प्रकरण - ३४
फातिमा और मैं अब जब हम अपने घर के लिविंग रूम में अकेले थे तो फातिमा को मुझसे बात करने का सही मौका मिल गया। फातिमाने कहा की वह काफी समय से इस मौके का इंतजार कर रही थी। वो बोली, "रोशन! मैं काफी समय से तुमसे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द बार-बार मेरे होठों पर आकर फिर रुक जाते थे। लेकिन आज मैं अब वो शब्द बोलना चाहती हूं।"
फातिमा की यह बात सुनकर मैंने फातिमा से पूछा, "बताओ? फातिमा! तुम मुझसे क्या कहना चाहती हो?"
फातिमा बोली, "मैंने हमेशा तुम्हारे चेहरे पर यह देखा है कि तुम भी शायद मेरे लिए वही भावना महसूस करते हो जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करती हूं। और इसीलिए मैं आज तुम्हें यह बात बताने का साहस कर रही हूँ। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं कभी किसी और को अपनी जिंदगी में आने दूंगी लेकिन जब से मैं तुम्हारे साथ हूं, मैं बहुत खुश हूं। मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना बहुत अच्छा लगता है। जब भी तुम मेरे आसपास होते हो तो मुझे तुम्हारे साथ बहुत अच्छा महसूस होता है। ये एक ऐसा एहसास जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता, लेकिन शायद तुम भी उन भावनाओं को महसूस कर रहे होंगे! मैं अपने इस एहसास को एक नाम देना चाहती हूं। क्या तुम मुझसे शादी करोगे तुम मुझे अपनी पत्नी बनाओगे? मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं रोशन।”
यह मेरे लिए बहुत अविश्वसनीय था कि फातिमा मुझसे ये सब कहेगी! जब उसने बात शुरू की तब मुझे शुरू से ही महसूस हुआ कि हमारी भावनाएँ एक जैसी थी। लेकिन यह मेरे लिए एक झटके की तरह था कि फातिमा अचानक इस तरह शादी का प्रस्ताव रख देगी!
फातिमा की ये बात सुनकर मेरे मन में यही ख्याल आया कि मैं अपनी भावनाओं के चलते फातिमा के साथ अन्याय करूं ये तो ठीक नही है। मैं अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। "मैं तुमसे प्यार करती हूं रोशन।" फातिमा के मुंह से निकले इस शब्दोंने मुझे बहुत ही परेशान कर दिया था।
मन तो तैयार था कि फातिमा को तुरंत स्वीकार कर के अपनी बांहों में भर लूं, लेकिन दिमाग इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। मेरे दिल और दिमाग के बीच एक भयंकर युद्ध हो रहा था। मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था और फातिमा बेसबरी से मेरे जवाब का इंतजार कर रही थी। कुछ देर इंतजार करने के बाद उसने अपना हाथ मेरे हाथ में रखा और फिर पूछा, "रोशन! क्या तुम मुझे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना नहीं चाहते? क्या तुम मुझे पसंद नहीं करते?"
फातिमा के मुलायम हाथों की गर्माहट मुझे महसूस हो रही थी। मैं उसके हाथ के माध्यम से अपनेपन की भावना को अपनी रगों में बहता हुआ महसूस कर सकता था लेकिन मैं अपने आप को इतना असहाय महसूस कर रहा था कि मैं उसे अपने प्यार का इज़हार नहीं कर सकता था और न ही उसे गले लगा सकता था।
कुछ ही पलों में मैंने खुद को बचाते हुए फातिमा के हाथ से अपना हाथ हटा लिया और उससे कहा, "फातिमा ये तुम क्या कह रही हो? तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो? अगर तुम सच में मेरी भावनाओं को समझती तो तुम मुझसे यह नहीं पूछती! भले ही तुमने आज पूछ लिया लेकिन आज के बाद अब कभी भी ऐसी बात हमारे बीच कभी मत लाना।” दिल पर पत्थर रखकर मैंने फातिमा को अपनें की बात बताई।
फातिमा बोली, "रोशन! तुम्हारे शब्द तुम्हारी भावनाओं से बिलकुल विपरीत हैं। बहुत निरीक्षण के बाद ही मैंने तुमसे प्यार का इज़हार करने की पहल की है। मैं समझती हूं कि यदि आज तुम मुझे अस्वीकार भी करते हो तो उसके पीछे कोई तो कारण जरूर होगा! मुझे हमारे प्यार पर विश्वास है रोशन! एक दिन आएगा जब तुम खुद ही मुझे स्वीकार करोगे और मैं उस दिन का बेसबरी से इंतजार करूंगी। और हा एक बात और भी बता दू की मेरी भावनाएं हमारी दोस्ती के बीच कभी भी नहीं आएंगी।”
मेरे मन में तो आया कि मैं फातिमा से पूछूं, "इंतजार क्यों करना है तुम्हें?" लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर उसकी जगह पर मैं होता तो शायद मैं भी यही कहता। मैं बड़ी मुश्किल से बस इतना ही कह सका, "हां फातिमा! हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे। हमारी दोस्ती में कभी भी दरार नहीं आएगी।"
जैसे ही हमने बात ख़त्म की तभी दर्शिनी वहा आई। उसने आकर कहा, "फातिमा! मम्मी तुम्हें बुला रही है।"
फातिमा और दर्शिनी दोनों अब मम्मी के पास चली गई और मैं उस कमरे में अकेला ही रह गया। मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि फातिमा के मन में भी मेरे लिए वही भावनाएँ थी जो मेरे मन में उसके लिए थी। लेकिन मुझे इस भावना को अस्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा, भले ही मैं भी फातिमा से प्यार करता था लेकिन मैं ये कभी नहीं चाहता था कि उसकी जिंदगी पर मेरे कारण कोई असर पड़े और वह भी मेरे साथ अंधेरी दुनिया में कैद हो जाए। मुझे वह कभी भी स्वीकार्य नहीं था।
मैंने फातिमा को शादी के लिए मना कर दिया और मैं अब वापस मुंबई आ गया। यहां मुंबई आकर वापस काम पर लग गया। काफी मेहनत के बाद मैं बाकी चार गानों की धुनें बना पाया। धुनें बजाते वक्त फातिमा की आवाज मेरे दिमाग में बारबार गूंजती रहती थी। कभी-कभी मन भारी सा हो जाता था। अक्सर ऐसा होता था कि मैं ये सब छोड़कर अपने ख्यालों में फातिमा के पास चला जाता था और उसे गले लगा लेता था। मन कहता था की फातिमा से कह दू की "फातिमा, मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ।" लेकिन जैसे ही मैं यह सोचता था, मुझे अपना अंधापन याद आ जाता था और मुझे बहुत ही दु:ख होता था।
मुझे उदास होता जान कोई ईश्वरी ताकत मुझे हिम्मत देती और मैं अपनी स्थिति को स्वीकार कर गाने की धुन बनाने पर अधिक ध्यान देता।
दो महीने बाद हमारा पूरा एल्बम तैयार हो गया। एल्बम का काम पूरा होने के बाद अभिजीत जोशीने एल्बम को लॉन्च करने के लिए मुंबई में एक बहुत बड़ी और भव्य पार्टी का आयोजन किया। पार्टी में कई बड़े फिल्मी सितारे, म्यूजिक डायरेक्टर, गायक, बिजनेसमैन आदि मौजूद थे। पार्टी में अभिजीत जोशी का एल्बम लॉन्च किया गया।
इस पार्टी में कई पत्रकार और प्रेस रिपोर्टर भी मौजूद थे और अभिजीतजी बहुत शांति से उन सभी को इंटरव्यू दे रहे थे। इस इंटरव्यू के दौरान मैं भी उनके साथ ही था। उनकी वजह से मैं भी धीरे-धीरे लाइमलाइट में आने लगा था। उस वक्त मुझे बिलकुल भी नहीं पता था कि अभिजीत जोशी का वह इंटरव्यू मेरी पूरी जिंदगी की दिशा ही बदल देगा।
उस लॉन्च पार्टी के बाद मेरी जिंदगी में कई बदलाव आने वाले थे, जिनमें से कुछ मेरे लिए खुशियां लेकर आने वाले थे और कुछ दु:खद...
पार्टी खत्म होने के दूसरे दिन मुझे एक फोन आया और मेरी पूरी जिंदगी ही बदल गई।
(क्रमश:)