When the daughter was born dark skinned, she was poisoned........ in Hindi Women Focused by piku books and stories PDF | बेटी साँवली पैदा हुई तो जहर दे दिया........

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बेटी साँवली पैदा हुई तो जहर दे दिया........

हमारे गांव में एक कहावत बड़ी प्रचलित थी, जिसे घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें हर उस बहू को सुनातीं, जो पेट से होती। कहावत थी- "कथरी हो तो सुथरी, बिटिया हो तो उजरी।" मतलब कि कथरी यानी बिछौना साफ होना चाहिए और लड़की गोरी होनी चाहिए।

बहुत साल पहले एक अंग्रेजी अखबार में छपे फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन की टैगलाइन थी "द वर्ल्ड इज नॉट फेयर, यू बी फेयर।"

आपको याद होगा कि 2020 में अमेरिका के मिनिसोटा में एक गोरे पुलिस वाले ने एक काले आदमी के सिर को अपने जूते से दबाकर उसे जान से मार डाला था और इसके बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया में रंगभेद और नस्लभेद के खिलाफ आवाज एक बार फिर बुलंद हुई थी। उस घटना के बाद फेयरनेस क्रीम बनाने वाली कंपनी यूनीलीवर ने अपने प्रोडक्ट्स के विज्ञापन में फेयरनेस और व्हाइट जैसे शब्दों का इस्तेमाल न करने का फैसला लिया।

कभी 'फेयर एंड लवली' के नाम से जानी जाने वाली क्रीम आज इंडिया में 'ग्लो एंड लवली' के नाम से बिकती है।

लेकिन क्या क्रीम का नाम बदल देने से हमारा समाज बदल गया। गोरेपन के लिए हमारा पागलपन बदल गया। लड़कियों पर गोरे, सुंदर दिखने का दबाव कम हो गया। प्रोडक्ट का नाम बदल देने से आखिर हुआ क्या?

पिछले हफ्ते आंध्र प्रदेश में एक आदमी ने अपनी 18 महीने की बेटी को जहर देकर मार दिया। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका रंग सांवला था। बच्ची जब पैदा हुई तो उसका रंग बहुत दबा हुआ था। पहले तो पति लड़की पैदा होने से दुखी था, लेकिन यह जानकर तो वह आपा ही खो बैठा कि पैदा हुई लड़की का रंग काला है। उसने कभी बच्ची को गोद में नहीं खिलाया, कभी प्यार नहीं किया। हमेशा दुत्कारता ही रहा, काली होने का ताना देता रहा और फिर एक दिन मौका पाकर बच्ची को जहर दे दिया।

उस बच्ची को तो पता भी नहीं था कि वो काली है या गोरी। सुंदर है या कुरूप। उसकी कहानी तो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई। लेकिन जो सांवली लड़कियां पैदा होते ही नहीं मार दी जातीं, उनके साथ भी दुनिया कैसा सुलूक करती है।
नीचे दी कुछ घटनाएं अखबारों की हेडलाइंस हैं।

- साल 2014, गुड़गांव। एक 29 साल की महिला ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके रंग को लेकर पति उसका मजाक उड़ाता था। उसे काली कहकर प्रताड़ित करता था।

साल 2019, राजस्थान। एक 21 साल की लड़की ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसका पति उसके सांवले रंग को लेकर उसे लगातार प्रताड़ित करता था।

- साल 2019, झारखंड। दुमका में एक 19 साल की लड़की ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली क्योंकि उसका रंग सांवला था। क्लास की लड़कियां उसे चिढ़ाती थीं, घरवालों को चिंता रहती कि ऐसे रंग की लड़की को कौन ब्याहेगा।

- साल 2022, गुजरात। एक 25 साल की महिला ने अपनी नवजात बच्ची को मारकर खुद आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके ससुराल वाले उसे काली कहते थे और पति लगातार रंग को लेकर उस पर भद्दी टिप्पणियां करता था।

ये चार घटनाएं उस दुख, शर्म, अपमान और अफसोस के समंदर की चार बूंद भी नहीं हैं, जिसमें इस देश के बहुसंख्यक सामंती और मर्दवादी परिवारों की वो लड़कियां सिर से लेकर पांव तक डूबी हुई हैं, जो सुंदरता के तथाकथित पैमानों पर फिट नहीं होतीं।

