Kahani hamari - 1 in Hindi Love Stories by Shirley books and stories PDF | कहानी हमारी - 1

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कहानी हमारी - 1

यह कहानी शुरू होती है ऊटी एक आश्रम से जहां मैं अपनी नशे की आदत छुड़ाने गया था,

और जहाँ पहली बार मैं वृष्टि से मिला...

बाहरी दुनिया से सारे कनेक्शन तोड़ के बिना किसी फोन या इंटरनेट के आश्रम में मेरे दिन ध्यान साधना,वर्कआउट, सेल्फ वर्क, किताबे पढ़ना ये सब करके जा रहे थे उन दिनों आध्यात्मिक रूप से मुझमे काफ़ी बदलाव आ गया था.

               रात में नींद नहीं आ रही थी पिछ्ले 15 दिन से मैंने सिगरेट दारू देखी तक नहीं थी उस बेचैनी में,

मैं कमरे से बाहर निकला और खुले आसमान को देख रहा था जो देखने में काफी आकर्षक था आसमान के तारों की चमक,वहाँ फ़ैली हुई शांति,ठंडी हवाएँ ये सब देख रहा था, महसूस कर रहा था.

वही एक कमरे से किसी के रेडियो की खर्र खर्रति आवाज़ में एक गाना धीमे धीमे सुनाइ देणे लगा

जब उस आवाज़ का पिछा किया तो एक कमरे की खिड़की पर रेडियो रखे अपनी खिड़की से कोई खुले आसमान को देख रहा था

उसी खिड़की के बाहर खड़े हुए मैं भी आसमान को देखते हुए गाना सुनने में मग्न हो गया...

( रेडियो में बज रहा गाना ) .....

अहा.. अहा..अहा.. हे..

बादलों में छुप रहा है चाँद क्यूँ

अपने हुस्न की ज़या से पूछ लो

चाँदनी पड़ी हुई है मांद क्यूँ

अपनी ही किसी अदा से पूछ लो.......

उस खिड़की से घनी रेशमी जुल्फे बहती हवा के साथ मेरे मुँह पर आके लग रही थी मानो मुझे होश में ला रही हो मैं उन ज़ुल्फो को छू अपने मुँह से हटा ही रहा था,की

फ़ोरन रेडियो बंद कर उस तरफ़ से आवाज़ आई

कौन है वहा ????

मैंने हकलाते हुए जवाब दीया s ss sorryyy..

वोह में actually नींद नहीं आ रही थी इसलिए बाहर निकल आया और्र गाने की आवाज से यहां चला आया  

खिड़की के उस तरफ़ से उसने कहा, ओह तो ये बात है,ठीक है,,

वैसे मेरा नाम अगस्त्य है बॉम्बे में मैं फिल्मो की कहानी लिखता हू 

अच्छा.,Hi मेरा नाम वृष्टि है, मेरे दादू इस आश्रम के ट्रस्टी हैं 

ये बात करते वक्त चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी और उस रोशनी में उसका चेहरा मैंने पहली बार देखा और देखते ही रह गया।

उसके चेहरे का नूर मेरी नजरों से सीधे दिल में उतर रहा था 

फिर अपने दिल को संभालते हुए मैंने उन्हें कहा

वृष्टि आप यूं खिड़की से आसमान देख रही है बाहर आके देखिये ये खुला आसमान,ठंडी हवाएं,तारो की चमक...

उसने कहा 

मन तो है लेकिन,मैं नहीं आ सकती दरवाजा बाहर से बंद है

बस, इतनी सी बात मैं खोल देता हूं 

ऐसा कहके में दरवाजे की तरफ गया और दरवाजा खोल दिया जैसे ही दरवाजा खोला वृष्टि कमरे से बाहर निकल के जल्दी से बहार आई और लकड़े का बेंच रखा था बाहर वहा गई ज़मीन पर बैठी और अपना सर बेंच पर रख वो एक टक आसमान में देखी जा रही थी जैसे बरसों बाद ये नजारा देखने मिला हो मैं भी उसके पास जाके बैठ गया और उसे देख रहा था 

वृष्टि ने कहा 

पता है काफी समय बाद यूं रात में खुला आसमान देखा है मैंने वरना जैसी ही शाम होती है मुझे कमरे से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है 

अच्छा जी ऐसे क्यों ?

मैंने ये पूछा और उतने में आश्रम के एक गार्ड वहा आ रहे थे

कोन है बाहर वहा इतनी रात को...

मैने उसका हाथ थामा और जल्दी से वहां से निकल के छुप गये....