वंद्व हो और रास्ते धुंधले लगें, तो कृष्ण की गीता को अपना पथ प्रदर्शक बना लेना जीवन को सही दिशा मिल जायेगी..!!
इस तरह दुनिया का भी यही नियम है जब तक जीवन का सच्चा कोई सारथी न मिले जीवन बेकार ही है
पर ये कलयुग है ऐसा कोई होता नही है
सब मतलब का रिश्ता रखते हैं और कुछ नहीं जब जी भर जाता है पल भर में अपने भी पराए हो जाते है
ओर हम टूट जाते हैं हम वैसा नही होते उनके जैसे पर संसार में रहना है तो उन्हीं की तरह जीना उन्ही की तरह सीखना पड़ता है यही इस कलयुग का नियम है सच्चा सारथी वही हैं जो सुख दुख में साथ हो
ओर हमारी पीड़ा समझे
पर जैसे मैने कहा ऐसा कोई नही
दौलत के पीछे भागती ये दुनिया सिर्फ दौलत नही देखती अपितु सुंदरता भी देखती खुद की जिसे परवाह नही खुद का मन जिसका मेला हो वो भी ये सब देखते हैं पर ये मानवता नही है ना इंसानियत के भेद भाव जात पात तो इस संसार का नियम है