Ardhangini - 51 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 51

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 51

जहां एक तरफ मैत्री जतिन की यादो मे खोयी हुयी अपनी मम्मी सरोज से लिपट कर सो रही थी वहीं दूसरी तरफ दूसरे कमरे मे राजेश के सीने पर सिर रखकर लेटी नेहा ने राजेश से कहा- आज पूरा दिन कितना अच्छा निकला ना...
राजेश ने कहा- हां... शादी से पहले तो जादा बात नही हो पायी थी जतिन के घरवालो से लेकिन आज इत्मिनान से आमने सामने बैठकर बात करके बहुत अच्छा लगा....

नेहा ने कहा- हां... आंटी जी तो बहुत ही हंसमुख हैं, बिल्कुल लगा ही नही कि मैत्री दीदी की ससुराल मे बैठे हैं हम लोग, बहुत ही सकारात्मक व्यवहार और बहुत जादा अपनत्व है उनमे, अंकल जी भी बहुत अच्छे हैं जादा नही बोलते पर हंसते रहते हैं....

राजेश ने नेहा को टोकते हुये कहा- अब अंकल और आंटी नही मौसी जी और मौसा जी बोला करो उनको...

नेहा ने कहा- हां... सही कह रहे हैं आप और मैत्री दीदी की खुशी को उनके चेहरे पर साफ साफ देखकर बहुत अच्छा लगा मुझे तो... और आज वो कानपुर मे हमारे जाने पर कितना खुलकर हमसे मिलीं थीं....

राजेश बोला- हां....
नेहा ने कहा- आपको याद है जब रवि से शादी के बाद मै और आप मैत्री दीदी को विदा कराने के लिये गये थे... तो कैसे रवि की मम्मी ने रुखे अंदाज मे कहा था "आप लोग कितनी देर मे मैत्री को लेकर जाओगे, मेरा सोने का टाइम हो रहा है" और मैत्री दीदी कितनी सहमी हुयी थीं उस दिन, उनके मुंह से आवाज ही नही निकल रही थी... इतना परेशान किया उन लोगो ने दीदी को...

नेहा की बात सुनकर राजेश हंसते हुये बोला- हाहा... अजीब ही लोग थे वो भी.... पता नही वो कौनसी मनहूस घड़ी थी जब मैत्री की शादी रवि से तय हो गयी थी, नेहा वैसे कहना नही चाहिये लेकिन अगर मैत्री... रवि के साथ ही होती आज भी तो जीवन भर घुट घुट कर जीती, हमेशा परेशान रहती... शायद भगवान से भी मैत्री का कष्ट देखा नही गया... इसीलिये.... ( अपनी बात कहते कहते राजेश रुक गया..)

दो मिनट चुप रहने के बाद राजेश ने कहा- चलो जो हुआ सो हुआ अब मेरी बहन सही जगह है... वो खुश है और भगवान उसे हमेशा खुश ही रखें और हमे क्या चाहिये....

इसके बाद गुडनाइट बोलकर राजेश और नेहा भी सो गये.... अगले दिन दोपहर मे लंच करने के बाद जब घर के सारे बुजुर्ग आराम करने के लिये अपने अपने कमरे मे चले गये तब मैत्री अपनी दोनो भाभियो के साथ ड्राइ़गरूम मे बैठकर बाते करने लगी... बातो बातो मे नेहा ने चुटकीले अंदाज मे मैत्री से कहा- बाकि सब तो बता दिया दीदी आपने पर ये नही बताया कि पहली रात जतिन भइया जी ने कोई गिफ्ट दिया या नही... 

नेहा की इस बात पर शर्मीली हंसी हंसते हुये मैत्री ने कहा - उस दिन तो उन्होने ऐसा गिफ्ट दिया मुझे जिसका कोई मोल नही है... वो अनमोल है..... 

मैत्री की बात पर चौंकते हुये सुरभि ने कहा- अच्छा... तो कहां है वो गिफ्ट हमे भी दिखाइये.... 

मैत्री ने नजरे झुकाकर मुस्कुराते हुये कहा- भाभी उस गिफ्ट को किसी को दिखाया नही जा सकता उसे सिर्फ मै महसूस कर सकती हूं.... 
सुरभि ने कहा- दीदी ऐसा क्या गिफ्ट था... 

मैत्री बोली- विश्वास..!! भाभी जतिन जी ने मुझे विश्वास दिलाया कि मेरा आत्मसम्मान उनके लिये सबसे बड़ा है, मेरी मर्जी की भी उतनी ही अहमियत है जितनी कि उनकी खुद की मर्जी की... वो मेरे कहने से पहले ही समझ जाते हैं कि मेरी क्या जरूरत है, वो मेरी मनस्थिति पढ़ लेते हैं.... वो मुझे समझते हैं, मुझे सम्मान देते हैं... मेरे ऊपर अधिकार नही जमाते बल्कि मुझे अधिकार देते हैं... उस घर पर, अपने जीवन पर और अपनी हर चीज पर... वो बहुत अलग हैं भाभी...  

मैत्री की बाते सुनकर नेहा और सुरभि दोनो समझ गयी थीं कि पति पत्नी के पहली रात के जिस संबंध की वजह से मैत्री दूसरी शादी को लेकर असहज महसूस कर रही थी उस बात को जतिन ने ना सिर्फ बहुत अच्छे से हैंडल किया बल्कि मैत्री के मन मे पिछली बातो को लेकर शादी के नाम पर बनी मैली परत को भी कहीं ना कहीं हटाकर अपनी जगह बना ली थी.... 

