Devansh weds Darshna - 2 in Hindi Love Stories by piku books and stories PDF | देवांश वेड्स दर्शना.... - 2

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देवांश वेड्स दर्शना.... - 2

एक दिन दर्शना ने देखा, उनके घर का सारा सामान ट्रक पर लोड हो रहा था। जाने से पहले आंटी मिलने आई थीं उसकी मां से। दोनों सखियां गले मिल कर सुबक सुबक कर रोई थीं। पन्त आंटी बेहद शर्मिंदा थीं कि वो अपना दिया वचन पूरा नहीं कर सकीं। वो दुखी थी कि दर्शना उनकी बहू नहीं बन सकी। किसी ने खुल कर तो नहीं कहा लेकिन स्पष्ट था कि ये रिश्ता अब टूट चुका है। आंटी की पहनाई अंगूठी दर्शना की उंगलियों में सजी रही और वो उसके माथे पर एक तप्त चुम्बन दे कर हमेशा के लिए चली गईं। अंगूठी लेने, मांगने, उतारने का ख्याल किसी के मन में नहीं आया। देवांग के पत्र भी धीरे धीरे आने बंद हो गए। दर्शना अंधेरे में आंसुओं से डूबा अपना चेहरा टटोलती, हिचकियों को दबा लेती। भोगती रहती अपना अकेलापन और उसका जी करता इस दुःख से पलायन करने का कोई तो उपाय मिले।

जीवन तो आगे बढ़ता ही है। कुछ समय बाद एक सही
रिश्ता देख कर उसका ब्याह हुआ। पति के प्यार में
उमगती दर्शना दो प्यारे प्यारे बच्चों की मां बनी। धीरे
धीरे बत्तीस बरस बीत गए। कुछ साल पहले उसने बेटी
का ब्याह किया। छः महीने पहले वो नानी भी बन गई।
उम्र का उतार उसके चेहरे पर झुर्रियां बन कर पसरा।
बालों में सफेदी आ गई। आज भी कभी कभी उसकी
कल्पना में फौजी वर्दी पहने एक मासूम सा चेहरा हंसता
है लेकिन जल्द ही वो अपने घर परिवार और दुनियादारी
में व्यस्त हो जाती है। कुछ समय से उसने बेटे के लिए
रिश्ता देखना शुरू किया है। एक रिश्ता घर भर में सभी
को पसंद आ चुका है। होने वाले वर वधू जब कई बार
मिल चुके तब अर्जुन और दर्शना ने चाहा कि लड़की
और उसके परिवार वालों से मिल कर बात पक्की कर
ली जाये।


नियत समय पर वे लोग लड़की वालों के घर पहुंचे। सुरुचिपूर्ण तरीके से सजा हुआ सामान्य सा घर। अकेली बेटी और सहज सौम्य से दीखते माता पिता। बातचीत के दौरान दर्शना उनके घर के भीतर चली आई। भीतर कमरे में पैर रखते ही वो बुरी तरह चौंक पड़ी। दीवार पर बत्तीस बरस पहले के देवांग की तस्वीर टंगी थी जिस पर माला चढ़ी हुई थी। उस तस्वीर में देवांग ने वही स्वेटर पहना हुआ था जिसे दर्शना ने रातोंरात जाग कर बुना था।

"ये कौन...?," वो पूछ बैठी।

"ये मेरी दर्शना के पिता...."दर्शना की मां मधु उदास थीं, "मैं आपको बताने ही वाली थी कि दर्शना मेरे पहले पति की सन्तान है जो इंडियन आर्मी में कैप्टन थे। हमारे विवाह के तीन साल बाद ही वो एक आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हो गए। दर्शना तब बहुत छोटी सी थी और मेरे सामने पूरा जीवन पड़ा हुआ था। मेरे सास ससुर ने ही मेरा विवाह सुदीप के साथ करवाया,"

मधु कहती जा रही थी- "क्षमा कीजियेगा, मुझे आप लोगों को ये बात पहले ही बता देनी चाहिए थी। लेकिन जो भी हुआ उसमें मेरी बेटी का क्या दोष ?" उसकी प्रश्नसूचक आंखें सामने खड़ी प्रौढ़ा दर्शना पर टिकी थीं।

"क्या आपको पता है कि मेरा नाम भी दर्शना है," कहते हुए दर्शना हल्के से हंसी, "हमारा सौभाग्य होगा अगर आपकी बेटी हमारे घर बहू बन कर आती है।" वातावरण हल्का हो गया था।

"कैसा संयोग है कि मेरे पूर्व पति और आपके बेटे का नाम भी एक ही है 'देवांग'।" मधु अब सहज थी। ... और दर्शना सोच रही थी कि क्या ये सचमुच मात्र एक संयोग ही है? एक युग पहले दर्शना और देवांग जब बिछड़े थे तब बिछड़े थे लेकिन इस बार दर्शना और देवांग को नहीं बिछड़ने देगी वो। उन दोनों का मिलन ज़रूर होगा। पहाड़ों के एक छोटे से शहर में, बरसों पहले बिछड़े छूटे मकान में पता नहीं अब कौन रहता होगा? उसके थके दरवाज़े पर बरसों पहले एक लड़की ने अपने फ़ौजी का इन्तजार किया था। रूढ़ियों, नियति और परिस्थिति ने उन दोनों को अलग कर दिया था। लेकिन उनको तो मिलना ही था-तब नहीं तो अब। किसी दूसरे ही रूप में।

दर्शना ने अपनी होने वाली बहू को अपने कंगन उतार कर पहना दिए। साथ ही अपने पर्स में रखी एक मखमली डिब्बी में से बहुत पहले की संजोई हुई एक अंगूठी निकाली जिसके नग आज भी चमक रहे थे, दमक रहे थे। वो अंगूठी अपने हाथों से उसने अपनी बहू को पहना दी जैसे बरसों पहले पन्त आंटी ने उसे पहनाई थी। शायद ये उसी की अमानत थी।

हमारी श्वेतकेशी दर्शना कभी किसी को नहीं बताएगी कि उसका और मधु के पूर्व पति देवांग का क्या रिश्ता था। ये राज़ बस उसी के मन के किसी कोने में दबा रहेगा, हमेशा हमेशा ही। शादी पक्की हो चुकी थी। कुछ समय बाद ही दोनों घरों में शहनाइयां बजीं। विवाह के कार्ड पर लिखा था- देवांग वेड्स दर्शना। देवांग की मां आज सच में बहुत खुश थी।