Tamas Jyoti - 26 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 26

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तमस ज्योति - 26

प्रकरण - २६

मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इतना बड़ा ऑफर मिलेगा। यह प्रस्ताव पाकर मैं और मेरा परिवार बहुत खुश हुए। इस खुशी के साथ-साथ मुझे एक और भी काम करना था और वह था दर्शिनी को समझाने का।

जैसा कि फातिमाने मुझे बताया था, मैंने अवसर का लाभ उठाते हुए दर्शिनी से समीर के बारे में बात की। मैंने उससे पूछा, "दर्शिनी! फातिमाने मुझसे कहा कि तुम और समीर दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं? क्या यह बात सच है?"

दर्शिनी बोली, "ओह! तो फातिमाने आपको भी ये बात बता ही दी न? अब झूठ बोलने का कोई मतलब ही नहीं है। तो चलिए मैं आपको सच बताती हूं। हाँ! भाई! मैं समीर को पसंद करती हूं और उसीसे शादी भी करना चाहती हूं।”

मैंने कहा, "शादी? दर्शिनी! क्या तुम्हें पता है कि तुम किस बारे में बात कर रही हो? तुम तो अभी शादी के लिए बहुत छोटी हो बहन। तुम्हें तो अभी आगे पढ़ना है। तुम्हें जीवन में आगे बढ़ना है। तुम्हें अपना करियर बनाना है। शादी तो अभी बहुत दूर की बात है। फिल्हाल तुम्हारी शादी की उम्र ही नहीं है। फातिमाने जो कुछ भी तुमसे कहा उसमें कुछ भी गलत नहीं है। तुझे उसकी बात को समझना चाहिए। इस उम्र में तुम लोग आकर्षण को ही प्यार समझने लगते हो। मैं और फातिमा, हम दोनों तुम्हारी भलाई के लिये ये सब कह रहे है।"

दर्शिनी बोली, "ओह! तो अब आपको फातिमा की हर बात सच लगती है। क्यों? आख़िर वो आपकी लगती क्या है कि आप उसकी सिफारिश कर रहे हो ?

दर्शिनी की ये बात सुनकर मैं बहुत ही गुस्से में बोल उठा,"दर्शिनी! तुम जो बोल रही हो सोच समझकर बोलो। फातिमा तुझसे उम्र में बड़ी है। उसने तुमसे जो भी कहा वह तुम्हारी भलाई के लिए ही था।" मैं बहुत गुस्से में था। दर्शिनीने फातिमा के बारे में जो कुछ भी कहा, मैं सह नहीं पाया। दर्शिनीने जो कुछ भी मुझसे कहा वह सच ही तो था लेकिन वह मुझे इस तरह से ऐसी बात करेगी वह मेरी कल्पना से बाहर था।

दर्शिनी फिर से बोली, "हाँ, हाँ भाई! अब तो तुम्हें फातिमा की ही सारी बातें सच लगेंगी, लेकिन मैं आपको ये भी बता देती हूँ कि मैं समीर से शादी करके ही रहूँगी।" दर्शिनी गुस्से में क्या कह रही है इसका उसे कोई अंदाजा नहीं था।

"दर्शिनी!" गुस्से में ऐसा कहकर मैंने जोर से हाथ ऊपर उठाया। मेरा हाथ उसे मारने के लिए बढ़ा तो सही लेकिन मैंने तुरंत खुद पर काबू पा लिया।

अचानक इस तरह गुस्से में मेरा हाथ उठता देख दर्शिनी बहुत डर गई और अपने कमरे में चली गई। मुझे भी लगा कि मुझसे ये ग़लत हो गया। मैं भी अपने कमरे में चला गया। मैं उस पूरी रात सो नहीं सका। मैं दर्शिनी के भविष्य के बारे में सोचने लगा। दर्शिनी की सारी बाते सुनकर मैं बहुत डर गया था। मैं सोच रहा था की क्या दर्शिनी सचमुच हमारी बात को कभी भी नहीं समझ पाएगी?

