Sathiya - 95 in Hindi Love Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 95

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साथिया - 95

"आओ मेरे साथ हम बैठकर बात करते है।" अबीर ने माही से कहा और सोफे पर जाने लगे  तो माही के कदम  रुक गए। 

" रूम में चले पापा..!!मुझे आपसे अकेले में बात करनी है...!"'माही ने कहा और अक्षत की तरफ देखा और फिर अबीर के साथ उसके कमरे में चली गई। 

अक्षत का दिल एक बार फिर से बैठ गया यह सोचकर कि ना जाने अब  अबीर   सांझ को क्या कहेंगे??  इस बार अक्षत की हिम्मत नहीं थी सांझ को  दोबारा  खोने की और इसके अलावा उसके पास कोई उपाय भी नहीं था। उसने मालिनी की तरफ देखा तो उन्होंने  पलके  झपकाई

" कहीं  फिर से तो मिस्टर राठौर मेरी सांझ को मुझसे दूर नहीं कर देंगे..??" अक्षत में बेचैनी से कहा। 

"नहीं बेटा विश्वास रखो वह ऐसे इंसान नहीं है..!! हां अपनी बच्ची के लिए स्वार्थी हो गए थे इसलिए उसे यहां  ले आये पर यहां भी कारण था। हमें नहीं पता था  कि सांझ से  तुम्हारा रिश्ता कितना गहरा है? पर तुम विश्वास मानो  अबीर सांझ को  बिल्कुल सही तरीके से समझाएंगे। और अब शायद  सांझ कभी सवाल नहीं करेगी?" मालिनी ने कहा और अक्षत के कंधे पर हाथ रखा तो अक्षत सोफे पर बैठ गया। 

"मैं तुम्हारे लिए  कॉफी भेजती हूं।" मालिनी बोली और किचन में वापस चली गई। 


अक्षत ने बेचैनी से अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में  उलझा लिया।

"अब सब सही कर देना भगवान.!! बर्दाश्त नहीं हो पाएगा मुझे  सांझ  का मेरे ऊपर शक करना या मुझे गलत समझना। आपने  जितना मुझसे छीनना था छीन लिया।  सांझ की याददाश्त चली गई उसका चेहरा बदल गया। मैंने सब कुछ एक्सेप्ट कर लिया है  इस उम्मीद से की  सांझ है और आज नहीं तो कल उसे सभी कुछ  याद आ जाएगा और नहीं भी याद आएगा तो कोई फर्क नहीं है। मैं उसे प्यार करता हूं इतना काफी है मेरे लिए। पर अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पाएगा भगवान जी। प्लीज अब आप कुछ भी ऐसा मत होने देना जो जो गलत हो।" अक्षत मन ही  मन  प्रार्थना कर रहा था। 


अबीर ने  रूम में ले जाकर माही को  बिठाया और उसके पास बैठकर उसका सर अपनी गोद में रख लिया और धीरे-धीरे उसके बालों पर हाथ  फिराया। 

"क्यों इतना परेशान हो रही है? कहा है ना डॉक्टर ने की धीमे-धीमे सब याद आ जाएगा। थोड़ा सा  सब्र करना पड़ेगा ना बेटा..!! इस तरीके से तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी।" अबीर  ने कहा। 

"पापा मुझे मेरे सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे तो मैं पागल हो  जाऊंगी।  मेरा दिमाग घूमता है पापा.!! मुझे प्लीज सच  बताइए ना जो मैं जानना चाहती हूं।" माही ने कहा। 

'तुम्हें इन्हीं सभी सवालों से  बचाने  के लिए इन्हीं परिस्थितियों से बचाने के लिए मैं चुपचाप से बिना किसी को बताए यहां अमेरिका आ गया था। पर अक्षत तुम्हें ढूंढते ढूंढते आ गया यहां पर और अब मैं उसे न हीं यहां से वापस भेज सकता हूं, न हीं तुम्हें मिलने से रोक सकता हूं, क्योंकि जो कुछ उसने कहा वह एकदम सच है।" अबीर  बोले तो माही ने गोद में  सिर  रखे हुए ही  अबीर की तरफ देखा। 

