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परिचित
राजवीर फ़ोन उठाकर बोला, “हेल्लो !! हेल्लो !!” मगर उस तरफ से आवाज नहीं आई और एकदम से फ़ोन कट गयाI “लगता है भाई!! आपके दोस्तों को मेरी आवाज पसंद नहीं आईI” “इसके दोस्त बड़े काम के है!!!” जमींदार चिढ़कर बोलाI बिरजू ने कोई ज़वाब नहीं दियाI “सुन बिरजू !!! अगर तेरे दोस्त ऐसे ही तुझे तंग करते रहें तो मैं तेरा यह फ़ोन भी ले लूंगाI समझाI”
रात को बारिश होने की वजह से गॉंव में कोई भी छत पर नहीं सो पायाI बिरजू ने अपने कमरे में बिस्तर पर लेटे लेटे अपने फ़ोन पर अनजाने नंबर को देखकर सोचने लगा कि ‘यह ज़रूर निर्मला का नंबर है, मगर उसे इस समय फ़ोन करना ठीक नहीं होगाI” इसी सोच के साथ उसने करवट बदल ली और कुछ ही देर में उसे नींद आ गईI आज कई महीनो के बाद, वह बिना नशा किए चैन से सो रहा हैI
अगले दिन नन्हें अपने घर में ही बैठा पढ़ रहा है, तभी उसका ध्यान सोनाली पर गया, ‘[मुझे समझ नहीं आता कि मैं उसे कैसे बताओ कि मुझे उसका राजवीर के साथ दिखना बिलकुल पसंद नहीं है और वैसे भी सोना की हरकते देखकर लगता है कि वह मुझे सिर्फ अपना दोस्त मानती है, अगर उसे कुछ कहा तो वह मुझसे बात करना बंद कर देगीI’
दोपहर का समय है, बिरजू खेतों से फारिग होकर एक पेड़ के नीचे बैठा सुस्ता रहा हैI आसमान में धूप का नामो निशान नहीं है, सिर्फ बादल ही बादल हैI उसने आसमान की तरफ देखते हुए आँख बंद कर लींI तभी किसी की आहट हुई त उसने अपनी आँख खोली और देखा कि निर्मला हाथ में एक डिब्बा लिए खड़ी हैI उसे देखकर वह मुस्कुराया वो वह भी वहीं उसके पास बैठ गई, फिर डिब्बा खोले हुए बोली,
तुम्हारे लिए नारियल के लड्डू लाई हूँI
किस ख़ुशी में ?
क्योंकि मैं खुश हूँ, इसलिएI उसने अब डिब्बा खोला और बिरजू की तरफ कर दिया और उसने भी एक लड्डू अपने मुँह में डाला और उसका स्वाद लेते हुए कहा,” सचमुच यह तो बहुत बढ़िया हैI”
कल मैंने तुम्हें फ़ोन किया था पर तुम्हारे भाई ने फ़ोन उठाया थाI
मुझे लग भी रहा था कि वो तुम्हारा फ़ोन है पर मैंने रात का सोचकर तुम्हें वापिस फ़ोन नहीं कियाI तुम बताओ, सब ठीक है? तुमने अपने बापू को कुछ कहा??
उसकी ज़रूरत नहीं पड़ी, बारिश ने अपना काम कर दियाI उसने भी एक लड्डू मुँह में डालते हुए जवाब दिया I
क्या मतलब ?
