सांझ गहरी नींद में थी और अक्षत बस उसके पास बैठा उसे बस देख रहा था।
"अक्षत भाई डिनर कर लीजिए..!!"" शालू ने रूम में आकर कहा।
"मुझे भूख नहीं है शालू। तुम खाओ और आराम करो। मैं यहीं पर रहूंगा सांझ के पास।" अक्षत ने कहा तो शालू ने एक नजर सोई हुई सांझ को देखा और फिर बाहर चली गई।
अक्षत के रहते हैं उसे सांझ की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। वैसे भी आज के समय में सांझ के सबसे करीबी कोई था तो वह अक्षत था और सबसे ज्यादा गहरा रिश्ता उन्ही दोनों का था।
दोनों का ही एक दूसरे पर सबसे ज्यादा हक भी था इसलिए किसी तीसरे की उनके बीच ना कोई जगह थी ना और ना ही आवश्यकता।
शालू दूसरे रूम में चली गई और ईशान को कॉल लगाया।
" हाँ शालू अब कैसी है भाभी..?? अक्षत का कॉल आया था मम्मी के पास। उसने बताया कि उन्हें सब याद आ गया है। और वह बहुत ही ज्यादा पैनिक कर रही है।" ईशान बोला।।
"हां बहुत ज्यादा पैनिक कर रही थी बहुत ही हाइपर हो रही थी। और होगी भी क्यों नहीं ..?? जब याददाश्त आई तो सारी पुरानी घटनाएं भी तो याद आ रही होगी ना..?? जो कुछ भी उसके ऊपर उस समय गुजरी उसे सब याद आ गया और शायद इसीलिए वह ज्यादा परेशान थी।" शालू बोली।
"पर चिंता की कोई बात नहीं है अक्षत हैं वहां पर। संभाल लेगा उन्हे ।" ईशान ने कहा।
" हाँ वो सांझ के पास ही है।"
"अभी क्या सो रही है वह?"
" हाँ सो रही है। हो सकता है थोड़ी बहुत देर में उठे। मैंने दोनों के लिए डिनर रेडी करके रख दिया है टेबल पर। अक्षत भाई ने भी खाने से मना कर दिया है। वह भी सांझ के कारण डिस्टर्ब हो गए हैं।"
" होगा ही ना..!! इस तरीके से भाभी तकलीफ में है और वह सांझ भाभी को तकलीफ में नहीं देख सकता बहुत गहरा रिश्ता है उन दोनों का। बहुत चाहता है वह भाभी को। मैंने देखा है इन दो सालों में जब पूरी दुनिया ने उम्मीद छोड़ दी थी भाभी के वापस आने की तब वह इस उम्मीद के सहारे दिन दिन रहा था कि एक न एक दिन भाभी उसे जरूर मिलेंगी।" ईशान बोला।
"हां मैं समझती हूं इसीलिए तो उन दोनों को अकेला छोड़ दिया। क्योंकि इस समय उन दोनों के बीच किसी तीसरे की कोई जगह नहीं है। दोनों एक दूसरे के साथ अपना दुख दर्द बाँट कर मन हल्का कर लेंगे तभी नॉर्मल हो पाएंगे।" शालू ने कहा।
"बाकी तुम चिंता मत करो आराम करो..!! तुम्हारा भी पूरा दिन स्ट्रेस में है बीता होगा भाभी की तबीयत की वजह से। अब अक्षत सम्भाल लेगा।" ईशान ने कहा।
"कोई बात नहीं है मुझे अब आदत हो चुकी है..!! बहुत कुछ हुआ है इन दो सालों में इशू। हम लोगों ने बस सांझ का एक साथ दिया। उसकी वह हालत देखी। उसकी मेमरी जाना उसके ऑपरेशन, सर्जरी कई सारी चीजे एक साथ चली है। और उस पर मैं भी तूमसे दूर गई थी। इस बात का गिल्ट अलग था तो अब मुझे आदत हो चुकी है।" शालू भावुक हो गई।
" अब जो बीत चुका वह बीत चुका पर उसको दिल से लगाए रखने की जरूरत नहीं है। खुश रहो और दूसरों को खुश रखो बस यही जिंदगी है शालू।" ईशान ने कहा और कुछ देर सांझ से बात करके कॉल कट कर दिया।
***
अक्षत ने कुछ भी नहीं खाया उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था। सांझ की तकलीफ ने उसे फिर से अंदर तक आहत कर दिया था और वह बस सांझ के पास लेट तकिए की टेक लगाये उसे देख रहा था।
