प्रकरण - ३५
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी पूरी जिंदगी अचानक इस तरह बदल जाएगी। अभिजीत जोशी के एलबम की लॉन्च पार्टी खत्म होने के दूसरे ही दिन मुझे एक फोन आया। वह फोन मशहूर फिल्म डायरेक्टर नीरव शुक्ला का था।
जब मैंने उनका फोन उठाया, तो उन्होंने मुझसे कहा, "रोशनजी! मैं कल की पार्टी के बाद घर आया और आपके संगीत के साथ अभिजीत जोशी का यह एल्बम सुना। मुझे संगीत बहुत पसंद आया। इसने वास्तव में मेरे दिल को छू लिया। जैसे ही मैंने संगीत सुना, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं उन नौ रसों को जी रहा हूं। श्रृंगाररसने मुझे प्रेम का एहसास कराया, करुणरस ने मुझे करुणता से भर दीया और शांतरसने मुझे शांत किया। आपने बहुत अच्छी नौ रस की धुन बनाई है।”
उन्होंने मेरी इतनी तारीफ की तो मैंने भी उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, "नीरवजी! इस तरह मेरी सराहना करने और मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।"
नीरवने कहा, "मेरा मानना है कि हर अच्छे काम की सराहना की जानी चाहिए और इसीलिए मैंने आज आपको ये फोन किया है। मैं जल्द ही एक नई फिल्म शुरू करना चाहता हूं। मैं दिल से चाहता हूं कि आप मेरी नई आनेवाली फिल्म के लिए संगीत तैयार करें। क्या आप मेरे साथ काम करेंगे? क्या आप मेरा प्रस्ताव स्वीकार करेंगे?"
मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इतना बड़ा ऑफर इतनी जल्दी मिल जाएगा।' मैं सोच रहा था कि एक बार अभिजीत जोशी के एल्बम पर काम पूरा हो जाए, तो मैं राजकोट वापस जाऊंगा और विद्यालय का काम फिर से शुरू करूंगा, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। मुंबई की ये धरती एक बार फिर मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी।
मैं सामने से आये किसी प्रस्ताव को अस्वीकार करने की स्थिति में नहीं था। मुझे तो जो भी काम मिल जाए उसे करना ही था। यह जानते हुए कि मैं सूरदास हूं, फिर भी वे मुझे इतना बड़ा ऑफर देने को तैयार थे, इससे मेरा उत्साह दोगुना हो गया। इसलिए मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मुझे लगा कि शायद उसने मुझमें वो सब कुछ देख लिया होगा जिससे मैं खुद ही अब तक अनजान था।
मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और कहा, "मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि आपने मुझे इतना अच्छा प्रस्ताव दिया है। अगर मुझे आपके जैसे प्रसिद्ध निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिलता है, तो मैं इसे क्यों जाने दूंगा? इतनी बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में आपके साथ काम करने का सपना कई लोगों का होगा और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि आपने इन सब के होते हुए भी मुझे अपनी फिल्म के संगीत के लिए चुना है। मैं बहुत खुशनसीब हूं। मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं। मैं अवश्य ही आपके साथ काम करूंगा।"
नीरवने कहा, "रोशनजी! इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। इसके लिए आपको उचित मुआवजा भी दिया जाएगा। आम तौर पर मैं अपनी फिल्म के संगीत निर्देशक को एक गीत के एक लाख रुपये देता हूं लेकिन मैं आपको एक गीत के दो लाख रुपये दूंगा। क्या यह ठीक है ?"
मैंने कहा, “हाँ, हाँ, मुझे बिलकुल मंजूर है। नीरवजी!”
नीरवने कहा, "अच्छा ठीक है। मैं अगले हफ्ते से अपनी नई फिल्म शुरू करने जा रहा हूं इसलिए हम एक हफ्ते बाद काम शुरू करेंगे। चलो अभी मैं फ़ोन रख रखता हूँ। आपसे अगले हफ्ते मिलते हैं।"
मैंने नीरव शुक्ला का फोन रखा ही था कि मेरे फोन पर फिर से मेरे पापा का फोन आ गया। ऐसे वक्त में पापा का फोन आने पर मैं दंग रह गया। आम तौर पर मेरे पापा मुझे रात दस बजे के बाद कभी फोन नहीं करते। लेकिन आज ऐसे समय में उन्होंने मुझे फोन किया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। मैंने फ़ोन उठाया और कहा, "हैल्लो!"
दूसरी तरफ से मेरे पापा बहुत खुश होकर बोल रहे थे, "बेटा! बहुत अच्छी खबर है। नीलिमा को बेटी हुई है। हमारे घर में लक्ष्मी आई है। तुम्हारी माँ और मैं दादा-दादी बन गए हैं और तुम चाचा और दर्शिनी बुआ बन गई है।"
मैं उनकी आवाज़ से महसूस कर सकता था कि मेरे पापा ये कहते हुए बहुत उत्साहित थे।
पापा की यह बात सुनकर मैं भी बहुत खुश हुआ और बोला, "अरे! वाह! पापा! बधाई हो! यह तो बहुत ही अच्छी खबर है। मैं रईश और नीलिमा दोनों के लिए बहुत खुश हूँ। नीलिमा और बेबी दोनों की तबियत कैसी है?"
पापाने कहा, "नीलिमा का स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा है और बेटी भी बिल्कुल स्वस्थ है। उसका वजन ढाई किलो है। वो बहुत ही नाजुक और पतली सी है। बिल्कुल नीलिमा की तरह ही दिखती है।"
मैंने कहा, "पापा! रईश और नीलिमा की बेटी न केवल उन दोनों के ही जीवन में बल्कि हम सभी घर के लोगो के जीवन में एक नई रोशनी लेकर आई है। पापा! मेरे पास भी आपके साथ साझा करने के लिए एक अच्छी खबर है। रईश की बेटी मेरे लिए भी बहुत भाग्यशाली साबित हुई है। आज मुझे भी एक नया ऑफर मिला है और क्या आप जानते हैं कि यह ऑफर किसका है? यह ऑफर है जाने-माने फिल्म निर्देशक नीरव शुक्ला का। उन्होंने अपनी आनेवाली फिल्म में संगीत देने के लिए मुझे चुना है। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुंबई जाने के बाद मुझे सामने से इस तरह का दूसरा ऑफर मिलेगा। एक सप्ताह बाद उस पर अपना काम शुरू करना है। सोचता हूं की अभी काम शुरू करने में एक हफ्ते का वक्त है तो उतने समय में मैं घर का एक चक्कर लगा ही लूं। इसी बहाने रईश की बेटी से भी मिल लूंगा। मैं वास्तव में इसे खेलने के लिए उत्सुक हूं।"
पापाने कहा, "हाँ! हाँ! रोशन! ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने। तुम भी अब घर आ ही जाओ। रईश भी आज ही अहमदाबाद से राजकोट आने के लिए निकल चुका है।"
मैं और रईश हम दोनों अब राजकोट पहुँच चुके थे। नीलिमा को अभी तक अस्पताल से छुट्टी नही दी थी। वह अभी भी अस्पताल में थी। उसे एक दिन बाद छुट्टी मिलनी थी, इसलिए वह अभी अस्पताल में ही थी।
जब रईश और मैं अस्पताल पहुंचे तो नीलिमा बिस्तर पर सो रही थी और उसकी छोटी बेटी पालने में झूल रही थी। रईशने उसे पालने से उठाया और पहली बार अपनी बेटी को गोद में लिया। उन्होंने कहा, "इस खूबसूरत दुनिया में आपका स्वागत है मेरी प्यारी बेटी अरमानी। हमारी बेटी अरमानी जो हमारे सभी के अरमानों को पूरा करती है इसलिए आज से इसका नाम अरमानी।"
मेरी मम्मी बोली, "यह तो बहुत ही अच्छा नाम है।"
रईशने कहा, "हाँ! मम्मी! मैंने और नीलिमाने बच्चे का नाम पहले से ही तय कर लिया था। जब हमें पता चला कि हमारी जिंदगी में एक बच्चा आने वाला है तभी हमने सोच लिया था की अगर लड़की हुई तो हम उसका नाम अरमानी रखेंगे और अगर लड़का हुआ तो हम उसका नाम अरमान रखेंगे।"
मैं भी धीरे-धीरे अरमानी की तरफ जाने की कोशिश करने लगा। मैं वहा जाने लगा जहा से अरमानी के रोने की आवाज आ रही थी। मैं बहुत परेशान था कि मैं देख नहीं सका। मुझे अरमानी की ओर आते देखकर रईशने अपना ध्यान मेरी ओर किया और कहा, "रोशन! तुम वही बैठे रहो। मैं अरमानी को तुम्हारे पास लेकर आता हूं।"
रईश अरमानी को मेरे पास लाया और मेरी गोद में रख दिया। आंखों की रोशनी खोने के बाद किसी बच्चे को इस तरह गोद में लेने का यह मेरा पहला अनुभव था।
(क्रमश:)