पैकिंग करके शालू और माही दोनों डिनर के लिए डाइनिंग हॉल मे आ गई।
मालिनी ने डिनर लगवाया और सर्वेंट अक्षत को भी बुला लाया।
" पापा कहाँ है..?" शालू ने अबीर को न देखकर पूछा।
"कल इंडिया चलना है तो वह खाना खाकर निकल गए हैं..!!अभी आउट हाउस में है ऑफिस का थोड़ा काम करेंगे।" मालिनी ने कहा।
"तो आप तो खा लीजिए..!!" माही बोली।
"अभी मन नहीं है थोड़ी देर में खा लूंगी..!!तुम तीनों खाओ ना जब तक मैं गर्म खाना लगाती हूं।" मालिनी बोली और किचन में चली गई।
जाते-जाते उसने शालू को भी इशारा कर दिया।
मेड ने लाकर तीनों का खाना रखा और चली गई।
शालू ने एक बाइट ही खाया था कि तभी अपना फोन उसने कान से लगा लिया।
"बस दो मिनट अभी अपने रूम में जाकर भेजती हूं तुम्हें डिटेल..!!" शालू बोलती हुई अपना फोन और प्लेट लेकर रूम में चली गई। अब डाइनिंग टेबल पर सिर्फ अक्षत और माही थे।
माही ने एक नजर अक्षत की तरफ देखा और उसका दिल जोरो से धड़क उठा।
उसने धीमे से गर्दन हिलाई और अपने खाने की तरफ देखने लगी और धीमे-धीमे खाना शुरू कर दिया।
अक्षत बस भरी आंखों से उसे देखे जा रहा था और पहचान की कोशिश कर रहा था माही के अंदर छिपी अपनी सांझ को एक एक बात के साथ सांझ से कनेक्शन जोड़ते हुए।
माही के छोटे-छोटे बालों को देख अक्षत को साँझ के कमर तक लंबे खूबसूरत बाल याद आ गए। माही का साफ रंग सांझ के गेँहुए रंग से एकदम अलग था। आंखें और नाक कुछ हद तक मिल रहा था और काफी कुछ बदलाव थे।
अक्षत ने नजर झुका ली।
तभी माही की आवाज उसके कानों में पड़ी।
" जज साहब खाना खा लीजिए, और अगर आप मेरे साथ कंफर्टेबल नहीं है तो मैं चली जाती हूं।" माही बोली और उठ खड़ी हुई।
इससे पहले कि वह आगे बढ़ती अक्षत ने उसके उल्टे हाथ की की कलाई पकड़ ली। माही ने पलटकर अक्षत की तरफ देखा तो अक्षत ने ना में गर्दन हिला दी।
"खा रहा हूं मैं..!! तुम प्लीज यहीं बैठो। अगर तुम चली जाओगी तो बिल्कुल भी नहीं खाया जाएगा मुझसे।" अक्षत ने कहा और माही का
लेफ्ट हैंड अभी भी पकड़ के रखा। उसने उसका हाथ नहीं छोड़ा था।
माही वापस से अपनी कुर्सी पर बैठ गई और अपने हाथ की तरफ देखा जो की अक्षत ने पकड़ रखा था। माही ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो अक्षत की पकड़ उस पर और भी ज्यादा मजबूत हो गई।
"मेरा हाथ..!!" माही ने धीमे से कहा।।
"रहने दो ना यूँ ही।" अक्षत बोला तो माही ने आँखे बड़ी कर उसे देखा।
"तुम्हें कुछ प्रॉब्लम नहीं है तो प्लीज मेरे हाथ में रहने दो तुम्हारा हाथ..!! बहुत लंबे इंतजार के बाद आखिर तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में आया है।
प्लीज माही कुछ पल महसूस करने दो मुझे..!!" अक्षत ने कहा तो माही ने फिर कुछ भी नहीं कहा और धीमे-धीमे खाना खाने लगी।
पर अक्षत के इस तरीके से मजबूती से उसका हाथ पकड़ने से उसे अजीब सा महसूस हो रहा था। ऐसा नहीं कि उसे खराब लग रहा था और वह कंफरटेबल नहीं थी। पर कुछ तो था ऐसा था जो माही समझ नहीं पा रही थी।
"तुम सिर्फ यह खिचड़ी क्यों खा रही हो..??यह भी लो ना बहुत टेस्टी बना है..!!" अक्षत ने सब्जी और रोटी माही की तरफ करते हुए कहा।
"नहीं जज साहब, मैं अभी यह सब चीजे ज्यादा नहीं खा पाती हूं। दिन में तो खा लेती हूं नॉर्मल खाना पर नाइट में मुझे खिचड़ी सूप या स्मुदी ही सूट करती है। उस एक्सीडेंट के बाद बहुत दिनों तक बिस्तर पर रही थी। बहुत एंटीबायोटिक्स खाए हैं तो थोड़ा सिस्टम बिगड़ गया है। पर डॉक्टर ने कहा है कि जल्दी ही मैं नाइट में भी कुछ भी खा पाऊंगी।" माही ने कहा तो अक्षत की आंखें वापस से भर आई।
