Jindagi ke rang hazar -- 13 in Hindi Anything by Kishanlal Sharma books and stories PDF | जिंदगी के रंग हजार - 13

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जिंदगी के रंग हजार - 13

डॉक्टर ने रिज्यूम करने के लिए बोल दिया है
"क्या?मैं उसकी बात सुनकर चोंका था
"डॉक्टर ने सिक आगे नही बढ़ाई है।रिज्यूम करने के लिए बोला है
"तुम।कैसे नौकरी करोगे।तुम तो अभी खड़े ही नही हो सकते?
"डॉक्टर तो रिज्यूम करा रहा है
मेरे साथ कार्यरत रहा,मेरा शागिर्द मेरा शिष्य विनीत अभी सेवा में था।लेकिन वह वोलेंट्री रिटायरमेंट के लिए अप्लाई कर चुका था।वह पिछले तीन चार साल से वोलेंट्री लेना चाह रहा था।हर बार मेरे समझाने पर मा न जाता था।पर अबकी बार जब उसने कहा तो मैं बोला,"अगर ज्यादा परेशानी हो रही है तो दे दे
हालांकि उसके रिटायरमेंट में अब सिर्फ एक साल ही बचा था।पर उसने वोलेंट्री के लिए अप्लाई कर दिया था।
अभी महीने भर पहले वह मंडल कार्यालय से घर लौट रहा था कि बालूगंज में उसे ऑटो ने पीछे से टक्कर मार दी थी।टक्कर से उसके घुटनो के साथ ही कूल्हे पर भी र फ्रेक्चर हुआ था।उसे रेलवे अस्पताल ले जाया गया।रेलवे अस्पताल में हड्डी से सम्बंधित कोई स्थायी डॉक्टर नही है।लिहाजा उसे रेलवे से पुष्पांजलि रेफर कर दिया गया।
वहाँ पर उसका ऑपरेशन हुआ और टांके लगे थे।उसने इस बात की छिपा कर रखा और मुझे दस दिन बाद फोन करके बताया था।मैं फोन पर रोज उसके समाचार लेने लगा।
ऑपरेशन के बाद उसे एक महीने का बेड रेस्ट बताया था।बिस्तर पर ही सब काम करने थे।और बीच मे डॉक्टर ने देखा और फिर निश्चित दिन उसके टांके कट गए थे
एक महीने तक बेड पर ही रहकर उसे अपने पेर को मूवमेंट देना था।घुटने को चलाना था।इलाज पुष्पांजलि के डॉक्टर का चल रहा था।लेकिन सिक में रेलवे डॉक्टर को रखना था और दवा भी उन्हें ही देनी थी।वह खुद तो चल फिर नही सकता था। उसने बेटे को डॉक्टर जुगल के पास भेजा था।
उसे विनीत की हालत मालूम थी।फिर भी
सरकार का दावा है।भ्र्ष्टाचार रुक गया है।पिछले दस सालों में उच्च स्तर पर भरस्टाचार पर रोक लगी हो।ऑनलाइन से जुड़ने से निचले स्तर पर कुछ कमी आयी है।आमजन का पाला निचले स्तर से पड़ता है।पटवारी,तहसील,आरक्षण,बुकिंग, नगर निगम आदि अनेक चीजे है जिनसे आम आदमी का पाला पड़ता है।और कर्मचारी का पाला सब जगह पड़ता है।
बात रेलवे की हो रही है।रेलवे एकमात्र ऐसा संस्थान है जिसका अपना अलग सेटअप है।हर विभाग है।मेडिकल भी।रेलवे के अपने अस्पताल भी है जरूरत पड़ने पर दूसरे अस्पताल में रेफर भी करते हैं।कर्मचारी के साथ रेलवे के पेंशनर को भी मेडिकल सुविधा मिलती है।
लेकिन रेलवे डॉक्टर मरीज का चेकअप कम ही करते हैं।मरीज जो तकलीफ बताये उसे सुनकर दवा लिख देते हैं।
अगर सही इलाज कराना है तो पहले किसी प्राइवेट डॉक्टर को दिखा लो और उस डॉक्टर का पर्चा दिखाकर दवा लिखवा लो
एक बार मैं दवा लेने अस्पताल गया।बी पी,शुगर और कोलस्ट्रोल कि एक महीने कि दवा मिलती है।अब तो कम्प्यूटर से हो गया है।तब पेंशनरों को डायरी मिलती थी जिनसे मैं दवा लिखता था।वह छुट्टी पर थे।मैं नई आयी डाक्टरनी के पास चला गया।उसने जो दवा लिखी उसे जब मैने काउंटर से लिया तो वह बदली हुई थी।मैने फार्मिस्ट से पूछा तो वह बोला
हर्ट की है
मैं वापस डाक्टरनी के पास गया तो वह डायरी में लिखी दवा नही पढ़ पायी।मैने जब दवा क़े नाम बताए तब उसने लिखे
रेलवे में सेफ्टी केटेगरी के टाइमली मेडिकल होते हैं।भले ही डॉक्टरों को लाखों रु तनख्वाह मिल रही हों बिना रिश्वत लिए काम नही करते
जुगल को पैसा चाहिए।।चाहे आदमी सच मे बीमार हो वह बिना पैसा लिए सिक मे नही लेते
सरकार चाहे जितने प्रयास कर ले कर्मचारी नही सुधरेंगे तब तक कैसे भला होगा