अनन्या और दिग्विजय को तो मदहोशी में यह पता ही नहीं चला कि यशोधरा दरवाज़ा खोलकर कमरे में अंदर आ चुकी है और उसने सब कुछ देख भी लिया है।
अब तक आपस में लिपटे वे दोनों अपने गंतव्य तक पहुँच चुके थे। यह दृश्य देखकर यशोधरा के मुँह से कोई आवाज़ ना निकल पाई। बस वह चक्कर खाकर वहाँ गिर गई।
यशोधरा के धड़ाम से गिरने की आवाज़ सुनकर वे दोनों एक दूसरे में लिपटे हुए उस तरफ़ देखने लगे तो उनके होश उड़ गए। सामने यशोधरा नीचे गिरी पड़ी थी। मतलब उसने अंदर आकर सब कुछ देख लिया था। अनन्या चादर लपेट कर कमरे से बाहर भागी और दिग्विजय कपड़े पहनकर यशोधरा के मुँह पर पानी छिड़कने लगा।
यशोधरा के गिरने की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसकी गूँज दूसरे कमरों तक भी पहुँच गई, क्योंकि जब यशोधरा गिरी, तो वहाँ रखा हुआ टेबल भी ज़ोर से गिरा और उस पर रखी शराब की बोतल और कांच के गिलास भी नीचे गिर पड़े।
इस आवाज़ से दिग्विजय के माता-पिता परम्परा और भानु प्रताप की नींद खुल गई। वे घबरा कर उठे और जब वे दिग्विजय के कमरे की ओर बढ़ रहे थे, तब उन्होंने अनन्या को चादर में लिपटे अर्ध नग्न अवस्था में कमरे से बाहर भागते हुए देख लिया। वे दोनों अंदर कमरे में गए तो उन्होंने देखा कि दिग्विजय यशोधरा को पानी छिड़क कर उठाने की कोशिश कर रहा था। उन्हें ख़ुद ही पूरा मामला समझ में आ गया।
भानु प्रताप ने दिग्विजय के नज़दीक आकर उसके गाल पर एक तमाचा रसीद करते हुए कहा, "तो हमारी पीठ पीछे तू यह सब कर रहा था? यह क्या कर दिया तूने? अरे पत्नी है ना तेरी? बच्चे भी तो हैं? फिर भी तुझे यह सब करते हुए शर्म नहीं आई। अरे वह तो बाहर वाली है उसे क्या? तुझे समझना चाहिए था कि तू ये क्या कर रहा है?"
इसी बीच यशोधरा को भी होश आ गया और वह अपनी सासू माँ से गले लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। उसने कहा, " अम्मा, मैं अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकूँगी, मैं अपने बच्चों को लेकर यहाँ से जा रही हूँ।"
यशोधरा ने दिग्विजय की तरफ़ देखकर कहा, "विश्वास का गला घोट दिया तुमने। मैंने तो तुम्हें भगवान माना था पर तुम तो पति बनने के लायक भी नहीं हो। मैं आज इसी वक़्त तुम्हारा त्याग करती हूँ; तन से, मन से और मेरे वचन से, अब तुम रहना उसी कुलटा के साथ। जिसने यह सब करने से पहले कुछ भी ना सोचा। अरे उसने क्या …तुमने क्यों कुछ नहीं सोचा। अरे अम्मा बाबूजी पर क्या गुजरेगी यह भी नहीं सोचा। तुमने तो मेरे जाने का भरपूर फायदा उठाया। "
आज दिग्विजय पर चढ़ा शराब और शबाब का पूरा नशा उतर गया। उसके माता-पिता भी उसके मुंह पर थूक कर कमरे से बाहर जाने लगे, तब यशोधरा की सासू माँ परम्परा ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले जाना ही ठीक समझा।
अंदर ले जाकर उन्होंने कहा, "यशोधरा, तुमने अपने अधिकारों को छोड़कर जाने का फ़ैसला कैसे ले लिया? यह तुम्हारा ही घर है और दिग्विजय पर भी तुम्हारा ही हक़ है। इस तरह से हार मान लेना उचित नहीं है बेटा। मुझे लगता है तुम्हें उस कुलटा को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। बेटा हम दोनों तुम्हारे साथ हैं।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः