"यह असाइनमेंट तो जान की आफ़त ही बन गया है। कितना तो सिर खपा चुकी हूं, अब और क्या करूं समझ नहीं आता।" जाह्नवी ने झटके से किताबों का ढेर लाइब्रेरी की टेबल पर पटकते हुए कहा।
लाइब्रेरियन ने उसे गुस्से से घूरा और चुप रहने का इशारा किया तो वह सॉरी करते हुए बाहर लॉन में आकर बैठ गई। ज्योति भी उसी के साथ चली आई।
"सर का दिमाग़ तो बुढ़ापे में सटक चुका है। पर तू क्यों इतना लोड लेती है। उनके ज़माने में गूगल नहीं था तो हम क्या करें। सर्च कर ले न टॉपिक्स क्या परेशानी है? ज्योति की बात पर उसने ऐसे घूरा जैसे उसकी दिमाग़ी हालत पर शक हो।
"मैडम अगर आप क्लास अटैंड करतीं और थोड़ा सा ध्यान देतीं तो सुन पातीं कि सर ने स्ट्रिक्टली कहा है कि सारे असाइनमेंट एंटी प्लेगजरिज़्म सॉफ्टवेयर से चेक होंगे। एक लाइन भी कॉपी पेस्ट मिल गई तो रिजेक्ट कर दिए जाएंगे। मुझे मार्क्स स्कोर करना है। टॉप करना है। बस चलताऊ परसेंटेज से पास होकर नहीं बैठना है।" न चाहते हुए भी जाह्नवी ताना मार गई, जिसका उसे एहसास भी हो गया, तो वह झेंप सी गई।
लेकिन ज्योति की ख़ासियत ही यही थी कि वह चीज़ों का बहुत लोड नहीं लेती थी। वह हंसमुख खिलंदड़ सी लड़की थी, जो टॉप करने के पीछे नहीं पगलाई रहती थी। ठीक-ठाक परसेंटेज से पास होना और ज़िन्दगी को एन्जॉय करना उसके लिये काफ़ी था। उसके पापा का काफ़ी फैला बिज़नेस था और उसका बड़ा भाई रोहित भी इसी यूनिवर्सिटी में उसका सीनियर था।
जबकि जाह्नवी जब दस साल की थी, तभी उसके पापा गुज़र गए थे। उसकी मम्मी प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं। शुरू से ही उन्होंने उसकी पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया था, वह हमेशा ही टॉपर रही थी और अब उसका टारगेट बढ़िया पैकेज पर कैम्पस सिलेक्शन था।
"इसीलिये कहा जाता है, शिखर पर खड़ा व्यक्ति अकेला होता है।" ज्योति ने हिन्दी वाले प्रोफेसर की नक़ल उतारी।
"हां क्योंकि शिखर पर बस एक ही के खड़े होने की जगह होती है।" उन दोनों को पता ही नहीं चला, कब रोहित उनके पीछे आकर खड़ा हो गया था।
"क्या टॉपिक है जाह्नवी, मुझे बताओ।"
जाह्नवी को तो ऐसा लगा, जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। सीनियर की हेल्प मिल रही थी, वह भी बिन मांगे। उसने जल्दी से रजिस्टर खोलकर आगे बढ़ा दिया। बहुत सुंदर राइटिंग में व्यवस्थित रूप से बुलेट पॉइंट्स में टॉपिक लिखे थे। रोहित मुस्कुरा दिया।
"इनसे रिलेटेड तीन बुक्स हैं मेरे पास। सब मिल जाएंगे टॉपिक्स उनमें।"
जाह्नवी ख़ुशी के मारे चीख़ ही उठी। फिर अपने एक्साइटमेंट पर क़ाबू पाते हुए उसने पूछा, वह किताबें कब ले सकती है।
"अरे लास्ट ईयर की बुक्स अभी साथ लेकर घूमूंगा क्या। घर पर रखी हैं। कल ले आऊंगा।"
"लेकिन भैया कल सैटरडे है और मंडे को गवर्नमेंट हॉलिडे। तीन दिन का ऑफ है।"
जाह्नवी यह सुनकर एकदम परेशान हो गई। उसका मन ही बुझ गया। उसकी मम्मी स्ट्रिक्टली उसे किसी फ्रेंड के घर नहीं जाने देती थीं। बस यही एक प्रॉमिस उन्होंने उससे लिया था। वह जो, जब तक, जितना चाहे, जहां चाहे पढ़ सकती है, बस दोस्तों के साथ आउटिंग कीज़िद नहीं करेगी। कॉलेज से घर और घर से कॉलेज
जाएगी बस। ऐसा नहीं था कि उन्हें उस पर भरोसा नहीं
था, लेकिन उन्हें दुनिया पर भरोसा नहीं था। पति की
असमय मौत के बाद ससुर की गंदी नज़र और नीयत
ने उन्हें अपने ही ससुराल की छत से बेदखल कर दिया
था। अपना सम्मान बचाने एक जवान औरत दस साल
की बच्ची लिए पहली बार घर की दहलीज़ से बाहर
निकली थी, कभी न लौटने के लिये। अब उसे रिश्तों पर
भी भरोसा नहीं रहा था। इसलिये बेटी की सेफ्टी को
लेकर बहुत घबराई रहती थीं और जाह्नवी भी यह बात
अच्छे से समझती थी, इसलिए वह भी ऐसी कोई बेजा
ज़िद नहीं करती थी, जिससे परेशानी हो मां को। ज्योति
भी यह बात जानती थी।
"कोई बात नहीं जाह्नवी, मैं भैया की बुक्स में से टॉपिक्स के फोटो लेकर स्कैन करके तुमको व्हाट्सअप कर दूंगी।"
"गुड आइडिया। एक काम करो जाह्नवी, अपना व्हाट्सएप दो। मैं ही सेंड कर दे रहा बल्कि और भी कुछ मिलता है इससे रिलेटेड तो वह भी।" उसने जल्दी से अपना नम्बर नोट करा दिया।
वाक़ई कहे कि मुताबिक उसी रात रोहित ने सब टॉपिक्स के फोटो सेंड कर दिए थे। उसने भी जल्दी से थैंक्यू सो मच का मैसेज कर दिया था।
"अरे इतनी रात जाग रही हो, तुम भी निशाचर हो।"
"जी बस असाइनमेंट पर ही काम कर रही थी। गुड नाइट।"
जाह्नवी ने छोटा सा रिप्लाय किया। फिर रोहित ने एक फनी सी रील भेजकर कहा कि ब्यूटी स्लीप पूरी करो, डार्क सर्कल्स आ जाएंगे नहीं तो। इस पर जाह्नवी ने एक स्माइली भेजकर फोन रख दिया।
सुबह उठने पर उसने देखा, 4 मैसेज और थे, सभी रील्स और मीम थीं। उसने एक स्माइली और भेज दी। फिर दिन भर थोड़ी थोड़ी देर में मैसेज आते रहे। उसे उलझन होने लगी थी। छुट्टियों में अब चूंकि उसके पास मैटर भी था, वह असाइनमेंट कम्प्लीट कर लेना चाहती थी। पर अगर वह रिप्लाय नहीं करती तो रोहित को लगता कि उससे मतलब निकल गया तो भाव खा रही है। इसलिये उसने कुछ सोचकर फोन एयरप्लेन मोड में डाला और लिखने बैठ गई।
उसे लगा था, कॉलेज में रोहित ने अगर पूछा तो कह देगी, फोन की बैटरी डेड हो गई और चार्जर मिल नहीं रहा था। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। उसे देखकर वह मुस्कुराकर बाय करता हुआ अपनी क्लास में चला गया। अब जाह्नवी ने चैन की सांस ली।
