Tamas Jyoti - 50 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 50

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तमस ज्योति - 50

प्रकरण - ५०

रईश और उनकी टीम की चर्चा अब पूरे अमेरिका में होने लगी थी। अमेरिका के विजन आई रिसर्च सेंटर के डॉ. डेनिश और रईश समेत वहां के वैज्ञानिकों की पूरी टीम सुर्खियों में छा गई थी। रईश और उनकी टीम द्वारा बनाया गया कृत्रिम कॉर्निया एक अनोखा आविष्कार था जो कई अंधे लोगों को ज्योति प्रदान करेगा। रईश भारत के एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक के रूप में बहुत प्रसिद्ध हुआ जिन्होंने अनेक सूरदासों के जीवन में रोशनी फैलाई। यह भारत के लिए बड़े ही गर्व की बात थी।

जब भारत सरकार को एहसास हुआ कि हमारे देश का एक वैज्ञानिक इतना अच्छा काम कर रहा है, तो उन्होंने सोचा कि हमें भी अपने देश के इस वैज्ञानिक का सम्मान करना चाहिए। भारत सरकारने रईश को बिल्कुल अनोखे अंदाज में सम्मानित किया। भारत के प्रधानमंत्रीने रईश को सम्मान देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया और उनके साथ अमेरिका लाइव बातचीत की और इस पूरे कार्यक्रम का भारत के हर न्यूज चैनल पर लाइव प्रसारण किया गया।

पूरे भारत में हर समाचार चैनल पर रईश का एक अनोखा लाइव इंटरव्यू आयोजित किया गया था। इस इंटरव्यू में सरकारने भारत के सभी नेत्र अनुसंधान संस्थानों को रईश से बातचीत करने का मौका दिया था। इसमें आंखों पर काम करनेवाले भारत के कई वैज्ञानिकोंने हिस्सा लिया और रईश से कई सवाल पूछे।

किसीने रईश से पूछा की उन्होंने सारा काम कैसे किया? फिर रईशने अपने और उनकी टीम द्वारा अब तक किए गए सभी कार्यों के बारे में विस्तार से उत्तर दिया। तो किसीने उनसे पूछा की उसको यह कृत्रिम कॉर्निया बनाने की प्रेरणा कैसे मिली?"

तब इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रईशने मेरे साथ हुई दुर्घटना बताते हुए कहा, "मैं अपने भाई रोशन को अपने रिसर्च के लिए प्रेरणा मानता हूं। क्योंकि, कुछ साल पहले जब मेरा भाई कॉलेज में पढ़ रहा था, तो उसके साथ केमिस्ट्री लैब में एक दुर्घटना हो गई थी। लेब में आग लगने के कारण सब लोग इधर-उधर भाग रहे थे उसमें मेरा भाई रोशन भी शामिल था। वह जब भाग रहा था और अचानक से पैर में त्रिपाइ आने की वजह से वह गिर पड़ा तो वहां पर पड़ी कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड की बोतल भी उसके साथ साथ गिरी और टूटी। बोतल टूटने के कारण उसमें पड़े केमिकल की कुछ छींटे उसकी आंखों में चली गई और उसकी कॉर्निया को नुकसान पहुंचा और उसकी दृष्टि चली गई। उसके चारों ओर तमस ही तमस छा गया था। जब मेरे भाई के साथ यह घटना घटी तो वह हमारे पूरे परिवार के लिए बहुत कठिन समय था। जब मेरे भाई रोशन की आंखों की रोशनी चली गई, तो मैंने फैसला किया कि मैं आंखों पर रिसर्च करूंगा और उसकी आंखों की रोशनी एक दिन जरूर वापस लाऊंगा। मैं उसके जीवन में ज्योति जगाऊंगा। मैंने अपने भाई के मन में यह उम्मीद जगाई थी कि उसकी आंखों की रोशनी जरूर वापस लौटेगी और इसलिए मुझे यह काम तो अब पूरा करना ही था। मेरे भाई रोशन की सारी उम्मीदें अब मुझ पर ही टिकी हुई थी, इसलिए मैं हार मानने का जोखिम नहीं उठा सकता था।

पहले हमने जानवरों की आंखों पर रिसर्च किया था। उसमें हमें सफलता मिलने के बाद ही हमने मनुष्य की आंखों पर रिसर्च करने का साहस किया था। उस साहस मे डॉ. डेनिश विक का सहयोग पाकर मेरे लिए यह काम थोड़ा ओर आसान हो गया। रईश से फिर सवाल पूछा गया, "क्या अब आप यह कृत्रिम कॉर्निया जो आपने बनाया है, उसे भारत में लाने जा रहे हैं?"

