शाम की हल्की परछाई पढ़ने लगी थी। दुर दुर खेतों में ओस जैसी धुंध छाई हुई थी। अभी पूरी तरह अंधेरा नहीं हुआ था। मैं अपने बिस्तर पर सर पकड़ कर लेटी हुई थी। मेरे सर में तेज़ दर्द था। वर्षा अपने घर के लोगों से फोन पर बातें करने में व्यस्त थी। वो अपनी बहन के साथ यही बातें कर रही थी के आज हमारे साथ कॉलेज में क्या हुआ। वह सब बताते हुए उसे तो बड़ी हंसी आ रही थी लेकिन मेरा मन बहुत बेचैन सा था। मन में एक खाली पन उतर रहा था जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती थी। मैं ने सोचा के मम्मी और लायला से फोन कर के बात करूं लेकिन मम्मी को मेरी आवाज़ से मेरे सर दर्द होने का पता चल जायेगा ये सोच कर मैं ने फोन नही किया। मैं नहीं चाहती के यहां आकार मैं बीमार पड़ जाऊं और मम्मी को मेरी चिंता सताए। मैं ने सोचा कब तक सहती रहूं जब सोते समय दवाई खाना ही पड़ेगा क्यों न अभी खा लूं। धीरे धीरे उठकर मैं ने अपने बैग से दवाई का डब्बा निकाला जिसमे हर तरह की दवाई मैं घर से साथ लेकर आई थी। मैं ने एक पेन किलर निकाल कर मुंह में रखा और बोतल उलट कर पानी पीने लगी। वर्षा मेरे पास आई और मुझे ठीक से देखते हुए बोली :" तुम्हें कुछ हुआ है क्या? क्या तबीयत खराब है या रोवन सर को उल्टा सीधा कहने की वजह से टेंशन हो रही है?"
मैं ने आधी ढलकी हुई पलकों से देखते हुए कहा :" नहीं यार मेरे सर में बहुत तेज़ दर्द है। अभी पेन किलर लिया है कुछ देर बाद दर्द कम हो जाएगा!... मैं पेन किलर लेना नहीं चाहती लेकिन सर दर्द बर्दाश्त ही नहीं होता!... तुम्हें पता है ये दर्द तो कम कर देता है लेकिन पेन किलर लेने का मतलब होता है कम कम मात्रा में ज़हर लेना! जितना ज़्यादा पेन किलर लिया जायेगा उतना ही यह अंदर जाकर लीवर और किडनी को डैमेज कर देगा। लगता है मैं अंदर से बहुत जल्द डैमेज होने वाली हूं!"
वर्षा मेरे सामने खड़ी हो कर बोली :" हां ऐसा सुना तो है।....टेंशन से ही तुम्हारे सर में दर्द हुआ होगा!... है ना?
"ऐसी कोई बात नहीं है मुझे कई तरह की एलर्जी है शायद इसलिए सर दर्द हो गया होगा और वैसे भी रोवन सर ने मुझे पागल समझा है और यह पहली बार नहीं है!... कई लोगों ने मुझे पागल समझा है इस बात से मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगता! यह मेरे लिए ही अच्छा है कि कोई मुझे पागल समझे!"
(मैं ने मुस्कुरा कर कहा)
वर्षा थोड़ी कंफ्यूज हो कर बोली :" लेकिन तुम दोनों के बीच हुआ क्या था कौन सी बात हुई थी? क्या तुम उनसे पूछने गई थी कि वह श्रापित हैं या कातिल है?"
"अब तुम भी मुझे पागल समझती हो क्या?.... मैं उनसे भला क्यों पूछने जाऊंगी!... मैं तो किसी और से बात कर रही थी और उन्हें गलतफहमी हो गई कि मैं उन्हें उल्टा सीधा बोल रही हूं इस लिए उन्होंने भी मुझे उल्टा सीधा सुना दिया!"
(मैं ने जवाब दिया)
वर्षा वकीलों की तरह सवाल करती हुई फिर से बोली :" लेकिन तुम किस से बात कर रही थी जब सर को गलतफहमी हो गई ?"
मेरे सर में पहले से ही दर्द था ऊपर से वर्षा के सवाल रुक नही रहे थे। मैं चिड़चिड़ी हो उठी और उकताहट से बोली :" अरे यार अब जाने भी दो!.. था एक बदतमीज लड़का मुझे ताक रहा था तो मैंने उसे डांट दिया बस खत्म करो अब बात को!"
"अच्छा अच्छा तुम आराम करो मैं कुछ खाने का मंगवाती हूं।"
ये कह कर वो बाहर चली गई।
आज मेरा दिमाग इतना थक चुका था की बड़े दिनों बाद मुझे 11:00 बजे तक नींद आ गई थी। जब रात को नींद ना आए तो रात काटना बहुत मुश्किल होता है। जब भी मैं कभी जल्दी सो जाती थी तो उठने के बाद दिन भर मेरा चेहरा खिला हुआ रहता और मैं खुश रहती सिर्फ इस लिए की मैं आज अच्छी नींद सोई। आज भी शायद मैं सुबह उठ कर इसी तरह खुश होती लेकिन मेरे ज़िंदगी के दो पहलू हैं। एक जिसमे मैं छोटी छोटी बातों से खुश रहती हुं दूसरा पहलू वो जिसमे सिर्फ मुसीबतें ही मुसीबतें होती। रात के दो बजे मेरी क़िस्मत का सिक्का पलट गया और मुसीबत वाला पहलू सामने आ गया। दो बजे रात को किसी ने मेरे पैरों की उंगली पकड़ कर ज़ोर से खींचा जिस वजह से मैं जाग उठी। मेरे आंखों के सामने ठीक मेरे पैर के पास वो सफेद साड़ी वाली औरत आ कर खड़ी थी।
उसने अपने बालों को दोनों कंधो पर आगे कर के रखा था और बड़ी बड़ी आंखें निकाल कर एक टक देख रही थी। शायद खुद को मेरे सामने ज़्यादा डरावनी दिखाने की कोशिश में थी।
मैं ने उसे देखा और आराम से उठ कर खड़ी हुई। मैं ने नींद की खुमारी मिली हुई आवाज़ से कहा :" कितने दिनों बाद मैं आज जल्दी सो पाई थी पर तुमने मेरी नींद खराब कर दी इसके लिए मैं तुम्हें माफ नही करूंगी!....तो तुम रोवन सर को छोड़ कर मेरे पास क्यों आ गई!... कोई बात करनी थी क्या ?"
जब उसने देखा के उसे देख कर मेरा रवैया बिल्कुल ही साधारण है। ना मुझे डर लग रहा है ना मेरे हाथ पैर कांप रहे हैं तो उसने शैतानी मुस्कान मुस्कुराते हुए कहा :" काफी निडर हो लेकिन नादान भी बहुत हो!.... तुम नहीं जानती की मैं तुम्हारे साथ क्या क्या कर सकती हूं।"
" हां इस लिए तुम दिन में मुझसे डर कर भाग गई थी! क्या क्या कर सकती हो ये मुझे जानना भी नहीं है।"
(मैं उसके बातों के बीच में ही बोल पड़ी)
उसने दांत पीसते हुए तैश में कहा :" उस समय मुझे लगा था कि तुम कोई तांत्रिक या काले जादू वाली हो क्योंकि कोई आम लड़की मुझे देख नहीं सकती इसलिए मैं वहां से चली गई थी लेकिन तुम्हारा पीछा करने के बाद मुझे पता चला के तुम तो एक नाज़ुक सी कली हो जिसके सर में दर्द भी होता है। जो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।"
"अच्छा!...तो करतब दिखाओ अपने!... मैं भी तो देखूं कि तुम क्या-क्या कर सकती हो!"
(मैं ने उसे चिढ़ाते हुए कहा)
मुझे मुस्कुराता देख वो गुस्से में फूलने लगी। तेज़ तेज़ सांसे लेते हुए हवा का तेज़ झौंका बन गई और मेरे अंदर प्रवेश करने के लिए मुझसे टकराई लेकिन प्रवेश होने के बजाए दूर फेंका गई और जा कर दीवार से टकरा कर धड़ाम से ज़मीन पर बैठ गई। मैं वोही खड़ी थी। मैं एक भी कदम आगे या पीछे नहीं हुई। वो बेहद हैरान थी। उसके माथे पर दुविधा की लकीरें उभर आई थी। उसने उठते हुए मुझे खा जाने वाली खूंखार नज़रों से देखते हुए कहा :" तुम कौन हो?.... क्या तुम कोई मायावी संसार से आई हो?"
"नहीं!... मैं एक इंसान ही हूं लेकिन थोड़ी सी अलग जिसमे बहुत सारा दिमाग है। तुम्हारी तरह खाली दिमाग की भूतनी नहीं हूं मैं!"
(मैं ने तेवर दिखाते हुए कहा)
मेरे इतना कहने पर वो चिल्ला उठी :" भूत नहीं हुं मै!... मैं तुम्हें तुम्हारी औकात ज़रूर दिखाऊंगी।"
"भूत नहीं हो तो क्या हो फिर?
मैं ने ताज्जुब से पूछा लेकिन उसने कोई जवाब नही दिया और फौरन गायब हो गई।
(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)