उधर संजय के मन में उत्सुकता अभी भी बनी हुई थी,
क्या कहता मैं? याद है जब तुम्हें कोविड हुआ था। सारी सारी रात जागकर तुम्हारे पेपर मैं ही तैयार करता था? नारियल पानी, और दूसरे फल, और खाने का सामान, मां से झूठ बोलकर, मुंह अंधेरे ही तुम्हारे घर तक पहुंचा कर भी आता था क्योंकि, उसके बाद तो पुलिस की गश्त शुरू हो जाती थी...। याद है तुम हमेशा कहा करतीं थीं कि तुम किसी सरकारी कर्मचारी से ही शादी करोगी और तब मैंने सरकारी प्रतियोगिताओं की ही तैयारी शुरू कर दी थी" बहुत सी बातें कहने के बाद वो बोला, "बहुत सी बातें कहने की नहीं समझने की होती हैं। अगर मैंने नहीं कहा तो तुम ही कह देतीं "मैडम इंटेलिजेंट"
इतना सब सुनकर नेहा भी ख़ुद को रोक नहीं सकी थी। बोली, "हैरानी तो इस बात की है संजय कि, हर विषय पर आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला इतनी बड़ी कंपनी का सीईओ, एक लड़की के हावभाव और आंखों की भाषा नहीं पढ़ सका? कहने की कोशिश तो मैंने भी बहुत बार की थी पर, खुलकर कैसे कहती? आख़िर लड़की ही तो थी मैं"
"हर क्षेत्र में बराबरी का दावा करने में तो तुम औरतें एक पल का समय भी नहीं गंवाती और प्यार का इजहार करना हो तो..."संजय ने चिढ़ कर कहा
दोनों की आंखें इस समय बोल रही थीं। मगर शब्द थे कि जुबान पर आते आते ही रुक जाते थे। आज पहली बार दोनों को पता चला कि जिसे दिलोजान से चाहा, उनका वो पहला प्यार भी उन्हें ही प्यार करता था। वो दोनों हैरान थे, खुश भी थे और दुखी भी थे। उसके बाद बहुत देर तक मौन मुखर रहा। फिर सन्नाटे को बींधते हुए संजय ने बात शुरू की,
"तुम्हारे पति कैसे हैं?"
"वो बहुत अच्छे हैं..."
"और बच्चे"
" दो विपुल और साक्षी"
एक बार फिर, दोनों अपने अतीत को भूलकर वर्तमान में लौट आये। अपनी फ़्लाइट का एनाउन्समेंट सुनकर, संजय भावुक हो उठा था
"फिर कब मुलाक़ात होगी"
पता नहीं शायद जल्दी या शायद फिर कभी न हो।।"
उसके बाद सामान समेटकर बाय बोलना, मोबाइल नंबर एक्सचेंज करना, फ़्लाइट में बैठना, सब कुछ, जैसे सिलसिले से किसी मूवी की तरह ही हुआ।
घर पहुंचकर दीपकान्त ने राशि का गर्मजोशी से स्वागत किया फिर बोले,
"घर से चली जाती हो तो बहुत सूना सूना लगता है" सुनते ही राशि, दीपकान्त से लिपट गयी थी। फिर तो राशि बैग में से सबके लिए एक एक गिफ्ट निकाल कर देती गयी तो, बच्चों के कहकहों से पूरा घर गूंज उठा था।
"मम्मा आज हम मेड के हाथ से पका खाना नहीं खाएंगे। आपके हाथ से बनी पावभाजी खानी है" विपुल बोला
और साक्षी डोसे की फ़रमाइश कर रही थी, साथ में सांभर और चटनी भी ज़रूरी थी।
जल्दी ही दीपकान्त ने महसूस किया कि, हमेशा कम,
और नपा तुला बोलने वाली नेहा एकदम से बिंदास
और चंचल हो गयी थी। वो अक्सर नेहा को किसी से
फ़ोन पर बहुत देर तक बात करते सुनते तो सोचते, बिना
मतलब तो नेहा किसी से एक शब्द नहीं बोलती फिर
ये कौन है जिससे बात करते समय राशि का स्वर धीमा
और सीरियस हो जाता है...? सोशल नेटवर्किंग साइट
खोलते समय या वॉटसैप पर बातें करते समय भी वो
दूसरे कमरे में चली जाती थी। सबसे हैरानी इस बात
की थी कि, जिस सितार पर बरसों से धूल जमी थी उसे
पोंछ कर, उसके तारों को कस कर, नेहा के हाथ पूरे
घर को उसके मधुर स्वर से गुंजायमान कर रहे थे।
हालांकि संजय का धीरज जवाब दे रहा था फिर भी, नेहा में आया बदलाव उन्हें इतना अच्छा लग रहा था कि वो उसे टोकना नहीं चाह रहे थे। साथ ही उन्हें इस बात का मलाल भी था कि जो काम वो बरसों से शिद्दत से नहीं कर पाये वो इन चार दिनों के ऑफिशियल टूर में कैसे संभव हो गया?
इसी असमंजस में कुछ दिन और निकल गये। आख़िर एक दिन नेहा ने ख़ुद ही भेद खोला,
" दीप, जानते हैं मुंबई में मुझे संजय मिला था।"
" वो तुम्हारा एम बी ए का क्लास मेट"
"हां"