Tamas Jyoti - 53 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 53

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तमस ज्योति - 53

प्रकरण - ५३

मैं और फातिमा अभी तो रईश के बारे में बात ही कर ही रहे थे कि रईश का फोन आ गया। मैंने फोन उठाया और हेल्लो कहा।

सामने की ओर रईश बहुत खुश लग रहा था। मैंने उसकी आवाज़ में बहुत ख़ुशी महसूस की थी। उसने मुझसे कहा, "बधाई हो! रोशन! भाई! सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार जीतने पर तुम्हे बहोत बहोत बधाई। यह हमारे पूरे परिवार के लिए गर्व की बात है की तुम अब एक सेलिब्रिटी बन गए हो।"

मैंने कहा, "हाँ, रईश! बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे इस तरह उत्साहित करने के लिए।" मैंने रईश का भी आभार व्यक्त किया।

मैं रईश को यह बता ही रहा था कि रईशने कहा, "अरे! रोशन! मुझे घर से माँ का फोन आ रहा है। चलो मैं उनको भी कॉन्फ्रेंस में ले लेता हूं।"

इतना कहकर रईशने कॉन्फ्रेंस कॉल में मेरी मम्मी को भी ले लिया। रईश और मैं दोनों एक साथ बोल उठे, "हेल्लो! मम्मी!" 

मम्मीने तुरंत मेरी आवाज़ सुनी और मुझसे कहा, "बेटा! रोशन! बधाई हो बेटा! हमने तुम्हारा पूरा कार्यक्रम टीवी पर लाइव देखा। तेरे हाथों में पुरस्कार देखकर हम सभी को बहुत ही खुशी हुई। हमें तुम्हारी स्पीच भी बहुत पसंद आई।"
मैंने कहा, "बहुत बहुत धन्यवाद मम्मी!" 

उसके बाद मेरी मम्मीने रईश से पूछा, "रईश! अमेरिका का काम तो अब ख़त्म हो गया, फिर तुम यहाँ भारत कब आओगे?" 

रईशने उत्तर दिया, "हाँ! मम्मी! यहाँ मेरा काम ख़त्म हो गया है। और मुझे आपको जो अच्छी खबर देनी है वह यह है कि मैं इस दिवाली पर घर लौटूँगा और दिवाली के बाद हम रोशन की आँखों का ऑपरेशन भी कराएँगे।"

रईश की यह बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ और बोला, "अरे! रईश! तुम्हारी यह बात सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैं बहुत खुश हूं। मैं दिवाली का बहुत बेसब्री से इंतजार करूंगा।" 

"और हम सब भी.." मेरी मम्मीने अब अपना फ़ोन स्पीकर पर रख दिया था इसलिए मेरे घर में हर कोई हमारे बीच जो भी बातचीत हो रही थी उसे सुन रहा था।

मैंने कुछ देर तक घर में सबके साथ बातचीत की और फिर फ़ोन रख दिया। अभी तक जो झिलमिल झिलमिल बारिश हो रही थी वह तेज़ हो चुकी थी। आकाश में बादल जोर जोर से गरजने लगे थे। बादलों के गड़गड़ाहट की आवाज मेरे कानों में भी गूँज उठी थी।

बादलों की गड़गड़ाहट से फातिमा पूरी तरह से डर गई थी। उस डर की वजह उसने तुरंत मुझे ज़ोर से पकड़ लिया तो मैंने उससे पूछा कि, "क्या हुआ फातिमा?" 

फातिमाने जवाब दिया, "रोशन! मैं...मैं...बहुत डरी हुई हूं।" 

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह इतनी डरी हुई क्यों थी? इसलिए मैंने उससे पूछा, "डर.. किस बात का डर...? तुम इतनी डरी हुई क्यों हो फातिमा?"

फातिमाने बताया, "मुझे इन बादलों की गड़गड़ाहट से बहुत डर लगता है।" 

उसकी यह बात सुनकर तो मैं ज़ोर से हंस पड़ा और बोल उठा, "हा..हा..हा.. क्या? तुम इतनी बड़ी होकर इस बादलो की गड़गड़ाहट से डरती हो? बच्चों का डरना तो समझ में आता है लेकिन तुम इतनी बड़ी होकर...? बड़ी कमाल हो तुम भी।?" उसकी ऐसी हालत देखकर मेरी हंसी रुक ही नहीं रही थी। मुझे अभी भी हंसी ही आ रही थी।

फातिमा बोली, "बस भी करो अब रोशन! पहले तो तुम हंसना बंद करो। मुझे सचमुच डर लग रहा है।" फातिमा की आवाज़ अभी भी डर से भरी थी। 

मैं उसकी आवाज़ सुनकर बता सकता था कि वह बहुत डरी हुई थी। मैंने उसे शांत करने का प्रयास करते हुए कहा, "तुम चिंता मत करो। कुछ मिनटों में बारिश बंद हो जाएगी। तुम ज्यादा डरो मत.. और मैं हु न तुम्हारे साथ। फिर तुम इतना क्यों डर रही हो? मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूँगा।"

"हाँ! प्लीज़ रोशन! तुम मेरे साथ ही रहो।" फातिमाने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझसे चिपक गई। मैं उसका स्पर्श महसूस करके रोमांचित हो गया। फिर अचानक उसे ख्याल आया कि हम कहा है तो उसने मुझे छोड़ दिया।

अभी भी बारिश हो रही थी। दोपहर हो चुकी थी और मुझे बहुत भूख लग रही थी इसलिए मैंने ड्राइवर से कहा, "अब गाड़ी आगे चलकर जहां भी कोई अच्छा रेस्टोरेंट आए वहां रोक देना।"

ड्राईवर बोला, "ठीक है सर! दस किलोमीटर आगे एक अच्छा रेस्टोरेंट है, जहाँ आपको हर तरह का अच्छा खाना मिलेगा वहा मैं गाड़ी रोक दूंगा।" 

दस किलोमीटर की दूरी बहुत जल्दी तय हो गई। जब तक हम एक रेस्टोरेंट में पहुँचे तब तक बारिश धीमी हो गई थी। मैंने फातिमा से कहा, "चलो! फातिमा! मुझे रेस्टोरेंट में ले चलो। मुझे बहुत भूख लगी है। चलो खाना खाते है। लगता है कि बारिश भी अब शायद धीमी हो गई है। अब तो तुम्हे डर नहीं लग रहा है ना?" इतना कह कर मैं फिर से हंस पड़ा।

फातिमा से मेरी ये हसी बर्दाश्त नहीं हुई। उसने मेरे हाथ पर हल्की सी चिट दी और प्यारी सी थपकी दी। मानो वह मुझसे मेरे द्वारा किये गये मजाक का बदला ले रही हो। 

मैंने कहा, "सोरी..सोरी..फातिमा! मैं अब तुम्हारा मजाक नहीं उड़ाऊंगा! अब तो खुश हो न तुम? चलो अब जल्दी से खाना खाते है।"

फातिमा मेरा हाथ पकड़कर मुझे होटल के अंदर ले गई। बारिश की कुछ बूंदें और एक-दूसरे को थामे हमारे हाथों की गर्माहटने हम दोनों को उत्साहित कर दिया। मेरे हाथ के स्पर्श से फातिमा का डर अब दूर हो गया था और मेरे स्पर्श के एहसास से उसका रोमरोम पुलकित होने लगा था। तभी फातिमाने देखा कि एक छोटा सा कीड़ा मेरी शर्ट के कॉलर से मेरी गर्दन तक जा रहा है, तो उसने तुरंत अपने हाथ से उस कीड़े को पकड़ लिया और हटा दिया।

इस प्रकार मुझे अपनी गर्दन पर फातिमा के हाथ का अप्रत्याशित स्पर्श बहुत अच्छा लगा। उस खूबसूरत माहौल में फातिमा के स्पर्श से मैं बहुत प्रभावित हुआ, लेकिन अचानक समय और स्थिति का एहसास होने पर मैंने तुरंत अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर लिया।

जब तक हम खाना खाकर बाहर निकले, बारिश पूरी तरह से बंद हो चुकी थी। हम फिर से कार में बैठ गये। अहमदाबाद पहुंचने में अभी दो घंटे बाकी थे। रास्ते में फातिमा और मैंने खूब बातें की।  इस सफर में समय कहा बीत गया पता ही नहीं चला।" इतना बताते हुए तो स्टूडियो में बैठे रोशनकुमार के चेहरे पर काफी चमक आ गई।

यह देखकर अमिताने कहा, "आपकी प्रेम कहानी वाकई बहुत दिलचस्प है, रोशनजी! यह सुनकर हम भी रोमांचित हो गए कि फातिमा बारिश से इतना डरती है और आपको गले लगा लिया। शायद यह सुनकर हमारे दर्शक भी रोमांचित हो गए होंगे!" 

रोशन बोला, "आप बिल्कुल सही कह रही है। अमिताजी! रोमांस किसे पसंद नहीं है? वैसे भी हमारे देश के लोग पहले से ही रोमांस पसंद करते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में सबसे ज्यादा रोमांटिक फिल्में बनती हैं।"

अमिता बोली, "हां, भारत के लोगों को रोमांस बहुत पसंद है। लेकिन आपने अभी तक फातिमा को अपने प्यार का इजहार कैसे किया उसके बारे मे नहीं बताया है। हम सभी आपके उस प्यार के इजहार के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं।" 

रोशनने कहा, "वह समय भी अब बहुत जल्द ही आएगा।" 

अमिताने पूछा, "तो अब आपके अहमदाबाद पहुंचने के बाद क्या हुआ? अब आप हमें आगे की बात बताएं।"

रोशनकुमार अब आगे की बात बताने लगे। वो बोले, "मैं और फातिमा अब अपने घर अहमदाबाद पहुँच चुके थे। घर में मेरे स्वागत के लिए सभीने मुझे एक बहुत अच्छी सरप्राइज़ पार्टी दी थी। हम सभी पार्टी का आनंद ले रहे थे तभी मेरे दरवाजे की घंटी बजी। फातिमाने दरवाज़ा खोला। हमारे घर आए उस आगंतुक को देखकर हम सभी आश्चर्यचकित रह गये।

(क्रमश:)