प्रकरण - ३६
मैंने अरमानी को पहली बार अपनी गोद में उठा ली थी। जैसे ही मैंने उसके हाथ को छुआ, मैं एकदम रोमांचित सा हो गया। मेरे हाथों में उसके बहुत ही छोटे छोटे से हाथ थे। हालाँकि मैं उस बच्ची को देख तो नहीं सकता था लेकिन मैं उसके अस्तित्व को महसूस जरूर कर सकता था। और मुझे ये भी लग रहा था कि वह बच्ची भी शायद मेरी गोद में आकर खुश थी।
जब मैंने अरमानी को गोद में लिया तो मुझे लगा कि मैं भले ही अंध हूँ, लेकिन यह बच्ची! यह बच्ची अरमानी कितने भरोसे से मेरी गोद में खेल रही होगी, जिसे यह भी नहीं मालूम कि वह एक अंधे आदमी की गोद में खेल रही है! वह मेरी स्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ है! जब मैंने अरमानी को अपनी गोद में लिया तब मुझे एहसास हुआ कि एक छोटे बच्चे को अपने परिवार के बड़ों पर कितना भरोसा होता है।
अरमानी के साथ खेलते खेलते अचानक मुझे फातिमा की याद आ गई। फातिमा सचमुच मेरे मन पर छा गई थी। मैंने सोचा जैसे अरमानी को मुझ पर भरोसा है, फातिमाने भी मुझे प्रपोज करने की हिम्मत तभी की होगी जब उसे मुझ पर भरोसा होगा, है ना? और मैंने उसके साथ क्या किया? मैंने उसके प्यार को ठुकरा दिया? उफ़! मैं उसके प्रति इतना कठोर कैसे हो सकता हूँ?
फातिमा शायद नहीं जानती कि मैं उससे प्यार करता हूँ लेकिन मैं अपने दिल में तो जानता ही हूँ कि मैं भी उससे प्यार करता हूँ! और मैं जिससे प्यार करता हूँ उसकी भावनाओं को मैंने ठेस पहुँचाई? ये मैंने क्या किया?"
मैं अभी ऐसा सोच ही रहा था कि मेरे दिमागने फिर मुझे इशारा किया और एक नई आकृति उभरकर मेरे सामने आ गई। मानो मेरी दूसरी प्रतिकृति ही देख लो! मैं स्वयं को भले ही नहीं देख सकता था लेकिन मैं अपनी इस प्रतिकृति को ठीक से देख सकता था।
यह दूसरा रोशन जो मेरे सामने खड़ा था वो बोला, "अरे! ओ बेवकूफ रोशन! अपनी भावनाओं में इतना मत बहो! फातिमा की तुमसे शादी फातिमा की जिंदगी की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। तुम उसे क्या दे सकते हो? क्या तुम उसे वह सामान्य जीवन दे सकते हो जिसकी चाहत हर महिला को होती है? यदि तुम और फातिमा शादी कर लेते हो तो क्या फातिमा तुम्हारे साथ खुश रह पाएगी? क्या उसे हर वक्त तुम्हारे आसपास ही नहीं रहना पड़ेगा? जिसे तुम प्रेम कहते हो, वह वास्तव में तुम्हारा स्वार्थ है। यदि तुम सच में फातिमा से प्यार करते हो तो जितनी जल्दी हो सके उससे दूर हो जाओ। उसी में तुम्हारी और उसकी दोनों की भलाई है। कोई भी निर्णय लेने से पहले इस पर एकबार जरूर सोचविचार करना।"
मैंने भी अपने आकार के विरुद्ध तर्क दिया और बोला, "लेकिन मैं अपने इस चंचल मन को कैसे समझाऊं? वो नही मानता। वह फातिमा से प्यार करता है और उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।'
बहार खड़ी मेरी आकृतिने फिर से मुझसे विवाद किया और बोला, "तुम्हे किसी भी कीमत पर अपने मन पर काबू रखना होगा। वरना फातिमा की जिंदगी बर्बाद करने के लिए तुम और सिर्फ तुम ही जिम्मेदार होंगे। फातिमाने भले ही तुमको प्रपोज किया हो लेकिन उसे अभी तक हकीकत का कोई अनुभव नहीं है। वह नहीं जानती कि एक अंधे आदमी के साथ रहना कितना कठिन होता है! परिस्थिति को मन से स्वीकार करना और तथ्य सामने आने पर परिस्थिति को स्वीकार करना दो अलग-अलग बातें होती है। आज भले ही फातिमाने तुम्हारे हालात को जानते हुए ही तुमसे प्यार किया है, लेकिन जब उसे अपनी पूरी जिंदगी एक सूरदास के साथ गुजारनी होगी तो कभी न कभी तो ऐसा वक्त भी आएगा जब वह खुद ही अपने हालात को दोष देगी।"
