Bekhabar Ishq - 6 in Hindi Love Stories by Sahnila Firdosh books and stories PDF | बेखबर इश्क! - भाग 6

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बेखबर इश्क! - भाग 6

ये पूर्णिमा की रात थी,चांद अपनी चांदनी को हर तरफ बिखेरे हुए थी,और हड्डी तक को कपकपा देने वाली हवा पूरे वातावरण को सर्द बना रही थी,कुछ ही देर में इशांक को उस ठंडी हवा ने इतना सर्द कर दिया की वो खिड़की बंद करने लगा,उसी पल गार्डन में एक पेड़ के नीचे बैठी कनीषा पर उसकी नजर पड़ी,जो ऐसे बैठी थी जैसे वहीं पर जम गई हो।।।

कुछ और दो मिनट तक उसे यूं ही घूरते रहने के बाद इशांक ने खिड़की को धम्म से बंद किया और आ कर सोफे पर बैठ गया,जिसके बाद कनिषा से अपना ध्यान हटाने के लिए वो सोफे से उठा और अपने लैपटॉप को लेकर घर के सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर चला गया,जहां एक बड़ा सा सफेद दरवाजा था जो इशांक के "ओपन" कहते हो खुल गया,अंदर हर तरफ रोबोट और बड़ी बड़ी मशीनें रखी हुई थी,,जिनके बीच से निकलता इशांक बीच में रखे टेबल कुर्सी पर आ कर बैठ गया और अगले ही पल अपना लैपटॉप खोल उसमें टाइप करते हुए कोडिंग करने लगा।।

अपने काम को करते हुए उसके दिमाग से कनिषा और आज दिन भर की सारी घटनाएं छू मंतर हो गई और वो अपने लैपटॉप और रोबोटिक कोडिंग में जैसे डुबकी लगाने लगा,काफी देर बाद उसने यूं ही अपने कॉफी मग को पकड़ा और कॉफी बनाने के लिए मशीन तक बढ़ आया,चुंकी ऊपरी फ्लोर पर हर तरफ पारदर्शी शीशा लगा हुआ था,इसलिए रेंडमली उसकी निगाहें एक बार फिर कनिषा के जिस्म से टकराई,जो चांद की चंदनी में दूधिया सफेद नजर आ रही थी,दुल्हन के लिबास पर उसके खुले लंबे केश भी अब तक बिखर गए थे,और हवा के साथ उड़े जा रहे थे,उसके माथे पर फैला सिंदूर इशांक को बार बार ये एहसास दिला रहा था की...उसने अपने लिए एक ऐसी औरत को चुना था,जो शायद पैसे के लिए उसे बीच में ही छोड़ कर चली जाएगी,बिल्कुल उसकी मां की तरह।।

कनिषा को देखते हुए जैसे ही उसके दिमाग में मां शब्द आया,अचानक इशांक ने अपना रुख दरवाजे की तरफ कर लिया और वहां से निकल सीधे ग्राउंड फ्लोर पे चला आया,जिसके बाद उसने घर का एंट्रेंस गेट खोला और बाहर निकलने से पहले लिविंग रूम के ड्रॉल से डक टेप ले लिया,गार्डेन में कनीषा तक चलते हुए उसने कितनी बार खुद को ये करने के लिए धक्का दिया था,ये वो खुद भी नही जानता था,इसलिए जब वो उस तक पहुंचा उसने कनिषा को बिना नींद से जगाए उसके बाह को पकड़ा और बेतरतीबी से खींचते हुए उठा कर खड़ा कर दिया।।

खींचाव से कनीषा की आंखे खुली ही थी,की सामने इशांक की वहीं अजीब सी बेरुखी आभा देख, पुरी तरह आंखो से नींद फुर्र हो गई,दिमाग स्थिर हुआ तो इशांक की  हथेली को अपनी बाह पर देख उसने चिल्लाना शुरू कर दिया...."अब क्या चाहिए आपको,आपने कहा था की आप दुबारा मेरी सकल नही देखना चाहते,फिर मेरे सामने अपना मनहूस चेहरा लेकर क्यों खड़े हो गए,छोड़े मेरे हाथ और जाएं यहां से....!"

"मैं तो अपने शब्दो पर अभी भी कायम हूं,लेकिन क्या करूं... मैं अपने घर के जिस भी खिड़की पर जाता हूं,तुम्हारी घिनौनी सकल दिखाई देने लगती है,इसलिए सोचा कि तुम्हे कहीं लॉक कर दूं,जहां से ना तुम कहीं पहुंच सको और ना ही कोई दूसरा सख्स तुम तक पहुंच सके!"......अपनी बात खत्म करते हुए इशांक बेढंगे तरीके से मुस्कुराया,जिसे देख गुस्से से कनिषा का दिमाग फटने लगा और उसने अनायास ही अपना सिर नीचे झुंका कर इशांक के हाथ पर अपने दांत गड़ा दिए, जो पहले धीमे से थे,जब इशांक को इससे कोई फर्क नही पड़ा,तो उसने अपने दातों को इशांक के हाथ के खिलाफ मजबूती से गड़ा दिए,जिससे उत्पन्न दर्द के कारण इशांक की भौंहैं सिकुड़ गई, और माथे पर पड़ी बल ने उसके गुस्से को उजागर कर दिया,इसलिए जैसे ही कनीषा ने अपना मुंह उसके हाथ से हटाया उसने डक टेप निकल कर जबरदाती उसके मुंह पर चिपक दिया।।

डक टेप मुंह पर लगने से कनिषा छटपटाई तो इशांक ने उसके दोनो हाथों को पकड़ लिया और खींचते हुए अपने साथ लेकर घर के अंदर आ गया,घर के अंदर आने के बाद कनीषा पैरों को पटकने लगी और मुंह से निकालने वाली..."उन्ह्ह्ह्ह्ह...हम्मम.....हम्मम....ओऊऊऊऊऊ"की आवाज एक पल के लिए शांत ना हुई तो अपने पिता की नींद डिस्टर्ब होने के डर से इशांक रुका और अगले ही पल पीछे घूम कर कनिषा को अपनी बाहों में उठा लिया।


इशांक के इस हरकत से कनिषा की भौंहैं तन गई और शायद वो अपनी पलको को झपकाना ही भूल गई, इशांक पहले से ही समझ नही पा रहा था की वो ये सब क्यों कर रहा है,इसलिए उसका फार्स्टेशन और अधिक बढ़ गया और चेहरा उदासीनता में लिप्त नजर आने लगा, हालंकी इशांक के बाहों में उठाने के अंदाज से कनीषा इस कदर हैरान हुई थी,की उसने छटपटाना तक बंद कर दिया था और मुंह से सारी आवाज भी गायब हो गईं थीं,जिससे इशांक आसानी से उसे अपने कमरे तक ले गया!

लेकिन कमरे का दरवजा खुलने की आवाज ने कनीषा को वापस उसके होश में ला दिया,जिसके कारण उसने फिर से वही आवाज और बेवजह की छूटने की कोशिश शुरू कर दिया, जो अब इशांक सहन नही कर सकता था,इसलिए बेड तक पहुंच उसने कनीषा को उस पर फेंक दिया,और बेरहमी से उसके मुंह से टेप खींच कर निकाल दिया।।

टेप निकालने से कनिषा हल्के से चिल्लाई और अपने हाथ से मुंह को सहलाने लगी,लेकिन उसका गुस्सा इशांक पर इतना भड़क चुका था की अगले ही पल बेड पर खड़ी हो कर उसने इशांक का कॉलर पकड़ लिया और गुस्से से चिल्लाई...."क्या समझते है खुद को?...आपकी मलकियत है मुझ पर,,,,जो जब दिल चाहता है बाहर फेंक देते है,और जब दिल चाहता है वापस उठा लाते है,और जब लड़कियों पर आपको जरा सा भी यकीन नहीं था तो,क्यों की मुझसे शादी,मुझे जवाब दीजिए की क्यों नही उस पेपर को फाड़ कर फेंक दिया,क्यों मेरी जिंदगी बर्बाद की?क्यों किया मुझे मजबूर?......

