Review of Prem Chandra's Story Mantra in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | प्रेम चंद्र कि कहानी मंत्र कि समीक्षा

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प्रेम चंद्र कि कहानी मंत्र कि समीक्षा

मंत्र तत्कालीन दो समाजों कि सामाजिक पारिवारिक पृष्ठभूमि विचार व्यक्तित्व के द्वंद कि कहानी है ।डॉ चड्डा जो पेशे से डॉक्टर है और उच्च जीवन शैली के आदि है जिसके कारण वह अपनी मूल जिम्मेदारी चिकित्सक के कर्तव्य कि भी बलि चढ़ाने से नही चूकते ।कहानी कि शुरुआत एव अंत दोनों ही मार्मिक एव संवेदनहीनता एव संवेदनशीलता के दो ध्रुवों के शांत टकराव किंतु झकझोर देने वाले परिणाम पर समाप्त होती है ।डॉ चड्डा गोल्फ खेलने के लिए तैयार होते है तभी डोली में अपने बीमार बेटे को लिए भगत डॉ चड्डा के पास आता है और बच्चे को बचाने की गुहार में #बूढे ने पगड़ी उतार कर चौखट पर रख और रो कर दी बोला एक नजर देख लीजिए लड़का है चला जायेगा सात लड़को में यही बचा है हुजूर हम दोनों रो रो कर मर जायेंगे आपकी बढ़ती होय दिन बंधु # डॉ चड्डा पर कोई फर्क नही पड़ता है और डॉ चड्ढा अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चल देते है।।डॉ चड्डा जैसे पढ़े लिखे समाज के संभ्रांत व्यक्ति कि संवेदनहीनता इसकहानी का एक पक्ष है जो आज भी सर्वत्र परिलक्षित होता रहता है।डॉ चड्डा के बेटे कि बीसवीं साल गिरह थी शहर के रईस हुक्काम कालेज के छात्र सभी जन्म दिन के उत्सव में सम्मिलित थे ।कहानी में एक तथ्य जो समझ के परे है डॉ चड्डा अनुशासित जीवन शैली के प्रसिद्ध सफल चिकित्सक है फिर भी अपने एकलौते बेटे को सांप जैसे खतरनाक प्राणि को घर मे ही पालने कि अनुमति कैसे दे देते है यह इस कहानी का कमजोर पक्ष है ।कैलाश डॉ चड्डा का इकलौता पुत्र जिसके जन्म दिन पर बेटे को सांप ने काट लेता हैबूढ़े भगत ने किसी भी स्थिति परिस्थिति में सर्प दंश से अपनी जानकारी एव क्षमता में किसी को मरने नही दिया लेकिन डॉ चड्डा के बेटे कि  सर्प दंश से मृत्यु से वह खासा विचलित हो जाता है उसे डॉ चड्डा का व्यवहार भयानक चेहरा और अपने बेटे कि वेदना वियोग एव उसकी स्वंय कि मानवीय संवेदना के बीच भयंकर मूक आत्मीय द्वंद संघर्ष चलता है जिस पर भगत कि विनम्रता मानवता एव करुणा भारी पड़ती है भगत कि बुढ़िया सोती रहती है और वह घण्टो पैदल चलते हुए हांफता हुआ डॉ चड्डा कि हवेली पहुंचता है और अपनी मंत्र कला से डॉ चड्डा के बेटे को सूरज की लाली निकलते ही जीवित कर देता हैऔर चिलम भर तम्बाकू तक नही लेता है।यह कहानी प्रासंगिक यक्ष प्रश्न खड़ा करती है ।क्या मानवता करुणा दया कमजोर मनुष्यो के समाज से ही जन्म लेती है? संभ्रांत सम्पन्न शक्तिशाली सिर्फ कठोरदम्भ अमानवीय एव धृष्ट कुटिल व्यवहारिकता कि अवनी कि ही उपज है ।इस कहानी का जीवंत पक्ष है अतीत कि घटना से वर्तमान को सार्थक संदेश देती है कहानी में आभिजात्य वर्ग और गरीबी कि सोच एव संवेदनाओं को भी उजागर करती है जो समाज को सोचने को विवश करती है और कुछ यक्ष प्रश्न खड़े करती है क्या मानवता गरीबी और शोषित कि दौलत पूंजी है जिसे अभिजात्य वर्ग कमजोर एव शोषित के लिए अनिवार्य मानता है अर्थात यह भी संदेश स्प्ष्ट होता है कि सबल सक्षम जो भी चाहे कर सकता है स्वंय कि स्वतंत्रता के लिए निर्णय ले सकता है जो सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोरों पर आधिपत्य के लिए उनकी शक्ति का सम्बल होता है ।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।