रोवन सर से मेरी नज़रे टकरा गई और मैं हक्का बक्का सी सिर्फ पलकों को बार बार झपकाते हुए बेवकूफों की तरह उन्हें तकने लगी। कुछ देर तक हमारी नज़रे आपस में मामले का जायज़ा लेने लगी थी। शायद वो यहां से गुज़रे होंगे और उनकी भूतनी उनके पीछे पीछे जा रही होगी तभी उसने मुझे टोका होगा।
कुछ देर मुझे हैरत से देखने के बाद वो वापस जाने लगे। जाते हुए उन्होंने एक दो बार मुझे मुड़ मुड़ कर देखा और फिर आंखों में कई सवाल लेकर चले गए शायद उनके मन में यही चल रहा होगा के मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं है तो मैं पढ़ने क्यों आती हूं। खैर वो जो भी सोचे ये उनकी मर्ज़ी है।
उनके जाने से सफेदी की भूतनी भी शैतानी मुस्कुराहट से देखते हुए चली गई।
अपने घर से यहां आते समय मैं ने इतना भी नहीं सोचा था के यहां मुझे एक अलग ही प्राणी से सामना होगा जिसे मैं समझ ही नहीं पा रही हूं। उसने कहा वो मुझे मार सकती है इस लिए मुझे हर पल चौकन्ना रहना पड़ेगा। मुझे अंदाज़ा हो गया था के ये जो भी है ताकतवर है लेकिन मुझे इसे ताक़त से नहीं अकल से हराना होगा। मैं ये भी नहीं जानती के उसका इरादा क्या है और किस तरह मुझे अपने जाल में फंसाना चाहती है। जो बातें मुझे परेशान कर रही थी वोही बातें उसे भी परेशान करती होंगी इस लिए उसे मुझसे डर भी है। यहां उसे मेरे अलावा कोई नहीं देख सकता था शायद इस लिए वो मुझे अपने रास्ते से हटाने चाहती होगी या फिर वो बस मुझे डराने की कोशिश कर रही थी।
बहुत सोचने के बाद मैं ने सारी बातों को किनारे किया और क्लास चली गई। आखरी लैक्चर चल रहा था और अब छुट्टी होने वाली थी। मैं ने देखा के कोई बीस बाइस साल की लड़की जिसे मैं जानती नहीं थी। वो दरवाज़े के पास खड़ी मुझे बाहर आने के लिए इशारे कर रही है। मैं ने पहले नज़र अंदाज़ किया लेकिन उसके चहरे में परेशानी देख कर प्रोफेसर से परमिशन लेकर मैं बाहर आ गई। जब बाहर आई तो उसने घबराहट में कहा :" दीदी बैग लेकर आईए!... आप की दोस्त वर्षा दीदी को कुछ हो गया है। जल्दी चलिए!"
वर्षा का नाम सुनते ही मैं परेशान हो गई। मैं ने उस लड़की से पूछा :" तुम कौन हो ? क्या हुआ उसे ?"
लड़की ने जल्दी में बताया :" मैं बैचलर की स्टूडेंट हूं! आप जल्दी आ कर देखिए!"
मैं ने आव देखा ना ताव क्लास में आकर बैग उठाया और उसके साथ दौड़ी दौड़ी जाने लगी। मेरे दिमाग में एक सनसनी छा गई थी ये सोच कर के कहीं सफेदी की भूतनी ने तो उसके साथ कुछ गलत ना कर दिया हो। मेरे मन में पहले ही ये बात चुभ रही थी के वो मुझे तो चोट नहीं पहुंचा सकती लेकिन मेरे आसपास के लोगों को पहुंचा सकती है।
उस लड़की के साथ भागते हुए मैं बार बार पूछ रही थी के वर्षा कहां है? और वो यही कहती के एक कमरे में है बेहोश पड़ी है। आप बस मेरे साथ चलिए!"
भागते हुए हम तीसरे मंजिल पर पहुंचे। लाइब्रेरी के पास एक छोटा सा कमरा था जो खाली था। लड़की ने कहा के वर्षा यहीं है। उसने मुझसे कहा :" दीदी अपना बैग मुझे दे दीजिए मैं संभाल कर रखती हूं!"
उसे बैग पकड़ाते ही मैं कमरे के अंदर चली गई। घबरा कर इधर उधर देखते हुए उसे वर्षा वर्षा की आवाज़ देने लगी लेकिन वहां कोई नहीं था। लड़की मेरा बैग लिए दरवाज़े के बाहर ही खड़ी थी। जब मैंने देखा यहां कोई नहीं है तब मैं समझ गई के ये एक धोखा था। मैं ने उस लड़की की ओर देखा जो शैतानी मुस्कान मुस्कुरा रही थी। जल्दी से मैं दरवाज़े की तरफ भागी लेकिन तब तक उसने झट से दरवाज़ा बंद कर दिया। अब मैं अंदर बंद हो गई थी।
जैसा कि आप ने देखा अब लूसी कमरे में बंद हो गई थी। अब लूसी की कहानी वो खुद नही बताएगी अब हम बताएंगे के उसके साथ आगे क्या हुआ। क्या वो उस शैतान से लड़ पाएगी या मुसीबत की अंधेरी खाई में गिर जायेगी। चलिए देखते हैं।........
