Tamas Jyoti - 24 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 24

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तमस ज्योति - 24

प्रकरण - २४

दर्शिनी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि फातिमा इस तरह से सीधे ही उससे समीर के बारे में पूछेगी। कुछ देर तक तो उसे समझ ही नहीं आया कि वो उसे क्या जवाब दे! 

फातिमाने उससे फिर कहा, "देखो दर्शिनी! मुझे लगता है कि तुम समीर को पसंद करती हो। मैं ठीक कह रही हूं न?"

दर्शिनीने कहा, "हाँ, फातिमा! मुझे समीर पसंद है, लेकिन तुमने ये कैसे जाना?"

फातिमाने कहा, "इस बात का अंदाज़ा मुझे तभी हो गया था जब तुम समीर के साथ स्कूल आई थी। मैं सोच रही थी कि मुझे तुमसे इस बारे में बात करनी चाहिए या नहीं? लेकिन फिर मैंने ये भी सोचा कि अगर तुम मेरी दोस्त हो तो वो दोस्ती के नाते ही मुझे तुमसे बात करना जरूरी लगा। मैं उम्र में तुमसे बड़ी हूं, इसलिए मेरे पास अनुभव भी ज्यादा हैं। अभी तुम और समीर दोनों ही ऐसी उम्र में हो की तुम लोग क्षणिक आकर्षण को भी प्यार ही समझ लेते हो। प्यार और आकर्षण के बीच एक बहुत महीन रेखा होती है, जिसका एहसास तुम दोनों को अभी नहीं होगा, लेकिन समय के साथ तुम लोगो को इसका एहसास होगा और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मैं तुम्हे बस इतना बताना चाहती हूं कि तुम दोनों अभी बारहवीं कक्षा में हो। अभी तुम दोनों का फोकस सिर्फ पढ़ाई पर होना चाहिए। मुझे गलत मत समझना लेकिन मैं जो कुछ भी तुमसे कह रही हूं, वह सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से कह रही हूं। बाकी तुम दोनों खुद ही समझदार हो। अभी तो मैं तुमसे यही कहूंगी कि अभी अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर दो। यही साल है अपना करियर बनाने का। पहले तुम कुछ बन जाओ। प्यार के लिए तो सारा जीवन पड़ा है। हो सकता है, जो आज तुम्हे प्यार लगता है, कलको उसी के कारण तुम्हे भविष्य में पछताना पड़े।"

दर्शिनी बोली, "नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा। समीर बहुत अच्छा लड़का है। मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ। मुझे उस पर पूरा भरोसा है। मैं अच्छी तरह से जानती हूं की वह मुझे कभी भी धोखा नहीं देगा।" दर्शिनी को फातिमा की बात बिलकुल भी पसंद नहीं आई। दर्शिनी फातिमा से थोड़ी नाराज हो गई थी लेकिन उसने इसे अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दिया।

भविष्य में इसके परिणाम क्या होंगे इस बात से अनजान मैं फातिमा के ख्यालों में ही खोया हुआ था। मेरे कानों में लगातार उसकी आवाज गूंजती रहती थी। जितना मेरे दिमागने सोचा कि मैं अब फातिमा के बारे में नहीं सोचूंगा, उतना ही मेरा दिल फातिमा के खयालों में खो जाता था। दिमाग तो मना कर रहा था लेकिन दिल था की मानता ही नहीं था।

अगली सुबह फातिमा और मैं दोनों स्कूल के लिए निकल गये। रास्ते में फातिमाने उसके और मुझे दर्शिनी के बीच हुई सारी बातें बताई।

फातिमाने मुझसे कहा, "रोशन! मुझे लगता है कि दर्शिनी और समीर के बीच कुछ चल रहा है।"

मैंने पूछा, "कुछ चल रहा है का क्या मतलब? तुम कहना क्या चाहती हो?"

फातिमाने फिर से कहा, "मुझे ऐसा लगता है कि दर्शिनी और समीर दोनोंने एक-दूसरे के प्रति अपने पलभर के आकर्षण को ही शायद प्यार समझ लिया होगा। तुम तो समझते हो न की ये उम्र ही ऐसी होती है। इस उम्र में यह सब बाते बहुत आम होती है, लेकिन मैं तुमसे ये बात इसलिए कर रही हूं क्योंकि मुझे दर्शिनी की चिंता है। मैंने उसे अपनी तरह से समझाने की कोशिश भी की लेकिन उसके साथ बात करते वक्त मुझे लगा कि शायद उसे मेरी बात पसंद नहीं आयी। मुझे लगता है, इन सब चीजों के लिए दर्शिनी अभी बहुत छोटी है।

ये बात तुम्हारे साथ करने का एकमात्र कारण यही है कि तुम दर्शिनी के भाई हो। मुझे लगता है कि तुम्हे और तुम्हारे पूरे परिवार को इसके बारे में सूचित करना मेरा कर्तव्य है, और इसीलिए मैं तुम्हें बता रही हूं। जैसा कि मैंने तुमसे पहले भी कहा की मैंने तो उसे अपने तरीके से समझाने की कोशिश की लेकिन उसे मेरी बातें पसंद नहीं आई। हो सकता है कि वह शायद तुम्हारी बातों को समझ पाए! फिल्हाल प्यार की उसकी उम्र ही नहीं है।”

मैंने कहा, "हां, शायद तुम सही कह रही हो। मैं आज ही घर जाकर दर्शिनी से इस मामले पर बात करूंगा।" 

बाते करते करते थोड़े ही वक्त में हम विद्यालय पहुंच गये। उस दिन अगले दिन होनेवाली कार्यक्रम की रिहर्सल थी। हम सब उसकी तैयारी में जुट गए। रिहर्सल बहुत ही अच्छे से खत्म हो गया।

आख़िरकार वह दिन आ ही गया जिसका हम कई हफ़्तों से इंतज़ार कर रहे थे। आज कार्यक्रम का दिन था। बड़े-बड़े महानुभाव आये हुए थे। हमारे छात्रोंने एक स्वागत गीत गाकर मेहमानों का स्वागत किया जो फातिमा और मैंने उनके लिए तैयार करवाया था। आए हुए मेहमान बहुत खुश थे। पूरा कार्यक्रम बहुत ही अच्छा रहा।

कार्यक्रम की समाप्ति के बाद धन्यवाद समारोह आयोजित किया गया। ममतादेवीने फातिमा को छोड़कर इस कार्यक्रम में भाग लेनेवाले सभी लोगों को मंच पर बुलाया और उन्होंने सभी का नाम लेकर हम सभी का आभार व्यक्त किया। फातिमा मंच पर नहीं आना चाहती थी, क्योंकि अगर वह मंच पर जाती तो कई लोग उसे पहचान लेते, इसलिए उसने और ममतादेवी दोनोंने फातिमा को पर्दे के पीछे रखना ही उचित समझा।

कार्यक्रम में उन्होंने विशिष्ट अतिथि के तौर पर आये राजकोट के मेयर, कलेक्टर और आई.पी.एस. अधिकारी समेत अन्य कलाकारों को मंच पर सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया। मेयरने ममतादेवी के इस विद्यालय के विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी ओर से दस लाख रुपये देने की घोषणा की। मेयर की यह घोषणा सुनने के बाद ममतादेवीने उनका शुक्रिया अदा करते हुए कहा, ''आपने हमारी संस्था को यह बहुत बड़ा तोहफा दिया है। इस तोहफे के जरिए हम अपने छात्रों के भविष्य को बेहतर बना पाएंगे। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।"

यह सुनकर हम सभी बहुत खुश हुए और उनके इस कार्य की सराहना की। सम्मान समारोह के बाद सभी के लिए भोजन की भी व्यवस्था की गई थी। पूरे कार्यक्रम के आयोजन में ममतादेवीने कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। मुझे नहीं पता था कि इस डिनर के दौरान मेरी जिंदगी में बदलाव आनेवाला था।

फातिमा खाने की थाली लेकर मेरे पास आई और बोली, "रोशन! मैं तुम्हारी थाली ले आई हूँ। तुम यहीं कुर्सी पर बैठ जाओ। कुछ ही मिनटों में मैं भी अपनी थाली लेकर आती हूं।"

इतना कह कर फातिमा वहा से चली गयी। मैं हाथ में थाली लेकर सोच ही रहा था कि तभी मुझे अपने पसंदीदा गायक अभिजीत जोशी की आवाज़ सुनाई दी। उनकी आवाज सुनकर मैं एकदम चौंक सा गया। सोचिए अगर आप हमेशा से जिससे मिलना चाहते हों वो अचानक से आपके सामने आ जाए तो आपका क्या हाल होगा! उस दिन मेरी हालत भी बिल्कुल वैसी ही थी।

(क्रमश:)