Saathi - 12 - Last Part in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | साथी - भाग 12 (अंतिम भाग)

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साथी - भाग 12 (अंतिम भाग)

भाग -12

उस वक्त पहले वाले ने उससे कुछ नहीं कहा और दोनों चुपचाप ही वापस लौट आये. समय के साथ -साथ उस लड़के का उपचार चलता रहा. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच उसके कई टेस्ट भी हुए लेकिन सभी कुछ सामान्य ही निकला. ऐसे में यह पता लगाना और भी कठिन हो गया था कि ऐसी मानसिकता कोई मनोरोग है या कोई और ही मामला है. क्यूंकि मानसिक स्तर पर लड़का बहुत ही कुशल समझदार और पूर्णतः स्वस्थ पाया गया. काउंसलिंग के दौरान भी उसने सिवाय अपनी उलझन के ऐसी कोई बात नहीं बतायी या कही जिसके माध्यम से कहीं से भी ऐसा महसूस हुआ हो कि उसे कोई मानसिक समस्या है.

लेकिन अब धीरे धीरे वह लड़का अपनी उलझन से परेशान होने लगा है. अब उसने निश्चय किया है कि चाहे जो हो जाए, वह वही करेगा और वैसे ही जीयेगा जैसा उसका मन चाहता है. उसने लगभग इस बात कि घोषणा ही कर दी थी. फिर एक दिन पहले वाले ने उसे अपने घर पर रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया. दोनों साथ बैठे तो लग रहा था पिता पुत्र ही साथ बैठे हैं. उन दोनों के बीच का रिश्ता भी अब बॉस और कर्मचारी से उठकर इसी रिश्ते पर आ चुका था. अब पहले वाले को भी उस लड़के को देखकर यह विचार आने लगा था कि यदि उसका भी अगर बेटा होता तो शायद इसी उम्र का होता.

खैर दोनों साथ बैठे तो पहले वाले ने उस लड़के को ड्रिंक ऑफर किया. उसने भी हाँ कह दिया. दोनों ने एक एक बियर की बोतल उठाई और पीने लगे. लड़के ने पीते पीते कहा

'क्या अब भी आपको यही लगता है कि मेरी सोच एक मानसिक समस्या है..?'

कुछ देर शांत रहने के बाद, पहले वाले ने बियर का एक घूंट लेते हुए कहा,

'नहीं मुझे नहीं लगता कि यह कोई मानसिक समस्या है. तुम मेरे लिए मेरे बेटे जैसे हो और अब तो हम दोस्त भी है. है ना...! इसलिए आज मैं भी तुमको कुछ बताना चाहता हूँ. मैं भी तुम्हारे जैसी सोच वाला ही इंसान रहा हूँ. मुझे भी मेरे ही एक पुरुष 'साथी' से प्यार हुआ था. हम लोग बचपन से ही साथ रहे... बिलकुल एक व्यवहाहिक दम्पति की तरह रहे. कहते हुए उसने उस लड़के को अपने और दूसरे वाले के विषय में सभी कुछ बता दिया.'

लड़के ने जब यह पूरी कहानी सुनी तो उसने अपने फोन में अपने पापा की तस्वीर दिखाते हुए पूछा आपके 'साथी' कहीं यह तो नहीं...?

लड़के के फोन में दूसरे वाले की तस्वीर देखकर पहले वाला चौक गया.

'इसकी तस्वीर तुम्हारे पास कैसे...?'

लड़का मुसकुराते हुए बोला यह मेरे पापा हैं.'

क्या.....!!!!

जी...! पहले वाले के लिए अब आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा. उस लड़के की बात सुनने के बाद जैसे एक ही झटके में उसका सारा सुरूर उतर गया.

'तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया...?'

'पहले कभी कोई ऐसी बात निकली ही नहीं तो मैं आपको क्या बताता, लेकिन मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है क्यूंकि मेरे पापा ने मुझ से आज तक कुछ नहीं छिपाया है आपके विषय में भी मैं जनता था. लेकिन उनके 'साथी' आप ही निकलेंगे यह मुझे पता नहीं था'.मेरे पापा ने आपको कभी कोई धोखा नहीं दिया. आपके साथ कोई छलावा भी नहीं किया क्यूंकि उन्होंने मेरी माँ से शादी नहीं की थी और ना ही उनके बीच मुझे इस दुनिया में लाने का कोई प्लान था. मेरा आना तो महज एक हादसा था उन दोनों के लिए. फिर भी उन्होंने मुझे अपनाया, मेरी परवरिश की, वह आपको सब बताना चाहते थे. लेकिन आपने उनकी बात कभी शांति से सुनी ही नहीं. उलटा उन्हें सजा दी, उनका दिल दुखाया. ऐसे इंसान के साथ जो हुआ और जो कुछ भी आपने किया क्या वो सही था..?'

लड़के की बातों को सुनने के बाद पहले वाले को अपनी गलती का एहसास हुआ. अगले दिन वह उस लड़के साथ उसके घर पहुँचा दूसरे वाले ने दरवाजा खोला तो वह दोनों को साथ देखकर देखता ही रह गया. फिर उसने दोनों को अंदर बुलाया. अंदर आने के बाद लड़के ने कहा

'आप दोनों आपस में बात कीजिये....! मुझे कुछ काम है, मैं अभी आता हूँ. कहकर वह तुरंत ही बाहर चला गया.

इधर इन दोनों के बीच बहुत देर तक खामोशी ही छाई रही. कोई किसी से कुछ नहीं बोला. फिर दूसरे वाले ने ही चाय के लिए पूछा. तो पहले वाले ने मना करते हुए कहा

'नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए. सिवाय तुम्हारी माफ़ी के मुझे माफ़ कर दे यार...!!! मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गयी.. हालांकि मैंने इतनी गलतियां की है कि अब तो मुझे तुम से माफ़ी माँगने भी शर्म आरही है....मैं बहुत शर्मिंदा हूँ कहते हुए पहले वाला भावुक हो उठा.'

दूसरे वाले ने उसे संभालते हुए गले से लगा लिया और कहा

'जाने दो जो हुआ सो हो गया. मुझे तुझ से कोई शिकायत नहीं है यार, तेरी जगह मैं होता तो शायद मैं भी ऐसा ही करता. इस सबके लिए तुझे शर्मिंदा होने की या मुझ से माफ़ी माँगने की कोई ज़रूरत नहीं है.'

दोनों एक दूसरे के गले लगाकर बहुत रोय. फिर कुछ देर सँभालने के बाद उस लड़के के विषय में बात करने लगे. तब पहले वाले ने दूसरे वाले के सामने यह कबूल किया कि उसे भी उससे मिलने के बाद अब समझ में आता है कि संतान का मोह क्या होता है, उससे जुड़ाव क्या होता है, वरना अपनी तो ज़िन्दगी यूँ ही अकेले बीत जाती.

'हाँ सो तो है...! इतने में वह लड़का भी घर लौटकर आ जाता है और पूछता है

'अरे आप गए नहीं अभी तक....?

अब जाने का मन नहीं करता बेटा...!

क्या कहा आपने..!! एक बार फिर से कहिये.

बेटा....! तो पापा अब मैं इन्हें क्या बुलाऊं...? और सभी ठहाका मार कर हँस दिए और तब उसके पापा अर्थात दूसरे वाले ने कहा

'तुम इन्हें बड़े पापा कह सकते हो बेटा.' तब से सभी पहले वाले के घर साथ साथ रहने लगे.

फिर एक दिन पहले वाले ने अपने धर्म पुत्र से कहा 'बेटा तू जैसे जीना चाहता है वैसे जी, कोई जरूरत नहीं है किसी से डर के या दब के जीने की...! तू करवाले ऑपरेशन जितना खर्चा होगा मैं देख लूँगा.

पापा...!

हाँ बेटा ऐसे घुट घुटकर जीने से तो अच्छा है तू वो कर जो तुझे अच्छा लगता है... और इस प्रकार दो समलैंगिक दंपतियों को भी उनकी संतान के रूप में एक सम्पूर्ण परिवार मिल गया. और फिर एक दिन वही लड़का एक और लड़के साथ भी पाया गया ...