Tamas Jyoti - 32 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 32

Featured Books
Categories
Share

तमस ज्योति - 32

प्रकरण - ३२

हमारा पूरा परिवार यह जानकर बहुत खुश हुआ कि नीलिमा गर्भवती है। जैसे ही मेरी मम्मी पापा और रईश की बाते ख़त्म हुई की मैंने खुशी के मारे तुरंत फातिमा को फोन किया। मैंने उसे भी यह खुशखबरी दी। ये खबर सुनकर वो भी काफी खुश हुई।

मुंबई आने के बाद मेरा एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता था की मेरी और फातिमा की बात न हुई हो। मैं अपनी जिंदगी की हर छोटी से बड़ी बात फातिमा को बताता था। और फातिमा भी मेरी सारी बाते सुनती थी। अगर कभी-कभी मेरे पास काम की वजह से बात करने का समय नहीं मिलता, तो मैं उसे एक वोईस मेसेज छोड़ देता था और उसके उत्तर में वो भी मुझे वही वॉयस मैसेज ही भेजती थी। मेरे और फातिमा के बीच पता नही कैसा रिश्ता था की हम दोनों एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पा रहे थे!

हालाँकि हम दोनों शरीर से अलग थे लेकिन मन से हम हमेशा एक ही थे। फातिमा के साथ मेरा रिश्ता बाकी सभी रिश्तों से अलग था। हालाँकि फातिमा मेरे साथ नहीं थी, फिर भी वह मेरे दिल के बहुत करीब थी। 

अभिजीत जोशी के साथ हमारे गानों की रिकॉर्डिंग बहुत अच्छी चल रही थी। उन्हें मेरा संगीत पसंद भी आ रहा था। मैंने उन्हें उनको  जो नौ रस के मुताबिक संगीत चाहिए था उसी प्रकार से मैंने सब गीतो की धून बनाकर दी थी। अब तक लगभग आधा काम पूरा हो चुका था। नौ गानों में से हम पांच गाने को धून बनाकर उनका रिकार्डिंग खत्म कर चुके थे। अब सिर्फ चार ही गाने बाकी थे।

पाँच गानों की रिकॉर्डिंग ख़त्म होते ही अभिजीतजी को अच्छी तरह पता था कि नीलिमा की गोदभराई आनेवाली है इसलिए उन्होंने मुझसे कहा, "रोशनजी! आपकी भाभी की गोदभराई की रसम है तो राजकोट होकर आओ। इसी बहाने आपका परिवार से मिलना भी हो जाएगा। आप थोड़े फ्रेश भी हो जाएंगे। आप अब काम के बीच एक ब्रेक ले लीजिए। थोड़ा आराम भी मिल जाएगा आपको। मैंने आपसे दिन-रात बहुत काम लिया है, इसलिए अब मैं ही आपसे कह रहा हूं कि आपको कुछ दिनों का ब्रेक ले लेना चाहिए और इस मौके को अपने घर में खुशी-खुशी मनाकर वापस आईयेगा। आपके यहां वापस आने के बाद ही हम बाकी के चार गानों की रिकॉर्डिंग भी पूरी कर लेंगे।”

मैंने कहा, "हाँ, अभिजीतजी! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। मुझे भी अब सचमुच एक ब्रेक की जरूरत है। मैं कल ही घर जाने के लिए निकलूंगा।"

अभिजीतने कहा, "ठीक है। विराजभाई आपके घर जाने की सारी व्यवस्था कर देंगे। उन्हें आप बता दीजिएगा कि आप किस समय निकलना चाहते है? ताकि वह आपके लिए कार की व्यवस्था कर सकें।" 

मैं बोला, "आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। अभिजीतजी! यदि आप बुरा न मानें तो क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?"

अभिजीतने कहा, "हाँ, हाँ, पूछो! क्यों नहीं?"

मैंने पूछा, "हालांकि यहां मुंबई में बहुत सारे संगीतकार हैं, फिर भी आप राजकोट क्यों आए और मुझ जैसे सूरदास को ही अपने एलबम के लिए क्यों चुना? इसका क्या कारण है?" 

अभिजीतजी की मेरे प्रति इतनी कृपा का कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा था तो उस दिन मैंने सही मौका देखकर उससे वो सवाल पूछ लिया जो काफी समय से मेरे दिमाग में घूम रहा था।

अभिजीतने कहा, "रोशनजी! आपको चुनने का एक निश्चित कारण है, लेकिन कृपया मुझे अभी के लिए माफ कर दें। मैं अभी आपको ये बात नहीं बता सकता हूं, क्योंकि मैंने किसी से वादा किया है। मैं किसी भी परिस्थिति में उस वादे को नहीं तोड़ सकता हूं। जब सही समय आएगा तब मैं खुद चलकर आपको बताउंगा।" उस समय अभिजीतजीने बहुत ही विनम्रता से मेरे सवाल का उत्तर देना टाल दिया था।

मैंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि एक दिन मुझे इस सवाल का जवाब मिल जाएगा।" 

अभिजीतजी से बात करने के बाद मैंने विराजभाई से कहा कि मुझे कल ही राजकोट जाना है तो आप उसकी व्यवस्था कर दीजिए।

विराजभाई मेरा सारा काम बहुत लगन से करते थे। विराजभाई जैसा आदमी पाकर मैं अपने आप को बहुत बड़ा खुशनसीब महसूस कर रहा था। वरना आजकल ऐसा कौन करता है?! आजकल इस दुनिया में हर किसी को सिर्फ अपने स्वार्थ से मतलब रहता है। लेकिन विराजभाई थे जो बहुत ही नि:स्वार्थ भाव से मेरी सेवा कर रहे थे। भगवानने शायद विराजभाई को अलग मिट्टी से बनाया था। विराजभाईने मेरे लिए कल राजकोट जाने की सारी व्यवस्था कर दी थी।

मुझे यहां मुंबई आए लगभग छह महीने हो गए थे। उस वक्त के दौरान मुझे घर जाने का मौका भी बिलकुल नहीं मिला था। राजकोट की जिंदगी की तुलना में यहां मुंबई की जिंदगी बहुत तेज थी। यहां हर कोई बहुत व्यस्त था। मैं भी यहां आकर बहुत ही व्यस्त हो गया था। यहां किसी को एक दूसरे से बात करने तक का समय नहीं था। यहां हर आदमी अपने आप में ही व्यस्त था।

लंबे समय के बाद मैं अपने परिवार से मिलने के लिए बहुत उत्साहित था। परिवार के साथ-साथ मैं भी फातिमा से मिलने के लिए भी बहुत ही बेचैन था। मेरा मन फातिमा तक पहुंच चुका था। इतने समय बाद मैं उससे मिलूंगा, उसकी आवाज़ सुन पाऊंगा ये सब सोचकर ही मैं बहुत उत्साहित हो रहा था।

अगली सुबह मैं मुंबई से कार द्वारा राजकोट अपने घर पहुँच गया। दो दिन पहले ही रईश और नीलिमा भी घर आ गए थे। दोनों काम से कुछ दिनों की छुट्टी लेकर निकले थे।

जब मैं घर पहुँचा, तो मुझे पूरे घर में चहलपहल सुनाई देने लगीं। मुझे ऐसा लगा जैसे सभी लोग खूब हँस रहे थे और मज़ाक कर रहे थे। इन सब आवाजों में मुझे दर्शिनी, फातिमा और नीलिमा की आवाजें ज्यादा सुनाई दे रही थी। मुझे देखकर रईश मेरे पास आया और बोला, "अरे! रोशन! तुम आ गए? तुम कब आये?"

मैंने कहा, "मैं बस अभी-अभी आया हूं। तुम दोनों को बहुत बहुत बधाई हो।" 

मैंने एक बार फिर रईश और नीलिमा दोनों को व्यक्तिगत रूप से बधाई दी। मेरे मम्मी पापा भी मुझे आया देखकर बहुत खुश हुए। हर कोई नीलिमा की गोदभराई के समारोह की तैयारी में व्यस्त था।

पता ही नहीं चला कि एक रात कहां बीत गई और गोदभराई का वह दिन आ गया। गोदभराई में घर के पुरुष मौजूद नहीं रहते है। वैसे तो यह कार्यक्रम केवल महिलाओं के लिए ही होता है। इसलिए घर की महिलाएं घर के अंदर सारी विधि कर रही थी और घर के सभी पुरुषों के लिए घर के बाहर मैदान में बैठने की व्यवस्था की गई थी।

मेरे पापा सब मेहमानों के साथ बैठे थे और मैं रईश के साथ बैठा था। वहीं बैठे-बैठे रईशने मुझसे कुछ ऐसी बात बताई कि जिसे सुनकर मैं एकदम चौंक सा गया।

(क्रमश:)