एक पाठकीय प्रतिक्रिया
एक तानाशाह की प्रेम कथा :कुर्सी,कव्वे ,घोडा और बाजे वाला
यशवंत कोठारी
वरिष्ठ और बहु सम्मानित ज्ञान चतुर्वेदी का सातवाँ उपन्यास एक तानाशाह की प्रेमकथा के नाम से आया है, मुफ्त पाने की लालसा में मैंने प्रकाशक से समीक्षा के लिए एक प्रति की उम्मीद की मगर बाद में खरीद ही ली .पेपर बेक की सप्लाई लखनऊ के रसज्ञ ने की .कागज़ हल्का, कवर कमज़ोर , सेमी कोलोन (;) का भयंकर प्रयोग है इस किताब में , पढ़ा और कुछ गुना भी . प्रकाशक के अनुसार -
यह कथा है—प्रेम में तानाशाही की। प्रेम की तानाशाही की भी और तानाशाहों के प्रेम की भी। प्रेम जो समर्पण से शुरू होता है। फिर धीरे-धीरे इसका पलड़ा किसी एक तरफ झुकने लगता है और तब शुरू होती है भूमिका ताक़त के प्रति हमारे अनन्य प्रेम की, जिसके सामने कोई प्रेम अर्थ नहीं रखता।
यह उपन्यास ऐसे तीन प्रेमियों की कथाओं से शुरू होता है, जिन्हें अब भी लगता है कि वे प्रेम कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वे कर रहे हैं तानाशाही, कब्ज़ा और क्रूरता। सम्बन्ध उनके लिए एक दलदल बन चुका है, जिससे निकलने को उनकी वह रूह छटपटाती रहती है जिसने कभी सारी दुनिया को छोड़कर प्रेम का वरण किया था; लेकिन जब तक वे अपनी इस छटपटाहट को समझ पाते, एक चौथा प्रेमी कथा में प्रवेश करता है जिसे लगता है कि उससे बड़ा प्रेमी कोई है ही नहीं। यह देशप्रेमी है, देश का बादशाह, जिसे लगता है कि प्रेम बस एक ही होता है—देशप्रेम, बाकी हर प्रेम उसकी राह में बस रुकावट पैदा करता है। असली कथा यहीं से शुरू होती है...
इस उपन्यास में उन्होंने प्रेम जैसे सार्वभौमिक तत्त्व को अपना विषय बनाया है और उसे वहाँ से देखना शुरू किया है जहाँ वह अपने पात्र के लिए ही घातक हो उठता है। वह आत्ममुग्ध प्रेम किसी को नहीं छोड़ता चाहे प्रेमी के लिए प्रेमिका हो, पति के लिए पत्नी हो या शासक के लिए देश।
अब शुरू करते हैं अपनी बात -
३१२ पेज का एक लाख से अधिक शब्दों का यह उपन्यास इस बार पठनीय बन पड़ा है नरक यात्रा के बाद यह रचना पसंद आई . लम्बे लम्बे संवाद है ,कुछ अश्लील प्रसंग भी है ,लेकिन गालियाँ बहुत कम है और जो हैं वो भी अनावश्यक .ज्ञान इकलोते लेखक है जिन को खरीद कर पढ़ा जा रहा है ,लेखक को और क्या चाहिए ?
कहानी में बादशाह द्वारा प्रेम बंदी के लागू करने के आदेश है ,ये आदेश खतरनाक है .लेकिन इसे नोटबंदी या कोरोना काल से मत जोड़िये.नहीं तो भटक जायेंगे ,किस्से में बने रहिये .दो तानाशाह पति भी है और एक तानाशाह पत्नी भी.अधेड़ प्रेम या यो कहिये बुढऊ प्रेम की तानाशाह वृत्ति है .दो युवाओं की प्रेम कहानी है और मसाला डालने के लिए एक हिन्दू है और एक मुस्लिम .
बादशाह है ,अमला है हुकूमत है ,बेड रूम में होने वाली पिटाई है और अंत में प्रजा का विद्रोह है . प्रजा को देश प्रेम सिखाना ही बादशाह का मंतव्य है .बाकि प्रेम तो होता रहेगा .सत्ता का नशा प्रेम के नशे से बड़ा होता है .
प्रेम को तानाशाही के आवरण में प्रस्तुत किया है और बार बार कहा गया है कि प्रेम तो होता ही तानाशाही है प्रेम को जटिल मसले की तरह पेश किया गया है वास्तव में प्रेम की परिभाषा आज तक फाइनल नहीं हुई इस उपन्यास में भी नहीं हुई; आगे भी कोई सम्भावना नहीं ,प्रेम तो सहज सरल व अँधा है और अंध भक्त है बादशाह इसे सीधे राष्ट्र प्रेम से जोड़ देता है .घरेलू प्रेम बाद में फुरसत में कर लेना पहले राष्ट्र प्रेम करो , यही सच्चा प्रेम है ,लेकिन अवाम है कि मानती नहीं .
