न भूली जाने वाली कुछ मीठी यादों के घेरे में बंध कर रह जाती हैं ज़िंदगी का वो पहला पाक एहसास
नेहा की फ़्लाइट कोहरे के कारण लेट हो गयी थी। "अब फ़्लाइट रात में साढ़े तीन बजे आएगी, तब तक जागना ही पड़ेगा"
उस ने एक नज़र अपनी कलाई घड़ी पर डाली फिर बेमन से सोचा, क्यों न एक चक्कर ड्यूटी फ्री शॉप का ही लगा लिया जाय। कम से कम समय तो कट ही जाएगा... दीपकान्त ने घर से निकलते वक्त एक अच्छी सी व्हिस्की लाने की फ़रमाइश की थी और परफ्यूम? अगर उसके स्टॉक में एक और जमा हो भी गई तो बुरा क्या है। बच्चों के लिए चॉकलेट्स भी ख़रीद लेगी"
यही सोच कर उसके कदम ड्यूटी फ्री स्टोर की तरफ़ चल बढ़ गये। व्हिस्की लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि नीले रंग के ब्लेजर की जेब से एक गोरा हाथ भी उसी शेल्फ पर आ लगा,
"ओह, आई एम सॉरी। आप ले लीजिए" नेहा ने नम्र स्वर में कहा
"नहीं नहीं, आप ही ले लें" कहते हुए संजय ने उसकी ओर देखा तो, दोनों ही चौंक पड़े।
"अरे तुम, यहां।?" दोनों के मुंह से एकसाथ निकला। फिर तो एयरपोर्ट का वो सूना कोना राशि और संजय के कहकहों, चुटकुलों और फ़्लैशबैक की बातों से खुशनुमा हो उठा था। विद्यार्थी जीवन में दोनों ही एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त रहे थे। बंबई जैसे ही महानगर में समुद्र की रेत पर बैठकर अपने नाम लिखना और फिर लिख कर मिटाना। प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए सिंहवी सर के घर जाना और उनके एक बार कहने पर, बारी बारी से प्रिंटर से प्रिंटआउट निकालना। नेहा को सब याद आने लगा था।
नेहा का, सितार पर संजय की फ़रमाइश पर धुनें बजाते बजाते अपनी उंगलियां घायल कर लेना। संजय का उसकी अंगुलियां देखकर बेंडएड लगाते हुए उदास हो जाना। संजय के एक बार कहने पर उसके लिये गाजर का हलवा और दही बड़े अपने हाथ से बना कर लाना, संजय भी अब तक कहां भूला था?
"तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाक़ात भी इसी तरह हुई थी। दिल्ली मॉल में, दोनों के हाथ इसी तरह एक ही किताब पर पड़े थे"। बातों ही बातों में संजय ने कहा, "हां, और तब तुम ही ने शिष्टता से कहा था," आप ही ले लीजिये"
"मुझे तो पहली ही मुलाक़ात में तुम बहुत अच्छे लगी थी" संजय के स्वर में प्रशंसा थी।" तुम्हारा ड्रेस सेंस, बातचीत का ढंग अद्भुत था"
"अगर अच्छी लगी थी तो तुम मेरी हर बात काट क्यों देते थे?"
"और तुम, हमेशा मुझ से झगड़े का बहाना ही क्यों ढूंढती रहती थी"
"हे ईश्वर, तुम अभी तक वैसे ही भोले भंडारी हो। मैं झगड़े का नहीं, बल्कि तुम्हें चिढ़ाने का बहाना ढूंढा करती थी। तुम्हारी आदत थी, टॉपिक छेड़ दो तो घंटों बोलते ही जाते थे और न छेड़ो तो चुप। अपने आप से तो कभी कोई बात तुम्हें सूझती ही नहीं थी। फिर भी, मेरी लाख कोशिशों के बावजूद भी कुछ बातें, जो तुम्हें कहनी चाहिए थीं कभी कही ही नहीं तुमने"
संजय ने बात पकड़ ली, "क्या नहीं कहा मैंने?"
नेहा घुमा फिरा कर, बात टालने की कोशिश करने लगी, लेकिन संजय, अपनी ही बात पकड़ कर बैठा रहा। जिस लड़की को उसने अपने दिल में बैठाकर कर रखा, मानसम्मान दिया वो उसे "भोला भंडारी" कैसे कह रही है?
"तुमने कई बार कहा था कि तुम, अकेले में कुछ कहना चाहते हो पर हम, जब भी अकेले में मिले तुमने कभी कुछ नहीं कहा"