प्रकरण - ३९
जब मेरे पापा का फोन आया तभी मैंने तय कर लिया था कि मैं आज अभिजीत जोशी की अपने पापा से बात करवाऊंगा। मैंने अपने पापा का फोन उठाया और हैलो कहा। दूसरी ओर से मेरे पापाने कहा, "रोशन! बेटा! तुम मुंबई शांति से पहुँच गए न? रास्ते में तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं हुई? तुम पहली बार इस तरह अकेले गए थे, इसलिए तुम्हारी चिंता हो रही थी।"
अब मैं अंधेपन के बावजूद भी इतना सक्षम हो गया था कि मुझे अब किसी की जरूरत नहीं पड़ती थी। अब मुझे किसी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ता था। अनुभव से मैंने सभी ध्वनियों में भी अंतर करना सीख लिया था। अब मैं बिना किसी की मदद के भी सड़क पार कर सकता था। इसलिए मुझे अब किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी। मैं अब सामान्य लोगों की तरह ही जीवन जीने में सक्षम हो गया था।
मैंने फोन पर अपने पापा को जवाब दिया, "नहीं, नहीं पापा। मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। मैं यहां बहुत शांति से पहुंच गया था। मैं आपको फोन करने ही वाला था कि तभी आपका मुझे फोन आ गया। मुझे आज आपको अभिजीत जोशीजी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बात बतानी है।"
मेरे पापाने कहा, "हां बेटा! मुझे भी उनसे बात करनी है। मैं भी उन्हें धन्यवाद देना चाहता हूं। आज तुम जिस तरह से प्रसिद्धि की ओर बढ़ रहे हैं, उसमें केवल अभिजीतजी का ही तो हाथ और साथ दोनों है। इसलिए मैं खुद भी उनसे इस बारे में बात करने के लिए उत्साहित हूं।”
मैंने कहा, "हां पापा! आप बिल्कुल सही कह रहे है। मैं भी उन्हें अपना गुरु ही मानता हूं। लेकिन इन सबके अलावा अभिजीत जोशी से आपका दूसरा भी एक ओर रिश्ता है।"
ये सुनकर मेरे पापा बोले, "ये क्या कह रहे हो रोशन! इतने बड़े गायक का मुझसे क्या लेना-देना? कहां मैं छोटे छोटे स्टेज शो में काम करनेवाला इंसान और कहा अभिजीत जोशी इतने बड़े गायक! इतना बड़ा आदमी मुझे कैसे जान सकता है?" मेरे पापा के मन में कई सवाल उठने लगे थे।
मैंने उन्हें शांत करते हुए जवाब दिया, "पापा! अब मैं उसी बात पर आता हूं। क्या आपको अपने बचपन के खास दोस्त रंजन जोशी याद हैं?"
मेरे पापा बोले, "हाँ, हाँ, ओह! रंजन! वह मेरा खास दोस्त था। मैं उसे कैसे भूल सकता हूँ? क्या तुम उनसे मिले? क्या वह अभिजीत जोशी को जानते है? लेकिन तुम्हे ये सब बातें कैसे पता चलीं? मैंने तो घर पर कभी भी इस बारे में कोई बात नहीं की है।'' मेरे पापाने मुझसे एक साथ कई सवाल पूछे।
मैंने उनके सवालों का जवाब देते हुए कहा, "पापा! मुझे ये सारी बातें इसलिए पता चली क्यों कि अभिजीत जोशी ही आपके दोस्त रंजन जोशी के बेटे है।''
मेरे पापा बोले, "मेरे दोस्त रंजन का बेटा अभिजीत! रोशन! क्या रंजन भी तुम्हारे साथ है? वह कहाँ है? मुझे अपने उस खास दोस्त से बात करनी है।" मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे पापा यह सुनकर इतने उत्साहित हो जायेंगे।
मुझे तो लगा था की यह सुनकर वह अपने साथ हुए उस अन्याय की वजह से दु:खी होगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि वह तो अपने दोस्त के बारे में सुनकर अचानक बहुत ही उत्साहित हो गए। लेकिन अब जो मैं उन्हें बतानेवाला था, उससे उन्हे दु:ख होने वाला था की उनके खास दोस्त रंजन जोशी अब इस दुनिया में नहीं रहे है।
यह कहते हुए मुझे बहुत दु:ख हो रहा था लेकिन फिर भी मैंने साहस किया और अपने पापा से कहा, "पापा! मुझे बहुत दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि आपके वो दोस्त अब इस दुनिया में नहीं है। उन्हें अंतिम स्टेज का कैंसर हो गया था और इसी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया है। वे बहोत साल पहले ही इस दुनिया को छोड़कर जा चुके है।"
मेरे पापा को यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उनके खास दोस्त की अचानक मृत्यु हो गयी। एक-दो क्षण के बाद मुझे दूसरी ओर से कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी, इसलिए मैंने फिर पूछा, "पापा! पापा! क्या आप लाइन पर हैं?"
सामने से मेरे पापा बोले, "हाँ! हाँ! बेटा! मैं बिल्कुल यही हूँ। लेकिन मुझे ये जानकर बहुत दु:ख हुआ कि अचानक मेरा दोस्त रंजन अब हमारे बीच नहीं रहा। रंजन की मौत की खबर सुनकर मुझे बहुत गहरा सदमा लगा है। खैर! जो होना था वह तो अब हो चुका है। हम इसे बदल नहीं सकते। उनका बेटा अभिजीत कहां है? तुम उसे फोन दो। मुझे उससे बात करनी है।"
मैंने अभिजीतजी से कहा, "अभिजीतजी! मेरे पापा आपसे बात करना चाहते हैं। यह फोन लीजिए। आप कहां हैं? ऐसा लग रहा है कि शायद आप मेरी दाई ओर है।"
अभिजीत बोले, "बहुत खूब! रोशनजी! आप तो बहुत अच्छा अंदाज़ा लगा सकते है। आपको अब सूरदास कौन समझेगा!” इतना कहने के बाद उन्होंने मेरे हाथ से फोन ले लिया और मेरे पापा से बात करते हुए बोले, "हैलो अंकल! आप कैसे हैं?"
मेरे पापाने कहा, "मैं बहुत खुश हूं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अपने खास दोस्त रंजन के बेटे से इस तरह मिलूंगा। मैं ये जानकर बहुत खुश हूं कि मेरे रंजन का बेटा इतना बड़ा गायक बन गया है।"
अभिजीतने कहा, "हाँ! अंकल! आप इस बात से खुश हैं लेकिन मैं इस बात से खुश नहीं हूं। मैं दुःखी हूं। आप मुझे और मेरे पापा हम दोनों को क्षमा कर दीजिये। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसका सच्चा हकदार तो आपका बेटा रोशन ही है। मेरे पापाने आपका अधिकार छीन लिया और मैंने आपके बेटे रोशन का।''
ये सुनकर मेरे पापा तुरंत बोल पड़े, "नहीं अभिजीत बेटा! कोई किसी का हक नहीं छीन रहा। और मैंने तुम्हारे पापा को तो कबका माफ कर दिया है। मैंने रंजन को तभी माफ कर दिया था जब वह यहां से मुंबई चला गया था। प्रसिद्धि तो शायद उसकी किस्मत में ही लिखी थी। और वैसे भी तब उसे पैसे की ज़रूरत मुझसे ज़्यादा ही थी।"
अभिजीतने कहा, "लेकिन अंकल! फिर भी उन्होंने आपके साथ गलत तो किया ही है ना? भले ही भगवानने उन्हें उनके किये की सज़ा दे दी है, लेकिन फिर भी मैं आपसे उनके इस कृत्य के लिए तहे दिल से माफ़ी मांग रहा हूँ। मैं उनके इस कृत्य का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। अंत समय में मेरे पापा आपको बहुत याद करते थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि सुधाकर जहां कही भी हो तुम उसे ढूंढ़ निकालना और उससे मेरी ओर से माफी मांगना।"
अभिजीतजी की यह बात सुनकर मेरे पापाने उनसे कहा, "बेटा! तुम्हारा प्रायश्चित उसी दिन हो गया था जब तुमने मेरे बेटे रोशन को इतना बड़ा प्रस्ताव दिया था। वास्तव में, मैं और मेरा बेटा रोशन दोनों ही तुम्हारे बहुत आभारी हैं।"
अभिजीतने कहा, "अंकल प्लीज! ऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए।"
मेरे पापा बोले, "चलो बेटा! अब मैं फोन रख रहा हूं। मुझे अभी स्कूल के बच्चों को संगीत सिखाने जाना है। चलो! अब मैंने रोशन को तुम्हें सौंप दिया है। उसका ख्याल रखना बेटा।"
अभिजीतने कहा, "हाँ! हाँ! अंकल, आप इस बारे में निश्चिंत हो जाइए। मैं उनका अच्छे से ख्याल रखूंगा।"
अभिजीत और मैंने अब नीरव शुक्ला की फिल्म पर काम करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे एक महीना बीत गया। अब रईश के अमेरिका जाने का समय भी आ पहुंचा था।
(क्रमश:)