रोहित अक्सर ही अब उसकी हेल्प कर दिया करता था, जिससे उसे पढ़ाई में काफ़ी आसानी हो गई थी। उसके मैसेज भी उसके फोन पर लगातार आते रहते थे। पर वह फनी ही होते ज़्यादातर। वह भी स्माइली बना दिया करती या हाहा रिएक्ट कर देती। कभी कभी वह नॉनवेज डबल मीनिंग मीम भी भेज देता, जिसे वह इग्नोर कर देती। अब इतनी हेल्प के बदले इतना तो वह कर ही सकती थी।
पर धीरे-धीरे रोहित उससे फ्री होता गया। अब उसके मैसेज ऐसे होते, जिन्हें इग्नोर करना उसके लिये मुश्किल होता जा रहा था।
"इधर बैठो बेटा। तुमसे कुछ बात करनी है।"
मम्मी ने कहा तो वह थोड़ा चौंकी।
"तुम तो आरती आंटी को अच्छे से जानती ही हो। उन्होंने ही मेरी जॉब लगवाई। शुरुआत में रहने को छत दी। तुम्हारा अपनी बेटी जैसा ख़याल रखा।"
"हां मम्मी। पर हुआ क्या है? आरती आंटी ठीक तो हैं
न? उनका बेटा शायद लंदन में पढ़ता है न? उन्हें कोई
हेल्प चाहिये? हम वहां जा रहे हैं?" जाह्नवी ने एक साथ
कई सवाल कर डाले।
"बल्कि इसके उलट है। उन्होंने पहले भी हमारी हेल्प की, अब भी हमारा भला ही चाहती हैं। रिश्तों पर मेरा जो भरोसा उठा था, उन्होंने थामे रखा है। उनका बेटा करण लंदन से वापस आ गया है। अपना स्टार्ट अप शुरू किया है, उसमें तुम्हारी हेल्प चाहता है और आरती मैम तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हैं। ऑफकोर्स अगर तुम्हें मंजूर हो तो। या तुम्हें कोई और पसन्द हो तो वह भी मुझे बता सकती हो। फ़ैसला तुमको ही करना है।"
"ऑफकोर्स नॉट ममा। आप जानती हैं, मैं इन सबसे बहुत दूर हूं। सच कहूं तो मैं शादी जैसे किसी रिश्ते की ज़िम्मेदारी उठाने के लिये खुद को तैयार नहीं मानती अभी। फिर भी अगर आप चाहती हैं तो...." जाह्नवी थोड़ा नर्वस हो गई थी।
"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम एक बार करण से मिल लो। कोई प्रेशर नहीं।" मां ने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फेरा।
करण उसकी सोच और नेचर के एकदम उलट बहुत बातूनी, हंसमुख और समझदार लड़का निकला। पहली मुलाक़ात में ही कोई इतना अपना सा कैसे लग सकता है, वह हैरान थी। उसका स्टार्ट अप आइडिया भी जाह्नवी को बहुत पसन्द आया। करण ने इतने सलीक़े से सब प्लानिंग और स्ट्रेटजी बनाई थी, जो समझने में लोगों को बरसों लग जाते हैं। जाह्नवी तो कम्पनी और अपने फ्यूचर के सपनों में खो ही गई थी। करण से बात करना इतना आसान था कि शुरुआती झिझक छोड़कर दोनों ही पुराने दोस्तों की तरह गप्पे लगा रहे थे। दोनों की मांएं भी बहुत खुश थीं।
रात के ढाई बजे थे। वह किताबों में सिर दिए थी कि फोन वाइब्रेट हुआ। टच करते ही व्हाट्सएप ओपन हो गया। रोहित ने फिर एक वाहियात सा जोक भेजा था। तभी उसका अगला मैसेज आया
"इतनी रात तक जागे क्या करती रहती हो। काटे नहीं कटते ये दिन ये रात और आंख मारती इमोजी थी।
"पढ़ रही थी। चलो सोने जा रही अब। बाय।"
"उफ़्फ़ 'चलो' सोने जा रही, यह इन्विटेशन है न, सोने बुला रही हो?"