मैं फिर बोल उठा, "नहीं! नहीं! मेरी फातिमा ऐसी तो बिलकुल नहीं है।"
मेरी उस आकृतिने फिर से मुझे कहा, "मैंने तो तुम्हें सावधान करके अपना कर्तव्य निभा दिया है। अब आगे तुम्हारी मर्जी।" इतना कहकर वह आकृति अदृश्य हो गई।
जब मैं अपने आप से ही बातें कर रहा था तभी मेरी मम्मीने मुझे कहा, "अरे! रोशन क्या सोच रहा है? अरमानी को मेरे पास लाओ। मैं उसके साथ थोड़ी देर खेलना चाहती हूं।"
मैंने अरमानी को अपनी मम्मी की गोद में दे दिया। मेरी मम्मी भी अब उसके साथ प्यार से खेलने लगी थी।
अगले दिन नीलिमा को छुट्टी दे दी गई। नीलिमा को अब डेढ़ महीने तक उसकी मम्मी के घर ही रहना था और रईश भी उसीके साथ अपने ससुर के घर जानेवाला था। नीलिमा के मम्मी पापा नीलिमा और अरमानी के साथ उनके घर गए। रईश को अभी कुछ सामान पैक करना बाकी था इसलिए वह सामान लेने के लिए घर आनेवाला था और फिर दूसरे दिन वो भी नीलिमा के ही घर जानेवाला था। इसके बाद रईश एक हफ्ते तक वही ससुराल में रुकनेवाला था और वहां से सीधा ही अहमदाबाद वापस चले जानेवाला था।
रईश आज हमारे साथ ही रहनेवाला था। कल वह अपने ससुराल जानेवाला था। यह मेरे लिए रईश से अपने दिल की बात कहने का बहुत अच्छा मौका था। मैं चाहता था कि कोई तो ऐसा हो जिसे मैं अपने दिल की बात बता सकूं। फातिमा के प्रति मेरी जो भावनाएं है वो मैं किसी के साथ तो साझा करू। और इसके लिए मुझे रईश को ही बताना ठीक लगा।
बचपन से ही मैं और रईश भाइयों से ज़्यादा दोस्त थे, इसलिए आज रात जब हम फ्री हुए तो मैंने रईश से कहा, "रईश! क्या तुम मुझे घुमाने ले जाओगे? हम दोनों भाइयोंने काफ़ी समय से शांति से बात ही नहीं की है। रास्ते में हमारी बातें भी हो जाएगी और साथ-साथ हमारा चलना भी हो जाएगा।"
रईश बोला, "हाँ, हाँ, निश्चित रूप से मैं तुम्हें ले जाऊँगा। चलो चलते है।"
हम दोनों भाई अब जाने लगे।
चलते-चलते हम थोड़े थक गए तभी रास्ते में रईशने एक बगीचा देखा तो हम वहा आराम करने के लिए बैठ गये।
बगीचे में बैठे बैठे रईशने तुरंत मुझसे पूछा, "रोशन! क्या बात है? ऐसी कौन सी बात है जो तुम केवल मुझे ही बताना चाहते हो? जब तुमने मुझसे टहलने के लिए जाने के लिए कहा तभी मैं समझ गया था की कुछ तो बात है जो तुम्हें परेशान कर रही है। बोलो! क्या बात है?
मैंने कहा, "रईश! मेरे यहां मुंबई जाने से पहले फातिमाने मुझे प्रपोज किया था। वह मुझे पसंद करती है।"
मेरी यह बात सुनकर रईश चौंककर बोला, "क्या? ये तुम क्या कह रहे हैं? तो तुमने उससे क्या कहा? क्या तुम भी उसे पसंद करते हो?"
मैंने कहा, "हां, मैं भी उसे पसंद करता हूं, लेकिन मैंने उसे अस्वीकार कर दिया। मैं उससे और क्या कह सकता था? मैं इस तरह उसकी जिंदगी कैसे बर्बाद कर सकता हूं?"
मेरी यह बात सुनकर रईश बोल पड़ा, "अरे रोशन! ये तुमने क्या किया? तुमने उसके दिल के साथ बहुत बड़ा खेल खेल लिया।"
"वो कैसे?" मैंने पूछा। रईश मुझसे ऐसी बात करेगा ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।
रईशने मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, "चलो! मैं तुम्हें समझाता हूँ।"
उसके बाद रईशने मुझसे कुछ ऐसी बाते कही जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
(क्रमश:)