अक्षत घर आया और तो देखा हॉल में ही साधना और अरविंद बैठे हुए हैं।
"क्या हुआ आप लोग इस तरीके से टेंशन में क्यों हो?" अक्षत ने कहा।
"अरे वह तुमने जब से बताया कि सांझ को सब कुछ याद आ गया है, बहुत परेशान थे हम लोग।" साधना बोली
" परेशानी की कोई बात नहीं है मम्मी..!! वह ठीक है हां थोड़ा परेशान हुई थी और वह तो स्वाभाविक भी है। किसी भी इंसान को जब पुरानी तकलीफें याद आती है तो दर्द तो महसूस होता ही है ना..?? बस वही दर्द सांझ को हुआ।"अक्षत बोला और साधना की तरफ देखा।
"इसीलिए मैं वहां चला गया था ताकि उसे संभाल सकूं..!!" अक्षत ने कहा।
" और बाकी उसके जो चेहरे में बदलाव आया है उसने एक्सेप्ट कर लिया? " अरविंद ने पूछा।
"आसान नहीं एक्सेप्ट करना जब मैं ही एक्सेप्ट इतने दिनों बाद तक नहीं कर पा रहा हूं, तो वह भी धीमे-धीमे ही कर पाएगी। पर इतना ज्यादा बदलाव भी नहीं है। धीमे-धीमे वह इस चीज को एक्सेप्ट कर लेगी और नॉर्मल हो जाएगी। अभी तो वह अबीर अंकल से नाराज थी। मैंने समझाया है पर फिर भी शायद नॉर्मल होने में थोड़ा तो समय लगेगा। खैर अब दो दिन वह शादी के फंक्शन में बिजी रहेगी तो सब कुछ भूल जाएगी।" अक्षत ने कहा और कमरे की तरफ बढ़ने लगा।
"न्यूज़ में यह क्या चल रहा है?" तभी अरविंद बोले तो अक्षत ने पलट कर देखा।
"आनंद और नेहा के अस्पताल पर रेड पड़ी है और उन दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।" अरविंद बोल तो अक्षत के चेहरे पर रहस्यमई मुस्कुराहट आई।
"हर किसी को अपने कर्मों का हिसाब यही देना पड़ता है पापा और उन्होंने जो गलती की है उसकी भरपाई और हिसाब तो उन्हें देना ही पड़ेगा।"
"तो तुमने तय कर लिया है उन्हें सजा दिलाने का..?? बेटा एक बार फिर से सोचो। मैं मानता हूं कि सांझ के साथ गलत हुआ पर अगर नेहा वहाँ रूकती तो गलत तो नेहा के साथ भी होता। उसे सांझ के बारे में सोचना चाहिए था यह सही है
पर घर से भाग कर उसने कोई गलती नहीं कि मेरे हिसाब से। वो भी मजबूर हो गई थी, जब उसकी कोई नहीं सुन रहा था तो उसे मजबूरी में जाना पड़ा। हां यहां उसने गलत किया कि सिर्फ अपने बारे में सोचा अपने परिवार और अपनी बहन के बारे में नही। पर सांझ के साथ जो हुआ उसकी जिम्मेदार नेहा उतनी नहीं है जितनी की अवतार गांव वाले और निशांत है।" अरविंद ने कहा।
"जी पापा समझता हूं मैं, और सब जानता हूं। नेहा की उतनी गलती नहीं है। हां वह स्वार्थी हो गई थी उसने अपने बारे में सोचा। पर उसे सारा कुछ पता था। उसे यह पता था कि उनके गांव के क्या नियम है। उसे पता था की सजा मिलेगी जरूर मिलेगी तो उसने सिर्फ अपने बारे में ही क्यों सोचा? उसे हिम्मत करनी चाहिए थी। उसे पहले लड़ना चाहिए था उसे पहले जाना चाहिए था। और अगर उस दिन जा रही थी तो उसे सांझ को भी लेकर जाना चाहिए था क्योंकि सांझ इनोसेंट थी। उसके मां-बाप की गलती है कि वह उसके साथ जबरदस्ती कर रहे थे। सांझ की तो कहीं से कोई गलती नहीं थी। फिर उसने सांझ को क्यों उन सबके बीच अकेला छोड़ दिया? बस जितनी उसने गलती की है सजा भी उसे उतनी ही मिलेगी। आप
फिक्र मत कीजिए नेहा और आनंद को बर्बाद नहीं करूंगा मैं। और उनको उनकी गलती का एहसास दिलाना चाहता हूं और साथ ही साथ-साथ सांझ के दर्द का भी।" अक्षत ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।
"कल से तो मैरिज हॉल चलना है..! कुछ तैयारी करनी हो तो बता देना अक्षत बेटा।" साधना ने कहा।।
"आप अपने हिसाब से देख लो मम्मी..!! मुझे तो कुछ भी नहीं चाहिए। बस एक ही बात का इंतजार था कि सांझ मुझे वापस मिल जाए। वह मुझे मिल चुकी है अब आप अपने हिसाब से देख लीजिए।" अक्षत ने मुस्कुराकर कहा और कमरे में चला गया।
बाथरूम में आया और शॉवर के नीचे खड़ा हो गया। आंखों के आगे सांझ की भरी हुई आंखें और कानों में उसके कहे शब्द गूंज रहे थे कि निशांत ने उसे अपने दोस्तों के सामने और फिर उसके दोस्त ने..!!"