इसके जवाब में रईशने कहा, "मैं वही तकनीक को भारत में भी विकसित करना चाहता हूं जो हमने अमेरिका में विकसित की है। मैं अहमदाबाद में नेत्रदीप आई रिसर्च सेंटर में अपने इस कार्य को अंजाम देना चाहता हूं। मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूं की भारत के दृष्टिहीन लोगों को अपनी आंखों के इलाज के लिए कही दूर न जाना पड़े और उनका इलाज उनके घर के पास ही संभव हो सके, ताकि उन्हें बहुत कम कीमत पर अपना इलाज मिल सके। मैं सूरदास लोगों के जीवन में प्रकाश की किरण बनना चाहता हूं। मैं उनके जीवन में प्रकाश फैलाना चाहता हूं। सबसे पहले मैं अपने भाई रोशन की आंखों का ऑपरेशन कराना चाहता हूं। मेरा भाई रोशन भारत का पहला मरीज होगा जिसकी आंखों में मेरा बनाया हुआ कृत्रिम कॉर्निया प्रत्यारोपित किया जाएगा।"

रईश की यह बात सुनकर उन्होंने फिर सवाल पूछा, "तो आपके भाई रोशनजी! अब उनकी आंखों का ऑपरेशन कब संभव होगा?"

रईशने बताया, "बहुत ही जल्दी। मैं जल्द ही भारत लौटूंगा और नेत्रदीप आई रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. प्रकाश उसकी आंखों का ऑपरेशन करेंगे।"

जिस दौरान रईश अमेरिका में मशहूर हो रहा था उसी दौरान मैं भी गुजराती फिल्म इंडस्ट्री में छाने लगा था। गुजरात के लोगों को मेरा संगीत बहुत पसंद आने लगा था। जब से मैं और निषाद मेहता साथ में जुड़े थे, तब से मैं हम बहुत ही तेज़ी से सफलता की और गति करने लगे थे।

राजकोट में मेरे पापाने भी समीर को अब विद्यालय में अच्छे से स्थापित कर दिया था। अब मेरा ऑपरेशन भी नजदीक आ रहा था इसलिए मेरे पापाने ममतादेवी से छुट्टी मांगी और कहा, "ममतादेवी! अब रोशन का ऑपरेशन जल्द ही होनेवाला है तो मैं अपनी सारी जिम्मेदारियां समीर पर छोड़ना चाहता हूं। मैंने समीर को अच्छे से तैयार कर दिया है इसलिए अब कृपया मुझे विद्यालय के काम से छुट्टी दे दीजिए। फिलहाल रोशन को शायद अब हम दोनों की ज्यादा जरूरत है। मैं और मालती अब अहमदाबाद जाकर अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं।”

यह सुनकर ममतादेवीने कहा, "हां, सुधाकरजी! आप सही कह रहे हैं। रोशन को अभी आपकी अधिक जरूरत है, इसलिए मैं आपको यहां स्कूल के काम से मुक्त करती हूं। लेकिन मैं आपको पूरी तरह से सेवा से निवृत्त तो नहीं होने दूंगी। मैं चाहती हूं की फातिमा अहमदाबाद में जो विद्यालय संभाल रही है वहां पर आप संगीत गुरु के रूप में अपनी सेवा दे। यहां के विद्यालय की चिंता मत कीजिएगा क्योंकि मैं जानती हूं कि समीर बहुत अच्छे से यहां का सारा काम संभाल लेगा। मुझे समीर पर पूरा भरोसा है। और हां! एक और खास बात भी मैं आपको बताना चाहती हूं। वह यह है की फातिमा आपके बेटे रोशन से प्यार करती है और रोशन भी फातिमा से प्यार करता है। लेकिन रोशन सिर्फ अपनी आंखों की वजह से ही फातिमा को हां नहीं कह पा रहा है, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप इस मामले में रोशन को समझाए।

मेरे पापा के साथ साथ मेरी मम्मी भी ममतादेवी से मिलने आई थी। ममतादेवी की यह बात सुनकर मेरी मम्मी तुरंत बोलीं, "हां! मुझे यह पता है। यह बात मुझे नीलिमाने कुछ देर पहले ही बताई थी। मैंने यह बात किसी को पता नहीं चलने दी कि मैं यह बात जानती हूं। अगर फातिमा मेरे घर की बहू बनकर आती है इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है? मैंने मन बना लिया था कि मैं अहमदाबाद जाऊंगी और रोशन से इस मामले पर बात करूंगी।"

मेरी मम्मी की यह बात सुनकर मेरे पापा बोले, "मालती! यदि तुम्हें यह बात पहले से पता थी तो फिर तुमने मुझे क्यों नहीं बताया?" 

मेरी मम्मीने कहा, "मैंने सोचा था की मैं पहले रोशन से इस बारे में बात करूंगी और अगर रोशन हां करेगा तभी मैं आपसे बात करुंगी।"

मेरे पापाने कहा, "ठीक है मालती! कोई बात नहीं। अब हमारे घर के सभी लोग रोशन और फातिमा के बारे में जानते है तो हमें भी अब उन उन दोनों से इस बारे में बात करनी चाहिए।" 

मेरे मम्मी पापा ममतादेवी की इजाजत लेकर घर वापस आ गए। दो दिन बाद मेरे मम्मी-पापा भी हमारे साथ अहमदाबाद रहने आने वाले थे।

(क्रमश:)