Tamas Jyoti - 58 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 58

Featured Books
Categories
Share

तमस ज्योति - 58

प्रकरण - ५८

जैसे ही मैंने फातिमा के कदमों की आहट सुनी, मैंने फातिमा को अपने पास बुलाया और कहा, "फातिमा! आज मैं तुमसे अपने दिल की बात कहना चाहता हूं।"

मैंने मन बना लिया था कि आज मैं फातिमा को अपने दिल की बात बता ही दूँगा। जैसे की मैंने अपनी मम्मी से वादा किया था मैं अपने ऑपरेशन के दिन फातिमा के प्यार का स्वीकार करूंगा। लेकिन आज, जब मेरा ऑपरेशन सिर्फ दो दिन ही दूर था तभी मैंने फैसला कर लिया था कि आज मैं फातिमा से अपने प्यार का इज़हार करूंगा।

यह सुनकर फातिमा तुरंत बोली, "कहो रोशन तुम  मुझसे क्या बात करना चाहते हो?" 

मैंने कहा, "वैसे तो मैं काफी दिनों से तुमसे इस बारे में बात करना चाहता था। बात ही ऐसी है कि दिल हां कह रहा था और दिमाग ना कह रहा था। मैं दिमाग और दिल की दुविधा के बीच में बुरी तरह से फंसा हुआ था।"

मेरी इस तरह की गोल गोल बाते सुनकर फातिमा बोली, "अरे! रोशन! ये दिमाग... और दिल... दुविधा! क्या बोल रहे हो तुम...? मुझे कुछ भी ठीक से समझ नहीं आ रहा है। कुछ समझ में आए ऐसे तो बोलो!"

मैंने कहा, "अब मैं इसी बात पर आ रहा हूं। मैं बहुत समय से तुम्हें यह बताना चाहता था लेकिन मेरे दिमागने मुझे रोक के रखा हुआ था। लेकिन आज मैं अपने दिमाग को बिलकुल भी नहीं सुननेवाला हूं। आज मैं केवल अपने दिल की बात ही सुननेवाला हूं। मैं आज तुम्हें वही बात बताने जा रहा हूँ जो कुछ समय पहले तुमने मुझसे कही थी। तुम्हारे मन में मेरे लिए जैसे भाव है वैसे ही भाव मेरे मन में भी तुम्हारे लिए है। मैं भी तुम्हें पसंद करता हूं। आई लव यू फातिमा!"

फातिमा मेरी यह बात सुनते ही खुश होकर बोल पड़ी, "क्या? सचमुच? कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूं न?

मैंने कहा, "नहीं, तुम कोई सपना नहीं देख रही हो। यही हकीकत है की मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं और वह भी सिर्फ आज से नहीं बल्कि तुम्हारे हाथ के पहले स्पर्श से। मेरे मम्मी पापा के उस कार्यक्रम में जिसमें हमारी पहली मुलाकात हुई थी और गलती से तुम्हारे हाथो ने मेरे हाथो को स्पर्श किया था तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा रोम रोम पुलकित हो गया हो। मेरे दिल के तार तो तुम्हारे लिए तब से ही बज उठे थे। लेकिन मैं तुम्हें तब भी नहीं देख पाया था और अब भी नहीं देख पा रहा हूँ लेकिन फिर भी तुम्हारे स्पर्श का जो एहसास मुझे हुआ वो कुछ अलग ही था जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर पा रहा हूं। आज भी, जब तुम मेरे आसपास होती हो, तो मैं तुम्हारे आसपास अपने आपको बहुत ही सुरक्षित महसूस करता हूं।"

मेरी यह बात सुनकर फातिमा बोली, "फिर जब हमने अंधविद्यालय में इतने समय तक साथ काम किया तो तब तुमने मुझसे कुछ क्यों नहीं कहा?"

मैंने कहा, "कैसे कहता मैं तुमसे? मुझे कहाँ पता था कि तुम्हारे मन में क्या है? और फिर जब तुमने मुझसे अपने दिल की बात कही तो एक पल के लिए मुझे लगा कि मैं भी तुमसे अपने दिल की बात कह दूं लेकिन तब मेरे दिमागने मुझे एकदम से रोक लिया। जब मैं खुद ही दुविधा में फंस गया था तो तुमसे कैसे कह पाता? मेरा मन मुझसे कह रहा था, नहीं! तुम फातिमा की जिंदगी कैसे बर्बाद कर सकते हो? वह अपनी पूरी जिंदगी एक अंधे आदमी के साथ कैसे बिता सकती है?"