"हां बेटा यह सच है...!! तुम्हारा और अक्षत का रिश्ता बहुत गहरा था। एक दूसरे से एक दूसरे को बेहद चाहते थे तुम लोग।  तुम दोनों की सगाई हो गई थी। उधर  शालू  और  ईशान की भी सगाई हो गई थी कि तभी यह एक्सीडेंट हुआ। उस समय अक्षत अपनी ट्रेनिंग पर गया हुआ था और  ईशान भी इंडिया में नहीं था। और मुझे जब कुछ भी समझ नहीं आया तो मैं तुम लोगों को लेकर अमेरिका आ गया। 

यहां आकर मुझे पता चला कि तुम्हारी याददाश्त चली गई है तो मजबूर होकर मैंने उनमे से किसी को नहीं बताया कि हम कहां है? क्योंकि मैं नहीं  चाहता  था कि इन सब से मिलकर तुम्हारे दिमाग पर कोई नेगेटिव असर आए। मैं चाहता था कि  तुम्हारी तबीयत एक बार ठीक हो जाए उसके बाद ही तुम्हें सबसे मिलाया जाए या तुम्हें जब याद आ जाएगा तो तुम खुद  ही  सबसे मिलने का कहोगी।" 

"इसका मतलब वह सच कह रहे थे कि उनकी कोई गलती नहीं है..!! वह मुझे ढूंढ रहे थे।" माही ने मासूमियत से  पूछा।

"हां बेटा वह बिल्कुल ठीक कह रहा है। उसकी कहीं से कोई गलती नहीं है। वह ट्रेनिंग से  जब से वापस आया है तब से तुम्हें  लगातार ढूंढ रहा है। इस बात की  मुझे जानकारी थी पर मैं मजबूर था नहीं बता सकता था उसे क्योंकि जो स्थिति आज तुम्हारे सामने आई है वरना  वही  और पहले आ जाती। आज तो तुम काफी बेहतर हो चीजों को समझ रही हो और एक्सेप्ट कर रही  हो। लेकिन यही बात अगर एक  साल पहले हुई होती तो शायद तुम बर्दाश्त नहीं कर पाती और तुम्हारी मानसिक स्थिति और ज्यादा खराब हो जाती। इसलिए मैंने किसी को नहीं बताया और इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि अक्षत तुम्हें भूल गया या उसे तुमसे मतलब नहीं था।" अबीर ने कहा तो माही ने वापस उनकी आँखों में देखा।

"अगर भूल गया होता तो अब तक  परेशान न होता और  दोनों भाई  शादी कर चुके होते। अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुके होते। पर दोनों का प्यार सच्चा है बेटा..!! दोनों आज भी वही खड़े हुए हैं जहां पर तुम तुमने और  शालू  ने  उनका साथ छोड़ा।" 

"पर पापा मैंने साथ नहीं छोड़ा। मुझे तो कुछ याद ही नहीं था।" माही ने  मासुमियत से कहा। 

"हां तुमने साथ नहीं छोड़ा, परिस्थितियों के कारण साथ  छूटा। पर जिस तरीके से इन परिस्थितियों में तुम्हारी कोई गलती नहीं थी ठीक उसी तरीके से अक्षत की भी कहीं से कोई गलती नहीं है।" अबीर ने माही के गाल को छूकर कहा।

