किसी गांव में दो जिगरी दोस्त रहते थे—रामू और श्यामू। दोनों की दोस्ती बचपन से थी, और गांव में उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। लेकिन उनकी दोस्ती के पीछे एक अजीब और गहरी सच्चाई छिपी थी। वे दोनों एक-दूसरे को धोखा देने के लिए हमेशा तैयार रहते थे, और यह उनकी दोस्ती की नींव बन चुकी थी।
### दोस्ती की शुरुआत
रामू और श्यामू की दोस्ती तब शुरू हुई थी जब वे एक छोटे से स्कूल में पढ़ते थे। बचपन में ही उन्होंने एक बार एक मीठी सी चोरी की थी। गांव के मेले में दोनों ने एक मिठाई की दुकान से लड्डू चुराने का फैसला किया। दोनों ने मिलकर योजना बनाई और श्यामू ने दुकानदार को बातों में उलझा दिया, जबकि रामू ने लड्डू चुरा लिए। जब लड्डू चुराकर दोनों भागे, तो रामू ने सारे लड्डू खुद ही खा लिए और श्यामू को धोखा दे दिया।
श्यामू को इस धोखे पर गुस्सा आया, लेकिन उसने अपनी नाराजगी छिपा ली। उस दिन से ही दोनों के बीच धोखा देने का सिलसिला शुरू हो गया। वे एक-दूसरे को दोस्त तो कहते थे, लेकिन असल में हमेशा एक-दूसरे को पछाड़ने की कोशिश करते रहते थे।
### धोखे की दौड़
समय बीतता गया और दोनों बड़े हो गए। रामू और श्यामू अब अपने-अपने व्यवसाय में लग गए थे। रामू एक कपड़े का व्यापारी बन गया और श्यामू एक जमींदार। दोनों ने अपनी-अपनी जिंदगी में तरक्की कर ली थी, लेकिन उनके मन में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या और धोखे की भावना कभी कम नहीं हुई।
एक दिन, रामू ने सोचा कि अगर श्यामू का कारोबार बिगड़ जाए, तो उसे गांव में सबसे बड़ा व्यापारी बनने का मौका मिल सकता है। उसने श्यामू के खिलाफ साजिश रची और उसके जमींदारी के कारोबार में आग लगवा दी। श्यामू को भारी नुकसान हुआ और वह लगभग दिवालिया हो गया।
लेकिन श्यामू ने भी बदला लेने की ठानी। उसने सोचा कि रामू के कपड़े के व्यापार को बर्बाद करना ही उसका सही बदला होगा। उसने रामू के सबसे बड़े ग्राहक को रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया, जिससे रामू का व्यापार लगभग ठप हो गया।
### कड़वा सच
दोनों एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने में लगे रहे, लेकिन इस दौरान उनकी व्यक्तिगत जिंदगी भी प्रभावित होने लगी। दोनों के परिवारों में लड़ाई-झगड़े होने लगे और गांव में उनकी प्रतिष्ठा भी गिरने लगी। एक दिन, जब दोनों अपने-अपने नुकसान का हिसाब लगा रहे थे, तो उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने एक-दूसरे को धोखा देने में ही अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी।
### आखिरी धोखा
लेकिन यहां भी कहानी खत्म नहीं हुई। रामू और श्यामू ने एक-दूसरे से सुलह करने का नाटक किया और दोस्ती का हाथ फिर से बढ़ाया। दोनों ने सोचा कि अगर वे मिलकर काम करेंगे तो फिर से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा और दौलत हासिल कर सकते हैं।
रामू ने श्यामू को अपने व्यापार में साझेदार बना लिया और दोनों ने मिलकर एक बड़ी योजना बनाई। लेकिन दोनों के मन में अब भी एक-दूसरे को धोखा देने की भावना थी। उन्होंने तय किया कि जो पहले ज्यादा कमाई करेगा, वह दूसरे को धोखा देकर सारा धन हड़प लेगा।
एक दिन, जब रामू और श्यामू एक बड़ी डील को अंजाम देने के लिए शहर गए, तो रामू ने पहले ही पुलिस को सूचना दे दी कि श्यामू के पास नकली दस्तावेज हैं। श्यामू को गिरफ्तार कर लिया गया और रामू को लगा कि अब वह जीत गया है।
लेकिन श्यामू ने पहले से ही रामू के खिलाफ साजिश रची हुई थी। उसने पुलिस को रामू के गुप्त ठिकाने की सूचना दी थी, जहां उसने सारा पैसा छिपाया था। पुलिस ने रामू को भी गिरफ्तार कर लिया और दोनों को जेल हो गई।
### अंत का आरंभ
जेल में बंद रामू और श्यामू ने पहली बार अपनी गलतियों का एहसास किया। उन्हें समझ में आया कि वे अपनी पूरी जिंदगी एक-दूसरे को धोखा देने में ही बर्बाद कर चुके थे। अगर वे एक-दूसरे के साथ ईमानदारी से रहते, तो शायद उनकी जिंदगी बेहतर हो सकती थी।
लेकिन यह सोचकर भी, दोनों के मन में अब भी एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और धोखे की भावना थी। दोनों जेल से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे, ताकि फिर से एक-दूसरे को पछाड़ने की योजना बना सकें।
इस तरह, रामू और श्यामू की दोस्ती का अंत कभी नहीं हुआ, लेकिन उनका जीवन एक-दूसरे को धोखा देने में ही गुजर गया। उनकी कहानी गांव में एक उदाहरण बन गई कि कैसे धोखे और छल से भरी दोस्ती आखिरकार दोनों को ही बर्बाद कर देती है।