stealing is a sin in Hindi Short Stories by Kishore Sharma Saraswat books and stories PDF | चोरी करना पाप है

Featured Books
Categories
Share

चोरी करना पाप है

चोरी करना पाप है

बात पुराने समय की है जब न तो शिक्षा प्रदान करने के पर्याप्त साधन थे और न ही जागरूकता के प्रचार-प्रसार के माध्यम ही उपलब्ध थे I साथ में धन के अभाव का अभिशाप भी था I उस समय एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था, नाम था पवनपुर I इसके भीतर और बाहर की ओर अनेक प्रकार के फलों के छोटे और बड़े उपवन थे I शायद इसीलिए पवनपुर नाम, उपवन का ही अपभ्रंश रहा हो अथवा इन उपवनों के हरे-भरे पेड़ों से गुजरने वाली शीतल और सुगंधित पवन को समर्पित यादगार का प्रतिरूप I नामकरण का उद्देश्य कुछ भी रहा हो, परन्तु उपवन और पवन की महत्वता को नकारा नहीं जा सकता था I चारों ओर फैले देहाती आँचल का केंद्र बिंदु होने के कारण यह कस्बा न केवल लोगों द्वारा की जाने वाली खरीदारी की आवश्यकताओं को पूरा करता था, बल्कि उनके बच्चों की शिक्षा का एकमात्र साधन भी था I सभी प्रकार की वस्तुओं की कुल एक दर्जन भर दुकानें थी और एक माध्यमिक विद्यालय, अन्यथा एक बड़े गाँव और इस लघु शहर में कोई अंतर न था I दूर-दराज बसे गाँवों के कुछ सौभाग्यशाली विद्यार्थी भी नित् एक लम्बी व कठिन यात्रा करके यहाँ पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया करते थें I पाँचवी और छठी कक्षा में पढ़ने वाले ऐसे ही कुछ छात्रों के नाम थे-रघबीर चंद, सतनाम, गिरधारी, ज्ञान सिंह, करमचन्द और कृष्ण लाल I सभी आपस में मिलजुलकर रहा करते थे I यदि कभी किसी बात को लेकर थोड़ा मनमुटाव हो भी जाता था तो उसे आपस में बातचीत करके सुलझा लिया जाता था I विद्यालय में आने के लिए सुबह घर से जल्दी निकलना और विद्यालय से अवकास के पश्चात घर जाने के लिए प्रस्थान करना उनकी नित्य क्रिया थी I पूरे रास्ते भर रुकने का कोई कारण नहीं था I

       ग्रीष्म अवकास की समाप्ति हुई तो ग्रीष्म ऋतु अवकास पर चली गई और यदा-कदा काले बादलों ने आकाश से पृथ्वी की ओर झांकना आरम्भ कर दिया था I पेड़ों पर लगे कच्चे फल भी अब अपना स्वरूप बदलने लगे थें I हरा

2

रंग धीरे-धीरे पीला, हल्का लाल और सुर्ख होने लगा था I बाजारों में मौसमी फलों की सुगंध मह्कनी शुरू हो गई थी I पवनपुर विद्यालय के रास्ते के मुहाने पर सड़क के किनारे फलों की रेहड़ीवाला एक युवक खड़ा होता था I जहाँ पहले उसकी रेहड़ी फलों के लिए तरसती थी, अब लीची, लोकाट, आडू और विभिन्न प्रजातियों के आमों से दबी होने के कारण बेचारी साँस लेने में तकलीफ महसूस करने लगी थी I दिन में जब भोजनावकास की घंटी बजी तो रघबीर चंद और सतनाम रेहड़ी के पास जाकर फलों को निहारने लगे I उन्हें देखकर रेहड़ीवाला बोला:

       ‘'क्या लेना है बच्चों?'

'आम खाने हैं?' रघबीर चंद ललचाई नजरों से देखता हुआ बोला I

       ‘'कितने के दूँ?' वह बोला I

       ‘'हमारे पास पैसे नहीं हैं I' रघबीर चंद मासूमियत से बोला I

'पैसे नहीं हैं I यहाँ पर कोई बाबा जी का लंगर लगा हे जो बिना पैसों के बाँट दूँ I मुफ्त में खाने हैं तो महंतों के डेरे के बाग में जाओ I आम भी मिलेंगे और साथ में दाम भी मिलेंगे I' वह मुस्कुराता हुआ बोला I

       दोनों लड़के खिसयानी बिल्ली की तरह दांत निपोरते हुए वहाँ से वापस चले गये I मन में अगर थोड़ी संतुष्टि थी तो वह थी कि कल महंतों के डेरे के बाग में जाकर मुफ्त में आम खाएँगे I वे उसकी धूर्तता को न समझ पाए थे I विद्यालय के गेट के नजदीक पहुंचे तो दूसरे लड़के भी मिल गये I उन्हें देखकर गिरधारी बोला:

         ‘'अबे! कहाँ चले गये थे? हम कब से तुम्हें ढूँढ़ रहे हैं I'

       ‘दूकान से पेंसिल लेने गये थे I' सतनाम अपने हाथ में पकड़ी हुई पेंसिल दिखाते हुए बोला I

       ‘

 

 3

'बाजार में अकेले-अकेले घूमकर आए हो I लगता है हमसे कुछ छुपा रहे हो I चोरी से खाया हुआ माल हजम नहीं होता I' करमचन्द शकी नजरों से उनकी ओर देखता हुआ बोला I

'कसम से हमनें कुछ नहीं खाया I पैसों के बिना कोई चीज आती है क्या? अम्मा से जो पैसे मिले थे उसकी यह पेंसिल ले ली है I अब तुम बताओ मुफ्त में क्या मिलता हैI सतनाम सफाई देता हुआ बोला I

रघबीर चंद के बुझे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर ज्ञान सिंह बोला:

       ‘'लगता है दाल में कुछ काला है I क्यों रघबीर यही बात है न?'

       ‘'हाँ, रेहड़ी वाले ने मुफ्त में आम खाने की एक तरकीब बताई है I कल वहाँ पर चलेंगे I' वह उनकी ओर देखता हुआ बोला I

       ‘'कहाँ पर?' गिरधारी उत्सुकतावश बोला I

       ‘'महंतों के बाग में I' वह बोला I

       ‘'देखना कभी पिटाई हो जाए I' कृष्ण लाल ने शंका व्यक्त की I

       ‘'अरे! नहीं, वह कह रहा था जिन बच्चों के पास पैसे नहीं होते उन्हें वहाँ मुफ्त में आम मिलते हैं I' ररघबीर चंद आम खाने की लालच में बात को बढ़ाकर बोला I

मध्यावकाश समाप्त होने की घंटी बजने लगी तो सभी लड़के शीघ्रता से अपनी कक्षा में चले गये I दूसरे दिन वे बड़ी बेसब्री से मध्यावकाश होने का इंतजार करने लगे I ज्योंही इंतजार की घड़ियाँ समाप्त हुई तो वे भागते हुए आमों के बाग में घुस गये I दुपहर का समय था, आमों की रखवाली करने वाला कोई नहीं था I सभी भोजन उपरांत आराम कर रहे थें I बच्चों ने टपके हुए आम जल्दी-जल्दी बटोरे और वहाँ से भाग गए I दो-तीन दिन यही क्रम चलता रहा I अब तक कक्षा के कुछ और बच्चों को भी यह बात मालूम पड़ गई थी I बंदरों की भान्ति अब टोली बड़ी हो गई थी I उन्होंने जितने भी आम नीचे गिरे

 

4

थे सभी उठा लिए I दुपहर पश्चात जब डेरे का आदमी बाग में आया तो वहाँ की स्थिति को देखकर दंग रह गया I आम नदारद थे और सभी ओर आम की गुठलियाँ और झिल्के पड़े थे I अगले दिन दो आदमी वहाँ पर छुपकर बैठ गये I ज्योंही बच्चों की टोली ने बाग में प्रवेश किया वे डंडें उठाकर उनके पीछे भागे I जान बची और लाखों पाए I बड़ी मुश्किल से हाँफते हुए वे किसी तरह कक्षा में पहुँचे I सप्ताहभर वे भूलकर भी उस ओर नहीं गये I मन में भय था कि यदि पकड़े गये तो पिटाई निश्चित है I

बच्चों का मन चंचल होता है I मीठे आमों का स्वाद रह-रहकर उन्हें कोई नई खोज करने के लिए लालायित कर रहा था I परन्तु कोई जुगाड़ नहीं बन पा रहा था I एक दिन छुट्टी के पश्चात जब वे बाजार से गुजर रहे थे तो उन्हें फलों की रेहड़ी वाले की आवाज सुनाई दी I वह अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ऊंची आवाज में बोल रहा था:

       आजाओ-आजाओ! ताजी लीची आई है I बतासों से भी ज्यादा मीठी है I यहाँ के स्थानीय बाग का उपहार है I एक बार खाओगे तो बार-बार लेने आओगे I देर मत करो, आजाओ-आजाओ, माल खत्म होने वाला है I'

       इन शब्दों ने तो मानो रघबीर चंद के बंद दिमाग की खिड़की ही खोलदी हो I वह एकदम उछलते हुए बोला:

       'एक बात बतलाऊँ?'

