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अचानक तहखाने का द्वार खुला और उसमे एक नर कंकाल प्रवेश किया । राजकुमार ने तुरन्त निर्णय लिया और बेहोश बनकर लेट गया । नर कंकाल सीधा राजकुमार के पास पहुंचा और जैसे ही राजकुमार को उठाने के लिए झुका , वैसे ही राजकुमार ने अपनी चमत्कारी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया ।
अब राजकुमार आजाद था । वह तेजी से तहखाने के बाहर आया और सीधा उस स्थान पर आ पहुंचा जहाँ आंखे बंद किये हुए तांत्रिक कपाली अपना अनुष्ठान कर रहा था । तांत्रिक कपाली के पास ही एक पिंजरे में बंद गंधर्व नीला गिद्ध और शंखचूड़ भी बैठा हुया था ।
राजकुमार ऐसे ही अवसर की तलाश में था । वह धीरे धीरे कदम बढ़ाता हुया तांत्रिक कपाली के निकट जा पहुंचा । किन्तु जैसे ही उस आक्रमण करने के लिए तलवार उठाई कि अचानक शेरो की दहाड़ सुनकर उसका दिल दहल उठा ।
राजकुमार ने पीछे मुड़कर देखा तो एक साथ पाँच शेरों को अपनी ओर बढ़ते हुए पाया ।ये वह शेर थे जिनके अस्थि पंजरो पर तांत्रिक कपाली ने हवनकुंड की भस्म लगाई थी ।
राजकुमार पहले से ही सावधान था । उसने पीछे हटते हुए एक शेर पर वार किया और उसके दो टुकड़े कर दिए । अपने एक साथी का यह हाल देखकर दूसरे शेर क्रोध से भर उठे और उन्होंने ने राजकुमार पर एक साथ छलांग लगाई ।
राजकुमार ने पुनः पीछे हट कर अपने आप को बचाया और उसमे में से एक शेर के दो टुकड़े कर दिए । इस तरह राजकुमार ने एक एक करके सभी शेरों को मार गिराया ।
तांत्रिक कपाली ने अपने मायावी शेरो का अंत देखा तो पुनः भयभीत हो उठा । उसने आगे बढ़कर नीले गिद्ध का पिंजरा उठाया और एक ओर भागा , किन्तु राजकुमार ने उसे भागने का अवसर नही दिया और अपने तलवार से उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए ।
तांत्रिक कपाली को मारने के बाद राजकुमार ने गंधर्व नीले गिद्ध और शंखचूड़ को पिंजरे से बाहर निकाला । नीले गिद्ध के आँखों मे खुशी के आंसू थे । उसने राजकुमार की ओर बड़ी कृतज्ञता से देखा और तांत्रिक कपाली के सिर के पास आकर बैठ गया ।
राजकुमार ने मुस्कुराते हुए नीले गिद्ध से कहा - " गन्धर्व गिद्ध ,लगता है तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो ? "
नीला गिद्ध बड़ी विनम्रता से बोला - " हाँ बहादुर राजकुमार ! मुझे इस दुष्ट का सिर चाहिए । इसे हवन कुण्ड में डालते ही मेरी जाति के सभी पक्षियों की आत्माएं इसके बालों से आजाद हो जाएंगे और पुनः जीवित हो उठेंगे । "
" ठीक है , गन्धर्व नीले गिद्ध , शंखचूड़ कहो कि अब मुझे स्वर्णपँख दे दे और तांत्रिक कपाली का सिर हवन कुंड में डाल दो । " - राजकुमार ने अनुमति देते हुए कहा
शंखचूड़ ने एक स्वर्णपँख राजकुमार को दे दिया । इसके बाद नीले गिद्ध ने तांत्रिक कपाली का सिर अपने पंजे में दबाकर हवन कुंड में डाल दिया ।
हवनकुंड में सिर जैसे ही गिरा एक तेज रोशनी हुई और जैसे ही रोशनी वहाँ से गायब हुई , वहाँ पर 99 नीले गिद्ध नजर आने लगे । ये सभी नीले गिद्ध हवन कुंड से निकले हुए थे ।
अपने जाति के सभी पक्षियों को दुबारा जीवित देखकर नीले गिद्ध के आंखों में खुशी के आंसू आ गए । अब राजकुमार ने नीले गिद्ध से वापस परीलोक जाने की अनुमति मांगी ।
नीले गिद्ध ने दुखी मन से राजकुमार को विदा किया । राजकुमार सुकन्या परी द्वारा दिया गया कालीन में बैठकर परी लोक की ओर चल दिया ।
अब राजकुमार के पास पांचो चमत्कारी वस्तुएं थी जिससे पांचों तिलिस्मी द्वार खोले जा सकते थे और राजकुमार जल्द से जल्द अपने राज्य चन्दनगढ़ पहुंचते चाहते थे । कालीन तेज गति से परी लोक तरफ बढ़ रहा था ।शाम तक राजकुमार परीलोक पहुंच गया ।
परीलोक में राजकुमार को बहुत भव्य तरीके से स्वागत हुया । रात भर राजकुमार परीलोक में रुका और अगली सुबह अपने राज्य की ओर जाने को तैयार हो गया ।
सुकन्या परी राजकुमार के पास आई और साथ चलने के लिए कहा लेकिन राजकुमार ने सुकन्या परी को अपने साथ ले जाने को तैयार नही हुए । और सुकन्या परी से कहा - " जब तक हम तिलिस्मी कमल प्राप्त नही कर लेते है और अपने पिता जी और अपने राज्य पर आया संकट नही टाल लेते है तब तक आप यही रहिये । "
सुकन्या परी राजकुमार की बात मानते हुए कहा - " ठीक है लेकिन अगर आप मुसीबत में होंगे तो हम जरूर आ जाएंगे।"
सुकन्या परी ने राजकुमार को विदा किया । राजकुमार कालीन में सवार होकर उस जंगल मे पहुंच गए थे जहाँ से उनको काला घोड़ा मिला था ।
राजकुमार ने कालीन से उतरकर इधर उधर नजरें दौड़ाई तो उनका घोड़ा बादल नजर आया । राजकुमार ने कालीन को आदेश दिया कि उसे उसके घोड़े सहित चन्दनगढ़ पहुंचा दे ।
फिर राजकुमार घोड़े सहित कालीन पर सवार हो गया । कालीन हवा से बाते करते हुए दूसरे दिन सुबह चन्दनगढ़ पहुंच गया ।
चन्दनगढ़ में पहुंचते ही राजकुमार धरमवीर को एक अपने पन का अनुभव हुया । जैसे उसे खोई हुई वस्तु मिल गयी । चन्दनगढ़ की प्रजा अपने राजकुमार को सही सलामत देखकर खुश हो गई ।
और भगवान से प्रार्थना की आगे का कार्य भी सही सलामत हो जाये । अब राजकुमार अपने महल न जाकर सीधा चन्दनगढ़ के जंगलों की ओर चल दिया ।
राजकुमार जंगल मे पहुंचकर तीन बार जोर से चिल्लाते हुए वनदेवी को पुकारा । कुछ ही देर में उस जगह तेज हवाएं चलने लगी , बिजलियां कड़कने लगी । और थोड़ी देर में उस जगह पर वनदेवी प्रकट हो गई ।
वनदेवी के प्रकट होते ही वहाँ का वातावरण शांत हो गया । राजकुमार वनदेवी को प्रणाम किया । और बोला - " हे वनदेवी ! आपके कहेनुसार मैं चमत्कारी पत्थर , चमत्कारी मणि , लाल मोतियों की माला , तिलिस्मी फल और स्वर्णपँख ले आया । अब आप कृपा करके तिलिस्मी कमल पाने का रास्ता बताये ताकि आपके पति वनदेव जीवित हो जाये और मेरे राज्य पर आपका छाया संकट टल जाये । "
वनदेवी ने राजकुमार से पांचो तिलिस्मी वस्तुएं ले ली । और अपने साथ राजकुमार को चलने के लिए कहा । वनदेवी जंगल की एक दिशा की ओर चलने लगी । वनदेवी के पीछे राजकुमार धरमवीर भी चलने लगा ।
लगभग एक घंटे तक चलने के बाद वनदेवी एक विशाल पेड़ के सामने आकर रुक गयी । विशाल पेड़ की शाखाएं इतनी बड़ी और घनी थी कि दिन के समय मे भी सूर्य की रोशनी पेड़ के नीचे जमीन पर नही पड़ रही थी ।
वन देवी पेड़ की ओर इशारा करते हुए राजकुमार से बोली - " इस विशाल पेड़ के अंदर ही तिलिस्म का पहला द्वार है जो तिलिस्मी पत्थर से खुलेगा । लेकिन इस पेड़ के अंदर उस तिलिस्मी द्वार का रक्षक रहता है जिसे तुम मारकर ही आगे बढ़ सकते हो । जैसे ही वह रक्षक मर जायेगा वैसे ही उस जगह पर एक महल प्रकट हो जाएगा । महल के अंदर एक तालाब होगा । उस तालाब तक पहुंचने के लिए तुम्हे कई खतरों से गुजरना होगा । उस तालाब के बीच मे एक गोलाकार निशान बना होगा । उस निशान पर चमत्कारी पत्थर रख देना । तिलिस्म का पहला द्वार खुल जायेगा । और तुम एक अलग दुनिया मे पहुंच जाओगे।
जहाँ तुम्हे हर वस्तु केवल पत्थर की बनी दिखाई देगी । वहाँ पर बौने जानवरो का राज है जो पत्थरो के बने हुए है । तुम्हे उन बौने जानवरो से बचते हुए उनके देवता के पास पहुंचना होगा । और वहाँ पहुंचते ही तुम्हे देवता के सिर में अपनी चमत्कारी मणि रखना होगा । मणि के रखते ही वहाँ पर लाल रंग की एक किरण आएगी जो एक द्वार बनाएगी । वह द्वार तिलिस्म का दूसरा द्वार होगा , तुम्हे एक पल गवाएं बिना उस तिलिस्मी द्वार में प्रवेश कर जाना होगा । अगर थोड़ी देर भी कर दी तो तुम तिलिस्म के पहले द्वार में कैद होकर रह जाओगे ।
इस द्वार में 11 चुड़ैलों का राज है 10 चुड़ैलों के पास कोई कोई न अलग मायावी शक्ति है और एक चुड़ैल के पास इन दसों चुड़ैलों की शक्ति है उस चुड़ैल को तुम्हे हराना होगा । हारने के बाद वह तुम्हारी गुलाम हो जाएगी और बाकी चुड़ैलें भी तुम्हारी गुलाम बन जाएगी । और वही चुड़ैल तुम्हे अगले तिलिस्मी द्वार तक पहुंचने के लिए रास्ता बताएगी । तिलिस्मी द्वार के पास पहुँचने पर वह तुमसे लाल मोतियों की माला मांगेगी । वह माला तुम उसको दे देना । उस माला को लेकर वह कुछ मंत्र बोलेगी । उसके मंत्र पूरा होते ही माला गायब हो जाएगी और तीसरा तिलिस्मी द्वार हवा में खुल जायेगा ।
उस द्वार में तुम जैसे ही प्रवेश करोगे अपने आप को एक राजमहल में पाओगे जो वह उस तिलिस्म का एक हिस्सा है तुमको उस महल से बाहर निकलना होगा । उस महल से बाहर निकलने के लिए कई खतरों से जूझना पड़ेगा । जब उस महल से बाहर निकल आओगे तो महल के बाहर एक अजीबोगरीब पक्षी मिलेगा । उस पक्षी को तुम तिलिस्मी फल दे देना । वह पक्षी तुम्हे अपने शक्ति से तिलिस्म के चौथे द्वार में पहुंचा देगा ।
चौथे द्वार में तुम अपने आप को हवा में उड़ते हुए देखोगे । और तुमको अपने चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देगा । उस पानी मे एक अदृश्य द्वीप है जो पानी मे तैरता रहता है । उस द्वीप को तुम्हे ढूंढ़ना होगा । उस द्वीप को ढूढ़ने में तुम्हे कई जलीय जीव मिलेंगे जिन्हें तुम्हे मारना होगा और स्वर्णपँख अदृश्य द्वीप को ढूढ़ने में तुम्हारी मदद करेगा । जब तुम्हे द्वीप मिल जाएगा तो उस द्वीप में तुम्हे एक विशालकाय बरगद का पेड़ मिलेगा । जिस पेड़ की रक्षा गरुड़ पक्षी करते है । स्वर्णपँख को गरुड़ पक्षी को दे देना । गरुड़ पक्षी तुम्हे पांचवे व अंतिम तिलिस्म द्वार तक पहुंचने के लिए रास्ता बता देगा ।
अंतिम तिलिस्मी द्वार में तुम्हारा सामना एक ब्रम्हराक्षस से होगा जो तिलिस्मी कमल की रक्षा करता है । ब्रह्म राक्षस को हराने के बाद तिलिस्मी कमल तुम्हे प्राप्त हो जाएगा । तिलिस्मी कमल मिलते ही तुम स्वयं इस पेड़ के पास पहुंच जाओगे ।
जहां मैं तुमको मिलूंगी । तिलिस्मी कमल मुझे दे देना जिससे मैं अपने पतिदेव और तुम्हारे पिता जी को पुनर्जीवित कर दूँगी ।
क्रमशः .......................💐💐💐💐💐💐💐
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विक्रांत कुमार
फतेहपुर उत्तरप्रदेश
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