कनिषा इतना ही कह पाई थी की उसी पल इशांक ने उसके दोनो पैरों को पकड़ा और उसे खींच कर बेड पर गिरा दिया, इससे पहले की वो वापस उठ पाती इशांक खुद भी बेड पर चढ़ कर उसके दोनो हाथो को पकड़ बेड के खिलाफ दबा दिया,जिसके बाद उसने दांत पीसते हुए कहा......"इतना गुस्सा क्यों आ रहा है तुम्हे??"

इधर कनिषा ने उसे खुद के ऊपर महसूस किया तो डर से उसकी सांसे ही रुक गई,इशांक के एग्रेसिव और गर्वशाली नेचर के बारे में उसे अब तक समझ आ गया था,इसलिए इशांक के आगे के कदम को लेकर डर से उसके पसीने छूटने लगे,और एक सेकंड के भीतर ही उसके दिमाग ने हजारों तरह का कल्पना बना लिया,जिसके कारण उसने खुद के ऊपर से इशांक को हटाने के लिए स्ट्रगल शुरू ही किया था की तभी इशांक ने  अपने शरीर का दबाव बनाते हुए उसका हिलान डुलना तक रोक दिया और अपनी बात कहना जारी रखा....."मैने मजबूर किया?हां??...कब मैने तुम्हे मजबूर किया?वो तुम थी जिसने मैरेज पेपर पर साइन कर खुद को मेरी जिंदगी में शामिल किया और हमारी शादी मेरी जिद्द के कारण नही हुई,इसमें तुम्हारे पैसों का लालच भी शामिल था,क्या तुम भूल जाती हो की तुमने मुझसे कितने पैसे लिए है?....कहते कहते इशांक ने अपने चेहरे को उसके कान तक झुकाया और फुफुसाहट के साथ कहने लगा...."और देखा जाए तो जो तुम्हे चाहिए था,वो इस शादी के होने से तुम्हे मिल भी गया,एक अमीर आदमी,जिससे मिल कर तुम अपने बाप और खुद को भूख मिटा सको.... एम आई राइट कनिषा रेड्डी?"

इतना कह इशांक ने अपना सिर उठाया और कनिषा की कलाई छोड़ बेड पर सीधा बैठ गया,हालांकि वो वहां से उठता उससे पहले ही कनिषा ने उठ कर उसके कंधे को पकड़ लिया...."इतनी ही बुरी हूं आपकी नजरों में तो मुझ जैसी अदभुखी को अपने महल से निकालने के बाद वापस क्यों उठा लाए??"

कनिषा को जवाब देने से पहले इशांक ने कंधे पर रखे उसके हाथ को घूरा,फिर गुस्से में बोला...."मैं तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझता और ना ही तुम मेरे लिए इतनी ख़ास हो,अपनी औकात मत भूलो,और आखिरी बात यहां से भागने या शोर करने के बारे में सोचना भी मत वरना,आगे जो मैं करूंगा शोर करने के लायक बचोगी भी नही!!"

"मतलब आप मेरे मर्जी के बगैर मेरे साथ जो चाहे वो करे,और मैं अपनी मर्जी से यहां से जा भी नही सकती,ख्याली पुलाव है ये आपके दिमाग की,भूल जाइए की मैं कभी आपकी बात मानूंगी!".....इतना कहते कहते कनिषा ने इशांक के कंधे से अपना हाथ हटाया और झट से बेड से उतर गई, इससे पहले की इशांक उसे पकड़ पता फुर्ती से उसने कमरे के दरवाजे की ओर अपने कदम बढ़ा लिए,हालांकि वो दरवाजे को छू भी ना सकी थी की इशांक ने पीछे से आते हुए,उसके कमसिन कमर को अपने दोनो हथेलियों से पकड़ लिया और कनिषा को कोई मौका ना देते हुए उसे किसी बच्चे की तरह हवा में उठा कर बेड वापस बेड की ओर चलने लगा।।

"जाने दीजिए मुझे,आप जैसे कमीने के साथ मैं एक ही कमरे में नही रहना चाहती,मुझे आप पर रत्ती पर भी यकीन नही है,क्या आपको समझ नही आ रहा,,छोड़िए मुझे!"..... इशांक के उठाते ही कनिषा चिल्लाना शुरू कर चुकी थी,जिससे ऊब चुके इशांक ने कुछ दो मिनट तक उसके ना खत्म होने वाली आवाज को सुना और बर्दास्त किया,पर अंत में उसने जैसे ही कनिषा को बेड पर पटका,उसके साथ ही एक जोरदार मुक्का कनिषा के चेहरे के ठीक बगल में बेड पर मारा....."तुम्हारी ये बेमतलब का नाटक देखने के लिए मेरे अंदर पेशेंस नही है,मैं अच्छी तरह जानता हूं की अगर पैसे दूं,तो तुम मेरे साथ एक बेड शेयर करने को भी तैयार हो जाओगी,क्योंकि तुम जैसी लड़कियों का कोई कैरेक्टर नही होता, बताओ मुझे अब क्या चाहिए जो इतना नाटक कर रही हो??"....


उसके मुक्के से कनिषा ने अपने चेहरे को दूसरी ओर मोड़ रखा था,और डर से उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थी,इशांक का हिंसक तरीके से चिल्लाना और बेड पर इस तरह पटकने से, उसकी आंखो के आगे कुछ पुरानी तस्वीरे उभार गया,जिनमे महज आठ साल की लड़की को उठा कर बेड पर पटक दिया गया था,और उसे मारने के लिए फर्श पर परदे की रॉड को घसीटा जा रहा था, डर से वो छोटी लड़की बेड पर रखे ब्लैंकेट के नीचे जा छुपी,जिसके बाद उसके कानो में एक औरत की आज पड़ी,जो की गुस्से से कह रही थी....."कनिषा, माय डियर लिटिल कनिषा,ब्लैंकेट से बाहर आ जाओ,वरना तुम्हारी न्यू मॉम अंदर आ जाएगी,फिर जानती हो ना क्या होगा? मॉम की अच्छी बेटी बनो और चुप चाप बाहर आ कर अपनी गलती की सजा भुगतो,फिर मॉम तुम्हे समझाएंगी की डैड से न्यू मॉम को शिकायत नहीं करनी चाहिए!".....


इतना सुनते सुनते ब्लैंकेट के अंदर डर से कांपती कनिषा को अपने पीठ पर रॉड से जोरदार चोट का एहसास हुआ,जो उसके नाजुक से छोटे शरीर पर असहनीय दर्द उभार गया,चीखते हुए जब वो अपने बचपन के ख्यालों से बाहर निकली आंखे मूंदे लगातार कहती रही....."नही!मैं डैड से कुछ भी नही कहूंगी,उन्हे कुछ भी नही बताऊंगी, प्लीज मुझे मत मारो!!".....

