The Author Saroj Verma Follow Current Read सन्यासी -- भाग - 29 By Saroj Verma Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books गृहलक्ष्मी 1. गृहलक्ष्मी एक बार मुझे दोस्त के बेटे के विवाह के रिसे... बुजुर्गो का आशिष - 11 पटारा मैं अभी तो पूरी एक नोट बुक निकली जिसमे क्रमांनुसार कहा... नफ़रत-ए-इश्क - 5 विराट अपने आंखों को तपस्या की आंखों से हटाकर उसके कांप ते ह... अपराध ही अपराध - भाग 4 अध्याय 4 “मैंने तो शुरू में ही बोल दिया…... My Wife is Student ? - 22 आदित्य की बात सुनकर स्वाति इधर उधर देखन लगती हैं.. ओर उसे सो... 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मेरे रहते हुए तेरी शादी उस लड़के से कभी नहीं होगी", जयन्त की बात से सुहासिनी को तसल्ली तो मिली थी लेकिन उसे अब भी भरोसा नहीं था,वो जानती थी कि उसके घरवाले कभी भी अरुण से उसका ब्याह नहीं होने देगें और फिर एक दिन लड़के वालों का संदेशा आया कि वे लोग सुहासिनी को देखने के लिए आ रहे हैं,फिर क्या था घर में उन सभी के स्वागत सत्कार की तैयारियांँ होने लगीं,लड़के वाले आएँ तो सुहासिनी की दोनों भाभियों सुरबाला और गोपाली ने उसे गुड़िया की तरह सजा धँजा कर लड़के वालों के सामने पेश कर दिया,सुहासिनी सुन्दर तो थी ही,साथ में सर्वगुणसम्पन्न भी थी,उस पर से अमीर बाप की इकलौती बेटी ,सो लड़के वालों ने फौरन ही सुहासिनी को पसन्द कर लिया और जाते जाते सगाई का मुहूर्त निकलवाने को भी कह दिया.... इधर जब नलिनी ने लड़के की उम्र देखी तो वो देवराज से बोली...."बेटा देव ! लड़का उम्र में सुहासिनी से बड़ा दिख रहा है","माँ ! इतना भी बड़ा नहीं है,कोई दस साल का अन्तर होगा सुहासिनी और उस लड़के के बीच",देवराज बोला...."बेटा! अभी तो रिश्ते की बात इतनी आगे नहीं बढ़ी है,तू कहीं कोई और लड़का क्यों नहीं देखता", नलिनी ने जयन्त से कहा..."माँ! बहुत जगह लड़का देखने के बाद मैंने इसे पसन्द किया था,सम्पन्न परिवार है,जमीन जायदाद भी खूब है और ले देकर दो भाई हैं,तुम्हें लड़के की उम्र से क्या लेना देना,ब्याह काज में लड़के की नहीं लड़की की उम्र देखी जाती है",देवराज ने अपनी माँ नलिनी से कहा.... उन दोनों की बातें जयन्त भी सुन रहा था तो वो देवराज से बोला...."तो बड़े भइया! जब तुम्हें सुहासिनी इतनी ही खटक रही है तो इससे अच्छा है कि तुम उसे भाड़ में झोंक दो,सारा किस्सा ही एक पल में खतम हो जाऐगा,ना सुहासिनी रहेगी और ना ही उसकी शादी की चिन्ता रहेगी""तू ज्यादा बकवास मत किया कर जयन्त! चुप ही रहा कर,एक तो मैंने रात दिन मेहनत करके लड़का खोजा है और तू उसमें मीन मेक निकाल रहा है"देवराज गुस्से से बोला..."हाँ! तुम्हारी दिन रात की मेहनत दिख तो रही है,तभी तो तुमने अपनी उम्र का लड़का ढूढ़ा है सुहासिनी के लिए",जयन्त गुस्से से बोला..."तो तू ही क्यों नहीं खोज लेता लड़का सुहासिनी के लिए",देवराज गुस्से से बोला...."वो तो सुहासिनी खोज ही चुकी है और मुझे भी वो पसन्द है,लेकिन तुम लोगों की आँखों पर तो जाति पाँति का चश्मा चढ़ा है,इसलिए तो इतना अच्छा वर सामने होते हुए भी तुम लोगों को दिखाई नहीं दे रहा, जयन्त देवराज से बोला..."तू अपनी नसीहत अपने पास ही रख,तेरा वश चले तो तू सारी दुनिया के नियम कानून ही बदल दे","हाँ! वही तो नहीं कर सकता मैं,काश !मैं ऐसा कर पाता",जयन्त बोला..."मेरी ये बात कान खोलकर सुन ले तू! सुहासिनी की शादी उसी लड़के से होगी,जिसे मैंने पसन्द किया है और वो लड़का बाबूजी को भी पसन्द है",देवराज सख्ती से बोला...."मैं कहाँ कुछ कह रहा हूँ,मैंने तो अब घर के किसी भी मामले में पड़ना बंद कर दिया है,तुम लोग अब सुहासिनी को पहाड़ से भी धक्का दे दोगे तो भी मैं अब कुछ ना कहूँगा,मैं तो सोच रहा हूँ कि मैं उस समय यहाँ रहूँगा ही नहीं जब सुहासिनी की शादी होगी",जयन्त बोला...."मतलब तू अपनी इकलौती बहन की शादी में नहीं रहेगा",देवराज ने जयन्त से पूछा..."मुझसे उसका कुम्हलाया हुआ चेहरा नहीं देखा जाऐगा,इसलिए मैंने सोचा है कि मैं उस वक्त यहाँ से चला जाऊँगा",जयन्त बोला..."ये तू ठीक नहीं कर रहा है जयन्त!",देवराज बोला...."बड़े भइया! क्या तुम ये ठीक कर रहे हो,जरा कभी मेरी बात को ठण्डे दिमाग़ से सोचना कि तुम क्या करने जा रहे हो,तुम किसी की खुशियाँ छीनने जा रहे हो,किसी की जिन्दगी बर्बाद करने जा रहे हो,किसी के चेहरे की मुस्कुराहट को छीनने जा रहे हो", और ऐसा कहकर जयन्त वहाँ से चला गया.....क्रमशः....सरोज वर्मा... ‹ Previous Chapterसन्यासी -- भाग - 28 › Next Chapter सन्यासी -- भाग - 30 Download Our App