उसे देखते-देखते कब अक्षत की नींद लगी अक्षत को भी पता नहीं चला।
रात के दूसरे पहर में कुछ आहट हुई तो अक्षत की नींद खुली। उसने देखा कि सांझ उसके पास बिस्तर पर नहीं है और रूम का दरवाजा खुला हुआ है। वह जल्दी से उठा और बाहर आया तो देखा सांझ मुख्य दरवाजे की तरफ जा रही है।
"सांझ कहां जा रही हो?" अक्षत ने सवाल किया पर सांझ ने कोई जवाब नहीं दिया और दरवाजे की तरह बढ़ने लगी।
" सांझ रुको..!! मैं तुमसे बात कर रहा हूं कहां जा रही हो?" अक्षत ने दोबारा से कहा और दौड़कर उसके पास आया।
तब तक सांझ दरवाजा खोल चुकी थी
" कहां जा रही हो इस समय ? रात है अभी देखो कितना अंधेरा हो रहा है। इतनी रात को अकेले कहां जा रही हो मेरे मुझे बिना बताए ?" अक्षत ने उसके कंधे पकड़ उसे अपनी तरफ घुमाकर देखा। सांस की आंखों में आंसू भरे हुए हैं और चेहरा लाल हो रहा था।
"क्या हुआ सांझ कहां जा रही थी.?"
"वह मैं घर से बाहर..!!! सांझ कहते कहते लड़खड़ा गई ।
" आओ मेरे साथ।" अक्षत ने दरवाजा बंद किया और उसका हाथ पकड़ वापस उसे रूम में ले गया।
सांझ ने अक्षत की तरफ नहीं देखा पर अक्षत काफी कुछ समझ रहा था।
"कहां जा रही थी इस समय और वह भी मुझे बिना बताए ? तुम्हें जरा भी परवाह नहीं है कि तुम अगर इस तरीके से चली जाती तो मेरा क्या हाल होता?"
" तो मैं क्या करूं जज साहब..!! बर्दाश्त नहीं हो रहा मुझे यह नया चेहरा, यह नया रंग..?! मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा जज साहब..!!आपने कैसे एक्सेप्ट कर लिया इतना बड़ा बदलाव आपको तो मेरा वही चेहरा पसंद था ना..?? वही चेहरा आपके दिल में बसा था ना?? मेरा साँवला सा रंग और वह लंबे-लंबे मेरे बाल..!! आपने कैसे इस नए रंग रूप को इस नई सूरत को स्वीकार कर लिया जबकि मैं खुद इस चेहरे को स्वीकार नहीं कर पा रही हूं। आप तो उस चेहरे से प्यार करते थे न जज साहब। वो लंबे बालों वाली शामली लड़की को प्यार करते थे ना जज साहब..!! और मैं तो वह हूं ही नहीं। मेरी तो पूरी पहचान ही बदल गई है। सब कुछ बर्बाद हो गया जज साहब। सब कुछ खत्म हो गया फिर कैसे रहूं मैं आपके साथ..?? बताइए मुझे..?? नहीं हो पा रहा है मुझसे..!!" सांझ दुखी होकर बोली तो अक्षत ने आगे बढ़ उसे अपने सीने से लगा लिया।
"पहली बात तो यह सारी नेगेटिव बातें अपने दिमाग से निकाल दो और दूसरी बात प्यार किसी के चेहरे से नहीं होता है, उसके व्यवहार से होता है उसके व्यक्तित्व से होता है उसकी पर्सनालिटी से होता है। और मैंने प्यार तुम्हारे चेहरे से नहीं किया था साथ मैंने प्यार तुमसे किया था। तुम्हारे खूबसूरत दिल से किया था। तुम्हारे साफ मन से किया था। तुम्हारे व्यक्तित्व से किया था और उसमें तो कोई बदलाव नहीं आया है।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने भरी आँखों से उसे देखा।
"हां यह बात सच है कि तुम्हारी वह सांवली सूरत मेरे दिल में बसी हुई थी..!! पर कोई बात नहीं सिर्फ एक चेहरे को छोड़ दो तो बाकी तो तुम वही हो ना और तुम फिर से मेरे दिल में बस गई हो। इस नए चेहरे के साथ ही। तुम्हारा यह नया चेहरा भी अब दिल में बस गया है और मुझे कोई एतराज नहीं है। मेरे लिए यह बहुत बड़ी खुशी की बात है कि तुम मेरे साथ हो, मेरे पास हो। ठीक है कुछ बदलाव आए पर वह हमारे हाथ में नहीं थे न सांझ। पर तुम मुझे मिल गई मेरी जिंदगी में वापस आ गई तो मुझे सब मिल गया। बाकी अब मुझे और किसी चीज की कोई चाहत नहीं है।" अक्षत ने उसका चेहरा हथेलियां के बीच लेकर कहा।
