प्रकरण - ५६
वक्त कहां बीत जाता है, कुछ पता ही नहीं चलता। देखते ही देखते तो दिवाली का समय नजदीक आ रहा था। दिवाली अभी सात दिन दूर थी। दर्शिनी के कॉलेज में दिवाली की छुट्टियाँ थीं। इस आगामी दिवाली के लिए निषाद मेहता और मैंने मिलकर एक विशेष एल्बम लॉन्च किया, जिसके गानोंने पूरे गुजरात में खूब धूम मचाई। हम सभी अपने एल्बम की सफलता से बहुत खुश थे।
रईश आज अहमदाबाद आ रहा था इसलिए हम सभी उनका स्वागत करने के लिए अहमदाबाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँचे। लेकिन ख़ुशी की बात ये थी कि उनका स्वागत करनेवाले हम अकेले लोग नहीं थे बल्कि कई लोग उन्हें देखने आये थे। वह अब एक सेलिब्रिटी बन गया था। अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उनकी वीडियो फुटेज लेने के लिए हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी अखबार, न्यूज चैनल, उनके रिपोर्टर, उनके फोटोग्राफर आदि मीडियाकर्मी आ पहुंचे थे।
उनके अलावा अहमदाबाद से भी कुछ लोग इसे देखने के लिए एयरपोर्ट आए थे। एयरपोर्ट के बाहर लोगों की भारी भीड़ थी। पुलिस को भीड़ को नियंत्रित करना पड़ा। रईश को गुजरात सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा दी गई थी क्योंकि सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि रईश जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कई दुश्मन थे। मशहूर हस्तियों के हमेशा अधिक दुश्मन होते हैं।
कोई भी इंसान जब बहुत हद तक सफल हो जाता है तो अपनी सफलता के साथ-साथ कई दुश्मन भी पैदा कर लेता है। अब तक रईश का कोई दुश्मन नहीं बना था, लेकिन भारत सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उन्होंने पानी से पहले ही तटबंध बना दिया। भारत सरकारने रईश की देखभाल की जिम्मेदारी गुजरात सरकार को सौंपी और इसी वजह से गुजरात सरकारने उन्हें पुलिस सुरक्षा दी थी।
रईश के लौटने से एक दिन पहले पूरे दिन न्यूज चैनल पर इसी बात की चर्चा होती रही। चारों ओर एक ही खबर फैल गई कि नेत्रदीप आई रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डाॅ. रईशकुमार कल अहमदाबाद लौटनेवाले है।
अमेरिका में कृत्रिम कॉर्निया बनाने में सफल होने के बाद अब वे इस तकनीक को भारत में भी लाने जा रहे हैं और अपने देश का नाम भी रोशन करेंगे। कल हम आपको अहमदाबाद एयरपोर्ट से उनके स्वागत का लाइव कवरेज दिखाएंगे।
दूसरे दिन सभी मीडियाकर्मी रईश की ये लाइव कवरेज लेने के लिए आ पहुंचे थे।
रईशने इन सब लोगों के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए हम तक आ पहुंचा था। सबसे पहले उसने हमारे मम्मी-पापा के पैर छुए, जिसकी तस्वीर मीडियावालोने कैमरे में कैद कर ली। उसके बाद उसने मुझे, नीलिमा और दर्शिनी को गले लगा लिया। उसने नन्ही अरमानी को भी अपनी गोद में लिया और उसे प्यारभरे चुंबनों से नहलाया। मानो वह उसे दो साल के प्यार की पूर्ति एक ही दिन में दे देना चाहता हो।
बड़ी मुश्किल से भीड़ के बीच से रास्ता निकाल कर हम घर पहुँचे। रईश के स्वागत के लिए दर्शिनी, नीलिमा और फातिमाने पहले से ही घर पर बड़ी तैयारी की थी। उन्होंने उनके स्वागत के लिए घर के दरवाजे पर गुलाब और गेंदे के के फूलों की रंगोली बनाई थी।
जब वह घर के दरवाजे पर आया तो नीलिमा हाथ में आरती की थाली लेकर उसके स्वागत के लिए खड़ी थी। उसने प्रेमपूर्वक रईश की आरती उतारी और उसके बाद ही उन्हें घर में प्रवेश करने के लिए कहा। जैसे ही वह घर में दाखिल हुआ, मैंने अपनी मम्मी की मदद से वेलकम नेकलेस पहनाकर उसका स्वागत किया। अपने स्वागत को देखकर रईश बोल उठा, “अगर मुझे पहले पता होता की तुम सब मेरा इतना अच्छे से स्वागत करनेवाले हो तो मैं यह मामला बहुत जल्दी सुलझा लेता, है न?”
रईश की ये बात सुनकर हम सब हंस पड़े। रईश के आने की ख़ुशी में मेरी मम्मीने आज उसके लिए खाना बनाया। रईश की घर वापसी से हम सभी बहुत खुश थे और सबसे ज्यादा खुशी तो मुझे ही हुई थी, क्योंकि उसके लौटने की ख़ुशी के साथ-साथ मुझे एक अपने जीवन में एक ज्योति जलती हुई दिखाई देने की उम्मीद थी।
अब तक रईश और नीलिमा को तो एक-दूसरे के साथ अकेले समय बिताने का मौका ही नहीं मिला था। अब रात हो गयी थी। रईश और नीलिमा दोनों अब अपने कमरे में अकेले ही थे। दोनों कुछ पल तक एक-दूसरे को देखते रहे और फिर एक-दूसरे को ऐसे गले लगा लिया जैसे दो लव बर्ड्स जो सालों से एक-दूसरे से दूर थे और कई सालों के बाद मिल रहे हों।
रईशने नीलिमा को गले लगाते हुए कहा, "नीलिमा! भले ही हमें अलग हुए सिर्फ दो साल ही हुए हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे हम कई सालों के बाद मिल रहे हैं।"
नीलिमा बोली, "हाँ, रईश! मुझे भी ऐसा ही लगता है। भले ही मेरे साथ मेरा पूरा परिवार था और घर पर सभी लोग मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखते थे लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे बिना हमेशा अधूरा ही महसूस करती थी। आज तुमने आकर मुझे पूरा कर दिया है।"
फिर रईशने पालने में सो रही अरमानी की ओर देखा और बोला, "नीलिमा! मैं कितना अभागा पिता हूं, जिसने अपनी बेटी के बचपन के ये दो साल खो दिए! जब वह बड़ी होगी तो उसे कैसा महसूस होगा, कि उसके पापा दो साल तक उसके साथ नहीं थे!"
रईश की यह बात सुनकर नीलिमा तुरंत बोल पड़ी, "रईश! तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो? अरे तुम देखना तो सही वह बड़ी होकर तुम पर बहुत गर्व करेगी और इन दो वर्षो के समय को हमेशा के लिए भूल जाएगी। तुमने जो कुछ भी किया है, यह सब हमारे परिवार की भलाई के लिए ही किया है। जब वो यह जानेगी की तुमने यह सब उसके चाचा रोशन की आंखों की रोशनी वापस आए उसके लिए किया है तो वह तुम पर बहुत ही गर्व महसूस करेगी।
तुम्हारा यह एक प्रयास कई लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा, तो यह तो उसके लिए गर्व करनेवाली बात होगी। तुम ऐसा सब कुछ सोचकर अपना दिल छोटा मत करो। तुम मुझसे वादा करो कि आज के बाद कभी भी ऐसी बेफिजूल की बाते नहीं करोगे।
रईश बोला, "ठीक है, मैं ऐसा दोबारा नहीं कहूंगा! वादा करता हूं। अब तो तुम खुश हो न नीलिमा?"
नीलिमा बोली, "हाँ, बहुत खुश हूँ! और चलो अब सो जाते हैं। कल सुबह तुम्हें फिर से रिसर्च सेंटर भी तो आना है। वहाँ भी सब तुम्हारा बहुत बेसबरी से इंतज़ार कर रहे हैं।"
अगले दिन की सुबह हो गई। रईश को अब फिर से नेत्रदीप आई रिसर्च सेंटर में शामिल होना था। वहां भी डॉ. प्रकाशने रईश का बहुत जोरशोर से स्वागत किया। उन्होने रईश को कमबैक पार्टी दी। सभी ने इस पार्टी का खूब अच्छे से लुत्फ उठाया।
पार्टी ख़त्म होने के बाद डॉ. प्रकाश ने रईश से कहा, "छह दिन बाद दिवाली है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप दिवाली का यह त्योहार अपने परिवार के साथ शांति से मनाएं और उसके बाद हम यहां भी अपना कार्य शुरू करेंगे और आपके भाई की सर्जरी जल्द संभव हो सके इसकी तैयारी करेंगे।"
रईशने कहा ,"हां, आप सही कह रहे हैं डॉक्टर प्रकाश। नए साल में हम नया काम शुरू करेंगे।"
दिवाली का वो दिन अब आ गया था।
(क्रमशः)