आपने कभी सुना है कि किसी ने अपने नवजात बेटे को इसलिए मार दिया हो कि वो काला है, कुरूप है, दिव्यांग है। या और किसी भी वजह से किसी ने अपने लड़के की जान ली हो। सांवला, कुरूप, बदशक्ल, बदरंग कुछ भी होने पर जान हमेशा लड़की की ही जाती है। जन्म से पहले और जन्म के बाद भी मारा सिर्फ लडकियों को जाता है।

यह सिर्फ गोरेपन और सुंदरता के लिए हमारा पागलपन नहीं है। यह पागलपन इस बात का है कि लड़की को गोरा और सुंदर होना चाहिए। लड़का तो काला, सांवला, बदशक्ल, बदमाश कैसा भी चलेगा। लड़का हर हाल में हीरा है। उसे पलकों पर बिठाया और नाजों से पाला जाएगा। लड़की अगर काली हुई तो वह सबके लिए बोझ बन जाएगी।

भारतीय समाज और परिवारों के इसी बोझ को कम करने का दावा कर रहे होते हैं गोरा बनाने वाली क्रीमों के विज्ञापन। भारतीय टेलीविजन में गोरे बनाने वाली क्रीम और पाउडर के विज्ञापन बताते हैं कि लड़की फलां क्रीम लगाकर गोरी हो गई तो उसकी शादी हो गई। गोरे होने वाली क्रीम लगाकर इंटरव्यू देने गई तो उसे जॉब मिल गई, दफ्तर में प्रमोशन हो गया, वह कॉम्प्टीशन जीत गई। यहां तक कि हवाई जहाज उड़ाने वाली लड़की भी क्रीम लगाकर ही हवाई जहाज उड़ा पा रही है।

सच तो ये है कि कंपनी ने अपने प्रोडक्ट में से सिर्फ फेयर शब्द हटाया है। फेयर होने का आइडिया नहीं। फेयर अब भी डार्क से सुपीरियर है और विज्ञापन अब भी दावा कर रहे हैं कि फलानी कंपनी की फलानी क्रीम में सांवली, दुखियारी लड़कियों के हर सुख और सपने की चाभी है।

इस सुख का सपना कंपनियां बेच रही हैं क्योंकि ये दुख अब भी हमारी लड़कियों के जीवन में पहाड़ की तरह रखा हुआ है। शादी के विज्ञापन अब भी गोरी बहू की डिमांड कर रहे हैं। गर्भवती स्त्री अब भी इस उम्मीद में रोज नारियल पानी पी रही है कि होने वाला बच्चा अगर लड़की हो तो वो गोरी ही पैदा हो।

कंपनियां सिर्फ लड़कियों को मुंह गोरा करने का नुस्खा बताकर चैन से नहीं बैठीं। अब वो बता रही हैं कि कांख का कालापन कैसे दूर होगा, कोहनी और घुटने को गोरा बनाने की क्रीम अलग से लगाओ और यहां तक कि वेजाइना को भी गोरा बनाने की क्रीम बाजार में बिक रही है।

सिर्फ फेयर शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। लेकिन दावा इस काली अंधेरी जिंदगी में सबकुछ फेयर कर देने का ही है।

मदों को गोरी बीवी चाहिए, लड़कों को गोरी गर्लफ्रेंड चाहिए, बाप को गोरी बेटी चाहिए, सास को गोरी बहू चाहिए। मैनेजर को नौकरी देने के लिए गोरी रिसेप्शनिस्ट चाहिए। सबको गोरी लड़की चाहिए।लड़की से कोई नहीं पूछ रहा कि उसे क्या चाहिए।

उसे इज्जत और बराबरी चाहिए। आगे बढ़ने, पढ़ने, अपने पैरों पर खड़े होने का मौका चाहिए। संपत्ति में बराबर का हिस्सा चाहिए। समान अवसर चाहिए। उसे चाहिए कि उसका मूल्य, उसके होने की कीमत उसकी चमड़ी के रंग और चेहरे की सुंदरता से न तय हो। उसके दिमाग और काबिलियत से हो।

लेकिन ऐसा हो जाए तो पैट्रीआर्की का क्या होगा और अरबों मिलियन डॉलर के उस बाजार का क्या, जो सांवली लड़कियों को गोरे होने वाली क्रीम बेचने पर टिका है।