माही खामोश रही।

"मेरी बात मानती  हो  ना तुम?" अबीर ने  कहा तो माही ने   पलकें झपकाई

" तो विश्वास करो अक्षत के जैसा इंसान तुम्हें कोई दूसरा नहीं मिलेगा..!! बहुत  निश्छल  मन का है। स्वार्थ नहीं है उसके अंदर और तुम्हें बेहद चाहता है। तुम्हारे लिए पिछले दो  साल से परेशान है और आखिर में उसने तुम्हें ढूंढ लिया। उसके प्यार पर शक मत करो और ऐसी बातें बोलकर उसे तकलीफ मत दो। मैं जानता हूं आसान नहीं है तुम्हारे लिए सब कुछ एक्सेप्ट करना  पर कोशिश करो उसे समझने की। उसे जानने की और अपने रिश्ते को एक मौका दो। प्लीज बेटा सिर्फ मेरे कहने से कोशिश  करो..!! अगर  तुम्हे  लगेगा कि तुम अक्षत के साथ कंफर्टेबल नहीं हो तो तुम मुझे बोल देना मैं तुम्हें लेकर फिर कहीं चला जाऊंगा। जिस तरीके से हम इंडिया छोड़कर अमेरिका आ सकते हैं उसी तरीके से हम फिर से भी कहीं जा सकते हैं। मेरे लिए सबसे पहले मेरी बेटी की खुशियां है उसके बाद सब कुछ। और अगर तुम्हें अक्षत के साथ नॉर्मल लगता है तुम उसके साथ खुश रहती हो तो इससे बड़ी खुशी की बात मेरे लिए कोई और हो ही नहीं सकती।" 

माही शांति से उसकी बातें सुन रही थी। 

अबीर बहुत देर तक  समझाते रहे और धीमे-धीमे माही  उनकी बातें सुनते सुनते  नींद में चली गई। 

अबीर  ने उसका सर  पिलो  पर रखा और उठकर बाहर  आये   तो देखा अक्षत अभी  हॉल  में बैठा बेचैनी से अपनी उंगलियों को उलझाए हुए हैं। 

अबीर  ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो अक्षत ने पलट कर देखा और एकदम से उठ खड़ा हुआ। 

"माही...!!" अक्षत के मुंह से निकला। 

"समझा दिया है मैंने उसे...!! थोड़ा समय लगेगा पर मुझ पर विश्वास करती है इसलिए  जरुर मानेगी। बाकी मुझे तुम पर पूरा विश्वास है तुम उसे विश्वास दिला ही दोगे कि तुम्हारी कहीं से कोई गलती नहीं थी।" अबीर ने कहा तो अक्षत ने कोई जबाब नही दिया।

" फिर से तुमसे माफी मांगता हूं..!!जब भी ऐसी बात होती है ना जाने क्यों अपने आप में ही एक अपराधबोध से  घिर जाता हूं मैं। कहीं ना कहीं इन सब का कारण मैं ही हूं।" अबीर  ने कहा। 

"कोई बात नहीं है राठौर साहब..!! बस मुझे भी गुस्सा  इसी  से आ जाता है कि मेरी वाइफ मुझे भूल गई है। और मुझ पर शक कर रही है। पर आपकी परिस्थिति  मैं  समझता हूं। प्लीज मेरा साथ दीजिए। मैं नहीं बर्दाश्त कर पा रहा हूं सांझ  कर इस तरीके का अजनबी व्यवहार ..!! उसका मुझ पर शक करना। मुझ पर विश्वास न करना।" अक्षत दुखी हो गया। 

"मैं समझ रहा हूं तुम्हारी बात पर तुम फ़िक्र मत करो..!! कल हम इंडिया के लिए निकल रहे हैं ना वहां से अपने घर वालों से बात कर लो। मैं भी अरविंद जी से अभी बात कर लेता हूं। वहां पहुंचते ही जितना जल्दी हो सकेगा  ईशान और शालू की शादी होगी और तुम्हारे और सांझ  के रिश्ते में भी आगे सोचा जाएगा   जितना ज्यादा वह तुम्हारे आसपास रहेगी उतनी ज्यादा तुम्हें समझेगी और इसके लिए कुछ  निर्णय  मुझे लेने होंगे जो मैं अरविंद जी से बात करके डिसाइड करता हूं।" अबीर ने कहा और अक्षत  की पीठ पर हाथ रख थपका और फिर  अपने कमरे में चले गए और वहां जाकर उन्हें अरविंद को कॉल लगा दिया। 


अरविंद जी से बात करके कई सारी बातें अभी और अरविंद जी ने डिसाइड कर ली थी और उसके बाद वह अपने बाकी काम में लग गए। 

अक्षत अपने रूम मे आया और विंडो से बाहर देखने लगा। 
दिल बैचैन था और आँखे भरी हुई कि तभी दरवाजे पर आहट हुई और अक्षत ने पलट के देखा। 


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव