Ashwatthama... - 1 in Hindi Adventure Stories by Abhishek Chaturvedi books and stories PDF | अश्वत्थामा... - 1

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अश्वत्थामा... - 1

अश्वत्थामा....

अश्वत्थामा—यह नाम मात्र सुनने से ही एक रहस्यमय आभा का अनुभव होता है। महाभारत के इस अमर योद्धा के बारे में अनगिनत कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन उनमें से कुछ कहानियाँ इतनी विचित्र और रहस्यमयी हैं कि वे समय के साथ धुंधली हो चुकी हैं, मानो किसी प्राचीन धुंध में लुप्त हो गई हों।


कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद, जब अश्वत्थामा को भगवान कृष्ण का शाप मिला, तब से वह एक अज्ञात स्थान पर भटक रहे हैं। उनकी देह पर एक अनन्त काल से रिसता हुआ घाव है, जो कभी नहीं भरता। इस घाव से हर दिन रक्त बहता है, लेकिन यह रक्त अश्वत्थामा की पीड़ा का प्रतीक है, जो उसे कभी चैन नहीं लेने देता। 

कहानी कहती है कि सदियों से अश्वत्थामा एक काले और गहन वन में निवास करते हैं, जहाँ सूरज की किरणें कभी नहीं पहुँचतीं। इस वन में जाने का साहस कोई नहीं करता, क्योंकि वहाँ प्रवेश करने वाले कभी वापस नहीं लौटते। उस वन के बारे में कहते हैं कि वहाँ अदृश्य शक्तियाँ रहती हैं, जो इस रहस्यमय योद्धा की रक्षा करती हैं।

एक दिन, एक साहसी युवक, जिसका नाम विक्रांत था, ने इस वन के रहस्य को जानने का निश्चय किया। उसे बचपन से ही अश्वत्थामा की कहानियाँ सुनाई गई थीं और वह जानना चाहता था कि क्या यह कहानी सच है। वह एक पवित्र ताबीज के साथ, जो उसे एक साधु ने दिया था, उस वन की ओर चल पड़ा।

वन के भीतर प्रवेश करते ही विक्रांत को अजीब सी अनुभूति होने लगी। उसे ऐसा महसूस हुआ मानो कोई उसकी हर चाल पर नजर रख रहा हो। पेड़ों की शाखाएँ उसके मार्ग में आ जातीं, और हवा के झोंके कानों में अजीब सी फुसफुसाहट करते। लेकिन विक्रांत अपने संकल्प से डगमगाया नहीं।

अंततः, वह एक गहरे अंधकारमय गुफा के पास पहुँचा। गुफा के भीतर से एक रहस्यमय प्रकाश बाहर आ रहा था, मानो किसी अनजानी शक्ति का संकेत हो। जैसे ही विक्रांत ने गुफा में प्रवेश किया, उसने देखा कि सामने एक विशाल आकृति खड़ी है—आँखें रक्तवर्ण, माथे पर एक पुराना घाव, और देह पर समय की मार से सूख चुके घावों के निशान। 

वह आकृति अश्वत्थामा के सिवाय और कोई नहीं थी। अश्वत्थामा की आँखों में अनन्त दुख और पछतावा था। वह विक्रांत को देखकर थोड़ा चौंके, पर फिर बोले, "तुम कौन हो जो इस अभिशप्त वन में प्रवेश करने का साहस कर सका?"