"पर जज साहब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। यह किसका चेहरा है? किसने किया यह सब? कैसे क्यों किया? मेरी पहचान ही मुझसे छीन ली..?? मुझे आज खुद की सूरत से नफरत हो रही है। मैं आज खुद के लिए अजनबी बन गई हूं जज साहब..!!" सांझ अभी भी दुखी थी।
"यह रोना बंद करो और मेरी बात ध्यान से सुनो...!! ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। हाँ मैं मानता हूं कि इंसान पर पहली बार नजर उसके चेहरे के जरिए जाती हैं। पर इंसान की पहचान उसका व्यक्तित्व होता है उसका व्यवहार होता है। और तुम्हारा व्यवहार बिल्कुल वैसा ही है। तुम्हे कुछ भी नहीं पता यहां तक की मेमोरी लॉस होने के बाद भी तुम्हारे जो सॉफ्ट बिहेबियर था वह अभी भी बरकरार था। और अगर मजबूरी ना होती तो तुम्हारा चेहरा कभी नहीं बदलते। तुम्हारे पापा ने यह डिसीजन लिया था तुम्हारा चेहरा बदलने का..!!"
"मेरे पापा? " सांझ ने अक्षत की तरफ देखकर कहा।
"क्या तुम्हें पिछले दो सालों की कोई भी बात याद नहीं है।" अक्षत में उसकी आंखों में झांककर कहा तो सांझ ने आंखें बंद कर ली
कुछ यादें वापस से उसकी आंखों के आगे आने लगी और उसने आंखें खोल दी।
" अबीर राठौर ..!! मेरे पापा है।" सांझ बोली।
"हां सांझ वह तुम्हारे पापा है। तुम्हारे पापा जिन्होंने अपने दोस्त अविनाश को तुम्हें गोद दे दिया था, और उसके बाद काफी कुछ बदला। सांझ धीमे-धीमे पता चल जाएगा। मैं बता दूंगा कुछ अबीर अंकल बता देंगे। और तुम्हारी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें तुम्हे यहां से दूर ले जाना पड़ा और उस समय उन्हें जो सही लिखा वह उन्होंने किया। और इसी में शायद तुम्हारे चेहरे को बदलना भी शामिल है। फिर तुम सब कुछ भूल गई थी तो नॉर्मल थी उस चेहरे के साथ पर आज जब सब कुछ याद आया है तो तकलीफ होना स्वाभाविक है।" अक्षत बोला और उसके आँसू पोंछे।
"तुम्हें मजबूत बनना है। हिम्मत रखता है और मैं हूं ना हर पल हर कदम तुम्हारे साथ। तुम्हारा साथ देने के लिए। तुम्हारा ख्याल रखने के लिए और तुम्हारे गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए।"अक्षत ने कहा तो सांझ की आंखें लाल हो गई और उसने अक्षत का हाथ थाम लिया।
अक्षत ने भी अपना दूसरा हाथ उसके हाथ के ऊपर रखकर सख्त पकड़ बना ली।
" बहुत बुरा किया उन्होंने जज साहब..!!"
" हाँ और मैं वादा करता हूं एक-एक को सजा दिलाऊंगा और तुम्हें न्याय मिलेगा। बस थोड़ा सा समय दो मुझे क्योंकि अभी तक मेरा फोकस सिर्फ तुम्हें वापस लाने और अपनी जिंदगी में शामिल करने पर था। और अब तीन दिन बाद हमारी शादी है। एक बार तुम्हे अपने घर ले जाकर सुरक्षित कर दूँ फिर उन सब को सजा दिलाऊंगा जिन्होंने हम दोनों की जिंदगी बर्बाद की। जिन्होंने तुम्हें तकलीफ थी। जिन्होंने मेरी मिसेज चतुर्वेदी की आंखों में आंसू लाये।" अक्षत ने कठोरता स कहा तो सांझ उसके सीने से लग गई और आंसू निकलने फिर से शुरू हो गए।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव