Shadow Of The Packs - 18 in Hindi Fiction Stories by Vijay Sanga books and stories PDF | Shadow Of The Packs - 18

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Shadow Of The Packs - 18

इसके बाद विक्रांत ने सच्चाई जानने के लिए अपने पापा पृथ्वीराज को फोन लगा देता है। “हेलो...! पापा...!. पापा आपने मुझे बताया क्यों नही की सुप्रिया को दादाजी ठीक कर सकते हैं?” विक्रांत ने अपने पापा से पूछा।

 “बेटा ठीक तो कर सकते हैं...! एक काम करो तुम पहले यहां आ जाओ और अपने दादाजी से खुद ये पूछ लेना। उस लड़की को भी अपने साथ ले आओ।” विक्रांत के पापा ने उससे कहा।

 “ठीक है पापा मैं जल्द ही वहां आ रहा हूं।” इतना कहकर विक्रांत ने फोन काट दिया।

विक्रांत को अपने पापा से बात करने के बाद यकीन हो गया था की अब सुप्रिया ठीक हो जायेगी। वो बहुत खुश नजर आ रहा था। “सुप्रिया... हमे आज के आज ही दिल्ली के लिए निकलना होगा। वहां पहुंच कर हम पहले दादाजी से मिलकर तुम्हे ठीक करने के लिए कहेंगे।” विक्रांत ने मुस्कुराते हुए कहा। 

विक्रांत की बात सुनकर सुप्रिया के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी। फिर विक्रांत ने कबीर की तरफ देखते हुए कहा–“तू भी हमारे साथ चल रहा है। हम आज ही दिल्ली के लिए रवाना हो जायेंगे।” कबीर ने भी विक्रांत की बात पर हां कर दिया।

शाम के पांच बजे तीनों रेलवे स्टेशन पहुंच गए। कबीर ने तीनो के लिए दिल्ली की टिकिट ले ली। तीनों ट्रेन में बैठ चुके थे। सुप्रिया बार बार गुस्से से कबीर की तरफ देख रही थी। जब कबीर ने सुप्रिया को ऐसे देखते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए पूछा–“तुम मुझे ऐसे क्यों देख रही हो? मुजे खा जाओगी क्या?” 

कबीर के इतना कहते ही विक्रांत कबीर की तरफ देखते हुए बोला–“कबीर मजाक मत कर। तूने जो किया है उसके बाद तो तुझे मार देना चाहिए। एक बार सुप्रिया ठीक हो जाए, फिर मैं तुझसे बात करूंगा।” 

विक्रांत की बात सुनकर कबीर समझ गया था की विक्रांत और सुप्रिया उससे कितने ज्यादा नाराज हैं। पर कबीर तो कबीर था। उसने विक्रांत की तरफ देख कर हंसने लगा। “भाई तुम मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते। मैं तुमसे बहुत ज्यादा ताकतवर हूं। मैं चाहूं तो तुझे पल भर में खतम कर सकता हूं। लेकिन तेरी किस्मत अच्छी है की तू मेरा भाई है, इसलिए तू अभी तक जिंदा है। मुझपर ध्यान देने से अच्छा ये होगा की तू अपनी गर्लफ्रेंड पर ध्यान दे। तू अपने आस पास देख, कितने सारे लोग यहां बैठे हुए हैं। कहीं इसको प्यास लगी तो ये तो यहां तबाही मचा देगी। इसलिए इसको शांत करने पर ध्यान दे।” कबीर ने विक्रांत को समझाते हुए कहा।

विक्रांत के दिमाग में तो ये बात आती ही नही की सुप्रिया को इतने लोगो के बीच लेकर आना सही नही है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। विक्रांत सुप्रिया के पास गया और उसके कान में कुछ कहने लगा। “सुप्रिया... तुम थोड़ा आराम कर लो। हमे दिल्ली पहुंचने मे समय लगेगा।” विक्रांत ने सुप्रिया से कहा।

सुप्रिया को भी नींद सी आने लगी थी। वो सोना तो चाहती थी पर उसे अचानक से प्यास लगने लगी। विक्रांत ने जब सुप्रिया को देखा तो वो समझ गया की सुप्रिया को प्यास लग रही है। इसके बाद विक्रांत ने सुप्रिया के कंधे पर हांथ रखा और फिर आने बेग की तरफ इशारा करने लगा। उसके बैग मे खून की कुछ बॉटल्स रखी हुई थी, जो वो अपने और सुप्रिया के लिए लाया था। 