"अरे आप इतना टेंस क्यों हो रहे हैं? यह तो नॉर्मल है। हमें नॉर्मल वायरल भी होता है और तबीयत थोड़ी सी खराब होती है तब भी तो ऐसा ही होता है ना कि एंटीबायोटिक्स के कारण हमारी भूख खत्म हो जाती है। और हम हर चीज डाइजेस्ट नहीं कर पाते। तब भी तो हमें खिचड़ी ही खानी होती है ना..?? तो बस वही चल रहा है मेरे साथ.!! एंटीबायोटिक्स और मेडिसिन का डोज इस बार बहुत ज्यादा चला तो फिर रिकवर होने में भी टाइम ज्यादा लगेगा। पर अब मैं ठीक हो रही हूं।" माही ने धीमे से कहा।
अक्षत अब भी उसे देख रहा था।
" आप अब भी परेशान है..!! जज साहब कुछ अनोखा नही है खिचड़ी खाना..!! बच्चो बुजुर्गों मरीजों और मुझ जैसे क्रोनिक केसेस ( पुराने मर्ज) के लोगो को खिचड़ी या सूप ही दिया जाता है और ये तो हॉस्पिटल्स के नॉर्मल प्रोटोकॉल मे भी होता है।" माही हंसकर बोली तो अक्षत मुस्करा उठा।
"जानता हूं मैं तुम बहुत स्ट्रांग हो और जल्दी ही ठीक हो जाओगी और फिर एक दिन तुम्हें लेकर डिनर पर जाऊंगा जहां सब कुछ तुम्हारी पसंद का होगा।" अक्षत ने धीमे से कहा।
" मेरी पसंद?" माही ने सवालिया लहजे मे कहा।
" वेज मंचुरियन ड्राय..!! सीख कबाब, नूडल्स और बटर टोमोटो सूप...!! उसके बाद पनीर टिक्का मसाला, दाल फ्राय और जीरा राइस और सिर एक रोटी..!! एंड लास्ट मे गुलाब जामुन..!" अक्षत ने उसकी आँखों मे देख के कहा तो माही ने एकदम से नजर झुका ली।
" याद नही।" माही बोली।
" आ जायेगा याद..! नही तो नई यादें बना लेंगे हम। "
" वैसे मैं डॉक्टर हूँ या नर्स..!! आई मीन कई बातें मेडिकल से रिलेटड मुझे पता है।" माही ने धीमे से कहा।
" नर्स..!! मेरे ही युनिवर्सिटी से तुमने नर्सिंग किया है और फिर दिल्ली के एक हॉस्पिटल मे जॉब भी।" अक्षत बोला।
माही ने एक नजर उसे देखा पर फिर कोई जवाब नहीं दिया और धीमे से उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया।
दोनों का खाना हुआ और दोनों उठ खड़े हुए ।
माही वापस अपने कमरे में जाने लगी तभी अक्षत की आवाज उसके कानों में पड़ी।
"थोड़ी देर मेरे साथ बाहर गार्डन में चलोगी? "
माही ने उसकी तरफ देखा।
ठीक उसी समय मालिनी भी किचन से बाहर निकली तो माही ने मालिनी की तरफ देखा।
"हां बेटा जाओ ना बिल्कुल..!! डिनर के बाद वैसे भी तुम्हें हल्की-फुल्की वॉक के लिए बोला है ना डॉक्टर ने, तो तुम जाओ अक्षत के साथ। वह तुम्हारा ख्याल रखेगा।" मालिनी ने कहा तो माही ने वापस से अक्षत की तरफ देखा।
दिल और दिमाग में अजीब सी जंग छिड़ी हुई थी और एक अजीब कश्मकश में माही उलझी हुई थी। दिल कह रहा था कि वह अक्षत के साथ जाए क्योंकि वह उसके साथ कंफर्टेबल थी। उसे अक्षत को जानने का समझने का और ज्यादा मन था तो वही दिमाग में अभी भी वही सवाल चल रहे थे कि क्यों अक्षत अब तक नहीं आया?? क्यों उसने अब तक उसकी खबर नही ली?
"लेकिन मम्मा आपने तो कहा था कि अजनबियों के साथ..!!" कहते- कहते माही रुक गई तो अक्षत के चेहरे पर दर्द उभर आया।
"पर अभी तुम्हें बताया ना शालू ने अक्षत अजनबी नहीं है। ईशान के भाई हैं और सबसे बड़ी बात तुम्हारी और अक्षत की भी सगाई हो चुकी है। तुम दोनों का रिश्ता हो चुका है।"
"अगर ऐसा है तो फिर यह अब तक कहां थे? इतना जानते है मेरे बारे मे फिर आये क्यों नही कभी मुझ से मिलने? "अचानक से माही ने सवाल किया तो मालिनी ने अक्षत की तरफ देखा..!!
अक्षत के पास भी कोई जवाब नहीं था।
माही के चेहरे पर तकलीफ उभर आई और वह अपने कमरे की तरफ चल दी।
उसके सवाल सुन और उसकी आँखों मे उमड़ते आंसू देख अक्षत से बर्दास्त नही हुआ।
"अब तक मैं इंडिया में था और तुम्हें दिन-रात ढूंढ रहा था..!! चाहे तो अपने पापा से पूछ लेना। मुझे बिना बताए मुझसे बिना पूछे तुम्हें यहां लेकर आ गए। यहां तक की ईशान को भी शालू ने नहीं बताया कि तुम लोग अमेरिका शिफ्ट हो रहे हो।" अक्षत बोला तो माही ने पलट के देखा।
"मेरी कही एक-एक बात सच है माही..!! क्योंकि अगर मैं नही आया तो ईशान भी नही आया यहाँ..!! आते भी कैसे हमे पता नही था। पर तब से मैं लगातार तुम्हें ढूंढ रहा हूं। आज भी मैं तुम्हें यहां ढूंढते ढूंढते खुद पहुंचा हूं मिस्टर राठौर तुम्हारी मां और शालू किसी ने भी तुम लोगों के यहां आने के बारे में हम लोगों को कोई खबर नहीं दी थी, तो फिर मैं कैसे आता तुम्हारे पास..??" अक्षत की नाराजगी उसके शब्दों में निकल कर बाहर आ गई।
माही जाते-जाते रुक गई और उसने भरी आँखों से अक्षत की तरफ देखा। मानो उसे विश्वास नहीं हो रहा हो।
फिर उसने मालिनी की तरफ देखा।
"हां बेटा यही सच है..!! उस एक्सीडेंट के बाद तुम्हारे पापा को लगता था की सबसे पहले तुम्हारा इलाज जरूरी है। ना जाने क्यों उन्हें ऐसा लगा कि इंडिया में रहने से और सब को तुम्हारी तबीयत के बारे में पता चलने से शायद तुम्हारा इलाज ठीक से ना हो पाए और फिर तुम्हारी मेमरी लॉस। इसलिए वह बिना किसी को बताएं हम लोगों को लेकर यहां आ गए।" मालिनी ने कहा।
माही अभी भी नासमझी से मालिनी की तरफ देख रही थी कि तभी अबीर घर में दाखिल हुए।
माही जाकर एकदम से उनके सीने से लग गई।
"क्या हुआ बेटा?" अबीर ने उसके सिर पर हाथ रखा।
"सब कोई कुछ बोलता है पापा...!! कोई कुछ बोलता है कोई कुछ। पर मुझे सिर्फ आपके ऊपर विश्वास है। जिस दिन पहली बार आंख खोली थी मैंने एक्सीडेंट के बाद सबसे पहले आपको देखा था। दुखी परेशान भरी आंखों के साथ। आप पर ही विश्वास है। जो आप कहोगे मेरे लिए वही सच है और कुछ भी नहीं।" माही बेचैनी से बोली
" पर हुआ क्या बच्चा।"
"क्या वाकई में जज साहब के साथ मेरा कोई रिश्ता था.?? क्या इन्हें नहीं पता था कि हम लोग यहां है इसीलिए यह नहीं आए यहां मुझसे मिलने के लिए..?? क्या आप बिना इन्हें बताएं मुझे लेकर आ गए थे इसलिए इन्हें अब तक मेरे बारे में खबर नहीं थी?? या फिर एक्सीडेंट के बाद इन्होंने मुझसे रिश्ता खत्म कर लिया था क्योंकि इन्हें लगता था कि अब मैं इनके लायक नहीं रही..!!"माही ने एक सांस में सब कुछ बोल दिया।
अबीर की आंखों में आंसू भर आए तो वही मालिनी भी दुखी हो गई।
अक्षत आंखें फाड़े शोक्ड हो सिर्फ माही को देख रहा था।
उसकी सांझ उसकी मिसेज चतुर्वेदी इस तरीके से उस पर शक करेगी और इतना बड़ा इल्जाम लगाएगी कि "उस एक्सीडेंट के बाद अक्षत उसे भूल गया।" अक्षत ने सोचा नहीं था...!! पर सबसे बड़ी बात यह थी कि अक्षत के कुछ भी कहने से माही कुछ भी नहीं मानने वाली थी। अक्षत को भी समय चाहिए था और अगर इस समय कोई माही को विश्वास दिला सकता था तो वह थे सिर्फ और सिर्फ अबीर राठौर, क्योंकि इन दो सालों में माही की जिंदगी अबीर शालिनी और मालिनी के इर्द गिर्द घूम रही थी। और उनमें से भी अबीर राठौर ने सबसे ज्यादा उसके लिए खास थे इसलिए उसके लिए अबीर का कहा हर शब्द सच था बाकी हर कुछ भ्रम और झूठ।
क्रमशः
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव