प्रकरण - २५
मुझे नहीं पता था कि मेरे प्रिय गायक अभिजीत जोशी अचानक इस तरह मेरे सामने आ जाएंगे। वह मेरे पास आये और बोले, "आपका नाम ही रोशन है न? आप ही विद्यालय के विद्यार्थियों को संगीत सिखाते है न?"
मैंने कहा, "हाँ, हाँ, मैं ही सिखाता हूँ। मैं..मैं..मुझे समझ नहीं आता, मैं आपको क्या बताऊँ? आप मेरे बहुत...बहुत...पसंदीदा गायक हो। मैं वर्षों से आपसे मिलना चाहता था। मैं जब स्कूल में पढ़ता था तो आपके गाने को सुनते हुए ही बड़ा हुआ था। हमारे घर में पहले से ही संगीतमय माहौल था। आप हमेशा न केवल मेरे लिए बल्कि हमारे पूरे परिवार के लिए प्रेरणा रहे हैं। मेरे माता-पिता उनके स्टेज शो में हमेशा आप ही के गाने ज्यादातर गाते थे।
आपको शायद एहसास न हो लेकिन बचपन में मैंने केवल दो ही सपने देखे थे। एक रसायनविज्ञान में रिसर्च करके वैज्ञानिक बनना और दूसरा संगीतकार बनना। लेकिन कुदरत का ये खेल तो देखो! रिसर्च का सपना तो अब सिर्फ सपना ही रह गया है। क्योंकि, प्रकृतिने मेरी आंखें छीन ली हैं, इसलिए अब संगीतकार बनने का सपना ही बचा है, जिसे मैं अब अप्रत्यक्ष रूप से ममतादेवी की कृपा से पूरा कर रहा हूं। भले ही मैं खुद संगीतकार नहीं बन सका लेकिन अपने इन नेत्रहीन छात्रों को संगीत का ज्ञान देकर मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली महसूस करता हूं।
यह ईश्वर की कैसी लीला है की आज जब आप मेरे सामने हैं तो मैं आपको देख नहीं पा रहा हूं। आप वो है जिन्हें मैं बचपन से ही टीवी पर देखता आया था, और आज जब आप मेरे सामने है तो मैं आपको देख नहीं पा रहा हूं! अरे! कब से मैं अकेला ही बोलता चला जा रहा हूं। आप बताए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?
अभिजीत जोशी कुछ भी जवाब देते उससे पहले ही फातिमा अपनी थाली लेकर वापस आ गई। अभिजीत जोशी को मेरे बगल में खड़ा देखकर वह पूरी तरह से पागल ही हो गई थी और बोली, "हे भगवान! अभिजीत जोशी! कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूं? आप ऐसे अचानक यहां कैसे आ गए? आप यहां हमारे पास खड़े है? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा।"
अभिजीत बोले, "हा! सच कहा आपने। लेकिन ममता और मैं कई सालों से अच्छे दोस्त हैं। हम एक ही स्कूल और एक ही कक्षा में पढ़ते थे। यह संभव ही नहीं है कि ममता का निमंत्रण हो और मैं न आऊं! वैसे तो मैं अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हूं कि बिना किसी कारण बॉम्बे से राजकोट आना बहुत मुश्किल लगता है। इसलिए जब भी ममता का कोई कार्यक्रम होता है तो मैं कुछ समय तो उसके लिए निकाल ही लेता हूं!''
फातिमा खुश होकर बोली, "वाह! यह तो बहुत अच्छा हुआ। इसी बहाने ही हमें आपसे मिलने का मौका तो मिला! आपका नाम तो बहुत सुना था। मैं आज आपसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर बहुत खुश हूं।"
अभिजीत बोले, "अरे! इन सब बातों में मैं जिस काम के लिए आया था वो तो आपको बताना ही भूल गया। रोशनजी! मेरे पास आपके लिए एक ऑफर है। मैं अपना नया म्यूजिक एल्बम लॉन्च करना चाहता हूं। मेरे पास कुछ रचनाएँ पड़ी हुई हैं जिन्हें मैं एक संगीत एल्बम के रूप में रिलीज़ करना चाहता हूं। इसके लिए मैं चाहता हूं कि आप मेरे इस एल्बम के लिए संगीत तैयार करें। बताईए रोशनजी! क्या आप मेरे इस एलबम में संगीत देंगे?"
अभिजीत जोशी की ये बात सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे दिल का दौरा पड़ गया हो। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े और महान गायक अचानक मेरे जैसे आम आदमी से अपने एल्बम में संगीत देने के लिए कहेंगे। कुछ देर तक तो मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या जवाब दूं! मैं पूरी तरह अवाक रह गया था।
मेरी हालत देखकर अभिजीतने मुझसे फिर पूछा, "रोशनजी! आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। क्या आप मुझे एल्बम के लिए संगीत देंगे?"
मैंने कहा, "हां हां। बिल्कुल दूंगा। आप जैसे महान गायक द्वारा मुझे इतना बड़ा ऑफर मिलना ही मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात है।"
अभिजीत बोले, "तो फिर ठीक है। आप मुझे अपना नंबर दीजिए। जब मैं इस एलबम के लिए तैयारी करूंगा तो आपको कॉल करूंगा।" इतना कहकर अभिजीत जोशीने मेरा नंबर ले लिया और वहा से चले गये।
मैं आज बहुत खुश था। मैं यह जानकर बहुत खुशी महसूस कर रहा था कि मुझे इतना बड़ा ऑफर मिला है। मुझे लगा मेरे बगल में बैठी फातिमा भी शायद मेरे लिए खुश ही थी।
अभिजीत के जाने के बाद फातिमाने मेरा हाथ पकड़ लिया। फातिमा का स्पर्श होते ही मैं एकदम झनझना उठा। अचानक वह कहने लगी, "रोशन! यह तुम्हारे लिए बहुत ही अच्छा मौका है। तुम वाकई बहुत भाग्यशाली हो। मैं तुम्हारे लिए बहुत ही खुश हूं।"
मैंने कहा, "अरे! ऐसे इतना भी खुश मत हो जाओ। अभी तो उन्होंने सिर्फ ऑफर ही दिया है। अभी उन्होंने पूरी तरह से बात भी नहीं की है।"
लेकिन तब मुझे नहीं पता था कि बहुत ही जल्द उनका फोन मेरे पर आएगा और मेरी जिंदगी ही बदल जाएगी!
मैंने और फातिमाने फैसला किया कि अब खाना खा लिया था। जो भी मेहमान कार्यक्रम में आये थे वे सभी अब खाना खाने के बाद वापस अपने-अपने घर जा रहे थे। रात काफी हो चुकी थी। फातिमाने मुझे मेरे घर छोड़ दिया। रास्ते में उसने मुझे यह भी याद दिलाया कि मुझे दर्शिनी से समीर के बारे में भी बात करनी है और उसे समझाना भी है।
फातिमा अब मेरे लिए एक दोस्त से बढ़कर बन चुकी थी। मैं उसकी बात को कभी भी टाल नहीं पाता था। मुझे अब उसकी सारी बाते सच ही लगती थी। वो कहते है न की प्यार अंधा होता है! मैं तो वैसे भी अंधा था और फातिमा के प्यार में तो मैं और भी अंधा हो गया था।
घर आकर मैंने अपनी मम्मी और पापा को मुझे मिले ऑफर के बारे में बताया। ये सुनकर वे सब भी बहुत खुश हुए। मेरी ये बात सुनकर दर्शिनी तो पूरी तरह से पागल ही हो गई थी। वो बोली, "वाह भाई! आज का दिन तो आपके लिए बहुत खुशियां लेकर आया है। आपके छात्रोंने आज पहली ही बार में बहुत अच्छा परफॉरमैंस दिया और ऐसे में आपको मिली अभिजीत जोशी की ऑफर! अब तो पार्टी चाहिए भाई!"
मैंने कहा, "हाँ, रईश और नीलिमा जब आएंगे तब पार्टी पक्की। अब तो खुश न!"
तभी फातिमा बोली, "मुझे भी उस पार्टी में शामिल करना मत भूलना। कंजूस मत बनना!"
फातिमा की ये बात सुनकर सभी हंस पड़े।
फिर फातिमा अपने घर वापस चली गई।
फातिमा के जाने के बाद मैं अपने कमरे में आया। मैं थोड़ा फ्रेश होकर बिस्तर पर लेट गया और आज पूरे दिन के अनमोल पलों को याद करके बहुत खुश हो रहा था। मुझे लगा कि आज मेरे घर में भी सभी लोग बहुत ही खुश थे। उन सबने हमारा पूरा कार्यक्रम टीवी पर लाइव देखा था। उन लोगों की ख़ुशी उनकी बातों से ही ज़ाहिर हो रही थी। मुझे लगा, काश! मैं उन सबके चेहरों पर छाई हुई खुशियों को देख सकता! फिर खुद ही अपने मन को मनाता की मेरा पूरा परिवार तो खुश है यही मेरे लिए बहुत है और ऐसा सोचकर अपने आप को खुश रखने की कोशिश करता था।
(क्रमश:)