"क्या बकवास बात है यह?" अब उसका दिमाग़ तप चुका था।
"हां, बकवास बात तो सच में है। तुम साथ होगी तो कौन कम्बख़्त सोएगा। हम तो रात भर जागेंगे और जगाएंगे।"
इसके बाद एक फ्रेंच किस वाला जेपीजी भेजा गया था। अब जाह्नवी की बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अगर वह पहले ही उसे को सख्ती से रोकती तो उसकी हिम्मत इतनी नहीं बढ़ती। उसने रोहित का नम्बर हर जगह से ब्लॉक किया और सोने चली गई। पर बार बार आंख भर आ रही थी।
अब वह ज्योति से भी कतराई सी रहने लगी थी। रोहित का सामना न हो, इसकी पूरी कोशिश करती थी।
करण से होने वाली बातों ने उसकी ज़िन्दगी में नए रंग भर दिए थे। वह कभी ऐसी कोई बात नहीं करता था, जिससे वह असहज हो जाए।
एक दिन करण उसे सरप्राइज़ देने यूनिवर्सिटी आ गया। जाह्नवी उसे देखकर बहुत खुश हो गई। दोनों कैंटीन में बैठे थे। उनको हंस हंसकर बातें करता देखकर रोहित को गुस्सा आ गया। करण के जाते ही वह छलांग मारकर जाह्नवी की टेबल पर आया।
"ओहो, डेटिंग-शेटिंग हो रही है। मैं पसन्द नहीं आया, यह दढियल अच्छा लग गया। मैच्योर सा दिखता है, नहीं...? बहुत ज़्यादा एन्जॉय कराता है?"
"शटअप रोहित..." जाह्नवी गुस्से से चीख़ना चाहती थी पर उसकी आंखों में आंसू भर आए और गला रुन्ध गया।
"ओ मैडम, ये रोने-धोने के ड्रामे न करो। और रोहित नहीं रोहित सर। सीनियर हूं तुम्हारा। पहले मुझे लगा, लड़की शरीफ़ है, नहीं परेशान करते इसे। लेकिन नहीं, लड़की का आशिक कोई और है। हमसे तो बस काम निकाला जा रहा था। अगर चाहती हो, हमारी दोस्ती और आशिकी दोनों चलती रहे, तो लास्ट पीरियड में मुझे लाइब्रेरी के पीछे मिलना। बात करेंगे, इश्क़ मोहब्बत से। नहीं तो हमारी इतने महीनों की सारी चैट्स के स्क्रीनशॉट्स वायरल कर दूंगा। सबको पता तो लगे, मैडम कैसे जोक्स एन्जॉय करती हैं।"
जाह्नवी को जैसे काटो तो खून नहीं। उसने सोचा भी नहीं था, घटिया, वाहियात मैसेज इग्नोर करते रहना उसे इतना भारी पड़ेगा। सब लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे। एक लड़का एक लड़की को आधी रातों को ऐसे मैसेज करता था। स्क्रीनशॉट्स तो फेक भी बनाए जा सकते हैं। करण क्या सोचेगा। उसकी मम्मी कैसे यह सब बर्दाश्त करेंगी।
तभी वहां करण आ गया। वह अपनी कार की चाबी टेबल पर ही भूल गया था। जाह्नवी की हालत देखकर उसने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा, "जाह्नवी क्या हुआ? क्यों इतनी परेशान हो? तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। ट्रस्ट मी।"
जाह्नवी ने रोते हुए सारी बातें बता दीं।
"मैं भूल गई थी करण कि मैं एक लड़की हूं। लड़कियों को हमेशा ही दबाया, डराया जाता है। उनको ही चरित्रहीन समझा जाता है।"
"नहीं जाह्नवी, डराया, दबाया उनको जाता है, जो कमज़ोर होते हैं। अपने लिये स्टैंड नहीं लेते। उनकी कमज़ोरी भांपकर उनको मैनिपुलेट किया जाता है। तुम्हें ज्योति को अवॉयड करने की बजाय उसे यह सब बताना था। अभी चलो उठो।"
करण सीधा रोहित के पास पहुंचा था।
"हां भाई, मेरा नम्बर ले लो और जो भी भेजना है, मुझे व्हाट्सप करो डायरेक्ट। लेकिन जाह्नवी से दुबारा किसी भी तरह कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की तो न सिर्फ़ यूनिवर्सिटी से निकाले जाओगे बल्कि जेल भी जाओगे। क्रिमिनल रिकॉर्ड बन जाएगा सो अलग।"
रोहित इस सबके लिये तैयार नहीं था। वह एकदम बौखला गया। करण की बात सही थी। उसने जाह्नवी को देखा, यह वह हैरान-परेशान सीधी सी नहीं बल्कि एकदम कॉन्फिडेंट लड़की थी। एकदम ही इतना चेंज कैसे? वह सोच रहा था।