Tamas Jyoti - 44 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 44

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तमस ज्योति - 44

प्रकरण - ४४

जब दर्शिनी घर वापस आई तो मेरी मम्मी के मन में कई सवाल थे जिनका जवाब वह दर्शिनी से पाना चाहती थी। 

मेरी मम्मीने दर्शिनी से कहा, "बेटा! मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा है। क्या मैं पूछूँ?"

दर्शिनीने कहा, "हाँ, हाँ, मम्मी! पूछो? प्रश्न पूछने के लिए तुम्हें मुझसे अनुमति माँगने की क्या आवश्यकता है? मुझ पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। पूछो! तुम क्या पूछना चाहती हो?"

मेरी मम्मीने पूछा, "ये समीर तुम्हारे साथ स्कूल में पढ़ता था ना! और वो काफी समय से तुम्हारा दोस्त है। क्यों?" 

दर्शिनीने कहा, "हाँ, मम्मी! समीर लंबे समय से मेरा दोस्त है और वह बहुत अच्छा लड़का है।" दर्शिनी समीर का पक्ष लेते हुए बोल उठी।

मेरी मम्मीने कहा, "देखो बेटा! अगर वह सिर्फ तुम्हारा दोस्त है तो फिर पहले तुम मुझे ये बताओ की तुमने उसे हमसे अब तक क्यों नहीं मिलवाया? तुमने कभी भी घर पर समीर के बारे में बात क्यों नहीं की? मुझे या पापा को इस बारे में क्यों कोई बात नहीं की? क्या वह सिर्फ तुम्हारा दोस्त ही है या दोस्त से बढ़कर कुछ ओर भी है? मैं जो भी सवाल अभी तुमसे पूछ रही हूं उसका तुम सही सही उत्तर देना। मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे मुंह से सच जानना चाहती हूं।"

दर्शिनी और समीर दोनों को देखकर मेरी मम्मी समझ गई थी कि उनके बीच दोस्ती से बढ़कर भी कुछ और रिश्ता है और अब वह दर्शिनी से इस बारे में स्पष्टीकरण चाहती थी।

दर्शिनी जानती थी कि अब और झूठ बोलने का कोई मतलब नहीं है इसलिए उसने मम्मी को सच बताया और कहा, "हाँ! मम्मी! तुम सही कह रही हो। समीर न केवल मेरा दोस्त है बल्कि बहुत खास है। मैं उससे प्यार करती हूँ और वह भी मुझसे प्यार करता है। हम दोनों ही एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। समीर और मेरे इस रिश्ते के बारे में तुम्हें और पापा को नहीं पता है लेकिन रोशनभाई और रईशभाई उन दोनों को इसके बारे में पता है।"

ये सुनकर आश्चर्य से मेरी मम्मीने दर्शिनी से पूछा, "क्या!? उन दोनों को ये बात पता है? दोनो में से किसीने भी मुझे इसके बारे में कभी नहीं बताया।" मेरी मम्मी यह सुनकर हैरान रह गई थी कि रईश और मैं दर्शिनी और समीर के रिश्ते का सच जानते थे। उसके दोनों बेटे इतनी बड़ी बात उससे छिपाएंगे ऐसा उसे कभी भी नहीं लगा था।
दर्शिनी बोली, "हाँ! मम्मी! मेरे और समीर के रिश्ते के बारे में मेरे दोनों भाई जानते है। जब मैं स्कूल में थी, तो रोशनभाई और फातिमा दोनोंने मुझे समझाया था कि तुम अभी इन सबके लिए बहुत छोटी हो। अभी तुम्हे अपना सारा ध्यान केवल पढ़ाई पर ही लगाने की जरूरत है। उस समय मुझे रोशनभाई की कोई बात समझ नहीं आती थी और मेरा इस बात को लेकर उनसे बहुत बड़ा झगड़ा भी हुआ था। वे मुझ पर बहुत ही गुस्सा भी हो गए थे। लेकिन उस समय रईशभाईने बाजी संभाल ली थी। उन्होंने ही मुझे समझाया था कि अगर मैं अब अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाऊंगी तो एक दिन सही वक्त आने पर वह तुमसे और पापा से मेरे और समीर के रिश्ते के बारे में बात करेंगे। उन्होंने मुझसे वादा लिया था कि अभी मैं अपना सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर ही दूंगी और शादी के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचूंगी और जब तक हम दोनों शादी करने के लायक नहीं हो जाते, तब तक मैं या रोशनभाई दोनो ही आपको इस बारे में नहीं बताएंगे।"

मेरी मम्मी बोली, "तो हम दोनों को छोड़कर हरकोई इस बारे में जानता है! अब तो फातिमा को भी इस बारे में पता है?" 

दर्शिनीने कहा, हाँ मम्मी! फातिमा भी जानती है। इस बारे में सबसे पहले फातिमा को ही पता चला था। उसने मुझसे पूछा भी था कि मैं समीर को पसंद करती हूं या नहीं? और मेरे हां कहने के बाद ही उन्होंने रोशनभाई से इस बारे में बात की थी।" 

मेरी मम्मीने कहा, "तो ये बात है?"

दर्शिनीने पूछा, "हाँ! मम्मी! क्या तुम्हें समीर पसंद नहीं आया?" मेरी मम्मी का चेहरा देखकर दर्शिनी को बहुत डर लग रहा था। 

मेरी मम्मीने कहा, "नहीं, नहीं बेटा! ऐसी कोई बात नहीं है। पहली मुलाकात में समीर मुझे अच्छा लड़का लगा लेकिन..." 

दर्शिनी बोली, "लेकिन क्या मम्मी?"

मेरी मम्मीने कहा, "लेकिन समीर एक गरीब विधवा का बेटा है। जो बच्चे कम उम्र में अपने पिता की छाया से वंचित हो जाते हैं वे अपनी उम्र की तुलना में बहुत तेजी से बड़े हो जाते हैं। समीर एक बहुत बुद्धिमान लड़का लगता है लेकिन तुम तो जानती हो कि हमने तुम तीनो को कैसे पाला है। हमने तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दी, इसलिए भविष्य में अगर तुम समीर से शादी करोगी तो तुम्हारे मन में पैसों को लेकर कल को कोई मुसीबत आ सकती है। मैं यह नहीं कह रही हूं कि ऐसा ही होगा, बल्कि मैं तो केवल इस संभावना के बारे में तुम्हे बता रही हो जो मुझे दिखाई दे रही है। मेरे हिसाब से अभी जो तुम्हे छोटी बात लग रही है वही बात आगे चलकर बड़ी हो सकती है।"

जब मेरी मम्मी और दर्शिनी इस बारे में बात कर रही थी तो मेरे पापा चुपचाप खड़े होकर उनकी बातचीत सुन रहे थे। 

वह अचानक मेरी मम्मी के पास आए और बोले, देखो मालती! दर्शिनी को अगर समीर पसंद है तो मुझे लगता है कि हमें उसकी पसंद पर भरोसा करना चाहिए।"

मेरी मम्मीने बोला, "हाँ! सुधाकर! लेकिन मैं इस बात से कहाँ इनकार कर रहा हूँ? लेकिन ये तो समीर की परिस्थिति ऐसी है तो..."

मेरे पापाने मम्मी को बीच में ही रोककर कहा, "मालती! चिंता मत करो। हमारी बेटी बहुत ही बुद्धिमान है और हमने उसे इस तरह पाला है कि वह कहीं पर भी एडजस्ट हो सकती है। और वैसे भी एक रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या होती है? प्यार ही तो होता है। है न? और अगर दर्शिनी और समीर के बीच प्यार है तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे हिला नहीं सकती। प्यार बहुत मजबूत रिश्ता होता है। मुझे विश्वास है की वे दोनों हर स्थिति का साहस के साथ सामना करेंगे।"

मेरी मम्मी बोली, "ठीक है फिर! मैं आप दोनों बाप-बेटी के सामने हार गई। बस! खुश! लेकिन फिलहाल खाना खाने बैठो। अब रात के खाने का समय हो गया है तो खाना खा लें और जल्दी सो जाएं। क्योंकि, फिर कल सुबह हमें दर्शिनी को अहमदाबाद छोड़ने भी तो जाना है। और हाँ! मैं नीलिमा को भी यहाँ घर पर आने के लिए देती हूं ।वह भी अरमानी को लेकर यहाँ आ जाएगी तो फिर यहाँ से हम सब एक साथ ही अहमदाबाद चले जाएंगे। वैसे भी नीलिमा का घर वापस आने का वक्त भी हो गया है तो उसे वापस लाने की रस्म भी हम कल ही पूरी कर लेंगे।

मेरे पापाने कहा, "हा! ये तुम सही कह रही हो। मैं अभी नीलिमा के मम्मी पापा से इस बारे में बात कर लेता हूं।"

अगले दिन मेरी मम्मी, पापा और नीलिमा दर्शिनी को लेकर अहमदाबाद पहुँच चूके थे। 

उसी वक्त ममतादेवी फातिमा के लिए कुछ अलग ही योजना बना रही थी।

(क्रमश:)