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? फिर मैंने सोचा क्यों न मैं इस मामले पर रईश से चर्चा करु? यही सोचकर मैंने उसे फ़ोन किया। मैंने अपना मोबाइल उठाया और कहा, "कॉल रईश।"

आंखो की रोशनी खोने के बाद मैं मोबाइल फोन पर किसी का नाम पढ़ तो नहीं सकता था लेकिन ऐसे बोलकर किसी को भी कॉल कर सकता था। मैंने टेक्नोलॉजी का अच्छे से इस्तेमाल करना सीख लिया था। यह कहना कि मेरे जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए यह तकनीक एक बहुत ही अच्छा विकल्प है, बिल्कुल भी गलत नहीं है। जिसने भी इस वॉयस कॉलिंग फीचर को विकसित किया है, उसे मैं धन्यवाद देना चाहता हूं।

मैंने अपने मोबाइल पर रईश को कॉल करने का कमांड दिया तो करीब छह-सात रिंग के बाद रईशने फोन उठाया। उसने फोन उठाया तो मैंने उसे आज हुई सारी बातें बता दी।

यह सब सुनकर रईशने मुझे समझाया, "रोशन! तुम इतनी चिंता क्यों कर रहे हो? दर्शिनी अभी बहुत छोटी है। उसकी उम्र अब ऐसी हो गई है कि अगर हम उसे अभी कुछ भी समझाएंगे तो वह समझ नहीं पाएगी। अभी रहने दो। फिलहाल तुम उसको अपने हाल पर ही छोड़ दो। उसे ज्यादा कुछ मत कहना। वो कहावत है न की जितना अधिक आप स्प्रिंग को दबाते हैं, उतना ही अधिक वह उछलती है, इसलिए यदि तुम और फातिमा बारबार उसके साथ यही बात करते रहोगे, तो इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।

कही वो कुछ गलत कदम न उठा ले इसलिए मेरी तुमसे केवल यही सलाह है कि अब तुम और फातिमा उससे इस बारे में बात न करें। और हाँ! सुबह होते ही तुम्हें उससे माफ़ी भी मांग लेनी चाहिए। उसे अच्छा लगेगा। गलती तो तुम्हारी भी है। तुम्हारा हाथ ऊपर नहीं उठना चाहिए था। वह हमारी बहन है। वह लक्ष्मी है हमारे घर की।"

मैंने कहा, "हाँ, रईश! तुम सही कह रहे हो। मैं कल ही दर्शिनी को सॉरी बोलूँगा।" इतना कह कर मैंने फोन रख दिया।

अगली सुबह मैंने दर्शिनी से माफी मांगी। मैंने उससे कहा, "दर्शिनी! आई एम सॉरी। मुझे माफ कर दो। कल मेरा हाथ ऊपर नहीं उठाना चाहिए था लेकिन मेरा खुद पर काबू नहीं रहा। कृपया मुझे माफ कर दो बहन।"

दर्शिनीने कहा, "भाई! क्षमा करें। मुझे भी आपके  साथ इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी।" दर्शिनीने भी मुझसे माफ़ी मांगी। 

मैंने कहा, "कोई बात नहीं बहन। चलो कल हमारे बीच जो कुछ हुआ उसे अब भूल जाते है।"

विद्यालय का कार्यक्रम अब ख़त्म हो गया था इसलिए आज सभी आराम का अनुभव कर रहे थे। अब मैं और फातिमा दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए थे। मेरे मन में फातिमा के लिए प्यार की भावनाएं तो थीं लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि फातिमा अपने मन में मेरे बारे में क्या सोच रही है। 

हम सभी का जीवन बिल्कुल सामान्य रूप से चल रहा था। फिर अचानक एक दिन फोन की एक घंटी बजी जिसने हमारी इस साधारण सी जिंदगी को एकदम असाधारण बना दिया।

उस समय मुझे नहीं पता था कि फोन की वह घंटी मेरा पूरा भविष्य बदलने वाली है। हाँ! वह फोन अभिजीत जोशी का था। उस दिन अभिजीत जोशीने मुझे फोन किया। कुछ दिनों पहले उन्होंने मुझसे जो वादा किया था, उसे उन्होंने अब पूरा किया। उन्होंने मुझे अपने एलबम की संगीत रचना के लिए मुंबई आमंत्रित किया। मैं उस समय अपने सामने आनेवाले इस सुनहरे भविष्य से बिल्कुल अनजान था।

(क्रमश:)