Tilismi Kamal - 14 in Hindi Adventure Stories by Vikrant Kumar books and stories PDF | तिलिस्मी कमल - भाग 14

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तिलिस्मी कमल - भाग 14

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य पढ़ें । .............................🙏🙏🙏🙏🙏🙏


राजकुमार धरमवीर इच्छाधारी नाग से बोला - " ठीक है , उस रक्षक को मारने के लिए आप भी साथ मे चलना लेकिन पहले ये तो बताओ उसे कैसे मारा जा सकता है ? "

इच्छाधारी नाग राजकुमार से बोला -" वह एक तिलिस्मी द्वार का रक्षक है उसे मारना आसान नही है । वह तभी मरेगा जब उसके शरीर मे एक साथ पांच जगहों में पांच तीर मार दिए जाएं । और वह पांच जगह है , उसके दोनो आंख , माथे के बीचों बीच की जगह , सीना और उसकी नाभि । "

राजकुमार धरमवीर - लेकिन उसे इस जंगल मे ढूंढेंगे कैसे ? "

इच्छाधारी नाग - " इस जंगल के उत्तर दिशा के अंतिम छोर में एक नदी बहती है । उस नदी के उस पार शेर की दो मूर्तियां बनी हुई है । उन दोनों मूर्ति को तोड़ने के बाद वह स्वतः वहां पर प्रकट हो जाएगा । उसी जगह पर उस रक्षक को मारना होगा । "

इतना कहने के बाद इच्छाधारी नाग जो खरगोश बना हुया है , कहकर शांत हो गया । राजकुमार ने बिना देर किए इच्छाधारी नाग को चलने के लिए कहा। इच्छाधारी नाग राजकुमार धरमवीर के साथ नदी की तरफ चल पड़ा ।

तभी इच्छाधारी नागिन भी साथ चलने की जिद की लेकिन इच्छाधारी नाग ने उसे समझा बुझा के गुफा के अंदर ही रोक दिया । अब राजकुमार और इच्छाधारी नाग धीरे धीरे नदी की ओर बढ़ चले ।

इच्छाधारी नाग रास्ता बताते हुए आगे आगे चल रहा था , पीछे पीछे राजकुमार चल रहे थे । आधा जंगल ही पार हुया था कि भयानक आवाजें गूँजने लगी । राजकुमार बिना देर किए अपनी चमत्कारी तलवार म्यान से निकाल कर हाथ मे ले ली और सावधान होकर आगे बढ़ने लगा । इच्छाधारी नाग ( खरगोश ) भी सावधान होकर अब राजकुमार के साथ साथ चलने लगा ।

अब दोनो लोग इतनी दूर पहुंच गए थे कि वहां से नदी के बहते पानी की आवाज सुनाई दे रही थी लेकिन घने जंगल के कारण उन दोनों को नदी दिखाई नही दे रही थी । 

तभी दोनो के सामने अचानक एक भयानक जीव प्रकट हो गया । जो दिखने में अजीबो गरीब लग रहा था । उस के पैर शेर जैसे थे और पूरा शरीर गैंडे के शरीर जैसा था , चेहरा चमगादड़ जैसा था । पीठ में बड़े बड़े दो पंख उगे हुए थे ।

अपने सामने ऐसे भयानक जीव को प्रकट होते देख कर इच्छाधारी नाग और राजकुमार धरमवीर बौखला कर दो कदम पीछे हट गए ।

वह भयानक जीव गरजते हुए आवाज में राजकुमार से बोला - " तुम कौन हो और इस तिलिस्मी जंगल मे कैसे पहुंचे?"

राजकुमार ने अपने आने का कारण बता दिया और कैसे आया वह सब भी बता दिया । राजकुमार की बाते सुनकर वह भयानक जीव और क्रोधित हो गया और गुस्से में बोला , जिस रक्षक को तुम मारने आये हो वह और कोई नही मेरा परम् मित्र है और मेरे रहते हुए तुम उसका कुछ भी  नही कर पाओगे ।

इतना कहने के बाद वह जीव राजकुमार को एक जोरदार टक्कर मारी । राजकुमार कई फ़ीट उछलकर दूर जा गिरा । इच्छाधारी नाग (खरगोश) एक पेड़ के पीछे छुप गया क्योकि वह इस रूप में उस जीव का कुछ भी नही कर सकता था ।

राजकुमार को ऐसा लगा कि किसी ने उसके शरीर की एक एक हड्डी तोड़ दी हो। वह भयानक जीव फिर से राजकुमार की ओर हमले करने के लिए दौड़ा । 

लेकिन जैसे ही वह भयानक जीव राजकुमार को टक्कर मारता उससे पहले ही राजकुमार ने वनदेवी द्वारा दी गई जादुई शक्तियों का आवाहन किया और अपने शरीर के चारो तरफ एक जादुई सुरक्षा कवच बना लिया । भयानक जीव ने जैसे ही राजकुमार के शरीर मे टक्कर मारी वैसे ही वह उल्टा ही कई फुट दूर जाकर गिरा । 

भयानक जीव को कुछ नही हुया लेकिन वह घोर आश्चर्य में था और अपने वार को खाली देखकर उसने वार करने का तरीका बदल दिया । भयानक जीव ने अपने आँख से किरण राजकुमार की ओर छोड़ दी । 

राजकुमार को लग रहा था कि वह किरण उसके सुरक्षा कवच से टकरा कर रूक जाएगी लेकिन ऐसा नही हुया सुरक्षा कवच से जैसे ही किरण टकराई । सुरक्षा कवच टूट कर बिखर गया ।

सुरक्षा कवच के टूटते ही भयानक जीव ने तुरन्त ही दूसरी किरण राजकुमार की ओर छोड़ दी । किरण जैसे राजकुमार के नजदीक आयी । राजकुमार ने तुरन्त ही किरण के सामने अपनी चमत्कारी तलवार (जो नीले गंधर्व गिद्ध ने अपने नीले किरण से बनाई थी )कर दी , तलवार से टकराते ही किरण का रुख मुड़ गया और किरण एक पेड़ से जा कर टकरा गई , पेड़ पूरा जलकर राख हो गया।

भयानक जीव फिर से किरण द्वारा वार किया लेकिन इस बार राजकुमार उछलकर दूसरी जगह पहुंच गया । इसी तरह भयानक जीव हर बार राजकुमार पर किरण से वार करता और हर बार राजकुमार उछलकर बच जाता । 

इसी तरह उछलते उछलते राजकुमार भयानक जीव के पास पहुंच गया और अपनी तलवार से एक भरपूर वार भयानक जीव के सीने पर किया लेकिन जीव के गैंडे रूपी शरीर पर तलवार का कोई असर नही हुया । बल्कि राजकुमार के हाथों से तलवार छूटकर दूर जा गिरी ।

अब राजकुमार निहत्था था । भयानक जीव ने अपना हाथ ऊपर किये तो उसके हाथ मे एक चमकती हुई तलवार प्रकट हो गई । और राजकुमार को मारने के लिए जैसे ही तलवार नीचे की वैसे ही एक लाल किरण भयानक जीव के हाथों में  टकराई । तलवार छूट कर दूर जा गिरी । 

अचानक अपने ऊपर हुए इस हमले से भयानक जीव बौखला गया और उसने उस दिशा की ओर देखा जिधर से लाल किरण आयी थी । भयानक जीव को उस दिशा में एक खरगोश ( इच्छाधारी नाग ) दिखा जो अपने आंखों से दूसरी बार लाल किरण छोड़ने वाला था ।

भयानक जीव के देखते ही देखते खरगोश ने दूसरी बार किरण छोड़ दी । भयानक जीव उस किरण से नही बच पाया वह किरण उसके सीधे सीने के बीचों बीच लगी जिससे उसका गैंडा रूपी शरीर घायल हो गया,लेकिन वह मरा नही ।

भयानक जीव घायल होने से और क्रोधित हो गया और उसने गुस्से में अपने हाथ मे एक आग का गोला प्रकट किया और खरगोश की ओर छोड़ दिया । लेकिन खरगोश उस जगह से उछलकर दूसरी जगह पहुंच गया । भयानक जीव का वार खाली चला गया ।

इधर भयानक जीव का राजकुमार से ध्यान हट गया । और राजकुमार भी संभल गया था । राजकुमार ने जल्दी से अपनी तलवार ढूंढी । 

इधर भयानक जीव ने अपनी शक्ति से खरगोश को एक जगह जड़ कर दिया था कि वह जब दूसरी बार उस पर आग का गोला छोड़े तो वह उछलकर दूसरी जगह न जा पाए । खरगोश को अपने प्राण संकट में दिखाई दे रहे थे । राजकुमार भी नजर नही आ रहे थे । खरगोश अपनी दोनो आंखे बंद कर ली । और अपनी मौत का इंतजार करने लगा ।

भयानक जीव दूसरी बार खरगोश की ओर आग गोला छोड़ने की तैयारी कर था । भयानक जीव ने अपना एक हाथ ऊपर किया तो उसके हाथ मे आग गोला प्रकट हो गया ।भयानक जीव आग के गोले को खरगोश की ओर बस छोडने वाला ही था कि उसके पीछे से किसी ने उसकी गर्दन पर एक जोर दार तलवार का वार हुया और भयानक जीव की गर्दन कटकर नीचे जमीन पर जा गिरी । 

और वह आग गोला उसके हाथ मे ही रह गया । भयानक जीव का धड़ उसी के आग में जलने लगा। राजकुमार ने उसी आग में उसकी गर्दन भी डाल दी । 

राजकुमार धरमवीर खरगोश ( इच्छाधारी नाग ) के पास गए और वनदेवी के द्वारा दी गई जादुई शक्तियों से खरगोश को जड़ अवस्था से आजाद कर दिया । इधर वह भयानक जीव पूरी तरह से जल चुका था ।

अब राजकुमार ने पैदल न चलकर हवा में उड़कर नदी के उस  पार जाने की सोची ताकि शेर की दोनो मूर्तियों तक पहुंचने में अब कोई मुसीबत न आये । राजकुमार ने खरगोश को अपने गोद मे उठा लिया और वनदेवी की जादुई शक्तियों के उपयोग करके हवा में उड़ने लगा ।

राजकुमार हवा में उड़ते हुए नदी को पार किया और दोनो शेर की मूर्तियों के पास पहुंच गए । खरगोश ने अपने आंख से लाल किरण शेर की मूर्तियो के ऊपर छोड़ दिया , किरण के टकराते ही दोनो मूर्तियों के परखच्चे उड़ गए । 

उस जगह पर धूल ही धूल फैल गयी । और जब धूल हटी तो उस जगह पर एक लंबा हट्टा कट्टा मानव खड़ा था , जो दिखने में किसी दानव जैसा था । उसके हाथ मे एक बड़ा फरशा था ।

उसने गरजते हुए आवाज में बोला - कौन है ? जो मेरे द्वारा बनाये गए शेर की मूर्तियों को तोड़ा है । किसने अपनी मौत को बुलाया है ? अघोरा उसे मौत की नींद सुला देगा । "

राजकुमार और खरगोश अघोरा को देखकर सहम गए । अघोरा का जैसे नाम था वैसे ही देखता था । बड़े बड़े बाल , बड़ी बड़ी नीले आंखे , बड़े बड़े नाखून , अगर कोई अचानक उसे देख ले तो वह डर से ही मर जाये । लेकिन राजकुमार ने कई दानवों , जादूगरों को मारता हुया यहां तक पहुँचा था इसलिए उसे ज्यादा फर्क तो नही पड़ा लेकिन सहम गया था।

अब तक अघोरा की नजर भी राजकुमार और खरगोश पर पड़ चुकी थी । उसने खरगोश को देखते ही गरजकर बोला - तू इसे लेकर यहां आया है , मैं इसे भी तेरी तरह खरगोश बना दूँगा , लेकिन इसके पहले मैं तुझे मार दूँगा ताकि अब तू मेरा राज किसी को बताने के लायक जीवित ही न रहे ।

इतना कहने के बाद अघोरा ने वही पर टूटे पड़े हुए मूर्ति का एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और दोनो की तरफ फेंक दिया लेकिन दोनो की ऊपर मूर्ति का टुकड़ा गिरता उससे पहले ही खरगोश ने अपनी आंख से लाल किरण मूर्ति के टुकड़े की ओर छोड़ दी ।

किरण के टकराते ही वह वह टुकड़ा और छोटे छोटे टुकड़े होकर बिखर गया । अघोरा अपना वार खाली जाता देखकर गुस्से में गरजते हुए खरगोश से कहा - " अब मैं तुझ पर ऐसा प्रहार करूँगा की तेरी कोई भी शक्ति तुझे नही बचा पाएगी ।"

इसके बाद अघोरा ने अपने हाथ में एक नीला हीरा प्रकट किया और खरगोश की ओर छोड़ दिया । खरगोश ने फिर से किरण छोड़ी लेकिन इस बार लाल किरण नीले हीरे से टकराते ही दूसरी दिशा में परिवर्तित हो गयी । 

नीला हीरा खरगोश की ओर बढ़ रहा था बस कुछ ही पल में हीरा खरगोश को लगने वाला ही था तभी राजकुमार ने जादुई शक्ति से खरगोश को एक सुरक्षा कवच में घेर दिया । नीला हीरा कवच से टकराते ही चूर चूर हो गया । और साथ मे कवच के भी टुकड़े हो गए लेकिन खरगोश को कुछ नही हुया वह बच गया।

राजकुमार दहाड़ते हुए अघोरा से बोला - " जिस तरह मैंने तुम्हारे मित्र को मारा है उसी तरह तुझे भी मारूंगा। "

राजकुमार के मुँह से अपने मित्र की मौत की खबर सुनकर अघोरा गुस्से से पागल हो गया और बोला - " तूने मेरे परम् मित्र को मार दिया जो मेरे सुख दुख का साथी था । अब मैं तुझे किसी हाल में भी जिंदा नही छोडूंगा । "

इतना कहने कहने बाद अघोरा ने अपना फरशा राजकुमार की ओर फेंक दिया । राजकुमार अपनी जगह से हटकर दूसरी जगह पहुंच गया और फरशा बिना कोई नुकसान पहुंचाए पीछे निकल कर नदी में गिर गया ।

अब राजकुमार बिना देर किए जादुई शक्ति से एक धनुष और पांच तीर प्रकट किये ।पांचो तीरों को धनुष में चढ़ा कर अघोरा का निशाना बना लिया । अघोरा ने जब राजकुमार को ऐसे करते हुए देखा तो वह घबरा गया लेकिन फिर जोर जोर से हँसने लगा और बोला - " तुझे इस इच्छाधारी नाग ने मेरे मौत का रहस्य बता तो दिया लेकिन तू पांचो तीर मुझ तक पहुंचाएगा कैसे ?किसी न किसी तीर का निशाना तो चूक ही जायेगा । तू केवल मुझे जड़ अवस्था मे ही मार सकता है जो अब मैं जड़ अवस्था मे नही आऊंगा । इधर उधर भागता रहूंगा जिसके कारण तेरा निशाना नही लगेगा । और तब तक मैं तुझे मार दूँगा क्योकि मेरे पास एक ऐसा ब्रम्ह अस्र है जिसकी कोई काट नही है यहाँ तक तेरी कोई भी जादुई शक्ति भी उस शक्ति को काट शक्ति है और वह अग्निअस्त्र । "

इतना कहने के बाद अघोरा वही पर गोल गोल दौड़ने लगा। राजकुमार परेशान हो गया कि अब कैसे निशाना लगाया जाए । इधर अघोरा ने अग्निअस्त्र का आवाहन किया और राजकुमार की तरफ छोड़ दिया । राजकुमार ने जादुई शक्ति से एक किरण अग्निअस्त्र की ओर छोड़ दिया । किरण अग्निअस्त्र से टकराते ही गायब हो गयी । राजकुमार घबरा  गया । अग्निअस्त्र अब राजकुमार के और नजदीक आ गया । राजकुमार ने अबकी बार जादुई शक्ति से अग्निअस्त्र के ऊपर पानी की बरसात करा दी लेकिन अग्निअस्त्र से टकराते ही पानी भाप बनकर उड़ गया । यह वॉर भी खाली जाता देखकर अब राजकुमार को अपनी मौत नजर आने लगी ।

अग्निअस्त्र अब राजकुमार को छूने वाला ही था कि अग्निअस्त्र और राजकुमार के बीच मे खरगोश आ गया और अग्निअस्त्र खरगोश को लग गया । खरगोश बहुत बुरी तरह से घायल हो गया और अपने असली नाग रूप में आ गया । 

राजकुमार तुरन्त इच्छाधारी नाग के पास गया और उदास स्वर में बोला - " मित्र तुमने मेरी मौत को अपने सर क्यो ले लिया ?" 

इच्छाधारी नाग लड़खड़ाते स्वर में बोला - " मित्र , तुम्हारा जिंदा रहना जरूरी है अगर तुम मर जाओगे तो इसे कौन मारेगा ? "

राजकुमार - " लेकिन मैं तुम्हारी पत्नी को क्या जवाब दूँगा कि मेरे वजह से तुम्हारे पति की मौत हो गई ?" 

इच्छाधारी नाग - " तुम इस रक्षक अघोरा को मार दो इसके मरते ही नागमणि तुम्हे मिल जाएगी उसको मेरा स्पर्श करा देना मैं पुनर्जीवित हो जाऊंगा । "

इतना कहने के बाद इच्छाधारी नाग के प्राण पखेरू उड़ गए। राजकुमार गुस्से में उठा और अघोरा की ओर पांचो तीर एक साथ छोड़ दिये । अघोरा के दौड़ने की वजह से तीर निशाने में न लगकर दूसरी जगह लग गए जिसके कारण अघोरा अपनी मौत से बच तो गया लेकिन घायल हो गया ।

घायल होने के बाद भी अघोरा बराबर गोल गोल दौड़ रहा था । राजकुमार फिर से पांचो तीर धनुष से एक साथ अघोरा की ओर छोड़ दिया इस बार भी अघोरा बच गया तीर और कही जाकर लग गए ।

राजकुमार ने फिर से पाँच तीर धनुष पर चढ़ाए और अघोरा की ओर निशाना लगाने लगा लेकिन अघोरा के दौड़ने की वजह से निशाना नही लगा पा रहा था । तभी एक लाल किरण अघोरा से आकर टकराई । अघोरा कुछ पल के लिए जड़ हो गया ।

राजकुमार को इसी समय का इंतजार था । राजकुमार बिना देर किए पांचो तीर अघोरा की ओर छोड़ दिये । तीर एकदम सही निशाने में जाकर लगे ।  अघोरा वही जमीन पर गिर गया और तड़प तड़प कर मर गया ।

अघोरा के मरते ही उसका शरीर धीरे गायब होने लगा और एक महल धीरे धीरे प्रकट होने लगा । कुछ देर बाद वँहा  राजमहल और नागमणि नजर आने लगी ।

राजकुमार ने तुरन्त नागमणि को उठाया और मरे हुए पड़े  इच्छाधारी नाग को छुआ दिया । नागमणि के स्पर्श होते ही इच्छाधारी नाग पुनः जीवित हो गया और अपने असली रूप में भी आ गया ।

इच्छाधारी नाग ने राजकुमार का बहुत बहुत धन्यवाद दिया।राजकुमार भी बहुत खुश हो गया कि तिलिस्म का पहला द्वार खुलने का रास्ता खुल गया । लेकिन उसे यह नही समझ आया कि अघोरा पर लाल किरण का वॉर किसने जिससे वह जड़ हो गया था ?

राजकुमार ने यही बात इच्छाधारी नाग से पूछा तो वह बोला - " वह किरण मेरी पत्नी ने गुफा से छोड़ा था । वह गुफा से हम दोनों को देख रही थी.... "

अभी इच्छाधारी नाग की बात पूरी भी नही हुई थी कि वँहा पर  इच्छाधारी नागिन प्रकट हो गयी जो इस वक्त अपने असली रूप में थी । नाग और नागिन ने राजकुमार को धन्यवाद दिया  । अपने नागलोक वापस जाने की आज्ञा मांगी । 

राजकुमार ने नागमणि को उन दोनों के हाथ मे दे दिया । नाग नागिन दोनो ने कुछ मंत्र बुदबुदाये फिर इसके बाद दोनों वँहा से गायब हो गए । राजकुमार दोनो को विदा करने के बाद राजमहल की तरफ मुड़ा और उसमे प्रवेश कर गया ।


             
                           क्रमशः ...........🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
   

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विक्रांत कुमार
फतेहपुर उत्तरप्रदेश
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