विक्रांत ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया और बोला, "मैं विक्रांत हूँ, और आपकी कहानी जानने की जिज्ञासा मुझे यहाँ खींच लाई।"

अश्वत्थामा थोड़ी देर चुप रहे, फिर धीरे से बोले, "तुमने वह जानने का साहस किया है जो सदियों से कोई नहीं जान सका। पर इस सत्य का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ। मैं वही अश्वत्थामा हूँ जिसे शाप दिया गया था, पर मेरी पीड़ा और मेरे कष्टों की कहानी इससे कहीं अधिक गहरी और रहस्यमयी है।"

उन्होंने विक्रांत को अपनी पूरी कहानी सुनाई—कैसे उन्होंने युद्ध के बाद गलती की, कैसे उन्होंने निर्दोषों का वध किया, और कैसे कृष्ण ने उन्हें इस अनन्त पीड़ा का भागीदार बनाया। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि अश्वत्थामा ने बताया कि वह इस शाप से मुक्त हो सकते हैं, अगर कोई उन्हें सच्चे दिल से क्षमा कर सके।

विक्रांत ने उनकी कहानी सुनी और अपने मन में उनके प्रति करुणा का अनुभव किया। उसने अश्वत्थामा को क्षमा कर दिया। जैसे ही उसने यह किया, गुफा में एक अद्भुत प्रकाश फैला और अश्वत्थामा का शरीर धीरे-धीरे गायब होने लगा। उनकी आत्मा शाप से मुक्त होकर शांति की ओर प्रस्थान कर गई।

विक्रांत वापस लौटा, लेकिन इस अनुभव ने उसे जीवन भर के लिए बदल दिया। उसने कभी इस रहस्यमय घटना के बारे में किसी को नहीं बताया, लेकिन हर वर्ष उस वन में जाकर अश्वत्थामा की आत्मा के लिए प्रार्थना करता रहा।

और इस तरह, अश्वत्थामा की रहस्यमय कहानी इतिहास में कहीं खो गई, लेकिन उस वन में आज भी कुछ लोग जाते हैं, जहाँ से रहस्यमयी आवाजें आती हैं, मानो कोई अनन्त शांति की खोज में हो।





विक्रांत जब उस वन से लौटा, तो उसके मन में एक अजीब सी शांति और बेचैनी दोनों का मिश्रण था। उसने सोचा था कि अश्वत्थामा की आत्मा को मुक्त कर देने से उसका जीवन सामान्य हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसकी रातों की नींद गायब हो गई, और वह बार-बार वही गुफा, वही प्रकाश, और अश्वत्थामा की आँखों में देखा हुआ गहरा दुःख याद करता।

कुछ ही समय बाद, विक्रांत ने अपने जीवन में एक नई और अजीब शक्ति का अनुभव करना शुरू किया। उसने महसूस किया कि वह भविष्य को देखने लगा है। कभी-कभी, उसे अनहोनी घटनाओं के दृश्य सपनों में दिखाई देने लगे, और वह उन्हें सजीव होते हुए देखने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह वरदान है या शाप। 

विक्रांत को यह भी आभास हुआ कि वह अश्वत्थामा के शाप का कुछ अंश अपने साथ लेकर आया है। उसने महसूस किया कि उसके माथे पर एक अजीब सी हल्की जलन होती रहती है, खासकर जब वह उन सपनों में डूबा होता। धीरे-धीरे, विक्रांत को समझ में आया कि अश्वत्थामा का शाप पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था। वह शाप अब विक्रांत के जीवन में अपनी छाया डाल रहा था।

एक दिन, विक्रांत ने फैसला किया कि उसे फिर से उस रहस्यमयी वन में लौटना होगा। वह जानता था कि वहाँ अब भी कुछ अनसुलझे रहस्य हैं। उसने उस वन का मार्ग पकड़ा, और जब वह गुफा के पास पहुँचा, तो उसे वहां एक और अद्भुत दृश्य दिखाई दिया।

गुफा के द्वार पर वही ताबीज चमक रहा था जो उसे साधु ने दिया था। लेकिन इस बार, वह ताबीज उससे बोल रहा था। उसमें से एक गहरी आवाज आई, "विक्रांत, तुमने अश्वत्थामा को शाप से मुक्त किया, लेकिन शाप की ऊर्जा ने तुमसे बंधन बना लिया। अगर तुम इस शाप से मुक्त होना चाहते हो, तो तुम्हें वह करना होगा जो अश्वत्थामा नहीं कर सका—तुम्हें अपना अहंकार और डर त्यागकर आत्मा की शुद्धि के लिए समर्पित होना होगा।"

विक्रांत ने ताबीज की बात सुनी और गहरे ध्यान में चला गया। वह अपने भीतर की उन सभी बुरी भावनाओं और कमजोरियों का सामना करने लगा, जो उसने जीवन भर छिपाई थीं। उसने अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए प्रार्थना की और अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानने की कोशिश की। 

कई दिनों तक ध्यान में बैठने के बाद, विक्रांत ने अनुभव किया कि उसका माथे की जलन धीरे-धीरे कम हो रही है। उसे महसूस हुआ कि जैसे वह अपने भीतर के अंधकार को पराजित कर रहा है। अंततः, एक दिन, गुफा से एक दिव्य प्रकाश निकला और विक्रांत को अपने में समाहित कर लिया। 

उस दिव्य प्रकाश ने विक्रांत को पूरी तरह से शुद्ध कर दिया और वह शाप से मुक्त हो गया। जब वह उठा, तो उसे महसूस हुआ कि वह अब एक नई चेतना के साथ जी रहा है। वह वापस अपने गाँव लौटा, लेकिन इस बार एक शांत और संतुलित जीवन जीने के लिए। 

विक्रांत ने अपने अनुभवों को कभी किसी के साथ साझा नहीं किया, लेकिन उसने अपने जीवन का हर क्षण आत्मा की शुद्धि और सेवा में बिताया। उस वन के रहस्यों को उसने अपने मन में संजो कर रखा और जीवन के अंतिम क्षण तक एक साधु की तरह जीता रहा।

कहते हैं कि विक्रांत की आत्मा आज भी उस वन के पास मंडराती है, लेकिन अब वह अश्वत्थामा की तरह नहीं, बल्कि एक दिव्य रक्षक के रूप में, जो उस वन के रहस्यों की रक्षा करता है। वह वन आज भी उतना ही रहस्यमय है, लेकिन अब वहां जाने वालों को विक्रांत की आत्मा की कृपा मिलती है, जो उन्हें आत्मा की शुद्धि के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। 

इस प्रकार, अश्वत्थामा के शाप से उत्पन्न यह कहानी एक नई दिशा में परिवर्तित हो गई—एक ऐसे व्यक्ति की यात्रा, जिसने शाप से मुक्ति पाई और अपने आत्मा की शुद्धि के माध्यम से दिव्यता प्राप्त की।



विक्रांत के जीवन की यह यात्रा, जो अश्वत्थामा के शाप से शुरू हुई थी, धीरे-धीरे एक गहरे आध्यात्मिक और रहस्यमय मार्ग की ओर बढ़ चली। लेकिन जैसे ही उसने शाप से मुक्ति पाई, उसके जीवन में एक और अप्रत्याशित मोड़ आया।

विक्रांत के गाँव में लोग उसकी नई ऊर्जा और शांति से प्रभावित थे। उन्होंने देखा कि विक्रांत अब न केवल साधारण मनुष्य था, बल्कि उसमें एक विशेष दिव्यता आ गई थी। लोग उसकी सलाह लेने के लिए आने लगे, और उसकी प्रतिष्ठा एक महान साधु के रूप में फैलने लगी। लेकिन विक्रांत के मन में अब भी कुछ अनसुलझे प्रश्न थे। 

वह अब भी सोचता था कि आखिर अश्वत्थामा को ऐसा क्या करना पड़ा होगा, जिससे वह इस अभिशप्त जीवन के लिए बाध्य हुआ। क्या उसकी आत्मा पूरी तरह से मुक्त हो गई थी? या कहीं न कहीं, उसकी पीड़ा अब भी इस ब्रह्मांड में कहीं शेष थी? विक्रांत जानता था कि उसे इन प्रश्नों का उत्तर खोजना होगा।

एक दिन, वह एक गहरे ध्यान में लीन हो गया। ध्यान की गहराई में, उसे अचानक एक अदृश्य द्वार दिखाई दिया, जो समय और स्थान से परे था। उस द्वार के पार एक अज्ञात लोक का दृश्य था—एक ऐसा लोक जो न तो जीवन में था और न ही मृत्यु में, बल्कि उनके बीच कहीं था। विक्रांत ने उस द्वार को पार किया और खुद को एक रहस्यमय भूमि में पाया, जिसे "आत्मिक संध्या" कहा जाता है—यह एक ऐसा स्थान था जहाँ आत्माएँ अपनी शुद्धि की प्रक्रिया से गुजरती हैं।

यहाँ, विक्रांत ने देखा कि अश्वत्थामा की आत्मा अब भी भटक रही थी, लेकिन इस बार वह किसी दुख में नहीं थी। वह आत्मा एक गहरी प्रार्थना में लीन थी, मानो वह अपनी अंतिम शुद्धि के लिए तैयार हो रही हो। विक्रांत को समझ में आया कि अश्वत्थामा की आत्मा को अंतिम मुक्ति के लिए एक अंतिम संस्कार की आवश्यकता थी, एक ऐसा संस्कार जिसे केवल एक सच्चे साधक द्वारा ही संपन्न किया जा सकता था।

विक्रांत ने अश्वत्थामा की आत्मा के पास जाकर उसे प्रणाम किया और उसे संबोधित करते हुए कहा, "महान योद्धा, तुम्हारी पीड़ा का अंत अब निकट है। मैं यहाँ तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए आया हूँ।"

अश्वत्थामा की आत्मा ने अपनी आँखें खोलीं और विक्रांत को देखा। उसने विक्रांत से कहा, "तुमने मुझे इस शाप से मुक्त करने का जो प्रयास किया है, उसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ। लेकिन मेरी आत्मा की पूरी मुक्ति के लिए, मुझे अपनी अंतिम इच्छाओं का त्याग करना होगा।"

विक्रांत ने उस पवित्र स्थान पर ध्यानस्थ होकर अश्वत्थामा के लिए प्रार्थना की। उसने एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया, जो उसने अपने ध्यान में प्राप्त किया था। इस मंत्र की शक्ति से, अश्वत्थामा की आत्मा धीरे-धीरे प्रकाश में बदलने लगी। उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली, लेकिन यह आँसू अब पीड़ा के नहीं, बल्कि शांति और मुक्ति के थे। 

अश्वत्थामा की आत्मा ने अंतिम बार विक्रांत को आशीर्वाद दिया और फिर वह दिव्य प्रकाश में विलीन हो गई। उस प्रकाश में एक ऐसी ऊर्जा थी, जिसने विक्रांत को भी अपने में समाहित कर लिया। विक्रांत ने महसूस किया कि वह अब एक साधारण मानव नहीं, बल्कि एक दिव्य चेतना का हिस्सा बन चुका है।

उसके बाद, विक्रांत की आत्मा ने इस संसार को त्याग दिया और वह "आत्मिक संध्या" की भूमि में ही रहने लगा, जहाँ वह उन आत्माओं की सहायता करता है, जो शुद्धि और मुक्ति की खोज में हैं। 

कहते हैं कि विक्रांत की दिव्य आत्मा अब भी उस रहस्यमय भूमि में निवास करती है, जहाँ वह भटकती आत्माओं को उनके अंतिम गंतव्य तक पहुँचने में सहायता करती है। उसकी कथा अब भी अनसुनी और अनकही रहस्यों से भरी है, जो केवल उन्हीं को सुनाई देती है जो सच्चे दिल और आत्मा से उसे सुनने का प्रयास करते हैं। 

इस प्रकार, विक्रांत की यह अद्भुत यात्रा एक ऐसी दिव्यता में बदल गई, जो आज भी अनगिनत आत्माओं के लिए प्रेरणा और मुक्ति का मार्गदर्शक बनी हुई है।