Heer... - 20 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | हीर... - 20

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हीर... - 20

दो लोगों के बनाये गये इस प्यार नाम के रिश्ते में.. उन दोनों में से कोई एक तो होता ही है जो उस रिश्ते में बहुत जादा सीरियसली इन्वॉल्व हो जाता है और उस रिश्ते के अधूरे रह जाने की सूरत में वो शख्स बिल्कुल ऐसे ही टूट कर बिखर जाता है जैसे आज राजीव बिखर चुका था... और सिर्फ राजीव और अंकिता के रिश्ते की ही नहीं बल्कि हर उस रिश्ते की... जो टूट जाता है या इन्टेंशनली तोड़ दिया जाता है उसकी सबसे बड़ी विडंबना यही होती है कि... जो धोखा देता है वो तो अपनी लाइफ़ में वैसे ही मस्त हो जाता है जैसे अंकिता हो चुकी थी और वो.. जिसने धोखा खाया होता है उसकी हालत वैसी हो जाती है जैसी आज राजीव की है!! 

कितना दुख होता है ना जब हाथ में हाथ डालकर, बांहों में बांहे डालकर जिंदगी भर साथ निभाने की कसमें खाने वाला वो शख्स... एकदम से अजनबी बन जाता है और अपने ही साथी को खुद की दी तकलीफ़ को ऐसे नज़रअंदाज़ कर देता है जैसे... कुछ हुआ ही नहीं है!! 
कितना अजीब सा लगता है ना!! किसी के जिंदगी से बिना वजह चले जाने से दिल में कितना बड़ा शून्य बन जाता है... हैना!! 

वैसा ही शून्य अपने दिल में लिये हुये राजीव.. चारू की गोद में सिर रखकर रोते हुये अपना दुख उसे बताये जा रहा था और चारू असहाय सी होकर रोते हुये कभी उसकी पीठ सहलाती तो कभी उसके सिर पर हाथ फेरने लगती!! 

चारू जानती थी कि राजीव अपने मम्मी पापा को लेकर कितना संजीदा है और उसकी जॉब उसके लिये क्या मायने रखती है इसलिये राजीव से उसकी जॉब जाने की बात सुनकर थोड़ी देर तक तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि वो राजीव से क्या कहे लेकिन उसे कहना था... उसे राजीव को फिर से वैसे ही मजबूत करके खड़ा करना था जैसा वो था!! 

अपनी गोद पर सिर रखकर रो रहे राजीव का चेहरा उठाकर अपने सामने लाने के बाद चारू ने उसके आंसू पोंछते हुये कहा- अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है तू कि जिंदगी के एक झटके से तेरी पूरी जिंदगी खराब हो जायेगी.. राजीव हम फिर से शुरू करेंगे हम्म्!! मैं, मॉम, पापा जी, मेरे पापा मम्मी.. हम सब तेरे साथ हैं तो तूने ऐसा कैसे सोच लिया कि तू अकेला है हम्म्!! तू चल... कानपुर वापस चल और कुछ दिन रिलैक्स करके मेरे साथ मेरे बैंक में उसी पैकेज पर ज्वाइन कर लेना जो पैकेज तेरा इस जॉब में था... कुछ खराब नहीं हुआ, सब अच्छा हो जायेगा हैना!! मेरा राजीव द बाहुबली इतनी जल्दी नहीं टूट सकता और मैं तुझे टूटने भी नहीं दूंगी!! 

चारू की बात सुनकर राजीव सीधा बैठ गया और उसके बगल में बैठकर अपने भरे गले से बोला- सब यही कहते हैं चारू कि हमेशा साथ निभायेंगे, अंकिता ने भी बहुत बड़ी बड़ी कसमें खायी थीं और देखो.... देखो क्या करके चली गयी!! 

अपनी बात कहते कहते अंकिता को याद करके राजीव फिर से बहुत दुख करके रोने लगा फिर अपने कांपते होंठों से अपनी लड़खड़ाती जुबान में आगे बोला- सारी कसमें, सारे वादे ऐसे तोड़कर चली गयी जैसे... सब मजाक था!! 

