Tamas Jyoti - 43 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 43

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तमस ज्योति - 43

प्रकरण - ४३

मैंने निषाद मेहता को फोन लगाया और कहा, "निषादजी! मैंने आपकी बात पर बहुत सोचा और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुझे आपका प्रस्ताव निश्चित रूप से स्वीकार करना चाहिए लेकिन..." 

निषादने पूछा, "लेकिन क्या रोशनजी?"

मैंने कहा, "आप तो जानते ही कि मैं सूरदास हूं, लेकिन आपको शायद यह एहसास नहीं होगा कि मेरा बड़ा भाई रईश मेरी आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए इस समय अमेरिका में बड़ा रिसर्च कर रहा है और अगर वह सफल हो गया, तो मेरी आंखों का भी ऑपरेशन किया जाएगा। मैं आपके साथ पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट करने के लिए तैयार हूं, लेकिन अगर मेरा भाई सफल होता है और मुझे ऑपरेशन कराना पड़ता है तो आपको इस कॉन्ट्रैक्ट के दौरान मुझे ऑपरेशन के लिए समय देना होगा। पर मैं आपको यह भी विश्वास दिलाता हूं कि मैं अपने लिए जितना वक्त लूंगा उससे अधिक वक्त मैं आपके कार्य के लिए निकालूंगा। अब आप सोच लीजिए आपको मेरी शर्त मंजूर है या नहीं?”

निषादने कहा, "हाँ, हाँ। अब इसके बारे में क्या सोचना है? मैं आपकी शर्त से बिल्कुल सहमत हूँ। हाँ! मैंने समाचारों में पढ़ा कि आपका भाई रिसर्च में काम कर रहा है, इसलिए मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूं और मैं आपकी परिस्थिति को भी समझता हूं। आसान नहीं होता बिना रोशनी के जीवन जीना, लेकिन मुझे आपकी बात सुनकर बहुत गर्व महसूस होता है कि आप कितनी आसानी से परिस्थिति को स्वीकार कर पा रहे है और मुझसे इतनी खुलकर बात भी कर पा रहा हो।

नही तो ऐसी कठिन परिस्थिति में इंसान हमेशा हार मान लेता है और उसके साथ जो भी हो रहा होता है उसके लिए भगवान को दोषी मानने लगता है। लेकिन आप इन सभी आम इंसानों से कुछ अलग हैं। आपके इसी स्वभाव की वजह से मैं कहीं न कहीं अंदर से आपकी ओर आकर्षित हो उठता हूं।"

मैंने कहा, "ठीक है निषादजी! नीरव शुक्ला की आखिरी बची हुई रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद मैं अहमदाबाद आऊंगा और आपके साथ ये कॉन्ट्रैक्ट साइन करूंगा। वैसे भी मेरे भाई का घर अहमदाबाद में ही है और भविष्य में जब मेरा ऑपरेशन होगा, तब वो भी अहमदाबाद में ही किया जाएगा। आपके साथ इस कॉन्ट्राक्ट को साइन करने का मुझे यह भी फायदा है।" 

निषादने कहा, "रोशनजी! फिर तो जल्द ही अहमदाबाद में हमारा मिलना होगा।" इतना कहकर उन्होंने फोन रख दिया। 

इधर मेरे घर में दर्शिनी को भी अहमदाबाद में एडमिशन मिल गया था तो वो भी अहमदाबाद जानेवाली थी। दर्शिनी के जाने से पहले समीर उससे मिलने हमारे घर आया। हमारे घर में मेरे मम्मी पापा को अभी तक समीर के बारे में कुछ भी पता नहीं था।

जब समीर आया तो दर्शिनी ने उसका परिचय देते हुए कहा, "मम्मी, पापा! यह समीर है। यह मेरे साथ स्कूल में पढ़ता था और मेरा खास दोस्त भी है। आपको याद है? ममतादेवीने उनके विद्यालय में जो कार्यक्रम किया था उसके निमंत्रण कार्ड को मैंने डिज़ाइन किया उसे कंप्यूटर पर आकार देने का काम समीरने ही किया था। रोशनभाई भी उसे जानते हैं। आप दोनों आज पहली बार समीर से मिल रहे हैं। मैं कल से अहमदाबाद जा रही हूं इसलिए वह आज मुझसे मिलने आया है। फिर आगे का पता नहीं की हम दोबारा कब मिलें!"

मेरे पापाने कहा, "बहुत अच्छा किया बेटा! हम दोनों को अच्छा लगा कि तुम हमसे मिलने आये।" 

समीरने कहा, "मैं भी आप लोगों से मिलकर बहुत खुश हूं। मैं अक्सर टीवी पर आपका लाइव प्रोग्राम सुनता हूं। मुझे भी संगीत बहुत पसंद है। अंकल! आपकी आवाज तो मेरे दिल को एक अनोखा रोमांच देती है। आपके गाने सुनकर मैं अपनी सारी चिंताएं भूल जाता हूं और बिल्कुल शांति महसूस करता हूं।" 

मेरे पापाने पूछा, “समीर! क्या तुमने संगीत सीखा है?” 

समीरने उत्तर दिया, "नहीं! अंकल, मैं संगीत सीखना तो चाहता था लेकिन यह संभव नहीं हो सका। मेरे पापा की अचानक मृत्यु हो गई और घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ मुझ पर और मेरी मम्मी पर आ गई, इसलिए मैं चाहते हुए भी अपने इस शौक को पूरा नहीं कर सका। अंकल! मेरी तरह पैसों की कमी के कारण कई लोगों के शौक अधूरे रहते होंगे। नहीं!” इतना कहते हुए तो समीर बहुत उदास हो उठा था, यह बात तुरंत मेरे पापा की समझ में आ गई थी।

समीर को इस तरह उदास देखकर मेरे पापाने उससे पूछा, "तो क्या तुम अब अगर तुम्हे सीखने का मौका मिले तो संगीत सीखना चाहोगे?"

समीर बोला, "हां अंकल! मैं बिल्कुल संगीत सीखना चाहता हूं लेकिन मुझे अब ये खर्च परवड़ता नहीं है। मैं संगीत कक्षाओं की फीस का भुगतान नहीं कर सकता। मैं अपनी पढ़ाई भी छात्रवृत्ति के माध्यम से कर रहा हूं इसलिए संगीत तो बहुत दूर की बात है।"

मेरे पापाने कहा, "समीर! अगर मैं तुमसे कहूं की मैं तुम्हें संगीत सिखाने को तैयार हूं और मुझे कोई फीस भी नहीं चाहिए तो?" 

समीर बोला, "आप? अंकल? नहीं! नहीं! मैं ऐसे तो नहीं सीख सकता। मेरी अंतरात्मा मुझे आपसे फीस लिए बिना इस तरह संगीत सीखने से मना करती है।" समीरने अपने खुद्दार व्यक्तित्व की झलक दी।

मेरे पापाने फिर से कहा, "ठीक है। लेकिन अगर मैं तुमसे कहूं कि अब तुम्हें मुझे कोई फीस देने की जरूरत नहीं है बल्कि तुम मेरी फीस तब चुकाना जब तुम अच्छी कमाई करो। अभी तुम इसे उधार की फीस ही समझ लो। तब तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी न?" 

समीरने कहा, "लेकिन अंकल..!”

मेरे पापाने कहा, "नहीं! नहीं! लेकिन वेकिन कुछ भी नहीं। मैं तुमसे कह रहा हूं न की मैं तुम्हें संगीत सिखाऊंगा और तुम चिंता मत करो। जब सही समय आएगा तो मैं खुद ही तुमसे फीस मांग लूंगा! बस! अब तो तुम खुश हो न?" "

समीरने कहा, "ठीक है अंकल। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। चलिए! अब मैं चलता हूं। मैं दर्शिनी से मिलने आया था लेकिन मुझे नहीं पता था कि मैं आपसे ही इतनी देर तक बात करूंगा और दर्शिनी को तो पूरी तरह से भूल ही जाऊंगा।" 

तभी दर्शिनी बोल पड़ी, "ऐसे कैसे तुम मुझे भूल जाओगे? समीर! ऐसा थोड़ी ना चलता है? चल! अभी मेरे साथ। हम दोनो अब आइसक्रीम खाने चलते है।"

फिर दर्शिनी और समीर दोनों मेरे पापा को बोलकर पास के एक आइसक्रीम पार्लर में गए। दोनोंने बटरस्कॉच आइसक्रीम का ऑर्डर दिया। वहीं बैठे-बैठे समीर बोला, "दर्शिनी! तुम क्या सोचती हो? हमारा प्लान सफल तो होगा ना?"

दर्शिनी बोली, "तुम बिल्कुल चिंता मत करो। हमने जो भी किया है, सही किया है। जितना अधिक तुम मेरे परिवार से मिलोगे, उतना ही वे तुम्हें जानेंगे और समझेंगे। मैं कल अहमदाबाद जा रही हूं, इसलिए अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है की तुम मेरे मम्मी पापा को हमारे रिश्ते के लिए मनाओ।"

समीर बोला, "चिंता मत करो। दर्शिनी! सब ठीक ही होगा। मैं अब घर जाता हूं। मेरी मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही होंगी।" 

इतना कहकर समीर अपने घर चला गया। दर्शिनी भी जब घर वापस आई तो मेरी मम्मी भी दर्शिनी के सामने कई सवाल लेकर खड़ी थी।

(क्रमश:)