अक्षत की मुट्ठियां भींच गई और आंखों में लालिमा उतर आई।
"तुम लोगों ने बहुत गलत किया, पर तुम लोगों ने नहीं सोचा होगा कि तुम्हारे कर्मों का फल तुम्हें इस तरह मिलेगा। पर मैं किसी को भी नहीं छोडूंगा। नहीं छोडूंगा..!! किसी भी हाल में नहीं छोडूंगा। हां सबको सजा कानून से भी मिलेगी और सबको सजा मिलेगी। बस अब उल्टी गिनती शुरू हो रही है तुम सब लोगों की। निशांत ठाकुर, गजेंद्र अवतार सिंह और भावना। अब अपने दिन कितने शुरू कर दो क्योंकि अब दर्द सहने की बारी तुम लोगों की है।" अक्षत ने कहा और फिर रेडी होकर नीचे आ गया ताकि साधना और अरविंद की मदद कर सके।
ईशान भी ऑफिस नहीं गया था अभी दोनों ने ही छुट्टी ले रखी थी ताकि शादी के प्रोग्राम ठीक से हो जाये।
"वैसे मम्मी मनु कब आ रही है? वह भी तो शादी में रहेगी ना..??" ईशान बोला।
"हां क्यों नहीं रहेगी? बहन के सारे काम तो वही करने वाली हैं। आज आ जाएंगे वह लोग घूम कर और देखो कल सीधे मैरिज हॉल ही आ जाएगी नील के साथ। बाकी वर्मा फैमिली को भी बोल दिया है मैंने। वह लोग भी सपरिवार आ जाएंगे तो ठीक है आ जाएंगे फिर वहीं पर तो सारे प्रोग्राम होने हैं।"
"ठीक है मम्मी बाकी सारे गेस्ट वगैराह का इंतजाम देख लिया है मैंने। ऐसी कोई खास तैयारी नहीं करनी है। मैरिज हॉल में सारा ही इंतजाम है।" ईशान ने कहा।
" हां ठीक है कुछ भी खास नहीं करना है। बस तुम लोग अपना जरूरत भर का सामान जमा लेना। कुछ भी चीज ऐसी ना यहां छोड़ देना जिनकी वहां जरूर हो। बाकी जो भी पूजा में और आगे पीछे जो भी सामान लगा है वह सब में रख लूंगी।" साधना बोली और फिर तैयारी में लग गई।
उधर अबीर के घर भी अबीर और मालिनी अपने सर्वेंट्स के साथ तैयारी में लगे हुए थे। शालू भी उनकी मदद कर रही थी। बस सांझ सोफे पर बैठकर देख रही थी। जो नाराजगी उसकी अबीर को लेकर थी वह अब पूरी खत्म हो गई थीm एक तो अक्षत ने उसे समझाया था दूसरा उसे पिछले दो सालों का पूरा समय भी याद आ गया था. और वह समझ गई थी कि अबीर उसे कितना चाहते हैं। और वैसे भी बचपन से बिना मां-बाप के रही थी अब उसे जाकर माता-पिता का प्यार मिला था और वह बेवजह की नाराजगी से उसे अपने से दूर नहीं करना चाहती थी।
" क्या हुआ सांझ बेटा ऐसे क्यों देख रहे हो..??" अबीर बोले तो सांझ ने उनके सीने से सिर टिका लिया।
" थैंक यू पापा..!!"
" किसलिए?" अबीर के चेहरे पर मुस्कुराहट आई।
"मैं जानती हूं की बचपन से आप जरूर मुझे ढूंढ रहे होंगे..!! मेरी किस्मत खराब थी जो मुझे आप नहीं मिले और इतनी तकलीफें मिली। पर जब से आप और मां मम्मी मिले हो तब से सारी तकलीफें खत्म हो गई। थैंक यू मुझे इतना प्यार करने के लिए। आप मम्मी और शालू दीदी ने जो दो साल तक मेरे लिए किया है वह मैं कभी नहीं भूल सकती। आप तीनों के प्यार ने अब तक की कमी पूरी कर दी इसलिए अब मेरे मन में आपके लिए कुछ भी नहीं है सिर्फ और सिर्फ प्यार है।" सांझ ने कहा।
मालिनी ने उसके सिर पर हाथ रखा और थपक
" बेटा मजबूर ना होते तो कभी ऐसा नहीं होता..!! पर मैं नहीं जानती थी कि मेरी सहेली मुझे तुम तुम्हें मुझसे दूर कर देगी। गलती शायद मुझसे ही हुई और उसके बाद हम लोगों ने तुम्हें बहुत ढूँढा और जब हमें पता चला उसके बाद से बस हम यही चाहते थे कि तुम ठीक रहो। सुरक्षित रहो ।" मालिनी ने कहा।
" काश की माही भी जिंदा होती तो हम तीनों बहनें और आप लोग कितना अच्छा होता।" सांझ ने भावुक होकर कहा।
" सबकी अपनी-अपनी जिंदगी होती है बेटा..!! शायद हमारी किस्मत में ही नहीं था माही का साथ रहना। इसीलिए बचपन से भी वह साथ नहीं रही और जब वह यहां पर आने को तैयार हो गई थी तो उसे एक्सीडेंट हुआ उसकी डेथ हो गई। पर तुम मिल गई हो और हमें अब इस बात की तसल्ली है। माही के जाने का दुख हमेशा रहेगा पर एक खुशी भी है कि जो तुम्हें हमने हमेशा के लिए खो दिया था। अब तुम वापस आ गई हो।" अबीर भावुक होकर बोले।
"बस बस अब ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है..!! इतने दिनों बाद तो खुशियां आई है। सब लोगों की लाइफ सेट हो रही है। सांझ पूरी तरीके से ठीक हो गई है। उसे सब कुछ याद आ गया है तो बस अब पुरानी बातों को याद करके कोई भी दुखी नहीं होगा।" शालू ने कहा और फिर और फिर चारों ने एक दूसरे को गले लगा लिया। और फिर बाकी तैयारी में लग गए।
अगले दिन सुबह-सुबह अबीर मालिनी अपने सभी रिश्तेदारों सांझ और शालू को लेकर मैरिज हॉल निकल गए तो वही अक्षत ईशान भी अरविंद और साधना के साथ मैरिज हॉल आ गए।
वहीं पर उनके बाकी के रिलेटिव्स भी आने थे।
मनु और नील भी घूम कर लौटकर वापस आ गए और वह लोग भी मैरिज हॉल गए। बाकी मिस्टर एंड मिसेज वर्मा निशि ने शादी वाले दिन ही आने का डिसाइड किया था क्योंकि वह अपने-अपने कामों में बिजी थे और बाकी के लोग भी उसी टाइम पर आने वाले थे। कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को छोड़कर।
अबीर और मालिनी पहले पहुंच गए थे। अक्षत और उनकी फैमिली बाद में आई तो अबीर उनके पूरे परिवार और सभी रिश्तेदारों ने अक्षत और उसके परिवार का गर्मजोशी से स्वागत किया। और सब लोग अपने-अपने रूम में जाकर सेटल हो गए क्योंकि आज की दोपहर में ही उन लोगों की हल्दी का प्रोग्राम होना था।
अक्षत ने रूम में जाते ही सांझ को कॉल लगाया। फोन पर अक्षत का नाम देखते ही सांझ के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई।
" हां जज साहब..!!" सांझ बोली।
"क्या मेरे कॉल का इंतजार कर रही थी..??" अक्षत ने कहा।
"और किसका इंतजार करूंगी..!! मैं सोच ही रही थी कि अब आप लोग आ गए हो तो आप जरूर मुझसे मिलोगे या मुझसे बात करोगे।"सांझ बोली।
" मिलना तो अभी थोड़ी देर बाद हो ही जाएगा क्योंकि हल्दी का प्रोग्राम दोनों का ही है और साथ में। हालांकि कुछ लोग अलग करने का बोल रहे पर वैसे भी हम लोगों की शादी ऑलरेडी हो चुकी है तो मैं यह सब चीजे नहीं मानने वाला। हल्दी हम दोनों की साथ ही साथ होगी।" अक्षत ने कहा।।
"जी जज साहब..!!"
" तो बस तैयार हो जाओ जल्दी से..!! फिर मिलते हैं थोड़ी देर में।" अक्षत ने कहा और कॉल कट कर दिया।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव