प्रकरण - ३८
मैं एक बार फिर मुंबई आ पहुंचा था। यहां आने के बाद अब मैं अभिजीत जोशी से मिलने उनके घर गया। उन्होंने एक बार फिर मेरा बहुत अच्छे से स्वागत किया। उन्होंने मेरा स्वागत किया और कहा, "आईए आइए! रोशनजी! आपके बिना यह घर बहुत सूना सूना सा लग रहा था। मुझे तो अब आपकी इतनी आदत सी हो गई है कि अब आपके बिना काम चल ही नहीं सकता। हम इतने लंबे समय से साथ काम कर रहे है इसलिए आपके साथ एक अनोखा रिश्ता सा बन गया है। यह सप्ताह तो बड़ी मुश्किल से बीता है।"
मैंने भी अभिजीत जोशी से कहा, "आप सही कह रहे हैं। अभिजीतजी! मुझे भी आपकी बहुत याद आती है। मुझे भी आपके साथ काम करने की इतनी आदत हो गई है कि आपके बिना मजा ही नहीं आता। और हां! दूसरी भी एक खुशखबरी है जो मैं आपको देना चाहता हूं। जाने-माने फिल्म निर्देशक नीरव शुक्लाने मुझे अपनी आगामी फिल्म के लिए संगीत तैयार करने की ऑफर दी है। यहां से निकलने से पहले ही मैंने उनसे बात कर ली थी, लेकिन घर जाने के उत्साह में मैं आपसे इस विषय पर बात करना ही भूल गया था इसलिए अब मैं आपको यह बात बता रहा हूं।"
अभिजीतने कहा, “रोशनजी! आप भले ही मुझे ये बात न बताओ लेकिन मेरी नज़र हर जगह पर रहती है। मैं सब जानता हूँ।”
अभिजीत की ये बात सुनकर मैंने उनसे पूछा, "तो क्या आपको मुझे मिले इस प्रस्ताव के बारे में पता है?"
अभिजीतने कहा, "हाँ! रोशनजी! मैं आपको मिले इस प्रस्ताव के बारे में जानता हूं, लेकिन आपको शायद यह पता नहीं होगा कि नीरवने मुझे भी तुम्हारे जैसा ही प्रस्ताव दिया है। नीरव की इस फिल्म के गानों का गायक तो मैं ही हूं, जिसमे आप संगीत देनेवाले हो।"
अभिजीत की यह बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ और बोला, "वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है! फिर तो हमें अब भी एक साथ मिलकर काम करना होगा क्यों?"
अभिजीत जोशीने मेरे सवाल का जवाब देते हुए कहा, "हा, बिलकुल!" उनका यह जवाब सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि, मुझे भी अब अभिजीत जोशी के साथ काम करना अच्छा लगने लगा था। लेकिन अभी भी मेरे मन में कुछ सवाल थे, जिनका जवाब मैं अभिजीत जोशी से चाहता था।
मैंने उनसे पूछा, "अभिजीतजी! मेरे मन में बहुत दिनों से एक सवाल है। मैं आज आपसे पूछना चाहता हूं। मैंने पहले भी आपसे यह पूछने की कोशिश की थी, लेकिन आपने तब मुझसे कहा था कि सही समय आने पर मैं इसका जवाब दूंगा। मुझे लगता है कि शायद अब सही समय है और इसीलिए मैं ये जानना चाहता हूं कि आपने मुझे आगे लाने में मेरी इतनी मदद क्यों की? इसके पीछे क्या मकसद है? कोई किसी की मदद बेवजह तो नही करता! क्या सिर्फ इसलिए कि ममतादेवी आपकी दोस्त है इस वजह से आपने मुझे इतना बड़ा ऑफर दिया या कोई और कारण है? क्योंकि, आज के युग में जब बिना स्वार्थ के कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता। मुझे समझ नहीं आता कि आप बिना किसी पहचान के मेरे जैसे सूरदास को सिर्फ मेरे एक छोटे से कार्यक्रम का संगीत सुनकर इतना बड़ा ऑफर दे सकते है। आप मुझ पर इतना दयाभाव क्यों रखते हैं?" मैंने एक झटके में अभिजीत जोशी से वे सारे प्रश्न पूछ लिए जो अब तक मेरे दिमाग में घूम रहे थे।
अभिजीतने कहा, "हाँ! आप सही कह रहे हैं कि आज के युग में कोई भी बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे के लिए कुछ नहीं करता। हर किसी का अपना स्वार्थ होता है। मेरा भी एक स्वार्थ था। मेरा स्वार्थ था मेरे पापा के कर्मो का प्रायश्चित करना।"
मैंने पूछा, "प्रायश्चित? किस बात का प्रायश्चित? आपके पापा का कर्म? आपके पापा का भला मुझसे क्या रिश्ता है? ये आप कैसी बात कर रहे हो! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। आप मुझे कुछ समझाईए तो कुछ पता चले।"
अभिजीतने कहा, "मैं जिस प्रायश्चित की बात कर रहा हूं उसका संबंध आपके और मेरे दोनों के अतीत से है।"
मैंने पूछा, "अतीत? इसका अतीत से क्या लेना-देना है?"
अभिजीतने कहा, "आपको शायद एहसास न हो लेकिन मेरे पिता रंजन जोशी और आपके पिता सुधाकरजी दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों एक साथ स्कूल में पढ़ते थे। उन दोनों की दोस्ती की मिसाल उनके स्कूल में हमेशा दी जाती थी। दोनो को दोस्ती बहुत ही गहरी थी। दोनों को एक-दूसरे के बिना नहीं चलता था। लेकिन बचपन की उस दोस्ती को जब जवानी का रंग चढ़ गया तो वह पूरी तरह से बदल ही गई।
मेरे पापा संगीत के क्षेत्र में बहुत जल्द ही मशहूर होना चाहते थे और बहुत नाम कमाना चाहते थे। और इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे।
मेरे पापा और आपके पापा दोनों एक साथ स्टेज शो करते थे।
एक वक्त की बात है। अच्छे संगीतकारों के सिलेक्शन के लिए बम्बई से एक पार्टीने राजकोट में ऑडिशन का आयोजन किया था। हम दोनों के पापा भी इसी ऑडिशन में अपना ऑडिशन देने जा रहे थे। उन दोनोंने अपनी धूने तैयार कर ली थी। आपके पापाने मेरे पापा को अपनी धुनें सुनाई। उस धुन को सुनकर मेरे पापा को डर लगा कि सुधाकर की धुन मेरी धुन से बेहतर है। ऑडिशन के दिन आपके पापा की तबियत खराब हो गई और वह ऑडिशन में नहीं जा सके। यह जानते हुए कि वह अपनी बीमारी के कारण ऑडिशन में शामिल नहीं हो सकते, उन्होंने मेरे पापा को फोन किया और कहा, "रंजन! तुम मेरे दोस्त हो और मुझे तुम पर सबसे ज्यादा भरोसा है। मैं चाहता हूं कि तुम ऑडिशन में तुम्हारी धून के साथ साथ मेरी भी धून मेरे ही नाम के साथ पेश करना।"
मेरे पापाने कहा, "ठीक है। मैं तुम्हारी भी धुन बजाऊंगा।"
मेरे पापा ऑडिशन में तो गए और अपने दोनों गाने प्रस्तुत किए। लेकिन उन्होंने दोनों धूने अपने खुद के ही नाम से पेश की। आपके पापा की धून भी उन्होंने अपने ही नाम से पेश की।
मेरे पापा अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए थे कि उन्होंने अपने ही खास दोस्त को धोखा दे दिया। और किस्मत का खेल तो देखो! आपके पापा की उस चुराई हुई धून के प्रदर्शन के बाद ही मेरे पापा को एक बड़ा ऑफर मिला और वे मुंबई चले गए। बस यही बात की वजह से उन दोनों दोस्तों के बीच एक ऐसी दरार बन गई जो कभी भी भर ही नहीं पाई।
जब आपके पापा को पता चला कि मेरे पापाने उन्हें धोखा दिया है तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। उनके दिल को ठेस पहुंची कि जिसे वह अपना खास दोस्त मानते थे, उसीने उसे इस तरह धोखा दिया! स्वार्थ दोनों की दोस्ती को मानो खा गया।" इतना कहते हुए तो अभिजीत जोशी दु:खी हो गए थे।
मैंने उन्हे शांत करते हुए कहा, "अरे! मैं तो इस बात से बिल्कुल ही अनजान था। मेरे पापाने मुझे इस बारे में कभी कुछ भी नहीं बताया।"
मेरी यह बात सुनकर अभिजीत जोशीने कहा, "आपके पापा सच में एक बहुत अच्छे इंसान हैं, भले ही मेरे पापाने उन्हें इतना धोखा दिया, फिर भी उन्होंने मेरे पापा को माफ कर दिया। और शायद इसीलिए उन्होंने आपको इस बारे में नहीं बताया होगा।" लेकिन प्रकृति कभी भी किसी को भी बख्शती नहीं है। भगवानने उन्हें उनके इस बुरे कर्म की सजा दी। उन्हे कैंसर हो गया था। जीवन के अंतिम समय में उन्हे अपने इस कर्म का बहुत पछतावा हुआ था।
अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने मुझसे कहा, "मैंने सुधाकर के साथ बहुत अन्याय किया है। आज मुझे जो कुछ भी मिला है उसका असली हकदार तो सुधाकर ही था। बेटा! तुम मेरी इस गलती को सुधार लेना और मुझे मेरे इस पापों के बोझ से मुक्त करना। आज मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, वह मैं केवल मेरे पापा के कर्म के प्रायश्चित के रूप में कर रहा हूं।” इतना तो अभिजीत जोशी बड़ी मुश्किल से बोल पा रहे थे। फिर मैंने उन्हें शांत किया।
अभी हमारी बात ख़त्म ही हुई थी कि मेरे मोबाइल पर मेरे पापा का फ़ोन आ गया। जब पापा का फोन आया तो मैंने तभी तय कर लिया था कि आज मैं अपने पापा से अभिजीत जोशी के पापा के बारे में चर्चा करूंगा।
(क्रमश:)