Tamas Jyoti - 51 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 51

Featured Books
Categories
Share

तमस ज्योति - 51

प्रकरण - ५१

मेरे मम्मी पापा अब हमारे साथ अहमदाबाद में रहने आ गये थे। मेरा पूरा परिवार अब एक साथ रहने लगा था। अब पूरे परिवार में सिर्फ रईश की ही कमी थी, वह भी अब बहुत ही जल्द पूरी होनेवाली थी। क्योंकि जिस उद्देश्य से वह अमेरिका गया था वह उद्देश्य लगभग समाप्त हो चुका था। और जल्द ही वह यहां भारत लौटनेवाला था। हम रईश के बारे में अब बाद में बात करेंगे। अभी फिल्हाल मैं अपनी बात बताता हूं।

मैं बहुत समय से निषाद महेता के साथ काम करने की वजह से उनके पास से बहुत कुछ नया सीख गया था। वे हमेशा संगीत में नये नए प्रयोग करते रहते थे और मार्केट में रहने के लिए यह जरूरी भी था। वक्त वक्त पर आपको लोगों को कुछ न कुछ नया देना ही पड़ता है। उन्होंने मुझे गुजराती लोकसंगीत, सुगमसंगीत, हास्यगीत, गुजराती रास-गरबा आदि विभिन्न प्रकार के संगीत का ज्ञान दिया था। उन्होंने मुझे बताया की इन सभी विभिन्न प्रकार के संगीत की ऑडियंस भी अलग-अलग होती है। मैं चाहता हूं कि हम दोनों साथ मिलकर इन विभिन्न प्रकार के संगीत को लोगों तक पहुंचाए ताकि हमारी प्रसिद्धि भी बढ़ती रहे।

निषाद महेता एक कलाकार होने के साथ साथ एक कुशल व्यापारी भी थे। उनकी बुद्धि एकदम बनिए की बुद्धि थी। किस तरह से कई लोगों तक पहुंचना और किस तरह से अपना मार्केटिंग करना वह उन्हे बहुत अच्छे से आता था। उनके साथ काम करने से मुझे भी काफी कुछ नया नया सीखने को मिल रहा था।

जल्द ही नवरात्रि आनेवाली थी। निषाद मेहता हर साल बड़े उत्साह के साथ नवरात्रि का आयोजन करते थे। जिसमें वे गुजरात के कलाकारों के साथ-साथ बॉलीवुड से भी कई गायक और संगीतकारों को परफॉरमेंस देने के लिए आमंत्रित करते थे। नौ दिन अलग अलग लोग मुंबई से अहमदाबाद आते थे और वे नवरात्रि में लोगो का मनोरंजन करते रहते थे।

इस साल भी वह उन नौ दिनों में हर एक दिन अलग-अलग गायकों को परफॉर्म करने का मौका देनेवाले थे। जिसमें से काफी लोग गुजराती भी थे। उन गुजराती गायकों को तो निषाद मेहता की नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता था क्योंकि इसी बहाने उन्हें अपने प्रदेश में आने का मौका भी मिल जाता था, वर्ना मुंबई में तो उनका जीवन ज्यादातर व्यस्त ही रहता था। वह कई सारे गुजराती कलाकारों को एक छत के नीचे मंच पर लाने में सक्षम थे।

इस साल भी उन्होंने उसी जोश के साथ नवरात्रि की तैयारी की। लेकिन इस बार कार्यक्रम थोड़ा बदला हुआ था। इस बार उन्होंने मुझे गरबा की धून बनाने का काम सौंपा। वे स्वयं ही गरबा लिखते थे, इसलिए उनकी नवरात्रि सामान्य नवरात्रि से बहुत अलग होती थी। उनके सारे  गरबे वे खुद ही लिखते थे इसलिए वो किसी और नवरात्रि में सुनने को नहीं मिलता था। और इसीलिए लोग इस नवरात्रि के प्रति बहुत आकर्षित होते थे। वह हर साल गुजरात के लोगों को कुछ न कुछ नया परोसते ही रहते थे।

इस बार भी उन्होंने एक नया प्रयोग किया। इस बार उन्होंने अपने सभी गरबाओ का पूरा एल्बम बनाया और उसे उन्होंने अपनी यूट्यूब चैनल पर डाला, जो उन्होंने मेरे साथ मिलकर बनाया था। उनके चैनल के फॉलोअर्स भी बहुत थे इसलिए अब हमारे बनाए हुए गरबे इस बार हर घर और हर चौक पर और हर गरबीमंडल में गूंजने लगे थे।

उनके द्वारा लिखित और मेरे द्वारा रचित इन गरबोंने इस साल की पूरी नवरात्रि में खूब धूम मचाई। इस पूरे गरबा का संगीत भी मैंने ही तैयार किया था लेकिन मुझे सिर्फ एक ही बात का दु:ख था की मेरी आंखें मेरा साथ नहीं दे रही थीं। मैं अपनी आँखों से नवरात्रि की वो रौनक तो नहीं देख सकता था। मैं इसे केवल अपनी कल्पना में ही देख सकता था। लेकिन मैं आपको एक बात जरूर बता दूं। मेरी यह कल्पना बिल्कुल खूबसूरत थी। मेरे सामने महाकाली की एक मूर्ति आ रही थी और उसके चारों ओर लड़कियाँ हाथों में झांझ लिये घूम रही थीं। मेरी इस कल्पना से भी मेरे मन को बहुत ही आनंद मिलता था।

नवरात्रि के उन नौ दिनों में से एक दिन निषाद मेहताने अभिजीत जोशी को भी अपनी नवरात्रि में गाने के लिए आमंत्रित किया था और मैं तो उनका संगीतकार था ही। बहुत दिनों बाद मेरी अभिजीत जोशी से मुलाकात हुई थी। उनके आने से मुझे बहुत ही ख़ुशी हुई थी। जब आप लंबे समय के बाद किसी पुराने परिचित से मिलते हैं तो आप अनोखी ही खुशी का अनुभव करते है। मैं भी बिल्कुल ऐसी ही खुशी महसूस कर रहा था।

नवरात्रि की वह रात खत्म होने के बाद अभिजीत जोशीने मुझसे कहा, "रोशनजी! आपके और मेरे हम दोनों के लिए एक बहुत ही अच्छी खबर है। नीरव शुक्ला की जिस फिल्म के लिए आपने संगीत तैयार किया है, उसे इस आगामी फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए संगीत निर्देशक के रूप में आपका नाम नामांकित किया गया है और इसी फिल्म में गायक के तौर पर मेरा भी नाम नामांकित किया गया है।

ज्यूरीने हम दोनों का नाम पुरस्कार के लिए चुना है। एक संगीतकार के रूप में आपका और एक गायक के रूप में मेरा। पंद्रह दिन बाद यह एवोर्ड समारोह होना है। मैं तो मुंबई में ही हूं लेकिन आप अभी यहां अहमदाबाद में है। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप इस पुरस्कार को लेने के लिए मुंबई आएं और मुंबई आकर अपने हाथों से ही इस पुरस्कार को प्राप्त करें।”

मुझे यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई कि मुझे पुरस्कार मिलनेवाला है। मैंने तुरंत कहा, "अरे! यह तो आपने बहुत अच्छी बात कही है। मेरे लिए इससे अधिक ख़ुशी की बात क्या हो सकती है कि उन्हें मेरा संगीत इतना पसंद आया? मैं आज बहुत खुश हूँ। मुझे लगता है कि संगीत का अभ्यास करने का मेरा जो निर्णय था वह बिल्कुल सही ही था। और मेरे इस निर्णय में मैं सफल भी हुआ यह भी मेरे लिए बहुत ही बड़े गर्व की बात है। मैं यह पुरस्कार लेने के लिए निश्चित रूप से मुंबई आऊंगा।"

अभिजीत जोशी बोले, "बहुत-बहुत धन्यवाद रोशनजी! और आपको बहुत बहुत बधाई।"

मेरे घर में भी सभी लोग यह सुनकर बहुत खुश हुए कि मुझे अपने इस कार्य के लिए पुरस्कार मिलनेवाला है।

पलक झपकते ही पन्द्रह दिन भी बीत गये। पार्थ अपनी बहन की शादी के कारण चार दिन की छुट्टी पर राजकोट गया था और मेरी मम्मी को मेरा अकेले मुंबई जाना ठीक नहीं लगा, इसलिए मेरी मम्मीने मुझसे फातिमा को अपने साथ मुंबई ले जाने के लिए कहा। उन्होंने फातिमा को भी मेरे साथ यह कह कर भेज दिया कि अगर फातिमा मेरे साथ रहेगी तो मेरी मम्मी को मेरी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। फातिमाने मेरे साथ मुंबई आने के लिए स्कूल से दो दिन की छुट्टी ले ली थी।

मैं और फातिमा दोनों अब मुंबई में आ पहुंचे थे। एवोर्ड समारोह की वह रात अब आ चुकी थी। फातिमाने मुझे बताया कि लगभग पूरी बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री यहां आई थी। सभी बहुत ही अच्छे से तैयार होकर आए थे। मुझे भी इस बात की बहुत ख़ुशी थी कि फातिमा इस समारोह में मेरे साथ आई थी। मैं हमेशा से फातिमा को अपने साथ ही रखना चाहता था और यह तो मेरे लिए बहुत ही खुशी का दिन था। मेरी खुशी में फातिमा मेरे साथ हो इससे ज्यादा खूबसूरत और क्या हो सकता है?

पूरे कार्यक्रम की एंकरिंग मशहूर बॉलीवुड अभिनेता अदनानखान को करनी थी और उनका साथ देनेवाली थी जानी-मानी हीरोइन जूही बेनर्जी। हमारे इंतज़ार का अंत जल्द ही आनेवाला था। एवोर्ड समारोह शुरू होने में केवल पाँच मिनट बाकी थे।

(क्रमश:)