बादशाह का तानाशाही व्यवहार बार बार सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुक्मरानों की और इशारा करता है .बादशाह को पता चलता है की प्रेम का तानाशाह सबसे विकट है तो वो उसे पकड़ने का हुक्म देता है लेकिन अमला नहीं पकड पाता .प्रेम बंदी के कनून का लेखक ने विस्तार से वर्णन किया है घ्रणा और मोहबत के शानदार केनवास खींचे गये है .जुमलों के इस दौर में नैतिकता नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए .रंग भी है इंद्र धनुष भी है और रात का अँधेरा भी .यह अँधेरा ही प्रेम है या प्रेम की रौशनी से अँधेरा भाग जाता है प्रेम बंदी लागू करने वाला बादशाह भी भ्रमित है , ,प्रेम बंदी असफल लेकिन कहे कौन ?कैसे ?प्रेम बंदी को सरकार के प्रचार प्रसार के सहारे सफ़ल साबित करने की कोशिश गोदी मीडिया व सोशल मीडिया तक जाती है .
उपन्यास में कई चेप्टर (पाठ) है कुछ के शीर्षक बेहद आकर्षक है ,मुलाहिजा फरमाइए;
१-पाञ्च तानाशाह और एक गुलाम
२-घोषणा की प्रतीक्षा और खोफ़
३-देवता सकते में हैं
४-तब तक थोडा प्रेम हो जाये
५-ठीक से तालियाँ न मार पाया तो?
६-गहरी हरदय रेखा और वक्री शनी
७-और इधर पूरे देश में खलबली
८-घोषणा और उसके बाद
९-सावधान यहाँ प्रेम की सख्त मुमानियत है
१०-बादशाह हैरान है और देश परेशान
११-तानाशाह माफ़ नहीं करता
१२-न कथा का अंत होता है , न तानाशाही का
१३-सेक्स भी तानाशाही का औज़ार हो सकता है क्या ?
१४-दो तानाशाहों की भिडंत
१५-वीराने में प्रेम के फूल
रचना में एक कविता के अंश –
मैं नहीं रहता अपने पते पर आजकल /कोई और ही रहने लगा है वहां /मुझ में लहू में कोई और ही बहता रहता है /किसी और ने कब्ज़ा कर लिया है .
कविता कहती है कुछ, मगर डस्टबिन में जाती है फिर एक जासूस द्वारा बादशाह तक पहुँचती है .
स्त्री पुरुष प्रेम को भी बखाना गया है लेकिन नया कुछ नहीं दिया गया . इस समीकरण को हल करना आसान नहीं है। हजारों वर्षों से हम इस समीकरण पर दिमाग चलाये जा रहे हैं। इस गणितीय प्रमेय का हल किसी सुपर कम्प्यूटर के पास भी नहीं है। ज्यामिती ,अंकगणित, बीजगणित,केलकुलस ट्रिग्नोमेट्री से अलग है इस समीकरण की गणित। भौतिकी के सिद्धान्तों से इस समीकरण को नहीं समझा जा सकता है। थोड़ी बहुत मदद केमिस्ट्री कर सकती है ,मोहब्बत और घ्रणा का व्यापार बादशाह का शगल है .
प्रेम का समीकरण इस उपन्यास में भी अनुत्तरित है। प्रिय पाठकों मैं आपके चिन्तन को आमंत्रण देता हूं। आइये और इस समीकरण को हल करिये यदि ऐसा हो गया तो सम्पूर्ण सृष्टि पर आपका एहसान होगा।
ज्ञान चतुर्वेदी दिल के डाक्टर है दिल की भाषा को समझते भी होंगे लेकिन प्रेम की यह भाषा हर दिल के लिए अलग है यही इस रचना की विशेषता भी है और यही कमजोरी भी .तानाशाह के कारिंदे अपने प्रेमी बच्चों को बचाने की चाह में तो है लेकिन विद्रोह नहीं कर पाते ,एक तानाशाह पत्नी सेक्स कोंसिलर के पास पति को ले जाती है और ये भी की मुझे आनंद क्यों नहीं आता ?कोंसिलर और पति क्या जवाब दे ?
बादशाही तानाशाही को एक फेंटेसी के रूप में उभारा गया है ,प्रतीक और बिम्ब भी है . व्यंग्य के सौन्दर्य शास्त्र के विद्वान आलोचक इस पर विचार करेंगे , आचार्य लोग खूब लिखेंगे शोध होगी तब तक के लिए मेरी यह पाठकीय प्रतिक्रया पेश –ए –खिदमत है .गलतियों के लिए अग्रिम माफ़ी .उपन्यास पढ़ा जाना चाहिए बस अकादमी इसका नोटिस लेगी इसमें मुझे संशय है. .०००००००००००००००००००
यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015 मो.-94144612 07