Tamas Jyoti - 54 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 54

Featured Books
Categories
Share

तमस ज्योति - 54

प्रकरण - ५४

मुझे एवॉर्ड मिलने की खुशी में मेरे परिवारने मुझे एक सर्प्राइज पार्टी दी थी। हम सभी उस सरप्राइज़ पार्टी का आनंद ले रहे थे तभी मेरे घर के दरवाजे की घंटी बजी। घंटी बजते ही फातिमा दरवाज़ा खोलने गई। उसने दरवाजा खोला।

दरवाजे पर समीर, समीर की मम्मी और ममतादेवी तीनों एकसाथ खड़े थे। फातिमा इन तीनो लोगों को हमारे घर के दरवाजे पर एक साथ खड़ा देखकर खुश हो गई। उन्होंने तीनों का स्वागत किया।

मैंने पूछा, "फातिमा! कौन आया है?"

मेरा सवाल सुनकर फातिमाने मुझसे कहा, "रोशन! तुम्हें अंदाजा लगाना होगा कि वह कौन हो सकता है?"

मैंने अनुमान लगाने की व्यर्थ कोशिश की, "शायद! रईश! लेकिन वह कहाँ से होगा? वह तो दिवाली पर आनेवला है न! फिर और कौन बचा है? अब तुम ही बता दो कि कौन आया है?" 

मेरा जवाब सुनकर ममतादेवी तुरंत बोलीं, "अरे! रोशनजी! आप मुझे कैसे भूल गये?" 

ममतादेवी की आवाज सुनकर मैंने कहा, "ओह! ममतादेवी! मैं आपको कैसे भूल सकता हूँ? लेकिन मुझे नहीं पता था कि आप इस समय यहां आओगे।" 

क्या आपके साथ कोई और भी आया है?" मैंने उससे दोबारा पूछा, मुझे लगा कि उनके साथ कोई ओर भी है।

ममतादेवीने कहा, "हाँ! मेरे साथ समीर और उसकी मम्मी दोनों आए है। मैं आपको पुरस्कार मिलने पर बधाई देने आई हूँ। और आपकी यह सरप्राइज़ पार्टी आपके माता-पिता और नीलिमा द्वारा आयोजित की गई है। उन्होंने मुझे और समीर के परिवार को इस पार्टी के लिए आमंत्रित किया था इसलिए हम आज खास आपके लिए यहां आए हैं।

यहां आने के पीछे मेरा दूसरा मकसद यह था कि मैं यहां अपने स्कूल की मुलाकात भी करना चाहती थी। मुझे यह भी जानना है कि फातिमा ठीक से काम कर रही है या नहीं? क्यों? फातिमा! ठीक चल रहा न सबकुछ?" ममतादेवीने फातिमा की ओर देखकर यह बात कही।

फातिमा बोली, "बिल्कुल मैडम। विद्यालय तो आप ही का है। यहां के छात्र भी राजकोट के छात्रों की तरह ही बहुत उत्साहित हैं। जब  सुधाकर अंकल उन्हें संगीत सिखाते हैं तो वे बहुत खुश होते हैं।" 

समीर और उसकी मम्मी, जो अब तक चुप थे उन दोनोंने भी मुझे बधाई दी। समीरने कहा, "रोशनभाई! यह पुरस्कार पाने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद।"

मैंने कहा, "बधाई तो समझ में आई लेकिन धन्यवाद! अरे! धन्यवाद क्यों? किसलिए?" 

इससे पहले कि समीर जवाब दे पाता, मेरी मम्मीने ही मुझसे कहा, "इस पार्टी के बहाने उसे यहाँ आने और दर्शिनी से मिलने का मौका मिल गया उसके लिए धन्यवाद और क्या? क्यों समीर? ठीक कह रही हु न मैं?" 

मैं अपनी मम्मी की यह बात सुनकर चौंक गया और बोला, "तो मम्मी! क्या तुम्हें इसके बारे में पहले से ही पता था?"

मेरी मम्मीने बताया, "हाँ! बेटा! मैं और तुम्हारे पापा हम दोनों ही इस बारे में पहले से ही जानते थे। और इसीलिए हमने आज समीर और उसकी मम्मी को यहाँ पर बुलाया है। हम तुम्हारे मम्मी पापा है तो हम तुम बच्चों के जीवन में क्या हो रहा है उसका ख्याल तो रखेंगे ही न?। 

अब मेरे पापा भी बोल उठे, "तुम्हें क्या लगता है कि ममतादेवी अपनी मर्जी से समीर और उसकी मम्मी को यहाँ लाई है? नहीं! वे उन्हे यहाँ लेकर आई है मेरे ही कहने पर।"

फिर वह समीर की मम्मी की ओर मुड़े और बोले, "आपका बेटा समीर बहुत मेधावी और एक अच्छा छात्र है। मुझे आपका बेटा समीर बहुत पसंद है। समीर और दर्शिनी दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, इसलिए मैं चाहता हूं कि हम उनकी भावनाओं को स्वीकार करें और उन दोनों को शादी के बंधन में बांध दे। मीरांजी! क्या आप मेरी बेटी दर्शिनी को अपने घर की बहू के रूप में स्वीकार करेंगी?"

मेरे पापा की ये बात सुनकर समीर की मम्मी बोली, "मेरे लिए इससे ज्यादा ख़ुशी की बात क्या हो सकती है कि आपकी बेटी मेरे घर बहू बनकर आये? मुझे यह रिश्ता स्वीकार है।" 

समीर की मम्मी की ये बात सुनकर दर्शिनी का सर शर्म से झुक गया। वह तिरछी नज़र से समीर की ओर देख कर मंद-मंद मुस्कुराने लगी और दूसरी ओर समीर भी मुस्कुरा रहा था। दर्शिनी और समीर को इस तरह एक-दूसरे को घूरते हुए देखकर नीलिमाने दर्शिनी को चुटकी बजाकर अपने ख्यालो से जगाया और बोली, "कब तक तुम समीर को ताकती रहोगी? वह अब तुम्हारा ही है।"

नीलिमा की यह बात सुनकर दर्शिनी को एहसास हुआ कि घर में सभी लोग मौजूद हैं। उसने तुरंत अपनी नजरें समीर से हटा ली।

यह समीर और दर्शिनी दोनों के लिए कल्पना से परे था। दोनों को अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि घर में उनकी सगाई की बात हो रही है। मेरे पापा समीर की मम्मी से कह रहे थे, "अगर आप बुरा न मानें तो मैं दिवाली पर उन दोनों की सगाई करना चाहता हूँ। क्योंकि, तब तक रईश भी यहाँ आ जाएगा तो इसलिए मैं चाहता हूँ, उसके यहाँ आने के बाद ही समीर और दर्शिनी की सगाई करे।"

समीर की मम्मी को ये मंजूर था। उन्होंने कहा, "जैसी आपकी इच्छा सुधाकरजी! मुझे आपकी बात मंज़ूर है।" 

मेरी मम्मीने कहा, "हम सगाई समारोह बाद में कर सकते हैं, लेकिन आज हम और मुंह तो मीठा कर ले? क्यों! ठीक है न? इस बारे में आपका क्या ख्याल है, मीरांजी?" 

समीर की मम्मीने कहा, "हां, आप सही कह रहे हैं। जब इतनी बड़ी खुशी का मौका हो तो अच्छे काम में देरी क्यों?" समीर की मम्मी भी मेरी मम्मी से सहमत थी।

दोनों परिवारोने एकदुसरे को मिठाई खिलाई। आज दोनों परिवारों के बीच एक नया रिश्ता जो कायम हुआ था। दर्शिनी और समीर दोनोंमें मेरे मम्मी पापा और समीर की मम्मी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। दर्शिनीने मेरे मम्मी पापा की ओर कृतज्ञतापूर्वक देखा। मानो वह मन में ही कह रही हो कि भले ही मैं आपकी सगी बेटी तो नहीं हूं लेकिन आप दोनोंने मेरे लिए माता पिता के सारे कर्तव्य निभाए है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे मम्मी पापा मिले है। वह मन ही मन मेरे मम्मी पापा का आभार व्यक्त कर रही थी।

समीर और दर्शिनी दोनों आज बहुत ही खुश थे। उनके रिश्ते को अब एक नाम जो मिल गया था। दर्शिनी का भी यह कॉलेज का अंतिम वर्ष था। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि दीवाली पर सगाई कर ली जायेगी और उसके ग्रेजुएशन के बाद ही शादी करेंगे। नीलिमाने रईश को ये पूरा कार्यक्रम वीडियो कॉल पर लाइव दिखाया। रईश भी दर्शिनी के लिए बहुत खुश था।

वो दिन बहुत ही अच्छा था। अगली सुबह समीर और उसकी मम्मी अपने घर के लिए निकल गये। 

ममतादेवी एक दिन और यहीं रुकनेवाली थी। वह अपने स्कूल का दौरा करना चाहती थी। फातिमा उसे अपने साथ स्कूल ले गई। मेरे पापा भी उनके साथ स्कूल जाते थे। नीलिमा भी अरमानी को सुलाकर ऑफिस चली गयी। दर्शिनी भी सुबह-सुबह कॉलेज के लिए निकल गई।

अब घर में मैं और मेरी मम्मी हम दोनों अकेले ही थे। मैंने एक दिन की छुट्टी ले ली थी इसलिए मुझे आज निषाद मेहता के पास नहीं जाना था। मेरी मम्मी के पास मुझसे बात करने का यह उत्तम अवसर था। वो यह जानती थी कि उन्हें ऐसा अवसर दोबारा नहीं मिलेगा, उन्होंने मुझसे कहा, "रोशन! बेटा! मैं आज तुमसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहती हूँ।"

मैंने पूछा, "हाँ, बताओ मम्मी! तुम क्या कहना चाहती हो?" 

उन्होंने मुझसे पहले शांति से बैठने को कहा। हम दोनों अपने घर के हॉल में सोफे पर बैठ गये। जब मेरी मम्मीने जब बताया कि उनके मन में क्या था, यह सुनकर मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ। मुझे नहीं पता था कि मेरी मम्मी मुझसे ये बात कहेंगी।

(क्रमशः)