इसके बाद चूंकि मैत्री को कल वापस कानपुर जाना था तो शाम को राजेश और सुनील भी जल्दी घर आ गये थे ताकि वो मैत्री के साथ थोड़ा समय बिता सकें.... उनके शाम को घर जल्दी आने के बाद सबने साथ बैठकर चाय नाश्ता किया और हंसी खुशी के इस माहौल मे राजेश और सुनील दोनो अपने ताऊ जी, ताई जी और अपने पापा मम्मी समेत घर के सभी सदस्यो के साथ मॉल मे घूमने और मस्ती करने चले गये.. 

इधर कानपुर मे जतिन बेचैन सा हुआ कल आने वाले उस पल का इंतजार कर रहा था जब वो मैत्री से मिलने वाला था.... जतिन भी आज 6 बजे ही घर वापस आ गया था, घर आने के बाद उसने अपने मम्मी पापा से कहा- मम्मा पापा आइये चलते हैं थोड़ी शॉपिंग कर लेते हैं... मै सोच रहा था कि कल मैत्री को लेने जाना है तो खाली हाथ नही जाउंगा... 

जतिन की ये बात सुनकर उसके पापा विजय मजाकिया लहजे मे बोले- हां ये बिल्कुल सही बात है, मेरी दोनो समधनों के लिये जरूर कुछ ले लेना... उन दोनो से बनाकर रखना मेरा फर्ज है... 

विजय की बात सुनकर बबिता ने जतिन की तरफ देखकर कहा- देख रहा है जतिन... बुढ़ापे मे पर निकल रहे हैं इनके... (इसके बाद विजय की तरफ देखकर बबिता ने कहा) कभी मुझे भी लेकर दे दिया करो कुछ.... मुझे तो कभी एक गजरा भी लेकर नही दिया आपने... 

बबिता की बात सुनकर हंसते हुये विजय ने कहा- हाहा मुझे पता था कि तुम ऐसा ही कुछ कहोगी.... 

जतिन अपने मम्मी पापा के पास ही बैठा उनकी बाते सुनकर हंसे जा रहा था, वो कभी अपनी मम्मी की तरफ देखता तो कभी पापा की तरफ... अपने मम्मी पापा की बातो के मजे ले रहा जतिन ये सोच रहा था कि "कब वो दिन आयेगा जब मैत्री भी मुझसे इसी तरह हक जताते हुये प्यारी प्यारी लड़ाइयां करेगी, वो तो कुछ बोलती ही नही है... और बोलती भी है तो बहुत नपा तुला बोलती है" फिर जतिन ने सोचा... "करेगी करेगी मैत्री भी ऐसे बाते करेगी... अभी दिन ही कितने हुये हैं उसे यहां आये हुये... धीरे धीरे खुल जायेगी" ये सब सोचते सोचते जतिन ने कहा- अच्छा मम्मी आप दोनो भी तैयार हो जाओ मै भी नहा लेता हूं तब तक... 

इसके बाद तैयार वैयार होकर तीनो लोग बाजार चले गये... चूंकि राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि को पहले ही वो लोग सामान दे चुके थे तो बाजार से उन लोगो ने मैत्री के मम्मी पापा और चाचा चाची के लिये कुछ कपड़े खरीद लिये.... जहां एक तरफ जतिन कल मैत्री से मिलने को लेकर बहुत उत्साहित था वहीं दूसरी तरफ उसकी मम्मी बबिता और पापा विजय भी बहुत खुश थे इस बात को लेकर कि कल उनकी प्यारी बहू मैत्री मायके से वापस आ रही है, इसी खुशी के चलते बबिता ने मैत्री के लिये एक बेहद खूबसूरत साड़ी खरीद ली जो वो मैत्री को उसके घर वापस आने पर देने वाली थीं..... बाजार से सारा सामान खरीद कर और खाना खाकर जतिन अपने मम्मी पापा के साथ घर आ गया... 

घर आने के बाद सोने के लिये जतिन अपने बिस्तर पर लेट तो गया पर कल मैत्री से मिलने की खुशी के चलते उसकी आंखो से नींद जैसे बिल्कुल गायब हो गयी थी... अपने आसपास अपनी अर्धांगिनी मैत्री की उपस्थिति उसे एक अलग ही खुशी देती थी... 

इधर लखनऊ मे मैत्री का भी कुछ ऐसा ही हाल था... मॉल से घूमकर और थोड़ी शॉपिंग करके आने के बाद खाना वाना खाकर वो भी सोने के लिये अपनी मम्मी के बगल मे लेटी तो थी लेकिन उसका मन कल जतिन से होने वाली मुलाकात के लिये बेचैन था... मैत्री की बेचैनी के दो कारण थे... एक तो वो फिर से अपने मम्मी पापा से दूर जाने वाली थी दूसरा उसका जीवनसाथी दो दिन बाद उससे मिलने वाला था... लेकिन इस बार मैत्री के मन मे अपने मम्मी पापा से दूर जाने की बेचैनी तो थी पर वो दुखी नही बल्कि ये सोचकर खुश भी थी कि वो वापस से अपने उस घर मे जा रही थी जहां उसे इतना प्यार, मान सम्मान मिल रहा है.... 

जहां एक तरफ जतिन और मैत्री एक दूसरे से मिलने को लेकर बेचैन थे वहीं दूसरी तरफ आंख बंद किये लेटे जगदीश प्रसाद मैत्री की खुशी और उसकी बातो से झलक रही उसकी नये परिवार के प्रति संतुष्टि देखकर उसके वापस जाने के नाम से इस बार बिल्कुल दुखी नही थे बल्कि उन्हे भी कल के उस पल का इंतजार था जब वो अपने प्यारे दामाद जतिन से मिलने वाले थे.... इधर मैत्री के साथ लेटी उसकी मम्मी सरोज की मनस्थिति भी कुछ ऐसी ही थी.... वो भी जतिन से मिलने के लिये बहुत उत्सुक थीं...

क्रमशः