चारू ने राजीव को समझाते हुये कहा- राजीव... ये मत सोचना कि मैं तुझे ज्ञान दे रही हूं लेकिन ये जो हमारी जिंदगी होती है ना.. वो असल में हमारी होती ही नहीं है, ये जिंदगी हमें हमारी जिम्मेदारियों को निभाते हुये हमेशा अपने परिवार और अपनों के लिये जीनी पड़ती है, हमारा सबसे पहले फर्ज अपने माता पिता के लिये होता है.. हम हमारे लिये बाद में आते हैं, याद कर कि कितने ऐसे मौके आये होंगे जब तेरी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिये मॉम और पापा जी ने अपनी ख्वाहिशों को खत्म कर दिया होगा और आज जब ये फर्ज तुझ पर आया है कि तुझे उन दोनों की हर ख्वाहिश पूरी करनी है और तू करता भी है... तब तू ऐसे कैसे कमजोर पड़ सकता है राजीव!! उनका तो तू ही एक सहारा है ना और जो तू खुद के साथ कर रहा है उसकी वजह से अगर तुझे कुछ हो जाता... तो उन दो लोगों का क्या होता जिनकी कोई गलती नहीं है, जो तेरे सहारे जिंदा हैं!! तू खुद सोच क्या था तू और क्या हो गया है... राजीव तू अगर ऐसे टूटा तो सिर्फ तू ही नहीं टूटेगा बल्कि उन दोनों की उम्मीदें भी टूटेंगी और उम्मीदों के साथ साथ वो दोनों खुद भी टूट जायेंगे!! 

सिर झुकाकर चारू की बात ध्यान से सुन रहे राजीव ने अपने आंसू पोंछकर उससे कहा- तू मुझे समझा रही है या डांट रही है.. चारू मैं जानता हूं कि मैं गलत कर रहा हूं लेकिन मैं अंकिता को बिल्कुल भी नहीं भूल पा रहा यार,  जब वो मेरा हाथ थामती थी तब जब उसकी उंगलियां मेरी उंगलियों के बीच बनी जगह में आकर फंसती थीं तब ऐसा लगता था जैसे.. कुछ अधूरा सा था मैं लेकिन अब पूरा हो गया हूं, वो जब मेरे सीने से लगती थी तब ऐसा लगता था जैसे इस पूरी कायनात का सबसे खुशनसीब इंसान हूं मैं... मुझे अब कुछ नहीं चाहिये मेरी अंकिता के मिलने के बाद.. लेकिन सब खत्म हो गया, बिना वजह सब खत्म हो गया... पता नहीं उसे मेरी कौन सी बात बुरी लग गयी जो बिना वजह बताये उसने मेरा साथ छोड़ दिया...!! 

राजीव फिर से सुबकने लगा था, वो चाहते हुये भी खुद को नहीं संभाल पा रहा था.. इसके बाद अपने आंसू पोंछकर उसने कहा- मैं जानता हूं कि मैं मम्मी पापा के साथ गलत कर रहा हूं लेकिन अब नहीं... मुझे संभलना  होगा इस झटके से और संभलना ही होगा, हैना चारू... चारू मैं बाहर आ जाउंगा ना इस तकलीफ़ से? मुझे कुछ हो तो नहीं जायेगा ना... मुझे मम्मी पापा के लिये अभी बहुत कुछ करना है, चारू.. तू मेरा साथ देगी ना? तू भी अंकिता की तरह मेरा साथ छोड़ तो नहीं देगी ना... हां चारू तू मेरा साथ देगी ना? 

कोई इंसान दुनिया से चला जाये तो फिर भी थोड़े समय में दिल ये बात एक्सेप्ट कर लेता है कि अब वो इस दुनिया में नहीं है लेकिन जीते जी कोई बिना वजह बताये सारी कसमें, सारे वादे.. सारे सपने तोड़कर चला जाये तो बहुत तकलीफ़ होती है, कभी ना खत्म होने वाली तकलीफ़... हैना??

क्रमशः