ये सुनकर फातिमा बोल पड़ी, "क्या तुमने यह सब स्वयं ही तय कर लिया? क्या तुम्हें एक क्षण के लिए भी यह ख्याल न आया कि फातिमा से एक बार पूछ लूँ कि उसके मन में क्या है? तुम्हे मेरे मन की बात भी जाननी चाहिए थी। मुझे तुम्हारी स्थिति के बारे में पहले से ही पता था और मुझे भविष्य के संघर्षों के बारे में भी पता था। काफी देर तक सोचने के बाद ही मैंने अपने दिल की बात तुम्हारे सामने रखी थी। लेकिन फिर तुमने मुझे नकारकर मेरी भावनाओं को ठेस पहुंचाई।"

मैंने कहा, "मैं जानता हूं की मैंने तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, लेकिन तुम भी तो मेरी बातो को समझो की मैंने ऐसा क्यों किया? जो बात तुम मुझे अभी बता रही हो, वही बात रईशने मुझे बहुत शांति से समझाई थी और यही बात कुछ समय पहले मेरी मम्मीने भी मुझे समझाई थी और इसीलिए आज मैं तुम्हे यह बात बताने की हिम्मत जुटा पाया हूं।"

मेरी यह बात सुनकर फातिमा बोली, "तो क्या अगर उन दोनोंने तुम्हें समझाया नहीं होता तो तुम अपना पूरा जीवन इसी तरह बर्बाद कर देते?”

मैंने कहा, "नहीं, मैं उम्मीद कर रहा था की कभी न कभी मेरी आंखों की रोशनी वापस आएगी और जब ऐसा होगा तभी मैं तुम्हारे सामने अपने प्यार का इजहार करूंगा। मेरी आंखों की रोशनी वापस आने में अब ज्यादा समय नहीं लगेगा।"

यह सुनकर फातिमा बोली, "ओह! तो क्या तुम अपने प्यार का इज़हार तभी करनेवाले थे जब तुम्हारी आंखों की रोशनी वापस आ जाती? वैसे ऐसा नहीं होगा ऐसी संभावनाओं से इनकार भी तो नहीं किया जा सकता, इसलिए मेरा तुमसे सवाल है कि अगर तुम्हारी आंखों की रोशनी वापस नहीं आए तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?" फातिमा के इस सवाल का उत्तर मुश्किल था।

मैंने कहा, "मुझे नहीं पता की मेरे ऑपरेशन का नतीजा क्या होगा? मुझे यह भी नहीं पता कि मेरी आँखों की रोशनी वापस आएगी या नहीं, लेकिन मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ और जीवनभर तुम्हारे साथ रहूँगा।" 

फातिमा बोली, "हाँ, तो फिर ठीक है। खबरदार! अगर तुमने मुझे फिर से अपने से दूर करने की बात की तो…” 

मैंने कहा, "अरे! नहीं करूंगा मेरी मा! ऐसा कहकर मैंने फातिमा को अपनी बाहों में लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया और वो भी शर्माकर मेरी बाहों में छुप गयी।”

तभी वहां हमारे घर के सभी सदस्य तालियां बजाते हुए आये।

रईश वहा आकर बोला, "आख़िरकार तुम दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ी तो सही! तुम दोनों को बहुत बहुत बधाई।"

उन सबको इस तरह अचानक आता देख फातिमा मुझसे दूर हो गयी और शरमा गई। 

यह देखकर नीलिमा बोली, "अरे! फातिमा! तुम अपना मुँह क्यों छिपा रही हो? अब तुम्हारे शर्माने के दिन चले गये। अब तुम्हारे खुश रहने के दिन आनेवाले हैं। क्यों! क्यों ठीक कह रही हूं न मम्मीजी?" 

मेरी मम्मीने कहा, "हाँ, यह सही है। फातिमा! मैं तुम्हें अपने घर में दूसरी बहू के रूप में स्वीकार करने के लिए बहुत ही उत्सुक हूँ।"

सभी को इस तरह भावुक होते देख रईश एक बार फिर बोला, "चलो! अब रोशन को फातिमा मिल गई है तो उसने जंग जीत ली है, लेकिन मुझे अभी भी जंग जीतनी बाकी है। उसकी आंखों का ऑपरेशन अभी बाकी है। ऑपरेशन की अब सारी तैयारीया हो गई है। कल उसकी रिपोर्ट आनी है और सब कुछ सामान्य होने के बाद परसो उसका ऑपरेशन किया जाएगा।”

अगले दिन मेरी सभी आवश्यक रिपोर्टे की गई जो सभी नॉर्मल ही थीं। आख़िरकार ऑपरेशन का वो दिन आ ही गया और मुझे ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। आख़िरकार वह क्षण आ ही गया जिसका मैं कई वर्षों से इंतज़ार कर रहा था।

(क्रमश:)