“तुम बैग की तरफ क्या इशारा कर रहे हो? मैं ये बिलकुल नहीं पीने वाली।” सुप्रिया ने घिन्न बाहरी नजरों से बेग की तरफ देखते हुए विक्रांत से कहा। 

“सुप्रिया...! अगर तुमने ये नही पीया तो तुम्हारी प्यास बेकाबू हो जायेगी, और तुम लोगों का खून पीने लगोगी। क्या तुम यही चाहती हो की तुम्हारे वजह से कई लोगों की जान चली जाए!” विक्रांत ने सुप्रिया को समझाते हुए कहा।

 विक्रांत की बात सुनने के बाद सुप्रिया ने ठंडे दिमाग से सोचा और फिर विक्रांत से कहा–“ठीक है तुम इसे छोटे वाले बेग में डाल दो। मैं वाशरूम जाकर इसे पी लूंगी।”

विक्रांत के बेग मे खून की बॉटल देख कर कबीर मुस्कुराने लगा। “ये बोतल का खून...! जो मजा ताजा खून पीने में है, वो मजा बोतल एक खून में कहां।” विक्रांत ने हंसते हुए कहा। 

“तुम जैसे घिनौने जानवर से और क्या उम्मीद की जा सकती है! आखिर लोगो को मारकर उनका खून पीने मे तुम्हे मजा जो आता है।” विक्रांत ने गुस्से से विक्रांत से कहा। 

“भाई , सबकी अपनी अपनी पसंद है। तुम्हे जानवरों का खून पीने में मजा आता है और मुझे ताजा इंसानों का खून पीने मे। दोनो सूरतों में खून तो पीना ही है ना!” कबीर ने कहा।

 “तू अपना मुंह बंद कर ले। मुझे अब अच्छे से पता है की तेरे लिए किसी को मारना कोई बड़ी बात नहीं है। तू जानवर का जानवर ही रहेगा।” विक्रांत ने कबीर से कहा। 

“ठीक है भाई... अभी जो बोलना है बोल ले। बाद मे तो तुझे मेरी ही जरूरत पड़नी है।” कबीर ने अपने मन ही मन मे कहा और ट्रेन की खिड़की से बाहर देखने लगा।

रात मे जब सब लोग सो रहे थे, तब सुप्रिया ने अपना बैग उठाया और वाशरूम चली गई। वाशरूम पहुंच कर उसने खून की बॉटल का ढक्कन खोल और पूरा खून पी गई। खून पीने के बाद वो वापस अपनी जगह पर आकर सो गई।

ट्रेन के लंबे सफर के बाद आखिर तीनों दिल्ली पहुंच ही गए। वो तीनो जैसे ही स्टेशन से बाहर आए की तभी कबीर के पास पृथ्वीराज का फोन आया।

 “हेलो कबीर...! स्टेशन के बाहर तुम्हे हमारा आदमी मिलेगा। वो तुम्हे घर लेकर आ जायेगा।” “जी पापा ठीक है।” कबीर ने अपने पापा से कहा और फिर फोन रख दिया। 

कबीर इधर उधर देख ही रहा था की तभी एक आदमी भागता हुआ कबीर पास आया और कहा–“कबीर सर आपका स्वागत है। बड़े साहब ने आप लोगों को लाने के लिए खास अपनी गाड़ी भेजी है।” उस आदमी ने उन तीनो की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए कहा। 

“अरे श्याम काका...! आपसे मैने कितनी बार कहा है की मुझे आप सर मत बोला कीजिये। आप मुझे मेरे नाम से बुला सकते हैं।” कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा। 

“ऐसा कैसे हो सकता है साहब! आप मेरे साहब हो, मैं आपको नाम लेकर कैसे बुला सकता हूं? और आपके साथ विक्रांत सर भी आने वाले थे ना?” श्याम काका ने कबीर से पूछा। 

“हां वो और उसकी दोस्त पीछे आ रहें हैं। वो देखो वो दोनो आ रहे हैं।” कबीर ने विक्रांत और सुप्रिया की तरफ इशारा करते हुए कहा।
Story to be continued.....
Next chapter will be coming soon.....