Tilismi Kamal - 9 in Hindi Adventure Stories by Vikrant Kumar books and stories PDF | तिलिस्मी कमल - भाग 9

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तिलिस्मी कमल - भाग 9

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य पढ़ें .....................🙏🙏🙏🙏🙏




गुफा के बाहर आने के बाद राजकुमार ने राहत की सांस ली । अब वह खतरे से बाहर था । कालीन अब तेज गति से उड़ रहा था और काफी ऊंचाई पर था । वह काफी समय तक उड़ता रहा और अंत मे एक ऊंची चट्टान के पास जाकर रुक गया ।

राजकुमार कालीन से नीचे उतर आया । यह काफी ऊंचा एक चट्टानी टीला था , जिसका ऊपरी भाग समतल था । और यँहा से टापू का अधिकांश भाग साफ दिखाई दे रहा था ।

राजकुमार टीले के एक सिरे पर खड़ा हो गया और इधर उधर नजरें दौड़ाने लगा । इस समय पूरे टापू पर दिन का प्रकाश फैला हुया था । और टापू की सभी चीजें साफ दिखाई दे रही थी । टापू पर न तो पेड़ पौधे थे और न ही हरियाली थी । चारो तरफ ऊंची ऊंची चट्टाने बनी थी ।

अचानक राजकुमार की नजर लंबे चौड़े शरीर वाले एक राक्षस पर पड़ी । राक्षस का आकर राजकुमार से पचास गुने से भी अधिक था और उसके शरीर पर बड़े बड़े बाल थे ।

दैत्याकार राक्षस हाथी जैसे विचित्र जीव को दोनो हाथों में पकड़े जिंदा ही नोच नोच कर खा रहा था ।राजकुमार का दिल दहल गया । यह विचित्र जीव संभवतः वही था जो कुछ समय पहले गुफा में उसके साथ था ।

राजकुमार को इसी दैत्याकार राक्षस से टकराना था , किन्तु राक्षस से भिड़ने के पहले उसे उस वृक्ष का पता लगाना था , जिस पर तिलिस्मी फल लगता था ।

अतः राजकुमार चुपचाप यह दृश्य देखता रहा । दैत्याकार राक्षस विचित्र जीव को धीरे धीरे हड्डियों सहित चबा गया । इसके बाद वह मुँह फाड़ कर डकारा और तेजी से एक ओर चल पड़ा ।

राजकुमार ने उड़ते टापू का एक बार पुनः चक्कर लगाया । किन्तु उसे कही भी कोई वृक्ष नही मिला । अचानक उसके मन में एक विचार आया और उसने दैत्याकार राक्षस का पीछा करने का निश्चय किया ।

राजकुमार ने कालीन को दैत्याकार राक्षस का पीछा करने का आदेश दिया और उस पर सावधान होकर खड़ा हो गया । कालीन ने कुछ ही पलों में राक्षस को ढूंढ निकाला । इस समय वह लंबे लंबे पैर बढ़ाता हुया एक गहरी खाई में उतर रहा था ।

राजकुमार चुपचाप दैत्याकार राक्षस का पीछा करता रहा । अचानक राजकुमार को लगा राक्षस का आकार घट रहा है । राजकुमार ने ठीक ही देखा था । दैत्याकार राक्षस जैसे जैसे खाई में उतरता जा रहा था , उसका आकार छोटा होता जा रहा था और कुछ ही देर में राजकुमार के बराबर ही रह गया ।

तभी राजकुमार की नजर लाल रंग के एक वृक्ष पर पड़ी , जिस पर हरे रंग का एक फल लगा हुया था । राजकुमार का चेहरा खुशी से खिल उठा । उसे इसे वृक्ष की तलाश थी । इसी  वृक्ष के फल के लिए ही तो वह उड़ते टापू  तक आया था ।

तभी एक और चमत्कार हुया । छोटे आकार के राक्षस ने वृक्ष का तिलिस्मी फल तोड़ा और खा गया । फल खाते ही राक्षस का शरीर पुनः बढ़ने लगा और फिर कुछ ही पलों में वह पहले के जैसा दैत्याकार राक्षस बन गया ।

राजकुमार समझ गया कि दैत्याकार राक्षस एक सामान्य राक्षस था , जो तिलिस्मी फल खाकर दैत्याकार राक्षस बन जाता था । इस फल का असर केवल एक दिन रहता है , अतः राक्षस को प्रतिदिन एक फल खाना पड़ता था ।

फल खाने के बाद राक्षस इतना शक्तिशाली हो जाता था , कि उसे मारना सम्भव नही था । राजकुमार यही सब सोच ही रहा था कि तभी दैत्याकार राक्षस की नजर राजकुमार पर पड़ी ।

दैत्याकार राक्षस राजकुमार को आकाश में उड़ता देख कर एक पल के लिए तो चकित हुया । किन्तु दूसरे ही पल उसकी आंखें अंगारे बरसाने लगी ।

दैत्याकार राक्षस क्रोध से चीखते हुए एक छलांग लगाई और राजकुमार को कालीन खींचकर जमीन पर गिरा दिया । राजकुमार ने इस आकस्मिक आक्रमण की कल्पना भी नही की थी । ऊंचाई से गिरने के कारण उसके शरीर में कई जगह गहरी चोंटे आई फिर भी वह उठ खड़ा हुया और अपनी तलवार संभाल ली ।

दैत्याकार राक्षस दहाड़ते हुए राजकुमार से बोला - " कौन है तू ? गुफा के बाहर कैसे निकला ? "

" राक्षसराज ! मैं राजकुमार धरमवीर हूँ । मैं तुम्हारे टापू का तिलिस्मी फल लेने आया था । " - इसके साथ ही राजकुमार ने तिलिस्मी कमल और वनदेवी की पूरी कहानी भी राक्षस को सुना दी ।

" मूर्ख राजकुमार ! उड़ते टापू पर आने वाला कोई भी व्यक्ति आज तक जीवित नही लौटा है और तूने तो वृक्ष के तिलिस्मी फल का रहस्य भी जान लिया है , अतः तेरा यहाँ से जीवित लौटना असम्भव है । " - इतना कहते हुए दैत्याकार राक्षस ने एक बड़ी चट्टान उखाड़ी और राजकुमार की ओर उछाल दी ।

राजकुमार ने चट्टान अपनी ओर आते दिखी तो कांप उठा ।उसे लगा कि उसका अंतिम समय आ गया है । उसने भय से आंखे बंद कर ली और मरने के लिए तैयार हो गया ।

तभी एक चमत्कार हुया । उड़ने वाला कालीन बिजली की गति से आया और राजकुमार को उठाकर आकाश में उड़ गया ।

दैत्याकार राक्षस वार खाली जाता देखकर क्रोध से आग बबूला हो गया । उसने पुनः एक चट्टान उखाड़ी और राजकुमार की ओर फेंक दिया किन्तु इस बार भी वार खाली गया ।

कालीन इतनी ऊंचाई पर था कि वहाँ तक चट्टान पहुंच ही नही सकती थी । दैत्याकार राक्षस का क्रोध और बढ़ गया । अब वह बड़ी बड़ी चट्टाने उखाड़ कर राजकुमार पर बरसाने लगा ।

राजकुमार अभी तक आंखे बंद किये मौत की प्रतीक्षा कर रहा था , किन्तु जब उसने अपने आपको सुरक्षित पाया तो आंखे खोल दी ।

राजकुमार को अपने जीवित बच जाने पर आश्चर्य हो रहा था ।। किन्तु जब उसने कालीन को और दैत्याकार राक्षस को चट्टाने बरसाते देखा तो शीघ्र ही सब उसके समझ में आ गया।

राजकुमार को एक बात समझ मे तो आ गई थी कि जब तक दैत्याकार राक्षस छोटा नही हो जाता तब तक उसे मारा नही जा सकता है , किन्तु वह अकारण किसी की हत्या नही करना चाहता था । अतः उसने एक बार पुनः दैत्याकार राक्षस को समझाने का प्रयास किया ।

राजकुमार विनम्र आवाज में बोला - " राक्षसराज ! मेरी तुम्हारी कोई दुश्मनी नही है । तुम मुझे केवल तिलिस्मी फल ले लेने दो और आराम से उड़ते टापू पर रहो । "

" मूर्ख राजकुमार मैं तुझे जिंदा नही ....….. " दैत्याकार राक्षस ने क्रोध में कुछ कहने की कोशिश की , किन्तु तभी उसी की फेंकी हुई एक चट्टान उसके अपने ही हाथ पर आ गिरी , जिससे उसकी बात अधूरी रह गई ।

राजकुमार ने चेतावनी देते हुए राक्षस से कहा - " राक्षसराज ! मेरी बात मान लो वरना पछताओगे । " 

" मूर्ख राजकुमार ! तू यहाँ से जीवित नही जा सकता । " - कहते हुए दैत्याकार राक्षस ने अपने दाहिने हाथ से बांए को सहारा दिया और एक पहरेदार की तरह वृक्ष के सामने खड़ा हो गया ।

राजकुमार को लगा कि मूर्ख राक्षस को समझाना व्यर्थ है , किन्तु  राक्षस के घायल हो जाने के बाद भी वह उससे जीत नही सकता , अतः उसने राक्षस के छोटे होने का इंतजार करने का निश्चय किया ।

दैत्याकार राक्षस के बांए हाथ मे गंभीर चोट आई थी । फिर भी वह वृक्ष के निकट पूरी हिम्मत से खड़ा था । वह बार बार उछलकर राजकुमार को पकड़ने का प्रयास कर रहा था । किन्तु राजकुमार इतनी ऊंचाई में था कि उसके सभी प्रयास बेकार जा रहे थे ।

धीरे धीरे रात हो गई । राजकुमार आराम से कालीन पर सो गया  किन्तु राक्षस भय के कारण रात भर जागता रहा । प्रातःकाल होते ही राजकुमार उठ कर बैठ गया । दैत्याकार  राक्षस इस वक्त भी वृक्ष के पास खड़ा पहरा दे रहा था । 

अचानक दैत्याकार राक्षस का आकार छोटा होने लगा । उसका शरीर जैसे जैसे छोटा होता जा रहा था । उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी , क्योकि सामान्य आकार का हो जाने के बाद ही वह तिलिस्मी फल खा सकता था ।

राजकुमार इसी समय की प्रतीक्षा में था । दैत्याकार राक्षस कुछ ही देर में सामान्य आकार का हो गया और जैसे ही उसने  वृक्ष से तिलिस्मी फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया , राजकुमार वैसे ही उस पर झपटा ।

दैत्याकार राक्षस इस समय एक साधारण मानव जैसा हो गया था । किन्तु उसमे अभी भी गजब की शक्ति थी । राक्षस ने अपने घायल हाथ से राजकुमार को रोका और दूसरे हाथ से तिलिस्मी फल तोड़ कर मुँह में रख लिया ।

राजकुमार सचेत था । उसने तलवार का एक भरपूर वार राक्षस की गर्दन में कर दिया । राक्षस सर धड़ से अलग हो गया और इसके साथ ही उसके मुँह से तिलिस्मी फल निकल कर बाहर आ गया ।

यदि राजकुमार ने एक पल की भी देर की होती तो फिर राक्षस को मारना असम्भव हो जाता । दैत्याकार राक्षस के मरने के बाद राजकुमार ने फल उठाया , उड़ने वाले कालीन पर बैठा और परीलोक की ओर उड़ चला ।


                         क्रमशः .............................🙏🙏🙏🙏✳️


आप सब लोगो को यह भाग पढ़कर कैसा लगा ये अपनी सुंदर समीक्षा देकर जरूर बताएं । और अगला भाग जैसे ही प्रकाशित हो और आप तक पहुंच जाए इस लिए मुझे जरूर फॉलो करे ।


विक्रांत कुमार
फतेहपुर उत्तरप्रदेश 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