लड़की ने जल्दी से लूसी के बैग से उसका मोबाइल निकाला और कुछ मैसेज टाइप करने लगी। किसी को मैसेज भेज कर उसने बैग को लाइब्रेरी में छुपा दिया। लाइब्रेरी से निकलते ही उसके अंदर से सफेद साड़ी वाली भूतनी बाहर आ गई। उस लड़की पर वो हावी थी और उसने ही लड़की से ये सब कराया था। लड़की ने कंफ्यूज होकर कर अपने आप को और आसपास के जगह को देखा और घबरा कर तेज़ी से भाग गई।
इधर लूसी दरवाज़ा पीटने लगी। ज़ोर ज़ोर से आवाज़ भी दे रही थी :" कोई है मुझे बाहर निकालो! दरवाज़ा खोलो!... कोई है बाहर!"
लेकिन लाइब्रेरी के आसपास शांति बनी हुई थी। वैसे भी वहां सिर्फ लाइब्रेरियन और पढ़ने वाले बच्चे जाते हैं लेकिन अब तक कॉलेज में छुट्टी हो गई थी और सब जाने लगे थे। लूसी की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी। कमरे के अंदर वो बस इधर उधर टहल कर बाहर निकलने की कोशिश करने लगी के अचानक उसके सामने वोही औरत प्रकट हो गई। उसके हाथ में एक छोटा सा चाकू था। शायद कहीं से चुरा कर लाई थी।
उसे देख कर लूसी को उस पर बेतहासे गुस्सा आ रहा था। वो इस समय अपने बैग में रखे चाकू को याद कर रही थी। उसका दिल कर रहा था बस उसे सब्ज़ी की तरह काट डाले। उसने अपने आसपास नज़र दौड़ाई कुछ सामान कोने में पड़े थे। जैसे लाइब्रेरी की सफाई के लिए स्टील की बाल्टी, पोछा, वाइपर, जाले साफ करना वाला झाड़ू वैगराह
औरत ने खुद पर गुरुर करते हुए कहा :" क्या हुआ बहादुर लड़की!... डर लग रहा है ना?.... तो क्या हुआ मैं तुम पर जादू नहीं कर सकती या तुम्हें कब्जे में नहीं ले सकती! मैं तुम्हें हथियार से तो मार सकती हूं ना!"
ये कह कर उसने लूसी को मारने के लिए चाकू उठाया ही था के लूसी ने पूरी ताक़त से उसके पेट में लात मारी और दौड़ कर कोने से बाल्टी उठा कर उसके सर पर पटक दिया। उसने उतनी तेज़ी से उस पर हमला किया की भूतनी कुछ सोच ही नहीं पाई। उसे ज़ोर की चोट लगी थी लेकिन उसके सर से खून नहीं निकला बल्के जहां चोट लगी वो जगह नीला हो गया।
गुस्से में उसकी आंखें लाल हो गई और चीखते हुए लूसी की ओर बढ़ी लेकिन उस से ज़्यादा गुस्सा लूसी के आंखों ने दिख रहा था। चाकू लेकर उसके करीब जैसे ही आई लूसी ने उसके सर पर एक और बाल्टी ज़ोर से पटका। अब वो गोते खा कर पीछे हटने लगी। उसके कदम डगमगाने लगे। एक जगह दीवार से टेक लगा लगाकर मुश्किल से खड़ी हो गई।
जब लूसी ने उसे चोटिल कर दिया तो वो उसके पास गई और उसके हाथ से चाकू छीन लिया। खौफनाक नज़रों से देखते हुए एक हाथ से उसका गला दबोच कर लगातार पांच बार उसके पेट पर चाकू गोद डाला। पांचवी बार चाकू उसके पेट में लगा कर छोड़ दिया। इस समय वो एक वहशी कातिल लग रही थी जो बाज़ की निगाहों से अपने शिकार को घूर रही थी। उसने बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए कहा :" मैं नाज़ुक दिखती हूं लेकिन गुस्सा आ जाए तो मेरे अंदर असाधारण ताकत भर जाती है। अब बताओ तुम कौन हो?.... क्या चाहती हो?
इतने वार के बाद भी वो नही मरी जैसा के उसने कहा था के उसे कोई मार नही सकता लेकिन भूतनी की सांसे अटक रही थी। उसके पेट से कोई खून तो नही निकला था लेकिन वो बिलकुल कमज़ोर और असहाय महसूस कर रही थी। उसकी शक्तियां लगभग खत्म हो रही थी।
जब लूसी के सवाल का उसने जवाब नहीं दिया तो लूसी को और गुस्सा आने लगा। उसने फिर से चाकू उठाया और छठी बार वार करने लगी लेकिन वार करते ही वो धुआं बन कर गायब हो गई।
अब लूसी कमरे में तन्हा थी और बाहर कॉलेज में सन्नाटा छाने लगा था। शाम होने को थी।
(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)