कनिषा की दोनो कलाइयों को एक हाथ पकड़ उसके सिर के ऊपर, बेड के अगेंस्ट दबाते हुए जब इशांक के कानो में उसकी सिसकने की आवाज पड़ी,तब ही कहीं जा कर उसने नोटिस किया की कनिषा का चेहरा सपाट और बोझल सा हो गया है,बल पड़े माथे से पसीने की बूंद धीरे धीरे कनिषा के गले की ओर सरक रही थी,और आंखे मिच कर बंद किए वो ना जाने खुद में ही क्या बड़बड़ा रही थी,ये सब देख इशांक ने अपनी पकड़ उस पर ढीली कर दी और पहले कुछ सेकंड तक उसे समझने की कोशिश करता रहा,लेकिन उस कोशिश का अंत उसने व्यंग्यातम मुस्कान के साथ की और कनिषा के जबड़े पर अपनी पकड़ बनाते हुए,उसके चेहरे को अपने ओर घुमाया,आंखे खोलने के बाद भी कनिषा का मिजाज ख़ौफ़ज़दा ही था,जिस पर बिना ध्यान दिए इशांक ने कहा....."जितनी दफा भी मैं तुम्हारे इन नाटकों को देखता हूं,मुझे नफरत होती है तुमसे,हजारों चेहरे की मालिक होती तुम लड़कियां,हर एक परिस्थिति के लिए एक नया चेहरा और तुम्हे लगता है,की मुझे तुम्हारा ये नाटक तुम्हारे प्रति नर्म कर देगा,तुम मेरे लिए वो गुड़िया हो जिसका इस्तमाल मैं हर रोज करूंगा और फिर एक दिन तुम्हे धक्के मार के अपनी जिन्दगी के बाहर कर फेंक दूंगा!"

इशांक के शब्दों से कनीषा वापस अपनी चेतना में लौटी तो उसने खुद को इशांक के नीचे दबा हुआ पाया,हालंकि इस बार उसके हाथ स्वतंत्र थे,इसलिए बिना कुछ जवाब दिए उसने इशांक के सीने पर हाथ रख, उसे खुद से दूर धकेलने चाहा,लेकिन इशांक का भारी भरकम शरीर टस से मस ना हुआ बल्कि इसके विपरित उसने उसके हाथों को वापस जकड़ लिया.....

"याद है तुमने एक बार भरी महफिल में मेरी रिपिटेशन को बर्बाद करने के लिए क्या कहा था?"....कनिषा का हिलना डुलना भी बंद करते हुए इशांक ने अपने शरीर को उसके बॉडी के विपरीत दबाया और फिर अपनी बात पूरी करने लगा....."मैं भले ही एलिजिबल बैचलर हूं तो क्या मैं अपनी हर रात एक नई लड़की के साथ बीतता होंगा, और कौन जान पता होगा इस बारे में,मुझ जैसे अमीरजादे को अपनी रंगीन रातों को छुपाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी,शायद एक फोन कॉल.....यही कहा था ना?".......

"आप क्या कह रहे मुझे कुछ समझ नही आ रहा, प्लीज छोड़िए मुझे,आप मुझे इस तरह ब्लॉक नही कर सकते,,आपकी कॉन्ट्रकैट में ये बात साफ साफ लिखा है की आप या आपसे शादी करने वाली लड़की किसी भी तरह से फिजिकली अट्चेड नही होंगे,और इस वक्त आप मुझे फिजिकली टौचर कर रहे है!"...... कनिषा ने कांपती आवाज में जबरदस्ती की दृढ़ता लाते हुए कहा,जिस पर इशांक ने कुटिलता से मुस्कुराया और कनिषा के होंठो तक झूंकते हुए बोला....."अगर मैं कॉन्ट्रैक्ट तोड़ देता हूं तो क्या फर्क पड़ जायेगा,जैसा की तुमने कहा था....मुझे अपनी इंटिमेट लाइफ छुपाने के लिए क्या लगता होगा सिर्फ एक फोन कॉल,फिर तुम कॉन्ट्रैक्ट की लाइंस कैसे याद दिला सकती हो,जबकि तुम ये बात अच्छे से जानती हो की मुझे अपनी इंटिमेट लाइफ छुपाना कितनी अच्छी तरह से आता है।"....