बारिश की वजह से सारे रास्ते बंद है, ट्रैन भी रद्द हो गई हैI
मगर निर्मला यह सावन हमेशा साथ नहीं देगाI उसने अब एक लड्डू और उठा लियाI
जानती हूँ, लेकिन इतने समय में खुद को मजबूत करने में लगी हूँI अब बिरजू के चेहरे पर भी मुस्कान आ गईI
अब उसने बाद बदलते हुए कहा, “इतने अच्छे मौसम में तो नदी में नौका विहार करनी चाहिए और तुम यहाँ बैठे सुस्ता रहें होI”
तुम चलोगी? उसने उसकी आँखों में देखते हुए पूछाI
लेकिन गॉंव की नदी में नहींI निर्मला ने मुस्कुराकर कहाI यह सुनते ही बिरजू उठकर खड़ा गया और निर्मला भी अपने चेहरे को दुप्पटे में छिपायें उसके पीछे चलने लगीI
रिमझिम भी घर से अकेले निकलकर धौलपुरा गॉंव की तरफ जाने के लिए बस स्टैंड की तरफ जा रही है, उसे पता है कि बारिश की वजह से बस आसानी से नहीं मिलने वाली और अगर मिल भी गई तो शायद रास्ते बंद होने की वजह से उसे आधे रास्ते में ही उतरना पड़े इसलिए उसने अपने लिए कुछ और इंतज़ाम कर लिया हैI
बिरजू और निर्मला गॉंव के अंतिम छोर से दायी तरफ गए तो निर्मला ने देखा कि वहाँ झाड़ियों के बीचो-बीच झील बनी हुई हैI निर्मला हैरान होते हुए बोली, मैंने यह पहले कभी नहीं देखीं, अब बिरजू ने उसे हाथ दिया तो उसने वो थाम लिया और दोनों बड़ी ही सावधानी से झील के किनारे चल रही नाव पर सवार हो गएI
रिमझिम मुख्य सड़क पर पहुँच गई और बस स्टैंड पर खड़ी होकर, उसका इंतज़ार करने लगीI तभी कुछ सेकण्ड्स बाद, राजू ट्रेवल की वैन आकर खड़ी हो गईI रिमझिम उसमे बैठी तो राजू ने उससे कहा,
दीदी हो सकता है कि हमें घूमकर जाना पड़ेI
जैसे भी हो भैया आप मुझे वहाँ पहुँचा दोI मेरे लिए वहाँ जाना बहुत ज़रूरी हैI
ठीक है, समय लगेगा, लेकिन हम वहाँ पहुँच जायेगेI उसके मुँह से यह सुनकर उसे तस्सली हुईI
बिरजू और निर्मला नौका विहार कर रहें हैंI बिरजू नाव का चप्पू चला रहा है और निर्मला मुस्कुराती हुई आसपास देख रही हैI
तुम मुस्कुराती हुई अच्छी लगती होI
पूरे एक साल बाद मुस्कुराई हूँI निर्मला ने ज़वाब दियाI
अच्छा !! तुम और जमुना यही आते थें?
बहुत बार!! हमारा सावन तो बहुत बढ़िया गुज़रता थाI उसने एक आह ! भरीI
तुम्हें उससे प्यार कब हुआ?
पहली बार उसे गॉंव के मेले में देखा था और देखता ही रह गया था, उसके सामने मुस्कुराती हुई जमुना की तस्वीर आने लगी पर वह फिर कुछ सेकण्ड्स में उदास हो गया तो निर्मला ने उसे समझाते हुए कहा, उसे एक मीठी याद बनाकर रखोंगे तो उसकी याद कभी भी तुम्हें तकलीफ नहीं देगीI यह सुनकर, एक सकूँ उसके चेहरे पर उभर आया और वह बड़ी तेज़ी से चप्पू चलाने लगाI
राजू ने धौलपुरा के गॉंव के अंदर जाकर एक नाई की दुकान के पास वैन रोककर कहा, “दीदी यहाँ से आपको खुद जाना होगा क्योंकि पानी बहुत भरा हुआ हैI मैं आपका यही इंतज़ार कर रहा हूँI” “ठीक है, भैयाI मैं काम निपटते ही वापिस आ जाऊँगीI” उसने उसे आश्वस्त कियाI फिर वह संभलकर वैन में से निकली और अपनी सलवार हाथ से उठायें पानी के बीचो-बीच चलने लगीI आसपास के लोग उसको देखकर हैरान हो रहें हैं कि वह पानी भरे रास्तो से गुज़रकर कहा जा रही हैंI उसके कदम नीमवती के घर की ओर बढ़ते जा रहें हैंI वह भगवान से यही प्रार्थना कर रही है कि उसे नीमवती मिल जायेंI उसके घर के पास पहुँचकर उसके देखा कि दरवाजे पर ताला नहीं लगा हैI उसे थोड़ी रहत महसूस हुईI उसने अब दरवाजा खटखटाया और एक खटके के साथ ही उसके दिल की धड़कने तेज़ होने लगीI
लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो उसने एक फिर दरवाजा खटखटाया, “पता नहीं ये लोग दरवाजा क्यों खोल नहीं रहेंI” उसके यह सोचते ही उसे दरवाजा खुलने की आवाज आई तो वह अपने सामने नीमवती की कल्पना करने लग गईI