       'हाँ बोल I' करमचन्द उसके चेहरे की ओर देखता हुआ बोला I

       'पहले तुम सभी कसम खाओ, यह बात किसी को नहीं बतलाओगे I नहीं तो पहले वाला हाल होगा हम सभी का I' वह बुजुर्गों की भान्ति सीख देता हुआ बोला I

       'तेरी कसम, हम किसी को नहीं बतलाएँगे I' ज्ञान सिंह सभी की ओर से हामी भरता हुआ बोला I 

       ‘

5

'मेरी कसम क्यों? अपनी कसम क्यों नहीं खाते I चालाकी मत दिखाओ, मैं तुम सबसे बड़ा हूँ I सब कुछ समझता हूँ I' वह गुस्से में बोला I 

       'ठीक है I हम भगवान की कसम खाते हैं I अब बताओ क्या बात है I गिरधारी बोला I

सभी लड़के रघबीर चंद के नजदीक आकर खड़े हो गए I रघबीर चंद ने नजर घूमाकर इधर-उधर देखा और फिर बोला:

‘   पिछले इतवार को पिता जी हमारे घर आए कुछ मेहमानों को घूमाने के लिये बड़े उद्यान में लेकर गये थे I मैं भी उनके साथ गया था I वहाँ पर लीची के बहुत सारे पेड़ हैं I फलों के बोझ से टहनियाँ जमीन को छू रही थीं I नीचे लेट जाओ तो किसी को पता भी नहीं चलता I कल छुट्टी के बाद वहाँ पर चलेंगे I क्यों है न मजे की बात?'

यह सुनकर सभी लड़के हँसने लगे, मानो कोई छुपा हुआ खजाना मिल गया हो I हँसी रुकी तो करमचन्द गहरा साँस छोड़ते हुए बोला:

‘   यार, यह बात पहले क्यों नहीं बताई I मेरे मुँह में तो बिना खाए ही पानी आ गया I आज ही चलते हैं, कल क्यों?'‘

'मुझे तो इस बात का ख्याल ही नहीं था I रेहड़ी वाले की आवाज सुनकर याद आया I आज देर हो जाएगी, घर पर क्या कहेंगे? कल सभी घर पर बहाना बनाकर आना कि विद्यालय में अब हर रोज एक घंटा अतिरिक्त क्लास लगेगी, इसलिए देर हो जाएगी I समझ गये न मेरी बा?'

‘   हाँ, समझ गये I' सभी एक स्वर में बोले I परन्तु कृष्ण लाल चुप रहा I उसे यों चुप देखकर रघबीर चंद मसखरी करता हुआ बोला:

‘   'तेरी बोलती क्यों बंद हो गई? मेरे बच्चे! मुझे लगता है तू डर गया है I अरे! हम बड़े हैं न तेरे साथ, कुछ नहीं होने वाला है I'

 

  

6

‘   'इधर तो बच गये, अब अगर उधर मालियों ने पिटाई कर दी तो फिर कौन जिम्मेवार होगा?'  कृष्ण लाल अपनी शंका प्रकट करता हुआ बोला I

‘   'उन्हें मालूम पड़ेगा तब न, पहले तो गलती हो गई थी I अब तो सीख मिल गई है I किसी को भी कानों-कान खबर नहीं होने देंगे I' रघबीर चंद उसे ढांढस बंधाता हुआ बोला I

अगले दिन पूर्व निर्धारित योजनानुसार सभी लड़के पर्यटकों के साथ उद्यान में प्रवेश कर गए और दो-दो की टोली बनाकर वे लीची के घने पेड़ों के नीचे आराम की मुद्रा में लेट गए I ज्योंही अवसर मिलता वे लीची के फल तोड़कर, उनको चुपके से खाने के पश्चात शेष भाग को फूलों की क्यारियों में फेंक देते I दो दिन तो यह क्रम बिना किसी बाधा के चला I परन्तु तीसरे दिन जब माली फूलों की क्यारियों की गुड़ाई करने आए तो लड़कों की करतूत देखकर उनका माथा ठनका I फलों के अदृश्य चोरों को पकड़ने के लिए वे कुछ दूर पेड़ों की ओट में छुपकर बैठ गए I कुछ समय इंतजार करने के पश्चात् उनकी साधना काम आई I लड़कों की टोली ने लीचियों के पेड़ों के पास जाने से पूर्व स्थिति का मुआयना किया I रास्ता एकदम साफ था I इधर-उधर देखते हुए रघबीर चंद, सतनाम, गिरधारी और ज्ञान सिंह पेड़ों की ओर धीरे-धीरे चलने लगेI करमचन्द और कृष्ण लाल अभी पीछे कुछ दूरी पर चल रहे थें I मालियों से यहाँ थोड़ी चूक हो गई I उन्हें लड़कों की संख्या मालूम न थी I वे पेड़ों के पीछे से निकलकर चुपके-चुपके लड़कों को पकड़ने के लिए उनकी ओर बढ़ने लगे I संयोग से कृष्ण लाल की नजर उन पर पड़ गई I वह जोर से चिल्लाया:

‘   'भागो! भागो! माली आ रहे हैं I'

लड़के बाएँ और थे ओर माली दाएँ ओर से आ रहे थे, इसलिए उनमें काफी दूरी थी I अत: इसी का फायदा उठाकर लड़के बाहर की ओर भागे I कृष्ण लाल ओर करमचन्द उद्यान से बाहर निकलकर सड़क के दूसरी ओर पहुँच चुके

 

6

थे I दूसरे लड़के अभी सड़क पार नहीं कर पाए थे I फिर भी मालियों और उनमें काफी अंतर था I हेड माली ने सोचा ऐसे तो ये भाग जायेगे, इसलिए उसने एक तरकीब सोची I उसने रुककर लड़कों को आवाज लगाई:

‘   'ओ बच्चों! क्यों भाग रहे हो? रुक जाओ I हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे I हमें गुस्सा इस बात का था की तुम चोरी से फल खा रहे थें I चोरी करना बुरी बात होती है I तुमने फल खाने हैं तो वापस आ जाओ, हम तुम्हें स्वयं तोड़कर देंगे I'

चारों लड़के रुककर आपस में सलाह-मशविरा करने लगे I मन दोनों ओर डगमगा रहा था I फलों के स्वाद पर मालियों का डर भारी पड़ रहा था I हेड माली इस बात को भलीभांति समझ रहा था I उसने फिर पैतरा चला I वह मृदु भाषा में बोला: ‘

'बच्चों! मुझे लग रहा है तुम्हें अभी भी हमसे डर लग रहा है I अपने मन से यह वहम निकल दो I हमारे भी तो तुम्हारे जैसे छोटे बच्चे हैं I उन्हें भी तो हम फल लेकर जाते हैं I आ जाओ मैं तुम्हें स्वयं तोड़कर दूंगा:

माली की तरकीब काम कर गई I रघबीर चंद ने करमचन्द और कृष्ण लाल को वापस आने के लिए आवाज लगाई I वे वापस तो मुड़ आए, परन्तु धीरे-धीरे चलकर सड़क के दूसरी ओर ही रुक गए I दूसरे लड़के अब तक मालियों के पास पहुँच चुके थे I मालियों ने आगे बढ़कर उन्हें फुर्ती से दबोच लिया I लड़कों के चेहरे एकदम भय से फीके पड़ गए I वे पिटाई होने के डर से कांपने लगे I गिड़गिड़ाते हुए बोले:

‘   'हमें माफ करदो, आगे से कभी ऐसा काम नहीं करेंगे I हम कसम खाकर कहते हैं, इधर कभी नहीं आएँगे I'

आखिर मालियों को उन पर दया आ गई I हेड माली उन्हें समझाते हुए बोला:

‘  

7

'इस बार तो हम तुम्हें बच्चे समझकर छोड़ रहे हैं I यदि तुमनें फिर ऐसा काम किया तो पिटाई भी होगी और मुख्य अध्यापक जी से तुम्हारी शिकायत भी करेंगे I समझ गये?'

भय से लड़के मुँह से तो कुछ नहीं बोल पाए, परन्तु गर्दन झुकाकर उन्होंने अपनी मूक सहमती जताई I

‘   'चुप रहकर काम नहीं चलेगा I बोलो चोरी करना पाप है I हम आगे से कोई भी घृणित काम नहीं करेंगे और भविष्य में अच्छे बालक बनेंगे I'  हेड माली उन्हें प्रेम से समझाते हुए बोला I

लड़कों की आँखों में आँसू निकल आए थे I वे सिसकते हुए बोले:

‘   'चोरी करना पाप है I हम आगे से कोई भी बुरा काम नहीं करेंगे और भविष्य में अच्छे बालक बनेंगे I'

‘   'ठीक है' अब तुम जा सकते हो I ये चार आम तुम्हारे लिए और दो उन छोटे बंदरों के लिए जो सड़क के उस पार खड़े होकर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैंI'

लड़कों ने चुपचाप उनसे आम लिए और गर्दनें झुकाकर बाहर सड़क की ओर चल दिए I जब वहाँ पर खड़े दोनों लड़कों के पास पहुँचे तो करमचन्द ने पूछा:

‘   'माली क्या कह रहे थें?'

‘   'कह रहे थें कि वे लड़के क्यों नहीं आए, उनसे बोलना कि चोरी करना पाप है इ' रघबीर चंद उन पर अपना गुस्सा उतारता हुआ बोला I

 ‘   'जान बची लाखों पाए, लौटकर बुद्धू घर को आए I बोलो चोरी करना पाप है I' कृष्ण लाल हँसता हुआ बोला I

यह सुनकर सभी लड़के हँसने लगे और समवेत स्वर में बोले:

‘   'चोरी करना पाप है I'